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भारत में जेनेरिक दवाएं: अधिक जागरूकता की आवश्यकता है

January 19, 2018
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भारत में जेनेरिक दवाएं: अधिक जागरूकता की आवश्यकता है

ज्ञात तथ्य यह है कि भारत जेनेरिक दवाओं के मामलों में वैश्विक नेता है, जो दवाएं अफ्रीका और अमेरिका सहित कई अन्य उभरते हुए बाजारों में निर्यात की जाती है। 2 अक्टूबर 2012 को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और भारतीय चिकित्सा परिषद ने एक निर्देश जारी किया था कि भारत में जेनेरिक दवाओं को ब्रांडेड नामों के तहत नहीं, बल्कि उनके सामान्य नामों से ही बेचा जाएगा और केंद्र एवं राज्य सरकारों के अस्पतालों में सभी डॉक्टरों और चिकित्सकों को सामान्य नामों के साथ ही दवाएं लिखनी चाहिए। हालांकि, आज भी ब्रांडेड दवाओं का उपयोग जारी है।

जेनेरिक दवाओं के बारे में आपको जानना चाहिए

जेनेरिक दवाओं की रासायनिक संरचना ब्रांडेड दवाइयों के समान ही  होती है। लेकिन वे रासायनिक नामों से ही बेची जाती हैं, जिनसे आम जनता परिचित नहीं होती है। उदाहरण के लिए, लोकप्रिय ब्रांडेड दवाओं के तहत जैसे क्रोसिन और कैलपोल आती है, जबकि जेनेरिक दवाओं में इसका नाम पेरासिटामोल है। भारत में 2005 तक, दवा बाजारों में संयुक्त राज्य अमेरिका और एफडीए के खिलाफ कोई पेटेंट कानून नही था और इसका मतलब यह था कि भारत में कोई भी व्यक्ति कानूनी प्रभाव के बिना किसी भी दवा को दुबारा ले सकता था। इससे  ब्रांडेड जेनेरिक दवाओं (देश में जेनेरिक दवा शेयर का 99.5%) की मांग और हिस्सेदारी बढ़ गई।

जेनेरिक और ब्रांडेड दवाइयों की कीमतों में अंतर

सरकार द्वारा जेनेरिक दवाओं की वकालत करने के पीछे मुख्य कारणों में से एक जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं के बीच कीमतों का अंतर था। 2010 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ लोकप्रिय दवाओं में उनके जेनेरिक नामों और ब्रांडेड नामों के बीच कुछ कीमतों का अंतर निम्नानुसार था:

पैनकिलर (दर्द निवारक)

  • जेनेरिक दवा पेरासिटामोल की कीमत 2.45 रुपये , जबकि ब्रांडेड दवा क्रोसिन की 11 रूपये और कैलपोल की कीमत 10.70 रुपये है।
  • जेनेरिक पेरासिटामोल सिरप का मूल्य 9.00 रूपये और ब्रांडेड क्रोसिन सिरप की कीमत 15.00 रूपये है।
  • जेनेरिक दवा डाइक्लोफेनेक + पेरासिटामोल की कीमत 4.4 रुपये और ब्रांडेड डिक्लोजेसिक दवा की कीमत 19.40 रुपये है।

एंटीबायोटिक दवाइयाँ

  • जेनेरिक अमोक्सिसिल्लिन की कीमत 13.2 रुपये, ब्रांडेड एलएमएक्स की कीमत 40 रूपये और रिमॉक्स की कीमत 38.7 रुपये है।
  • जेनेरिक एजिथ्रोमाइसिन का मूल्य 41.8 रुपये है, जबकि ब्रांडेडएज़ी का मूल्य 107 और अज़िथ्राल का मूल्य 128.55 रुपये है।

विटामिन्स

  • जेनेरिक फोलिक एसिड 2.8 रुपये और ब्रांडेड फोलवाईट की कीमत 11.8 रुपये है।
  • जेनेरिक बी कॉम्प्लेक्स की कीमत 1.8 रुपये और ब्रांडेड बिकासुल की कीमत 11.0 रूपये है।

