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कार्यस्थल पर महिलाओं का उत्पीड़न रोकने वाले कानून

March 24, 2018
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यौन उत्पीड़न

कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न, भारत की एक बहुत ही आम समस्या है और यह बहुत गंभीर भी है। कार्यालयों में महिलाओं का विभिन्न तरीकों से यौन उत्पीड़न हो सकता है। उत्पीड़न एक ऐसा घिनौना व्यवहार है, जो स्त्री को परेशान और विचलित तथा उसकी इज्जत को तार-तार कर देता है। कार्यस्थल पर एक महिला के साथ बॉस, सहकर्मियों तथा पर्यवेक्षक द्वारा यौन उत्पीड़न या किसी भी प्रकार का शारीरिक, मानसिक तथा व्यवहारिक उत्पीड़न करना एक दंडनीय अपराध है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। भारत में, पुरुष सदस्यों द्वारा महिलाओं के साथ कार्यस्थल पर किए जाने वाले यौन उत्पीड़न, मनोवैज्ञानिक या भेदभावपूर्ण व्यवहार के संबंध में कई कानून लागू किए गए हैं। कार्यस्थल पर एक महिला के साथ यौन उत्पीड़न का मतलब है कि उसकी समानता, जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के साथ खिलवाड़ करना। यह कार्य एक शत्रुतापूर्ण कामकाजी वातावरण पैदा करता है, जो महिलाओं को भलीभाँति अपने काम से हतोत्साहित करता है और इससे समाज में महिलाओं का विकास भी प्रभावित होता है।

कार्यस्थल उत्पीड़न के कुछ सामान्य रूप 

  • कार्यस्थल पर लिंग, धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव, जिसमें रंग और रूप भी शामिल हैं।
  • किसी की अफवाहें फैलाना और बिना दोष के बदनामी करना।
  • कार्यालय में किसी एक व्यक्ति से दूरी बनाना।
  • किसी पर गलत तरीके से शासन करना।
  • किसी को धमकी देना।
  • डराने वाली भाषा के साथ धमकी देना।
  • बिना किसी कारण, किसी व्यक्ति को उसके कार्य या उसके उत्तरदायित्व से निकालना।
  • उचित कारण के बिना किसी व्यक्ति को पद से हटा देना।
  • कर्मचारी के लिए दिशानिर्देशों को लगातार बदलना।
  • किसी पर दोषपूर्ण मजाक करना।
  • अपमानजनक मेल भेजना या अपमानजनक कॉल करना या कामोद्दीपक चित्र भेजना।
  • शारीरिक दुर्व्यवहार या यौन के बदले में समर्थन करने के लिए कहना।
  • भारी काम का बोझ सौंपना या अवास्तविक समय सीमा निर्धारित करना।
  • व्यक्ति की सहमति के बिना, उसको शारीरिक रूप से प्राप्त करना आदि।

यह कुछ यौन उत्पीड़न के सामान्य रूप हैं, जिनका आमतौर पर महिलाओं को सामना करना पड़ता है।

संविधान

  • अनुच्छेद 14 और 15: इस अनुच्छेद के अनुसार, समानता पर बल देने और लिंग, धर्म, जाति या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव करने पर रोक लगाई गई है।
  • अनुच्छेद 19: इस अनुच्छेद के अनुसार, सभी नागरिकों चाहे वह पुरुष हो या महिला, उनको किसी व्यवसाय को चुनने या कार्य करने और किसी भी व्यापार, व्यवसाय या पेशे को शुरू करने का समान अधिकार है।
  • अनुच्छेद 21: इस अनुच्छेद के अनुसार, प्रत्येक नागरिक को गरिमा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ जीवन जीने का अधिकार है। सभी लोगों को महिलाओं के साथ कार्यस्थल पर आदर, सभ्यता और गरिमा के साथ व्यवहार करना चाहिए।

विशाखा के दिशा-निर्देश

यह वर्ष 1997 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित, कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के उद्देश्य से दिशानिर्देशों का एक समूह है। विशाखा दिशा-निर्देशों में शामिल हैं:

  • नियोक्ता द्वारा कार्यस्थल पर एक शिकायत समिति का गठन किया जाना चाहिए।
  • सभी नियोक्ताओं को कानूनों से अवगत होना चाहिए और किसी भी रूप से उत्पीड़न को रोकना चाहिए।
  • यौन उत्पीड़न निषेध।
  • कार्यस्थल पर महिलाओं के लिए कोई प्रतिकूल वातावरण नहीं होना चाहिए।
  • उत्पीड़ित व्यक्ति अपने स्थानान्तरण या दोषी व्यक्ति के स्थानान्तरण के लिए कह सकता है।

कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013

कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम द्वारा 2013 में, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित विशाखा दिशा निर्देशों को अधिक्रमित कर दिया गया था। महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए लोकसभा द्वारा 3 सितंबर 2012 को और राज्यसभा द्वारा 26 फरवरी 2013 को यह अधिनियम पारित किया गया था। यह अधिनियम 9 दिसंबर 2013 को लागू हुआ था, लेकिन इस अधिनियम को राष्ट्रपति की सहमति 23 अप्रैल 2013 को मिली थी।

अधिनियम के प्रावधान

  • सभी कार्यालयों में 10 से अधिक कर्मचारियों के लिए, वहाँ की शिकायतों से निपटने हेंतु एक अनिवार्य शिकायत समिति होनी चाहिए।
  • कर्मचारियों के बीच के दो सदस्यों को सामाजिक कार्य या कानूनी ज्ञान का अनुभव होना चाहिए।
  • साथ ही शिकायत समिति का एक सदस्य यौन उत्पीड़न से संबंधित मुद्दों से संबंधित गैर-सरकारी संगठनों से होना चाहिए। नामांकित सदस्यों में से पचास प्रतिशत महिलाएं होनी चाहिए।
  • कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामलों को 90 दिनों के अंदर वहाँ की शिकायत समितियों द्वारा हल करना होगा। अन्यथा जुर्माना लगाया जाएगा, जिससे कार्यालय का पंजीकरण या लाइसेंस रद्द हो सकता है।
  • यौन उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति को बरखास्त किया जा सकता है। इसके अलावा अगर आरोप झूठे साबित होते हैं, तो शिकायतकर्ता को इसी तरह की सजा का सामना करना पड़ सकता है।
  • अधिनियम के तहत उनकी भूमिका और कर्तव्यों का उल्लंघन करने के मामले में दोषी व्यक्ति पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है।
  • दंड के रूप में 1 से 3 वर्ष तक का कारावास या जुर्माना हो सकता है।
  • जैसा कि यौन उत्पीड़न को एक अपराध माना जाता है, इसलिए पीड़िता को अपराधियों की रिपोर्ट करनी चाहिए।

हाल ही के दिनों में तहलका के फाणेष मूर्ति और तरुण तेजपाल जैसे उच्च प्रोफाइल वाले यौन उत्पीड़न के कुछ मामलों को देखते हुए, कई संगठनों का मुख्य भय प्रतिष्ठा का नुकसान है। यह एक बेहतर कदम साबित हो सकता है, क्योंकि इससे कंपनियाँ प्रतिष्ठा और एक वित्तीय पतन जैसे नुकसान का सामना करने की बजाय, कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की रोकथाम पर ध्यान केंद्रित करेगीं।

कठोर प्रावधानों के बावजूद, क्या यह भरोसा किया जा सकता है कि सभी कानूनों के विपरीत, यह प्रावधान महिलाओं को स्वतंत्रता दिलाएंगे?