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प्राकृतिक रंगों से अपनी होली को बनाएं स्पेशल

February 26, 2018
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प्राकृतिक रंगों से अपनी होली को बनाएं स्पेशल

हाँ, रंगों के भारतीय त्यौहार, होली को अब चंद दिन ही शेष रह गए हैं। एक बार फिर से तरह तरह के रंग, जिन्हें सामान्यतयः “गुलाल” कहा जाता है, सड़क के किनारों पर और बाजारों में, बहु-रंगीं पिचकारी (पानी वाली बंदूक) और अन्य होली के सामानों के साथ बेचें जा रहे हैं। बहुत से चमकदार रंगों वाले गुलाल का आकर्षण, हमें उन्हें खरीदने के लिए आकर्षित करता है। लेकिन, सच यह है कि इनमें से अधिकांश रंगों में रासायनिक सामग्री की अधिकता होती है, जो मानव त्वचा के लिए काफी हानिकारक होती है।

कृत्रिम “गुलाल” में हानिकारक तत्व

आमतौर पर अधिकाशतः बाजार में उपलब्ध विविध प्रकार के “गुलाल” का उपयोग औद्योगिक और रंगाई के उद्देश्यों के लिए किया जाता है। इन रंगों में पाए जाने वाले कुछ हानिकारक तत्व निम्न हैं:

  • कॉपर सल्फेट से हरे रंग की प्राप्ति होती है।
  • मर्करी सल्फेट का प्रयोग लाल रंग के लिए किया जाता है।
  • काले रंग में ऑक्साइड प्रमुख भूमिका निभाता है।
  • एल्युमिनियम ब्रोमाइड का उपयोग करके सिल्वर रंग की प्राप्ति होती है।
  • बैंगनी रंग के लिए क्रोमियम आयोडाइड का उपयोग किया जाता है।
  • नीले रंग के लिए प्रशियनब्लू का उपयोग करते हैं।
  • चमकदार रंगों को पाने के लिए, गुलाल में काँच के पाउडर का उपयोग किया जाता है।

आक्साइड धातुओं और रासायनिक रंगों के अतिरिक्त, कुछ खास रंग ऐसे भी होते हैं, जो आसानी से साफ भी नहीं होते हैं और काफी समय तक आपकी त्वचा पर दिखाई पड़ते हैं। यह स्थायी या पक्के रंग के रूप में जाने जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इन रंगों में ग्रीस, रसायन, इंजन के तेल और अन्य विलायकों जैसे संघटक शामिल होते हैं।

हानिकारक प्रभाव

क्रत्रिम रंगों में प्रयुक्त की जाने वाली सामग्रियों में विषैले पदार्थ भी हो सकते हैं और इनके प्रभाव निम्न होते है:

  • आँख में जलन
  • त्वचा रोग
  • अंधापन
  • धूल से एलर्जी
  • चकत्ते और चरम के मामलों में विभिन्न जीर्ण बीमारियाँ और चरम रोग हो सकते हैं।

इन रंगों में इस्तेमाल होने वाले विभिन्न विषाक्त पदार्थों में उनकी व्यक्तिगत कमियाँ मौजूद होती हैं। उदाहरण के लिए, विशेषज्ञों का कहना है कि काले रंग का इस्तेमाल गुर्दे संबधी विघात और अध्ययन की अक्षमता को बढ़ावा देता है। इसी तरह, कॉपर सल्फेट आँखों की एलर्जी, अस्थायी अंधापन और दमा का कारण बनता है। क्रोमियम आयोडाइड के कारण एलर्जी होने की संभावना बढ़ जाती है और सिल्वर रंग के गुलाल में एल्युमीनियम ब्रोमाइड का इस्तेमाल होता है, जिससे कारसीनोजेनिक समस्याएं होती हैं, जबकि मर्करी सल्फाइट त्वचा के कैंसर का कारण बनता है। इसलिए गर्भवती महिलाओं को यह सलाह दी जाती है कि होली में इन रंगों का कतई उपयोग न करें, क्योंकि यह गर्भ में अवशोषित हो सकता है और बच्चे को नुकसान पहुँचा सकता है। क्या यह एक डरावनी परिस्थिति नहीं है?

