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भारत में वरिष्ठ नागरिकों की स्थिति

March 15, 2018
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भारत में वरिष्ठ नागरिक

भारत में वरिष्ठ नागरिक

अपने जीवनकाल में कार्य करने, परिवारों की स्थापना करने तथा अनगिनत तरीकों से देश की सफलता में योगदान देने के बाद, वरिष्ठ नागरिको को सम्मान के साथ निवृत्त होने का अधिकार है – चार्ली गोंजालेज

भारत में वरिष्ठ नागरिकों के प्रति हमारा दृष्टिकोण उदासीन है, क्योंकि यह बिन्दु अत्यधिक चिंताजनक है। हम उनसे अलग होकर कैसे खुश रह सकते हैं, क्योंकि अगर हम अपने वरिष्ठों के दृष्टिकोण को देखें, तो पता चलता है कि यह एक ऐसी स्थिति होती है, जिसका सामना सभी को करना पड़ता है। हमारा दैनिक जीवन धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है तथा अपने पूरे जीवन में हम उनसे थोड़ी देर अस्पष्ट रूप से मिलने के अलावा, शायद ही कभी उनसे भावनात्मक रूप से जुड़ने की कोशिश करते हैं। यह विचार करने वाली बात है कि एक वरिष्ठ नागरिक चाहें वह महिला हो या पुरुष अपने भावनात्मक संबंधों के लिए तरसते हैं। वह अपने बुढ़ापे का जीवन प्रसन्नतापूर्वक तथा शालीनतापूर्वक गुजारने के लिए वर्तमान पीढ़ी से थोड़े से प्यार और आदर-सत्कार की आशा करते हैं।

परंतु फिर भी वास्तविकता कठोर है। क्या हम लगभग रोज एक नई कहानी नहीं सुनते हैं कि कैसे एक बूढ़ी माँ, एक पिता और कभी-कभी दोनों ही अपने बेटे या बेटी द्वारा अकेले छोड़ दिए जाते हैं, क्योंकि वह उन्हें अपने साथ नहीं रखना चाहते हैं? तो क्या हमारा समाज कमजोर है? क्या हम इतने कठोर या भौतिकवादी बन रहे हैं कि हम उन बहुत से लोगों को नजरअंदाज करते जा रहे हैं, जिन्होंने बचपन में हमारे बीमार होने पर अपनी रातों की नींदें तक त्याग दी थी। याद रखें कि कैसे उन्होंने अपने जीवन की पूरी कमाई और समय को सिर्फ हमें एक सभ्य घर प्रदान करने के लिए व्यय कर दिया तथा उनमें सबसे अच्छी बात यह होती है कि वह यह सब सहन कर सकते हैं?

आज के समय में बड़ों का अनादर, अनदेखी, तथा उन्हें अकेला छोड़कर नामुनासिब व्यवहार करना बहुत प्रचलित है और ऐसा हमारे आसपास घटित हो रहा है। हमें सिर्फ अपनी आँखें खोलने और देखने की आवश्यकता है।

सत्य का घृणित पक्ष

क्या हमारा समाज मजबूत परिवार बंधन, संस्कृति और परंपराओं की गहराई तथा नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण है? तो चलिए, हम वास्तविकता की जाँच करते हैं। क्या आप जानते हैं कि बड़ों के साथ दुर्व्यवहार अब भी क्रियाशील है और यह हमारे बीच में हो रहा है?

वर्ष 2012 में हेल्पएज इंडिया के एक अध्ययन के अनुसार, भारत के 20 शहरों के आकलन में बहुत ही निराशाजनक तथ्य उभरकर सामने आए हैं।

