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भारतीय राजनीति में क्या गलत है?

January 25, 2018
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भारतीय राजनीति में क्या गलत है?

राजनीति से घृणा करने वाले कारणों में एक कारण यह है कि सत्यता शायद ही कभी एक राजनीतिज्ञ का उद्देश्य रही हो। अधिकतर राजनीतिज्ञों का मुख्य उद्देशय चुनाव जीतकर शक्ति प्राप्त करना होता है”- कैल थॉमस

यह एक ऐसा विषय है जिसके बारे में केवल ज्ञान की बातें करके छोड़ने की बजाय इसके दायरे में इसे आजमाने तथा समझने की कोशिश करनी चाहिए।

भारतीय राजनीति को अक्सर चिंतित, व्यवसायिक, रंगीन, विवादग्रस्त, विवादास्पद, उत्तेजक आदि विभिन्न रूपों में वर्णित किया जाता है। यह सब हमेशा उस क्षेत्र के विस्तार पर निर्भर करता है जहाँ से आप चुनाव में खड़े होते हैं। जब आप किसी से भी पता करेंगें कि भारतीय राजनीति में क्या गलत है तो आपको लगभग एक अरब लोगों का एक नया दृष्टिकोण मिलेगा, जो अपने आप में एक कहानी बन जाता है। सही या गलत की पहचान के प्रति लोगों की जागरुकता, चिंतन शक्ति और उपस्थित, भारत में राजनीति की जीवांतता को दर्शाता है।

लोग शासन के साथ राजनीति को भी भ्रमित करते हैं परन्तु यह सच्चाई नहीं है क्योंकि राजनीति का मतलब ही प्रभावी परिवर्तन है। सभी देशों और समाजों में हर समय कुछ न कुछ परिर्वतन होते रहते हैं और राजनीति उस बदलाव को लाने वाला एक साधन है। सामान्यता, लोगों द्वारा अभ्यास की जाने वाली राजनीति भिन्न हो सकती है और वाद-विवाद का विषय भी बन सकती है। हालांकि, यह निर्णय हमें स्वयं करना होता है कि हमें कौन और कैसे नियंत्रित कर सकता है?

प्रशासन, प्रशासक और अधिकारी-वर्ग के लिए है और राजनीति जनता के प्रतिनिधियों के लिए होती है। लोग राजनीति में वास्तविक रूप से शामिल नहीं होते हैं, वे केवल अपनी पसंद के नेता का चुनाव करने के लिए राजनीतिक विकल्प का प्रयोग करने में लगे रहते हैं और अपने नेता का साथ देने वाले समूहों को एकत्र करते रहते हैं। राजनीति वह क्रिया होती है जो नेताओं में निर्वाचित होने से पहले और बाद में पूर्ण रूप से निहित रहती है।

राजनीति के विषय में चर्चा, बहस और प्रोत्साहन के माध्यम से सर्वसम्मति को प्राप्त करने में सफल होने वाले गुण निहित हैं और जो इस आम सहमति को आगे बढ़ाने के लिए कानून और क्रियान्वयन में प्रभाव दर्शाते हैं।

भारतीय राजनीति के साथ क्या सही है?

जब हम पूछते हैं कि भारतीय राजनीति में क्या गलत है, उसके पहले हमें यह जानकारी होना आवश्यक है कि भारतीय राजनीति में क्या सही है। आखिरकार, आजादी के 68 साल बाद भी भारतीय राजनीति और लोकतंत्र जीवित और जीवंत है। जब हम देश के भौगोलिक आकार और अपने लोगों की संस्कृति, धर्म और जीवन शैली की विविधता को ध्यान में रखते हैं तब यह और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है। सभी लोगों को एक साथ एकत्रित होकर अपना प्रतिनिधि चुनने की आजादी होनी चाहिए, जिससे लोगों को अधिक प्रसन्नता मिलती हैं। स्वतंत्रता के बाद, भारत की शायद यह सबसे बड़ी उपलब्धि है, जिस पर गर्व किया जा सकता है।

भारत में पंचायती राज की अवधारणा पर एक नजर डालें। ऐसा कोई अन्य देश नहीं है जो भारत की शासन प्रणाली से एक तिनकेभर भी समानता प्रकट कर सके। यहाँ लोगों को अपने प्रतिनिधियों को चुनने का पूर्ण अधिकार है, जिससे शांति और संतुलन बना रहता है। राजनीति का सक्रिय अभ्यास बहुत ही निचले स्तर से किया जाता है और हम लोग कई वर्षों से इसे करते भी आ रहे हैं। यह सब चर्चा और बहस के माध्यम से आम सहमति को सफलता पूर्वक प्राप्त करने का साधन है।

बेशक, इसमें काफी कमियां हैं, लेकिन तो क्या यह योजना ही नहीं है। यह सब आम सहमति के माध्यम से लोगों के लिए एक बेहतर परिवर्तन लाने के लिए किया जा रहा है, जो इसमें शामिल है। यह सब राजनीति ही कहलाती है और भारत में पूर्णरूप से क्रियान्वित है। भारतीय राजनीति पर गलत व्याख्या करने से पहले हमें यह ध्यान रखना होगा कि अब तक हमने क्या हासिल किया है। यह दोष मुक्त नहीं हो सकता है, लेकिन यह अब तक का सबसे अच्छा विकल्प रहा है, जिसे हमारे लिए काम कर रही राजनीति को प्रदर्शित करने वाला प्रमुख साधन माना जाता है।

तो इसके साथ गलत क्या है?

