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तिरुमाला तिरुपति की अद्वितीय दिव्यता का अनुभव

February 20, 2018
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तिरुमाला तिरुपति

एक हिंदू भक्त के लिए, तिरुमाला की व्यक्तिगत यात्रा करना अपने सम्पूर्ण जीवन की आध्यात्मिक आकांक्षाओं को पूरा करने के समान है। यह एक ऐसा पवित्र धार्मिक स्थल है, जहाँ पर हर रोज दुनिया भर से आने वाले हजारों श्रद्धालु दैवीय आर्शीवाद प्राप्त करते है।

तिरुमाला का ऐतिहासिक काल

हिंदू पौराणिक कथाओं में वैष्णव परंपरा के अनुसार, पृथ्वी पर तिरुमाला को एकमात्र वैकुंठ और पूजनीय भगवान वेंकटेश्वर, भगवान बालाजी, भगवान नारायण एवं भगवान श्रीनिवास का घर माना जाता है।

तिरुमाला का मंदिर सात पहाड़ियों से घिरा हुआ है जो आदि शेष (शेषनाग) के सात फनों का प्रतिनिधित्व करती हैं। तिरुमाला के संदर्भ में, 500 ईसा पूर्व से 300 ईसवी तक के तमिल लेखों से पता चलता है कि उस समय इस स्थान को थिरूवेंगादम के नाम से जाना जाता था। तिरुमाला बालाजी मंदिर को वैष्णव संप्रदाय के 108 पवित्र मंदिरों में से एक माना जाता है।

चोल, पांड्या और पल्लव साम्राज्यों के शासकों द्वारा इन मंदिरों की लंबे समय तक देख-रेख की गई थी। वे वैष्णव परंपरा के सच्चे अनुयायी थे और उन्होंने मंदिरों के प्रबंधन और हिंदू दर्शन के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

यह मंदिर विजयनगर शासकों और बाद में मराठा सेनापति (जनरल) राघो जी भोंसले के संरक्षण में रहने के साथ मंदिर परिसर में आने वाले अत्याधिक भक्तों और अगंतुकों के कारण काफी समृद्द रहा। इसके बाद, इस मंदिर का संचालन कार्य ब्रिटिश सरकार के अधीन आ गया, जिन्होंने 1933 में मंदिर का संचालन कार्य तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम (टीटीडी) को सौंप दिया। तभी से, तिरुमाला तिरुपति देव स्थान (टीटीडी) मंदिर परिसर का संचालन कार्य देख रहा है और उन्होंने तिरुपति में और उसके आसपास के क्षेत्रों में कई सामाजिक कल्याणकारी क्रिया-कलापों का आयोजन करवा चुके है।

हिन्दू भक्तों के लिए, तिरुमाला की यात्रा करना एक पवित्र यात्रा से कहीं बढ़कर है, क्योंकि यह उनके लिए दिव्यता का अनुभव करने वाली एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा है। प्रत्येक श्रद्धालु भगवान के साथ एक व्यक्तिगत संबंध का अनुभव करता है, क्योंकि वह व्यक्तिगत रुप से दर्शन करने के लिए पवित्र धार्मिक स्थल में साफ मन से प्रवेश करता है।

तिरुपति तिरुमाला मंदिर का पुल इतना मजबूत है कि विशेष अवसरों पर दो गुने से अधिक संख्या में लगभग 70,000 से भी ज्यादा तीर्थयात्री रोजाना तिरुमाला के दर्शन करने आते है।

भगवान का विनम्र प्रस्तुतीकरण

तीर्थयात्री विनम्रता के साथ तिरुमाला पहुँचते हैं और इस सुखद यात्रा का एक हिस्सा भगवान को भेंट चढ़ना भी है। यहाँ पर नकद या आभूषण के रुप में अपनी अनमोल संपत्ति और कमाई को दान में देना, एक लंबे समय से चली रही परंपरा का हिस्सा रहा है। इतना ही नहीं, पिछले साल तिरुमाला तिरुपति देवस्थान (टीटीडी) ने हुण्डी संग्रह के द्वारा 1,065 करोड़ रुपये दान स्वरुप प्राप्त करने का रिकॉर्ड कायम किया।

तिरुपति तिरुमाला मंदिर में सबसे बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते है इसके अतिरिक्त यह मंदिर दुनिया का दूसरा सबसे धनी मंदिर माना जाता है।