  • जिन लोगों को दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा उनमें से 75 प्रतिशत लोग परिवार के साथ रहते थे तथा उनमें 69 प्रतिशत उसी घर के मालिक थे।
  • इनमें आधे से अधिक लोग 4 वर्षों से भी ज्यादा समय से दुर्व्यवहार का और उस दुर्व्यवहार के कई रूपों का सामना कर रहे थे।
  • उनमें से 50 प्रतिशत से अधिक लोगों को दुर्व्यवहार जैसी इस स्थिति का सामना 5 वर्षों से भी अधिक समय तक करना पड़ा था। जबकि 33 प्रतिशत लोगों को 3 वर्ष तक इसका सामना करना पड़ता है और 1 प्रतिशत से कम लोगों को 6 वर्षों से अधिक समय तक इस दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है।
  • उनमें से 55 प्रतिशत लोगों द्वारा दुर्व्यवहार की सूचना नहीं दी गई। जबकि उनमें से 80 प्रतिशत लोगों ने परिवार के सम्मान को बनाए रखने के लिए इस मामले की सूचना नहीं दी।
  • प्राथमिक दमनकर्ताओं के 56 प्रतिशत मामलों में बेटों का हाथ था, जबकि उसके बाद के 23 प्रतिशत मामले बहुओं से संबंधित थे।
  • वृद्ध व्यक्तियों ने काफी हद तक दुर्व्यवहार, अनादर, उपेक्षा और मौखिक दुर्व्यवहार का अनुभव किया है।

हालांकि, वर्ष 2013 की हेल्पएज इंडिया की रिपोर्ट के आँकड़े एक अलग प्रतिरूप को प्रकट करते हैं:

राष्ट्रीय स्तर पर, बहू को (39 प्रतिशत) दुर्व्यवहार के प्राथमिक अपराधी के रूप में सूचित किया गया है तथा बेटे के (38 प्रतिशत) द्वारा भी इस कार्य को बारीकी से अपनाया गया है। वर्ष 2012 के आँकड़ों की अपेक्षा यह एक आकस्मिक परिवर्तन है।

  • 23 प्रतिशत से अधिक वृद्ध व्यक्तियों को एक भाग के पाँचवे हिस्से भर जातीय ढंग से दुर्व्यवहार का अनुभव होता है।
  • 83 प्रतिशत वृद्ध व्यक्तियों का चौथा-पाँचवां हिस्सा परिवार के साथ रहता है।
  • राष्ट्रीय स्तर पर 79 प्रतिशत वृद्ध व्यक्ति सबसे सामान्य रूप से अनादर जैसे दुर्व्यवहार का सामना करते हैं।
  • 76 प्रतिशत मौखिक दुर्व्यवहार के बाद, 69 प्रतिशत वृद्ध व्यक्तियों ने उपेक्षा और 39 प्रतिशत वृद्ध व्यक्तियों को निराशाजनक रूप से मार-पीट का सामना करना पड़ता है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 35 प्रतिशत वृद्ध व्यक्तियों को रोजाना दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है।
  • 16 प्रतिशत वृद्ध व्यक्तियों को 6-10 वर्षों तक, 28 प्रतिशत लोगों को 3-5 वर्षों तक तथा 26 प्रतिशत लोगों को 1-2 वर्षों तक दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है।
  • इनमें से 70 प्रतिशत लोगों के द्वारा उनके साथ हुए दुर्व्यवहार के मामलों की रिपोर्ट नहीं दर्ज कराई गई है।

तो, क्या आप इस प्रकार के किसी भी मामले के बारे में जानकारी रखते हैं? क्या ऐसा आपके घर या किसी और के घर में घटित हो रहा है? या क्या आप अपने आस-पड़ोस में किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं, जिसे दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है? सच्चाई यह है कि वास्तविक रूप से ऐसा हमारे चारों ओर घटित हो रहा है, लेकिन हम या तो इसे अनदेखा कर देते हैं या हम इसे केवल अपनी समस्या ना होने के कारण उस पर ध्यान ही नहीं देते हैं। लेकिन, यह हमारी बहुत गम्भीर समस्या है, क्योंकि कुछ वर्षों के बाद हमें भी इस स्थिति का सामना करना पड़ेगा। तो क्या आप भविष्य का सामना करने के लिए तैयार हैं या आप शुतुरमुर्ग के समान जीवन जीना जारी रखना चाहते हैं?

हम इस स्थिति तक क्यों पहुँचे हैं?

