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बाबा बालक नाथ – भगवान कार्तिकेय का अवतार

April 3, 2018
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माना जाता है कि सतयुग में भगवान कार्तिकेय (भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र) ने बाबा बालक नाथ के रूप में अवतार लिया था। उन्होंने यह अवतार राक्षस तारकासुर को मारने के लिए लिया था।

बाबा बालक नाथ का जन्म काठियावाड़, गुजरात में विष्णु और लक्ष्मी  (एक ब्राह्मण परिवार में) के यहाँ हुआ था। उनके जन्म और जीवन के पीछे दो प्रसिद्ध किंवदंतियाँ हैं। एक कथा के अनुसार, उनका नाम देव था और वह भगवान शिव का ध्यान करते थे। उन्होंने शादी नहीं की थी और उन्होंने परम सिद्धि प्राप्त करने के लिए घर को छोड़ दिया था। परम सिद्धि प्राप्त होने पर, वह देव नाम से लोकप्रिय हो गए थे और उनको बाबा बालक नाथ के नाम से जाना-जाने लगा।

स्थानीय लोगों के अनुसार, बाबा बालक नाथ के बारे में एक और कहानी है। जिसमें उनके माता-पिता विष्णु और लक्ष्मी ने बचपन में ही उनका नाम शिव रख दिया था। वह एक साधारण बालक नहीं थे। एक बार जब वह पाँच साल के थे, तो उनके माता-पिता ने उन्हे थप्पड़ मार दिया था। इस घटना के बाद, बाल शिव ने अपने मूल माता-पिता भगवान शिव और पार्वती के पास जाने का फैसला कर लिया था। अपने पुत्र को इतना दुखी देखकर, भगवान शिव और देवी पार्वती उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें एक आशीर्वाद दिया कि वह जीवन भर एक बारह वर्ष के ही बालक रहेंगे और कभी बूढ़े नहीं होंगे। भगवान शिव ने उन्हें एक सिंही भी (भगवान शिव का डमरू) दी थी। इस घटना के कारण बाल शिव को बाबा बालक के रूप में जाना जाने लगा था। उनके भक्तों ने उनका उल्लेख बाबा के रूप में किया है।

हिमाचल प्रदेश में बाबा बालक नाथ का मंदिर- बाबा बालक नाथ एक हिंदू देवता हैं, जिनकी पंजाब और हिमाचल प्रदेश में काफी पूजा की जाती है। हिमाचल प्रदेश के चकमोह गाँव में बाबा बालकनाथ को समर्पित एक बहुत लोकप्रिय मंदिर है। बाबा बालक नाथ के मंदिर को ‘देओत्सिद्ध’ के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर में एक छोटी सी गुफा है, जिसमें बाबा बालक नाथ की एक देव प्रतिमा स्थापित है।

बाबा बालक नाथ से जुड़ा हुआ एक और लोकप्रिय स्थान पंजाब (पाकिस्तान) में स्थित है। यह स्थान रोहतास किले के निकट ‘टिल्ला जोगियाँ’ के रूप में जाना जाता है और यह हिमाचल प्रदेश के ही समान है।

बाबा बालक नाथ के बारे में कुछ जानने योग्य तथ्य-

  • बाबा बालक नाथ दत्तात्रेय के शिष्य थे।
  • बाबा बालक नाथ को प्रसन्न करने के लिए, उनके मंदिर में बकरियों का दान किया जाता है तथा उन बकरियों की मंदिर में बलि नहीं दी जाती है, बल्कि उन्हें उचित ढंग से खिलाया-पिलाया जाता है और उनकी देखभाल की जाती है। भक्त मंदिर के एक तरफ से इन बकरियों को ले जाते हैं और उन्हें मंदिर के दूसरी ओर छोड़ देते हैं, जहाँ उनका भरण-पोषण किया जाता है।
  • कुछ भक्त अपने बच्चों का मुंडन संस्कार भी इस मंदिर में (बाल काटने वाला समारोह) करवाते हैं।
  • मंदिर में बाबा बालक नाथ की एक मूर्ति रखी हुई है, जहाँ महिलाएं नहीं जा सकती हैं। इसलिए प्रत्यक्ष दर्शन की बजाय, महिलाएं एक ऊँचे चबूतरे पर से जो मूर्ति के ठीक सामने बना है, वहाँ से उनकी पूजा कर सकती हैं।

ऐसा माना जाता है कि एक बार माता पार्वती उनसे मिलने के लिए बहुत उत्सुक हुईं, तो वह एक बिल्ली के रूप में बाबा बालक नाथ के समक्ष प्रकट हुईं। बाबा बिल्लियाँ पसंद करते थे, इसलिए बाबा बालक नाथ ने एक या दो दिनों तक बिल्ली के साथ खेला, इसके बाद बिल्ली को छोड़ दिया। चूँकि बाबा बालकनाथ माता पार्वती को याद कर रहे थे, इसलिए उन्हें देखने के लिए गए। उन्होंने अपनी माँ के चेहरे पर खरोंच देखी, ये खरोंच जब वह एक बिल्ली के रूप में उन्हें देखने आई थीं, तब बाबा बालक नाथ के हाँथों से लग गईं थीं। उसी समय बाबा ने महसूस किया कि महिलाएं बहुत नम्र होती हैं और जबकि बाबा एक पत्थर की तरह कठोर हैं। इसलिए उन्होंने महिलाओं को अपने मंदिर में आने से प्रतिबंधित कर दिया था।

  • रविवार को बाबा बालक नाथ के भक्तों के लिए एक शुभ दिन माना जाता है। इस दिन भक्त मंदिर में रोट (गेहूँ के आटे, चीनी और दूध को मिलाकर खूब पकी हुई मोटी रोटी) और कराह (प्रसाद) चढ़ाते हैं।
  • अप्रैल के महीने में, बाबा बालक नाथ को ताजी कटी हुई गेहूँ की फसल भी चढ़ाई जाती है।