ये तो केवल कुछ उदाहरण हैं।

जेनेरिक दवाओं को वरीयता क्यों होनी चाहिए।

सरकार द्वारा जेनेरिक दवाइयों को लोकप्रिय और सस्ता बनाने का मुख्य कारण यह है कि निजी अस्पतालों में इन ब्रांडेड दवाइयों की भरपाई नहीं हो सकती है। वैसे भी, भारत की 70% से अधिक आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है तथा जिसमें से लगभग 35% व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे आते हैं या फिर इस स्थिति के करीब हैं। जेनेरिक दवाओं के उपयोग करने के पीछे एक अन्य कारण डॉक्टरों के अनैतिक प्रक्रियाओं को कम करना है, जो जानबूझकर जेनेरिक दवाओं की बजाए ब्रांडेड दवाएं लिखते हैं। यह मात्र अफवाह है कि निजी डॉक्टर्स केवल ब्रांडेड दवाएं लिखते हैं, क्योंकि फार्मा कंपनियों से प्रोत्साहन या रिश्वत मिलती हैं। जेनेरिक दवाओं का उपयोग, जो ब्रांडेड दवाओं से अलग नहीं हैं, बल्कि स्वास्थ्य देखभाल पर बढ़ती लागत को कम कर देगीं और गरीब लोगों को लाभ प्राप्त होगा।

चिकित्सक जेनेरिक दवाओं के बारे में क्या कहते हैं?

इन जेनेरिक दवाओं के बारे में डॉक्टरों की राय में अंतर है। ज्यादातर डॉक्टर जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता को लेकर सहमत नहीं हैं। एम्स में एक डॉक्टर के मुताबिक, “कुछ जेनेरिक दवाएं ऐसी है, जो ब्रांडेड दवा की तरह असर नहीं करती है। एम्स में, कुछ जेनेरिक दवाओं का नियमित प्रयोग नहीं होता है, क्योंकि लोग इन जेनेरिक दवाइयों के स्थान पर ब्रांडेड दवाइयों का इस्तेमाल करना अधिक पसंद करते हैं।”

जेनेरिक दवाइयों और ब्रांडेड दवाइयों की गुणवत्ता में अंतर है या नहीं, डॉक्टरों, दवाखाने, दवा विशेषज्ञ के साथ पूरे चिकित्सकीय बिरादरी द्वारा इस संबंध में जवाब देना मुश्किल है। इन दवाइयों के प्रयोग के संबंध में, कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि ये दवाइयां अच्छी होती हैं और ब्रांडेड दवाइयों के समान हैं। बल्कि अन्य लोगों को ऐसा लगता है कि ये दवाइयां अच्छी और उच्च गुणवत्ता वाली नहीं होती हैं और इसी क्रम में कुछ लोगों को ऐसा भी लगता है कि ये दवाइयां कम प्रभावी होती हैं, लेकिन जेनेरिक दवाओं का मार्केट में कोई भी विज्ञापन नहीं है, इसलिए ब्रांडेड दवाइयों की उपलब्धता और गुणवत्ता के बारे में डॉक्टर्स अधिक संतुष्ट हैं।

जेनेरिक दवाएं कहाँ उपलब्ध हैं?

जेनेरिक दवाएं लगभग सभी कैमिस्ट (दवाखाना) दुकानों पर उपलब्ध हैं, लेकिन वे सारी जेनेरिक दवाओं का भंडार नहीं रखते हैं। एक जेनेरिक दवा खरीदने के लिए, रोगी को ब्रांडेड दवा का जेनेरिक वर्जन पूछना पड़ता है। जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा देना सरकार के औषधीय विभाग की जिम्मेदारी है। लेकिन दुर्भाग्य से, जेनेरिक दवाओं का प्रचार और मार्केटिंग ठीक से नहीं की गईं है या बिल्कुल भी नहीं की गई है। सस्ती दवाओं को बढ़ावा देने के लिए, सरकार ने 2008 में एक जन औषधि नाम की योजना चलाई थी, जिसका उद्देश्य देश भर में जेनेरिक दवाओं की दुकानें खोलना था। इस योजना के अंतर्गत देश में 3,000 जेनेरिक दवाओं के दवाखाना स्थापित करने का लक्ष्य था, लेकिन 2012 तक सिर्फ 300 दवाखानों की स्थापना हो पाई थी।

जेनेरिक दवाएं क्यों लोकप्रिय नहीं हैं?