तीव्र शहरीकरण, प्रतिस्पर्धात्मक जीवन शैली, अतिरिक्त जीवन शैली परिणामों के लिए बढ़ती आकाँक्षा और आगे बढ़ने की लालची इच्छाओं में निरंतर वृद्धि हो रही है। यह कारण सभी सामाजिक मूल्यों का अनुभव किए बिना हमारे जीवन को प्रभावित कर रहे हैं। आज, हमारे पास अपने बच्चों लिए समय नहीं है, क्योंकि अधिकांश लोग कार्यालय पहुँचने की जल्दी और फिर कई अन्य कार्य करने के कारण कार्यालय से देर में वापस आ पाते हैं।

अतः हम एक बेहतरीन कैरियर बनाने के लिए अपने सीधे और सरल रिश्तों तक को न्यौछावर कर देते हैं। हम एक बेहतरीन कैरियर बनाने के चक्कर में अपने जीवनसाथी के साथ रिश्ते में मन-मुटाव, उसके बाद बच्चों तथा हमारे साथ रहने वाले वृद्ध व्यक्ति तथा अंत में अपने पड़ोसियों (जो स्वयं उसी स्थिति से गुजर रहे हैं) के लिए भी समय नहीं निकाल पाते हैं। क्या आपने कभी इस पर ध्यान दिया है कि आप क्या खो रहे हैं? क्या आप इससे परेशान हैं? क्या आप इसमें बदलाव लाना चाहेंगे?

आप देख सकते हैं कि कैसे आपने अपने घर में रहने वाले वृद्ध लोगों के साथ स्पष्ट बातचीत और संबंध रखने के सभी अवसरों को खो दिया है। टेलीविजन पारस्परिक संबंधों का विखंडन करने वाला सबसे बड़ा कारक है। हमारे व्यस्ततम जीवनकाल में जो थोड़ा-सा भी समय हमें मिलता है, वह हम टीवी कार्यक्रमों जैसे धारावाहिक, खबरों और मैच आदि को देखने में व्यतीत कर देते हैं। जब आप अपने घर पर हों, तो टीवी और अपने मोबाइल का उपयोग न के बराबर करने का प्रयास करें, तभी आपको एहसास होगा कि वास्तव में अपने बच्चो, अपने जीवनसाथी, घर के वृद्ध और यहाँ तक कि पड़ोसियों के साथ समय बिताना कितना आवश्यक है। पुरानी पीढ़ी के किसी भी व्यक्ति से पूछें, तो वह आपको बताएंगे कि वह कैसे अपनी छुट्टी के दिनों को शाँत और मंद गति से व्यतीत किया करते थे।

आज समस्या यह है कि आपके पास अत्यधिक काम होने के कारण समय नहीं होता है। आपकी पत्नी कार्यालय या घर के कामों को निपटाने की कोशिश में व्यस्त रहती है। बच्चे स्कूल में व्यस्त रहते हैं और बाद में उनका समय होमवर्क करने में गुजर जाता है। इसलिए लोगों के पास अपने माता-पिता या दादा-दादी के साथ समय बिताने के लिए छुट्टी ही कहाँ है? जिससे वह जान सकें कि उनके माता-पिता या दादा-दादी क्या कर रहे हैं? वह कहाँ जा रहे है या किससे बात कर रहे हैं?

लेकिन क्या आप वास्तव में अपने माता-पिता या दादा-दादी की परवाह करते हैं? क्या आप बुढ़ापे की स्थिति के लिए अपने-आप को बेहतर महसूस करते हैं? इसलिए आप यह जान लें कि आने वाले समय में आप भी वरिष्ठ नागरिक होंगे। मेरा कहने का मतलब यह है कि आप पहले से अपने आप को इसके लिए सुनिश्चित कर सकते हैं। इसलिए, जागृत हो जाइए और अपने चारों ओर, घर या पड़ोस में या सार्वजनिक स्थान पर रहने वाले वरिष्ट लोगों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाएं। याद रखें कि अगली बारी आपकी है।