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उत्तर-पूर्वी संघर्ष

February 27, 2018
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उत्तर-पूर्वी संघर्ष

भारतीय निर्वाचन आयोग ने आधिकारिक तौर पर 18 जनवरी को हमारे देश के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड, जैसे तीन राज्यों में राज्य चुनाव होने की घोषणा की थी और घोषणा के बाद आदर्श आचार संहिता लागू कर दी गई थी। तीन राज्यों में पहली बार वर्ष 1998 में कार्यालय के लिए निर्वाचित होने के बाद त्रिपुरा में सीपीआई (एम) की माणिक सरकार, सबसे लंबे समय तक रहने वाली और पिछले 20 वर्षों में पाँच बार राज्य चुनाव जीतने के बाद राज्य में सबसे अधिक दिनों तक शासन करने वाली सरकार है। आकलन एक महत्वपूर्ण कारक है, जो चुनावी परिणामों के नतीजों को प्रभावित कर सकता है, क्योंकि ये तीनों राज्य इस महीने चुनाव में अहम भूमिका निभा रहे हैं।

उत्तर-पूर्व में भाजपा का उदय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन और नेतृत्व के कारण भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भारी जीत के बाद राज्य और नागरिक निकाय में जीत हासिल करके, भारत के नक्शे पर हस्तक्षेप किया है, क्योंकि भाजपा ‘कांग्रेस मुख्त भारत’ के अपने लक्ष्य को पूरा करने की फिराक में है। उत्तर-पूर्वी एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ वर्ष 2014 के आम चुनाव से पहले भाजपा का कोई अस्तित्व नहीं था, फिर भी मोदी लहर पिछले तीन विधानसभा चुनावों में असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर राज्यों में अपनी जगह बनाने में कामयाब हुई और पार्टी ने इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर वोट हासिल किए। आरएसएस ने समर्थन में कहा है कि भारतीय जनता पार्टी असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में सफलतापूर्वक अपनी सरकार स्थापित करने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि जब से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में जीत हासिल की है, तब से पार्टी के वोट बैंक में इजाफा हुआ है। भारतीय जनता पार्टी के पूर्व रणनीतिज्ञ और असम के वित्त मंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा के साथ वह होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए तीन राज्यों असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में अभियान की अगुवाई में सफलता का अनुकरण करने की उम्मीद करेंगे और इस क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी के गढ़ को मजबूत करेंगे। निश्चित रूप से, यहाँ के आने वाले चुनाव परिणाम अत्यधिक प्रत्याशित हैं, क्योंकि त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन काफी हद तक वर्ष 2019 में होने वाले आम चुनावों के लिए एक सही माहौल बना सकता है।

त्रिपुरा-वाम दलों का गढ़?

