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सरोजिनी नायडू- आधुनिक भारत की कवियित्री और स्वतंत्रता सेनानी

February 8, 2018
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सरोजिनी नायडू- आधुनिक भारत की कवयित्री और स्वतंत्रता सेनानी

 

सरोजिनी नायडू और उनका प्रारंभिक जीवन

सरोजिनी नायडू सबसे प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थीं और इन्होंने भारत को ब्रिटिश साम्राज्यवाद से स्वतंत्र कराने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह एक महान वक्ता, समानता के लिए लड़ने वाली और आधुनिक भारत की कवियित्री थीं।

सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में एक बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय ने एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी तथा हैदराबाद के निजाम कॉलेज के प्रधानाध्यापक थे। सरोजिनी नायडू की मां वरदा सुंदरी देवी चट्टोपाध्याय, एक कवियित्री थीं और बंगाली भाषा में कविता लिखती थीं।

सरोजिनी अपने आठ भाई बहनों में सबसे बड़ी थीं और तीव्र बुद्धि वाली छात्रा थीं। उन्होंने 12 वर्ष की आयु में मद्रास विश्वविद्यालय में प्रवेश ले लिया था। एक बार उन्होंने “माहेर मुनीर” नामक एक फारसी नाटक लिखा, जिसको पढ़कर  हैदराबाद के निजाम महबूब अलीखान बहुत ही प्रभावित हुए और उन्होंने सरोजिनी नायडू को छात्रवृत्ति प्रदान की और फिर इन्होंने किंग्स कॉलेज में और बाद में कैंब्रिज के गिरटन कॉलेज में अध्ययन किया। 19 वर्ष की आयु में ये पैड़ीपति गोविंदराजुलु नायडू से मिलीं, जो एक चिकित्सक थे। सरोजिनी और पैड़ीपति अलग-अलग जाति के थे। उस समय अंतर्जातीय विवाह लोकप्रिय नहीं थे, लेकिन सरोजिनी को अपने पिता से, पैड़ीपति गोविंदराजुलु नायडू से विवाह करने की अनुमति मिल गयीं। उन्होंने पढ़ाई पूरी करने के बाद उनसे विवाह कर लिया।

एक कवियित्री से राजनीतिज्ञ बनने का सफर

सरोजिनी नायडू ने बच्चों, प्रकृति, देशभक्ति और प्रेम तथा मृत्यु जैसे विषयों पर कविताएं लिखी हैं। उनकी समृद्ध और मधुर कविताओं तथा उनके विषयों के कारण उन्हें सामान्यतः “भारत की नाइटिंगेल” (भारत की कोकिला) बुलाया जाता है। उनकी कविताएं कल्पना और भावनाओं से परिपूर्ण और अपने भावमय विचारों, शब्दों और काव्यात्मक गुणवत्ता के लिए विख्यात हैं।

1905 में बंगाल विभाजन के बाद, सरोजिनी नायडू स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गयीं। इसके बाद इनकी मुलाकात गोपाल कृष्ण गोखले, रवींद्रनाथ टैगोर, जवाहरलाल नेहरू और एनी बेसेन्ट, जो स्वयं एक नारीवादी नेता थीं, आदि से हुई। गोपाल कृष्ण गोखले ने इनसे भारत के कल्याण के लिए अपनी बुद्धिमत्ता का इस्तेमाल करने का आग्रह किया, जिसके बाद सरोजिनी ने लेखन पर विराम लगा दिया और स्वतंत्रता संघर्ष में सक्रिय भाग लेने लगीं।

वर्ष 1916 में, सरोजिनी नायडू ने चंपारण, बिहार में किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। ब्रिटिश सरकार ने इन्हें इस कार्य के लिए जेल भेज दिया था।

1925 में, इन्होंने कानपुर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक सत्र का संचालन किया। सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय रूप से इनकी साझेदारी थी जिसके लिए इन्हें गांधीजी और अन्य नेताओं के साथ जेल भेज दिया गया था।

1931 में, इन्होंने लंदन में महात्मा गांधी और मदन मोहन मालवीय के साथ गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया।

महिलाओं पर सरोजिनी नायडू का प्रभाव

सरोजिनी नायडू ने भारत की महिलाओं पर अपनी एक अमिट छाप छोड़ी। वे कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षा बनने वाली पहली भारतीय महिला थीं। उन्होंने संयुक्त प्रांत (1947-1949) के राज्यपाल के रूप में भी कार्य किया और वे इस राज्य के राज्यपाल के पद को गृहण करने वाली प्रथम महिला थीं।

स्वतंत्रता आंदोलन के अभियोग को आगे बढ़ाने के लिए, सरोजिनी नायडू विदेशों में भी गईं। 1919 में, वे अखिल भारतीय होम रूल लीग द्वारा नियुक्त सदस्यों में से एक, प्रतिनिधि के रूप में इंग्लैंड गईं। उनकी बेटी, पद्मजा भी उनके पदचिन्हों पर चलकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय नेता बनीं। सरोजिनी नायडू अंत तक काम करती रहीं और 2 मार्च 1949 को कार्यकाल के दौरान ही उनका निधन हो गया।