हर्बल या प्राकृतिक रंगों का बढ़ता महत्वः

यह कोई महत्व नहीं रखता है कि ये रंग कितने आकर्षक हैं, लेकिन इनकी गुणवत्ता की जाँच करना बहुत ही आवश्यक है, ताकि स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से बचाव की उपेक्षा की जा सकें। आपको इस प्राचीन त्यौहार को अधिक मनोरंजक और हानिकारक रहति बनाने के लिए प्राकृतिक या कार्बनिक रंगों का उपयोग करना चाहिए। वास्तव में, आधुनिक वर्षों में पर्यावरण के अनुकूल और रासायन मुक्त रंगों के महत्व पर बल दिया गया है। ये रंग त्वचा के अनुकूल हैं और पर्यावरण के नजरिए से भी हानिकारक नहीं हैं।

कार्बनिक रंगों की मुख्य विशेषताएं:

  • गैर-विषाक्त
  • त्वचा के अनुकूल
  • नुकसानदायक धातुओं से मुक्त
  • साफ करने में आसान
  • कार्बनिक सामग्री से सुसज्जित

हर्बल कार्बनिक रंगों में प्रयुक्त सामग्रीः

हर्बल कार्बनिक रंग आमतौर पर कार्बनिक पदार्थों, हल्दी, चुकंदर, कुमकुम, इंडिगो (नील का पौधा) की पत्तियों, सफेद मैदा, गुलाब की पंखुड़ियों, गेंदा के फूल, बेसन, तुलसी की पत्तियों, मेहंदी की पत्तियों, चंदन के पाउडर और कार्बनिक पदार्थों तथा विभिन्न प्रकार की फूलों की किस्मों से बने होते हैं।

दिल्ली में हर्बल रंग कहाँ उपलब्ध हैं?

यद्यपि, सभी पड़ोस की दुकानों और प्रमुख बाजारों में कार्बनिक गुलाल आसानी से उपलब्ध हैं, लेकिन उन्हें प्रमाणित जैविक उत्पादों का विक्रय करने वाली प्रामाणिक दुकानों से खरीदना बेहतर है। आप जनपद खादी भंडार, दिल्ली हाट और फैब इंडिया के साथ-साथ सेंट्रल कॉटेज इंडस्ट्रीज एम्पोरियम में भी अच्छी गुणवत्ता वाले कार्बनिक गुलाल प्राप्त कर सकते हैं।

अपने पसंदीदा प्राकृतिक रंगों को स्वयं बनाइएः

पीला: पीले रंग का गुलाल बनाने के लिए जैविक हल्दी और बेसन को मिलाएं। इसके अतिरिक्त आप दूसरे प्रकार से पीले रंग का गुलाल प्राप्त करने के लिए सूखे गेंदों के फूल या पीले रंग की गुलदाउदी को पीस कर उनका इस्तेमाल कर सकते हैं।

हरा: कुछ ताजी मेहंदी की पत्तियों को सुखा लें और उनसे हरे रंग का गुलाल बनाने के लिए उन्हें पीस लें। आप आलू या बेसन के साथ हिना पाउडर को मिलाकर विभिन्न प्रकार के हरे रंगों को प्राप्त कर सकते हैं।

नीला: यदि आप नीले गुड़हल के फूलों को सुलभता से प्राप्त कर सकते हैं, तो उन्हें सुखाकर और पीसने के बाद अच्छी तरह से नीले रंग रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।

लाल: लाल रंग बनाने के लिए कार्बनिक सिंदूर का उपयोग करें या फिर गुलाब की पंखुड़ियों या लाल गुड़हल के फूलों को सुखा लें और उन्हें पीस कर, सुदंर लाल रंग प्राप्त कर सकते हैं।

तो इस होली में कार्बनिक रंगों या घर में निर्मित प्राकृतिक रंगों का ही उपयोग करें। पानी वाले रंगों से होली खेल कर पानी बर्बाद करना बंद करें। इस होली को अधिक मनोरंजक और पर्यावरण के अनुकूल बनाएं।

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