भारतीय इतिहास में पहली बार 2018 के त्रिपुरा चुनाव में राजनीतिक पार्टी ‘वाम’ और ‘भाजपा’ एक दूसरे के खिलाफ कड़ी टक्कर देने के लिए तैयार हैं। माणिक सरकार की अगुवाई वाली वाम मोर्चा सरकार वर्ष 1998 के बाद से कांग्रेस के साथ सत्ता में रही है और फिर भी माणिक सरकार, सरकार के खिलाफ एक गंभीर चुनौती प्रस्तुत करने में विफल नजर आ रही है। हाल ही के वर्षों में, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के समर्थन से भारतीय जनता पार्टी ने क्षेत्र में अपना एक गढ़ स्थापित किया है, क्योंकि राज्य में कांग्रेस पार्टी के नेता और सदस्य पार्टी कार्यकर्ताओं के संरक्षण के लिए पार्टी की असमर्थता के कारण असंतुष्ट हो गए हैं और ‘देश के सबसे दीन मुख्यमंत्री’ के खिलाफ खड़े हो गए हैं। इन सदस्यों ने पार्टी बदल दी और भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए, क्योंकि उन्हें लगता है कि पूरे देश में भाजपा पार्टी की छवि बढ़ रही है और इसके अलावा यह पार्टी वाम मोर्चा सरकार का सामना करने के लिए तैयार है और हाल ही में हुए चुनावों में कांग्रेस की तुलना में यह कट्टर विपक्ष साबित हो रहा है। माणिक सरकार को राज्य में शांति लाने का श्रेय दिया गया है, क्योंकि उन्होंने राज्य में विद्रोह को रोकने के लिए विशिष्ट नीतियाँ तथा उपाय किए थे और इस प्रकार, यह सशस्त्र बल विशेष प्रावधान अधिनियम को लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया। अन्य राज्यों के समान ही, इस क्षेत्र में चुनावों का नेतृत्व कर रही, सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाली वाम मोर्चा सरकार की चिंताओं का प्रमुख मुद्दा कार्यकाल है। ऐसे ही कुछ मुद्दे हैं, जो मीडिया के शक के घेरे में हैं, क्योंकि त्रिपुरा सरकार राज्य के युवाओं को रोजगार प्रदान करने में नाकाम रही है, हालांकि सरकार ने राज्य में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा और उच्च शिक्षा सुविधाओं के सुधार के लिए कई नीतियाँ निर्धारित की हैं। पिछली पीढ़ी अब भी वामपंथी के प्रति वफादार हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि माणिक सरकार के बिना राज्य को अभी भी विद्रोह का सामना करना पड़ सकता है, जबकि राज्य के युवाओं का मानना ​​है कि त्रिपुरा विकास और रोजगार के अवसरों के मामले में अन्य क्षेत्रीय राज्यों से पीछे रह गया है। इंडीजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) के साथ भाजपा गठबंधन कानारा ‘चलो पलटाई’ (चलो खत्म करो) निश्चित रूप से वाम दल के वोट-बेस को कम करेगा। सीपीआई (एम) की अगुवाई वाली वाम मोर्चा ने 1993 में कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार को उखाड़ फेंका था और इस बार पहली बार राज्य में एक अलग सरकार बनने की उम्मीद है।

नागालैंड में भाजपा किस तरह से उतरेगी?

जैसा कि नागालैंड, त्रिपुरा और मेघालय के साथ आगामी विधानसभा चुनाव के लिए तैयार हो रहा है और नागा पीपुल्स फ्रंट की अगुआई वाला नागालैंड का सत्तारूढ़ लोकतांत्रिक गठबंधन पिछले तीनों जनादेशों से सत्ता में है। हालांकि, हाल के दिनों में नागा पीपुल्स फ्रंट ने पार्टी में चल रहे आंतरिक पार्टी के टकरावों को देखा है, क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री नेफियू रियो ने वर्तमान मुख्यमंत्री टीआर झेलियांग के साथ असहमति के बाद पार्टी को छोड़ दिया था, जिसके कारण जुलाई 2017 में उत्पीड़न के बाद जेलियांग पार्टी में दिग्गज नेता शुरहोजेली लीजित्सु को लाने के लिए सोच रहे थे। रिपोर्ट के मुताबिक, नेफियू रियो दूसरी तरफ, लोक सभा के पूर्व सदस्य चिंगवांग को नयाक के नेतृत्व में नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी में शामिल हो गए और पूर्व आईएएस अधिकारी अल्मतमसी जमीर एनपीएफ के रूप में भाजपा के साथ अपने गठबंधन को तोड़ना चाहते हैं। इस प्रकार, आगामी चुनावों के लिए एक अस्थिर राजनैतिक युद्ध क्षेत्र बनने के कारण एनडीपीपी, मौजूदा एनपीएफ सरकार को नीचे गिराने की कोशिश कर रही है, जबकि भाजपा अभी अपने दावेदारों का खुलासा करने से कतरा रही है, क्योंकि वह राज्य में अपनी सरकार की स्थापना के बाद असम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर की सफलता को दोहराना चाहती हैं। कांग्रेस ने सीट हासिल करने के लिए एक चुनावी रास्ता तय कर लिया है, क्योंकि वह अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले राज्य को लाभान्वित करने की कोशिश कर रही है और नागालैंड में अगली सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद कर रही है।

क्या भाजपा 15 साल की बदकिस्मती को तोड़ सकता है?