हर रोज बड़ी संख्या में आने वाले श्रद्धालुओं को देखते हुए तिरुमाला तिरूपति देवस्थान (टीटीडी) ने प्रतिदिन के माध्यम से विभिन्न दर्शनों की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया है। जो तीर्थयात्री दर्शन करने के लिए तिरुमाला की यात्रा हेतु टिकट खरीदना चाहते है, तो उनके लिए स्थानीय (बाह्य) काउंटरों के अलावा ऑनलाइन भी टिकट उपलब्ध हैं। टिकट 3 दिन से पहले और अधिकतम 90 दिनों से पहले की अवधि में खरीदा जा सकता है।

दर्शन / सेवा में शामिल है:

  • अर्चनार्थ दर्शनम्
  • सुप्रभातम्
  • निलापाद दर्शनम्
  • अर्चना सेवा
  • विशेष पूजा
  • थामला सेवा
  • तिरुपवड़ा सेवा
  • अष्टदला पदा पद्मराधानमू सेवा
  • कल्याणोत्सवम्
  • सहस्र कलाभिषेकम्

तिरुमाला तक पहुँचना

तिरुपति तक पहुँचने के लिए तीर्थयात्रियों के पास हवाई मार्ग, ट्रेन या सड़क मार्ग का विकल्प है। चेन्नई और हैदराबाद से सीधी उड़ानें तिरुपति के लिए भरी जा सकती हैं। तिरुपति का अपने स्वयं का रेलवे स्टेशन होने के कारण कई रेलगाड़ियों तिरुपति से होते हुए गुजरती हैं। कई बसें आंध्र प्रदेश के विभिन्न स्थानों से सीधे तिरुपति के लिए जाती हैं।

तिरुपति से तिरुमाला तक पैदल चलकर भी जाया जा सकता है जैसा कि कई तीर्थयात्री जाना पसंद करते हैं, लेकिन इसके अलावा व्यक्तियों की इच्छा अनुसार, तिरुमाला तिरूपति देव स्थान (टीटीडी) ने मंदिर परिसर में मुफ्त बस सेवा भी चलाई है।

पवित्र स्थान के लिए आध्यात्मिक यात्रा

तिरुपति से तिरुमाला तक पैदल चलकर जाने वाले तीर्थयात्रियों के लिए कई सुविधाएं प्रदान करायी जाती हैं। वे अपने समान को तिरुमाला तिरूपति देवस्थान (टीटीडी) प्रबंधन के पास रसीद लेकर जमा करा सकते हैं और जब वे पहाड़ी की चोटी पर मंदिर परिसर में पहुँच जाते हैं तो वे अपने समान को वापस ले सकते हैं।

पहाड़ी की ओर पैदल चलकर जाने वाले श्रद्धालु उस एक प्रतिज्ञा का हिस्सा हैं जो उन्होंने ली होती है और उनके लिए आध्यात्मिक अनुभव आरम्भ होता है, क्योंकि वे 9 कि.मी. की दूरी तक पड़े हुए पत्थरों के माध्यम से अपना रास्ता बनाते हुए आगे बढ़ते हैं। इन मार्गों को “सोपान मार्ग” (सीढ़ियां) कहा जाता है।

प्रसाद का उल्लेख किए बिना तिरुमाला की यात्रा का उल्लेख अधूरा रह जाएगा। प्रसिद्ध तिरुपति लड्डू, विशेष रूप से स्वचालित जर्मन मशीनों द्वारा बनाए जाते हैं और ये प्रसिद्ध तिरुपति लड्डू, तीर्थयात्रियों को उनकी यात्रा पूरी होने के बाद घर वापसी के समय पवित्र प्रसाद के रुप में दिए जाते हैं।

तीर्थयात्रियों को रास्ते में मुफ्त प्रसाद दिया जाता है, क्योंकि वे सोपान मार्ग के माध्यम से घुमावदार रास्तों से होते हुए जाते हैं, जब वे तिरुमाला तिरुपति के दर्शन कर लेते हैं तो उन्हें प्रसाद के रुप में मुफ्त भोजन करवाया जाता है। यहाँ पर प्रतिदिन पंद्रह हजार श्रद्धालुओं को भोजन करवाया जाता है।

अपने बालों को भगवान को अर्पित किए बिना, श्रद्धालुओं की तिरुमाला की यात्रा को अधूरा माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि हर दिन विशाल मात्रा में एकत्र किए गए बालों के ढेर को वास्तव में साफ करके विदेशों में निर्यात किये जाते है। बालों की बिक्री से प्राप्त हुए धन संग्रह को कल्याणकारी गतिविधियों और संबंधित सामाजिक कार्यों में लगाया जाता है।

तिरुमाला में तीर्थयात्रियों की आध्यात्मिक यात्रा और दिव्य अनुभव को बड़ी सुंदरता के साथ कैमरे में कैद कर लिया गया है और इसे 27 मार्च 2017 को नैशनल ज्यॉग्रैफिक चैनल पर प्रसारित किया गया था।