बिलकुल, हम सबसे आगे आ कर कहते हैं कि हमारा लोकतंत्र संसार का सबसे बड़ा लोकतंत्र हैं और इसे सबसे अच्छा भी माना जाता है। ठीक है, फिर से देखो, क्या वास्तव में इस प्रणाली में प्रतिनिधित्व है? मतदान के समय, लोग विश्वास और समझ के आधार पर अपने नेता का चयन करते है और विकास करने का एक विकल्प बनाते हैं और वह नेता निर्वाचित होने के बाद लोगों के अनुसार  उनका प्रतिनिधित्व करता है। यह आदर्शवाद है लेकिन क्या यह वास्तविक सच है? क्या निर्वाचित नेता वास्तव में यह विचार करते हैं कि लोग क्या चाहते हैं? या अधिकतर नेता अक्सर, अपने स्वार्थ के लिए इसके बारे में क्या चाहते है?

इस तथ्य को बहुत गहनता पूर्वक समझने पर पता चलता है कि अधिकांश भारतीय लोग अभी भी भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धन हैं और उनके घरों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। वह बहुत कम शिक्षित होते हैं और अपने आस-पास के मामलों के प्रति भली प्रकार जागरुकता नहीं दिखा पाते हैं। फिर भी, जो लोग इस श्रेणी में आते हैं, उनमें से 98% लोग उस सरकार को चुनने के लिए जिम्मेदार हैं, जो देश में भविष्य के लिए कानून बनाती है।

बहुत सारे सवाल

एक आदमी का एक वोट भी बहुत मायने रखता है। यह अच्छा है? क्या व्यापक बहुमत वास्तव में निर्णय लेने और उन नेताओं को समझने में सक्षम होता है जिन्हें वे चुनते हैं? शिक्षा और जागरूकता की कमी व निर्धनता से घिरे मतदाता, अक्सर उन नेताओं का चयन करने के लिए मजबूर होते हैं जो उनके जीवन के लिए बेहतर समाधान प्रदान कर सके। परन्तु इसके विपरीत उनके वोटों को खरीद कर उन्हें वोट देने के लिए मजबूर किया जाता हैं। तो क्या वे नेता वास्तव में लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं?

क्या वोटों को खरीदना और बेचना अपरिष्कृत रूप से आम नहीं हैं? क्या हम वोट बैंक की राजनीति में अपने सबसे खराब अस्तित्व को नहीं देखते हैं या जाति और धर्म के आधार पर वोटों को हासिल नहीं कर रहे हैं? धमकी या बंदूक की नोक पर मिले वोटों के बारे में क्या विचार हैं? यह सब होता है और यह भारतीय राजनीति का हिस्सा है।

तो क्या कोई भी खड़े होकर भारतीय लोकतंत्र के गुणों का सही मायने में निष्पक्ष और वास्तविक प्रतिनिधि होने का दावा कर सकता है? क्या हम बड़े गर्व के साथ सीना तान कर यह दावा कर सकते हैं कि हमारा लोकतंत्र दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र है।

मुक्त और निष्पक्ष….वास्तव में?

मैंने अभी ऊपर पंचायती राज की सफलता के बारे में बताया है। वैसे, इसके लिए एक और पहलू है। असली हकीकत यह है कि निचले स्तर पर निभाई गई राजनीति बहुत ही गलत, दयनीय और भ्रष्ट हो सकती है। पंचायत के प्रतिनिधियों का चुनाव अक्सर जाति और रिश्तेदारी के आधार पर किया जाता है और कई बार वह पैसे से पंचायत में पद खरीद लेते हैं। आखिरकार, गांव का स्तर वह क्षेत्र है जो व्यक्ति के आदेशों का सम्मान और प्रभावों का स्तर निर्धारित करता है। यही वास्तविकता है और चुनाव प्रक्रिया में एक मुख्य भूमिका निभाता है।

तो क्या वास्तव में कोई यह कह सकता है कि सभी स्तरों पर भारतीय राजनीति स्वतंत्र और निष्पक्ष है? अधिकांश मामलों में, मतदान प्रक्रिया मुक्त और निष्पक्ष हो सकती है, परन्तु राजनीति की प्रक्रिया जो चुनावों तक व उसके बाद भी चलती है, इसमें संदेह क्या हैं? और इस भारतीय राजनीति में गलत क्या है?