मेघालय और नागालैंड में स्थिति एक समान है, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी 15 सालों से सत्ता में आने की कोशिश कर रही है, जबकि वर्तमान मुख्यमंत्री मुकुल संगमा, लगातार तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने हैं। हाल ही के महीनों में, संगमा सरकार के कई ऐसे विधायक है, जिन्होंने अपनी पार्टी बदल ली है, जिसमें कुछ भाजपा में और कुछ नेशनल पीपुल्स पार्टी में शामिल हो गए है, जिस कारण आने वाले चुनावों में इनको प्रमुख दावेदारों में से एक माना जा रहा है। जबकि भारतीय जनता पार्टी ने एनपीपी (नेशनल पीपुल्स पार्टी) के साथ पूर्वी चुनाव गठबंधन की सभी अफवाहों को खारिज कर दिया है, जैसा कि भाजपा एनपीपी को एक मजबूत दावेदार मानती है और वो गठबंधन करके एक कमजोर भागीदार के रूप में चुनाव लड़ने की इच्छुक नहीं हैं। इस तरह के कदम से दोनों पक्षों के वोटों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। चुनावी गठबंधन को लेकर भाजपा की रणनीति स्पष्ट है क्योंकि चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद भाजपा गठबंधन के लिए स्वतंत्र होगी, जब 3 मार्च को एक बार लोगों की भविष्यवाणी सामने आ जाएगी, जैसा कि पिछले साल मणिपुर में स्थापित सरकार को हटाकर अपनी सरकार लाने की कोशिश की थी। जबकि राज्य के लोग कांग्रेस मुकुल संगमा के नेतृत्व में वाली सरकार पर विश्वास रखते है, वहाँ पर त्रिशंकु विधानसभा बनने का एक मौका है क्योंकि स्वतंत्र उम्मीदवार मेघालय के अंतर्गत सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

2019 के लिए पहला अभ्यास?

2019 के आम चुनावों के मद्देनजर, ‘उत्तर-पूर्व की लड़ाई’ कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है, क्योंकि इन क्षेत्रों के परिणाम अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियों के विश्वास को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं। तीनों राज्य में समान सत्ता है, निश्चित रूप से इस समय भाजपा के पास इन राज्यों में अपनी सरकार स्थापित करने का बेहतरीन मौका है, क्योंकि भाजपा नागालैंड, त्रिपुरा और मेघालय में से किसी भी राज्य में जीत हासिल कर सकती है, इसलिए भाजपा इन क्षेत्र में अपने गढ़ को मजबूत करने की कोशिश कर रही है। दूसरी तरफ, कांग्रेस और वाम मोर्चा इन राज्यों में अपनी सीटों को बरकरार रखने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि ये शेष बचे हुए गैर-भाजपा राज्य हैं, जहाँ भारतीय जनता पार्टी सरकार की सत्ता नहीं है, जब से प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभाली, तब से लगतार दूसरे राज्यों में जीत हासिल करती जा रही है। इस क्षेत्र में भाजपा की वृद्धि निश्चित रूप से इस क्षेत्र में चुनावों के लिए एक अलग अर्थ दे रही है, क्योंकि पहली बार इस क्षेत्र में पार्टियाँ बहुत ध्यान दे रही है और लोग उत्तर-पूर्व क्षेत्र में परिवर्तन की आशा के साथ राज्य के चुनावों का अनुसरण कर रहे हैं।

सारांश
लेख का नाम- उत्तर-पूर्वी संघर्ष

लेखक – वैभव चक्रवर्ती

विवरण- यह लेख देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय में होने वाले आगामी राज्य चुनावों के मुद्दे से संबंधित है। भाजपा आरएसएस के समर्थन से इस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश कर रही है, क्योंकि 2019 लोकसभा के चुनावों से पहले भाजपा तीनों राज्यों में पुरानी सरकार को हराने की उम्मीद करती है।