भारत में एक ज्ञात तथ्य यह है कि लोग उत्पाद के “ब्रांड नाम” से अधिक प्रभावित होते हैं, जिसमें कपड़े, सौंदर्य प्रसाधन, ऐक्सेसरीज, किराने, ड्यूरेबल्स या दवाइयाँ शामिल हैं। दवाओं के बाजार के मामले में, ब्रांड नाम अधिक लोकप्रिय हैं। दवाइयों के कुछ नाम लोगों के मन पर एक शक्तिशाली प्रभाव डालते हैं, जिससे दवा और ब्रांड दोनों का पर्याय बन गया है। ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) दवाओं के लिए, अधिकांश लोग उनके रासायनिक या जेनेरिक नामों के बजाय ब्रांडेड नामों से अवगत हैं।

हाँ, जेनेरिक दवाओं को लेकर लोगों में जागरूकता की कमी है। यह टीवी धारावाहिक, ‘सत्यमेव जयते’ के माध्यम से बताया गया था कि जेनेरिक दवाओं के अस्तित्व के बारे में बहुत से कम लोग जानते हैं। इसके अलावा भारत में, आबादी का एक निश्चित भाग ऐसा है, जो यह मानते हैं कि ये दवाएं तुलनात्मक रूप से काफी सस्ती हैं, इसलिए इनका असर कम हो सकता है, या फिर इनकी गुणवत्ता में कमी हो सकती है। दवाखाना वाले वही दवा देते हैं, जो डॉक्टर पर्चे पर लिखकर देते हैं और अधिकतर मामलों में डॉक्टर जेनेरिक दवाएं नहीं लिखते हैं।

जागरूकता की कमी के लिए सरकार स्वयं जिम्मेदार है। औषधीय विभाग जेनेरिक दवाओं का पर्याप्त प्रचार और जन औषधि योजना के उचित कार्यान्वयन न होने की वजह से विफल रहा है।

जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा देने वाले उपाय

  • जेनेरिक दवाइओं का अधिक प्रयोग करने से अवैध चिकित्सा (इलिसिट) पद्धतियों को कम किया जा सकता है।
  • भारत के मेडिकल काउंसिल ने डॉक्टरों को जेनेरिक दवाएं लिखने के सख्त निर्देश दिए हैं। लेकिन, फिर भी निजी अस्पतालों के अधिकतर डॉक्टर्स ऐसा बहुत कम करते हैं और इनसे ऐसा करवाने के लिए हमें सख्त नियमों को अपनाना चाहिए ताकि अधिक से अधिक चिकत्सकों को  जेनेरिक दवाएं लिखने के लिए मजबूर किया जा सके।
  • ‘जन औषधि योजना’ को और अधिक सफल बनाने के लिए विशेष कदम उठाने की आवश्यकता हैं।
  • डॉक्टर्स के बिग- फार्मा के संपर्कों को समाप्त करने के उपाय किए जाने चाहिए।
  • एमसीआई (मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया) को और अधिक जेनेरिक दवाइयों के सबंधं में व्यावहारिक दिशा निर्देश प्रदान करने की जरूरत है।
  • इसके अलावा सरकार को सामान्य जनता के बीच जेनेरिक दवाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उपाय करने चाहिए।
  • आज भी जन औषधि दवाखाना उपलब्ध हैं, जो या तो सरकारी अस्पतालों में या गैर सरकारी में या सार्वजनिक स्वास्थ्य केन्द्रों में और अस्पताल प्रशासन में चलाए जाते हैं। जेनेरिक दवाइयों के दवाखाना खोलने के लिए अधिक से अधिक निजी कंपनियों या व्यक्तियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • सरकार को, जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं की एमआरपी (अधिकतम खुदरा मूल्य) पर विशेष नियंत्रण रखना चाहिए ताकि आम आदमी तक जेनेरिक दवाओं का लाभ पहुँच सकें।
  • आईएमए (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) को जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता, सुरक्षा और किफायती सुनिश्चित करने के लिए सरकार को उपाय करने चाहिए।