आइए एक और उदाहरण पर एक नजर डालें। बिहार राजनीति मनोरंजक में हमेशा सबसे आगे रहती है। लेकिन जब मुख्यमंत्री को गंभीर अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है और वह अपने पद पर अपनी पत्नी को निष्ठा के तौर पर नियुक्त करता है, ऐसे समय में उस राजनीति की ‘गुणवत्ता’ पर सवाल उठाएं जाते है जो कार्य उनके द्वारा किये जाते हैं। यह ‘भारतीय’ राजनीति हो सकती है लेकिन यह गलत ही नहीं बहुत गलत है।

राजनीति में दुरुपयोगों की सूची असंख्य है और राजनीति की ‘गुणवत्ता’ का अनुभव संदिग्ध है। शिक्षित समुदाय और नागरिक समाज असफलताओं से अवगत हैं जिसमें हम और आप भी हैं, लेकिन हमारे सामने बड़ा सवाल यह है कि हम इसके बारे में क्या कर रहे हैं?

असहनीय को सहन करना एक सबसे बडा खतरा है

सवाल, मतभेद तथा बहस राजनीति और लोकतंत्र का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। लोकतंत्र और राजनीति की ‘गुणवत्ता’ का न्याय पार्टी के अंदर और उसके बाहर की चर्चा और मतभेदों को ध्यान में रखकर किया जाता है।

भारत की उपरोक्त असहनीयता के बढ़ते स्तर को राज्य और राष्ट्रीय राजनीति में व्यापक रूप से देखा जा सकता है। कांग्रेस और भाजपा जैसे पुरानी पार्टियों के साथ कुछ नए युग की पार्टियाँ जैसे आप पार्टी में भी असहनीय लक्षण दिखाए दे रहे हैं। सभी पार्टियाँ किसी ना किसी रूप में मतभेदों को खण्डन करने की दोषी हैं। जब कई पार्टियों के लोगों या उनके स्वयं की पार्टी के सदस्यों ने पूछताछ के दौरान हिंसक तरीकों का सहारा लिया हो तो यह समझना आवश्यक है कि इसमें चिंताजनक विषय क्या है? यहाँ तक कि मीडिया, जो लोगों के लिए रक्षक के रूप में कार्य करती है, उसे भी बख्शा नहीं जाता है।

भारतीय राजनीति में संसद और राज्य विधानसभा के साथ एक अन्य समस्या बढ़ती जा रही है, जो मंच परस्वतंत्र और निष्पक्ष बहस के लिए केवल एक कागज है लेकिन वास्तव में, यह लोगों के एक अत्यधिक क्रोध और आक्रामक व्यवहार को प्रकट करती है। मनमोहन सिंह के पास अन्य पार्टियों के आक्रामक राजनेताओं के खिलाफ क्या मौका है? फिर भी, दैनिक आधार पर हम लगातार चिल्लाते हुए बहस करते रहते हैं। तो क्या यह उचित है कि जिनके पास उचित भाषण देने की क्षमता नहीं है? क्या यह उनकी पूर्व योग्यता के आधार पर जाना जाता है? संसद के प्रत्येक प्रतिनिधि की आवाज समान और निष्पक्ष प्रभाववाली होनी चाहिए और सभी को अपने दृष्टिकोण को व्यक्त करने का समान अवसर दिया जाना चाहिए। यह कहना आसान है कि जैसा व्यवहार दिखता है वह हमेशा के लगभग विपरीत है

भारतीय राजनीति पर संपति व प्रतिष्ठा का प्रभाव, अब इन सभी के लिए सबसे बड़ी समस्या बन गया है। राजनीति एक ऐसे व्यवसाय में बदल गई है, जिसमें बहुत अधिक पैसा है जिसे कानूनी ठंग से बहुत कम परन्तु निजी स्वार्थों के लिए गैर कानूनी ठंग से बहुत अधिक कमाया जा रहा है। यह एक सार्वभौमिक घटना है जो बड़ी समस्या है। जब तक राजनीति से अवैध धन कमाया जाता रहेगा, तब तक इसे दोष मुक्त या निष्पक्ष नहीं बनाया जा सकता है। अगर भारतीय लोकतंत्र की राजनीति को निष्पक्ष रूप से समृद्ध बनाना है तो राष्ट्र के लिए एक साथ आगे बढने का प्रयास करें और समझें कि इसे करना है?

यह समय, हम लोगों के पास जागरूक होने और उन नेताओं और राजनीतिक दलों पर सवाल उठाने, और उन्हें सही प्रकार से बदलने के लिए मजबूर करने का है, जिनके लिए हमारे पास वोट के रूप में एक महत्वपूर्ण अस्त्र उपलब्ध है। क्या यह नहीं है कि लोकतंत्र ही सब कुछ है?