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जानिए क्या है सीबीआई बनाम सीबीआई मामला

October 29, 2018
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जानिए क्या है सीबीआई बनाम सीबीआई मामला

इस बार सीबीआई के सुर्खियों में होने के साथ ऐसा लगता है कि देश में सत्ता को लेकर संघर्ष कभी खत्म नहीं होने वाला। हाल ही की घटनाओं की इस श्रंखला में आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना, अर्थात् केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक और उप निदेशक, को वर्तमान प्रभाव से ब्यूरो से बेदखल कर दिया गया है। 24 अक्टूबर 2018 को, भारत सरकार ने नंबर 1 और नंबर 2 के बीच लड़ाई के बाद जिसमें खुद सीबीआई सवालों के घेरे में है, उसके लिए सरकार ने यह कदम उठाने का फैसला किया है। केंद्रीय सतर्कता आयोग ने इस संबंध में हाल ही में अपनी रिपोर्ट में कई बातें साफ की हैं। वर्मा समेत कई लोगों ने सरकार की कार्रवाई की वैधता पर सवाल उठाया है, एम नागेश्वर राव, संयुक्त निदेशक (सीबीआई) को अंतरिम प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया है।

झगड़े की जड़ क्या है?

सीबीआई का यह आंतरिक विवाद अक्टूबर 2017 से अब तक जारी है, हालांकि इस समय इस मुद्दे को हेडलाइन्स बना दिया गया है। जब राकेश अस्थाना को, स्टर्लिंग बायोटेक विवाद (2011) में पूर्व के नाम की वजह से, पहली बार सीबीआई के कार्यकारी निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था, तब वर्मा ने आपत्ति जताई थी। हालांकि, उनकी शिकायत नहीं सुनी गई और अस्थाना ने 2016 में अपना पद ग्रहण किया।

पिछले एक साल में, दोनों ने एक-दूसरे पर आरोपों की झड़ी लगा दी। निदेशक अस्थाना ने आलोक वर्मा पर एक मामले में 2 करोड़ रूपए की रिश्वत लेने का आरोप लगा दिया जिसके बाद आलोक वर्मा ने पलटवार करते हुए वही आरोप अस्थाना पर लगाया। विशेष रूप से, सवाल यह है कि इससे पहले विवादास्पद व्यवसायी मोइन अख्तर कुरैशी के मामले में सीबीआई के दो प्रमुख- ए पी सिंह और रणजीत सिन्हा पतन का कारण बने थे।

सीबीआई ने आधिकारिक तौर पर अस्थाना के खिलाफ एक एफआईआर के साथ-साथ, छह शिकायतें दर्ज कराईं हैं, जबकि उन्होंने निदेशक के खिलाफ आरोपों की झड़ी लगा दी। जांच एजेंसी ने विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के खिलाफ 15 अक्तूबर को कुरैशी मामले में रिश्वत लेने के लिए मामला दर्ज किया था। हालांकि दिल्ली उच्च न्यायालय ने विशेष निदेशक की अपील पर सीबीआई को विशेष निदेशक के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने का निर्देश दिया।

राफेल सौदा कितना उपयुक्त है?

हाल ही में चल रहे इस विवाद को देश में “सीबीआई बनाम सीबीआई” के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, इस विवाद की तुलना में इस कहानी को लेकर और भी बहुत कुछ है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, जो अस्थाना को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पसंदीदा मानते हैं, ने आरोप लगाए हैं कि सरकार ने वर्मा को उनके पद से हटा दिया ताकि उन्हें विवादास्पद राफेल सौदे में जांच करने से रोका जा सके।

“सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा राफेल घोटाले से संबंधित दस्तावेज जमा कर रहे थे। इन सब से बचने के लिए उन्हें जबरन छुट्टी पर भेजा गया था। यहां पर प्रधानमंत्री का संकेत स्पष्ट दिखाई दे रहा है “उन्होंने कहा था कि जो भी राफेल मुद्दे के करीब आएगा उसे हटा दिया जाएगा।

सच में, हालांकि वर्मा के पास ऐसे कई महत्वपूर्ण मामले थे जिसके लिए उन्हें शीघ्र ही एक्शन लेने के लिए कहा गया था। उनमें से कुछ थे: राफले सौदे का मामला, प्रधानमंत्री के सचिव के खिलाफ शिकायत आदि। स्टर्लिंग बायोटेक का मामला, जिसमें अस्थाना का नाम आया था, जबकि अलोक वर्मा के तहत एक और मामला है। स्वाभाविक रूप से, विरोधी पक्ष ने वर्मा के शीघ्र एक्शन लेने पर संदेह जताया है, जिसमें अब अरविंद केजरीवाल जैसे नेता शामिल हो रहे हैं।

आंतरिक कलह का एक साधारण मामला?

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कथित रूप से कानून के विरुद्ध वर्मा और अस्थाना को हटाने के लिए सरकार पर लगाए गए आरोपों को नजरअंदाज कर दिया। उनके अनुसार, केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) और केंद्र सरकार को ब्यूरो का संचालन करने का अधिकार है। मीडिया से बात करते हुए, उन्होंने कहा है कि” यह कदम पूरी तरह अंतरिम उपाय के रूप में” सीबीआई की संस्थागत अखंडता को बनाए रखने के लिए था। इस पद पर नए निदेशक के साथ, 14 सीबीआई अधिकारियों को अब तक स्थानांतरित कर दिया गया है।

राफेल सौदे को लेकर चारों ओर हो रही राजनीति के साथ यह सीबीआई मामले में भी प्रमुख बना हुआ है। यह अब आंतरिक अशांति का एक साधारण मामला नहीं है।

आगे का रास्ता

सुप्रीम कोर्ट आलोक वर्मा की, छुट्टी पर भेजने के सरकार के फैसले के बारे में, याचिका पर 26 अक्टूबर को सुनवाई करेगा। खंडपीठ में नए नियुक्त हुए मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई शामिल होंगे। अदालत ने फैसला किया है कि यह एक याचिका है जिसके लिए तत्काल सुनवाई की आवश्यकता है। अपने बयान में, आलोक वर्मा ने देश को “स्वतंत्र” सीबीआई रखने की आवश्यकता पर बल दिया है। वर्तमान उथल-पुथल के बारे में बात करते हुए, उनका कहना है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उच्च पदाधिकारियों ने कुछ जाँच को उस तराके से नही लिया जो सरकार के लिए वांछनीय हो सकता है।

देश सुप्रीम कोर्ट के संभावित फैसले का इंतजार कर रहा है, सरकार की असुविधा पर वर्मा के इस अप्रत्यक्ष संकेत ने विपक्षियों के लिए आरोपों का पिटारा खोल दिया है। कांग्रेस पार्टी ने 26 अक्टूबर को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है।

फैसला चाहें जो भी हो एक बात तो निश्चित है, सीबीआई का नाम जनता की नजरों में कलंकित हो गया है। ब्यूरो की संरचना पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है और सुनिश्चित करें कि यह वास्तव में “स्वतंत्र” संस्था के रूप में कार्य करने में सफल हो।

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इस बार सीबीआई के सुर्खियों में होने के साथ ऐसा लगता है कि देश में सत्ता को लेकर संघर्ष कभी खत्म नहीं होने वाला। लेकिन, क्या यह सिर्फ आंतरिक कलह का मामला है या फिर कुछ और?
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