Home / society / जल और अपशिष्ट प्रबंधन

जल और अपशिष्ट प्रबंधन

March 23, 2018
by


जल और अपशिष्ट प्रबंधन

बारहवीं पंचवर्षीय योजना तेजी, समावेशी और सतत विकास पर केंद्रित है। गरीबी योजना के एजेंडा में कृषि में उपज, सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि, नए कार्यों के अवसर, मूलभूत व्यवस्थाओं में सुधार, सड़कों को जोड़ने, लोक-कल्याण सेवाएं और बैंकिंग सेवाएं आदि शामिल हैं। यहाँ पर चिंता का एक अन्य प्रमुख विषय विशेष रूप से शहरी इलाकों में पानी और वाहित मल की समस्या को हल करना है। यह माना जाता है कि पानी और वाहित मल शहरी क्षेत्रों की एक सबसे गंभीर समस्या है और उन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। इसलिए शहरी जल और अपशिष्ट प्रबंधन, योजना के प्रमुख प्रस्तावों में से एक है।

ऐसा माना जाता है कि केवल 47 प्रतिशत शहरी परिवारों को कनेक्शन के माध्यम से पानी मिलता है और बाकी परिवार पानी के टैंक या भूमिगत पानी पर निर्भर रहते हैं। इसलिए सामर्थ्य और स्थिरता दो ऐसी रण-नीतियाँ हैं, जो 12 वीं पंचवर्षीय योजना पर केंद्रित हैं।

हम सभी जानते हैं कि शहरी भारत में पेयजल की कमी एक प्रमुख मुद्दा है। जहाँ वर्तमान में न केवल पानी की मात्रा, बल्कि इसके प्रबंधन के साथ-साथ आपूर्ति की भी समस्या रही है। रिसाव (लीकेज), खराब पाइपलाइन, खराब प्रबंधन और अधिक लम्बाई पानी की बर्बादी का कारण बनते हैं। रिसाव के कारण पानी दूषित भी हो जाता है।

इस प्रकार घरों में पानी न केवल कम मात्रा में पहुँचता है, बल्कि इससे पानी की गुणवत्ता में भी कमी आ जाती है। यह अनुमान लगाया गया है कि वितरण के समय लगभग 40 से 50 प्रतिशत तक पानी कम पड़ जाता है। एक और आश्चर्यजनक बात यह है कि घरों में लगे पानी निकालने वाले पम्प में 30 से 50 प्रतिशत तक बिजली की खपत होती है। इसलिए दोगुना नुकसान – एक बिजली का और दूसरा पानी की बर्बादी का होता है। इसके अलावा, जितनी दूरी पर पानी वितरित किया जाता है, उतनी पानी की लागत बढ़ जाती है। जिसमें पाइपलाइन का निर्माण, रखरखाव और वितरण प्रणाली शामिल है। इसलिए सरकार असहाय हो गई है और घर-घर पानी की आपूर्ति करने में असमर्थ नजर आ रही है। जिसके कारण समाज के गरीब और निचले वर्ग के लोगों को सबसे ज्यादा कष्ट सहना पड़ रहा है।

अकुशल सीवेज सिस्टम एक और अहम समस्या है, क्योंकि दो स्तरों का पानी दूषित होता है और साथ ही इनकी संख्या भी कम है। अकुशल सीवेज सिस्टम के मामले में, प्राकृतिक जल निकाय जैसे कि नदी, तालाबों आदि में कूड़ा-कचरा डाल दिया जाता है, जिससे पानी पीने योग्य नहीं रह जाता है। कई शहरों के नालों में अपशिष्ट पदार्थ बहा दिए जाते हैं और वह नाले अधिकांश मामलों में शहर के आसपास की नदी से संलग्न होते हैं। दूसरे परिदृश्य में, प्रत्येक घर के सेप्टिक टैंक जमीन के नीचे बने होते हैं। इनमें अनुपचारित जैविक अपशिष्टों का उपयोग भूमिगत जल को दूषित करता है, जिससे वह पानी प्रयोग करने लायक नहीं रह जाता है। भूमिगत जल के सर्वेक्षण वास्तव में चौंकाने वाले हैं, क्योंकि भूमिगत जल में जैविक प्रदूषण की मात्रा उच्च होने के साथ-साथ पानी पूरी तरह से निरर्थक हो गया है। यह भी प्रस्तावित किया गया है कि ऐसी जगहों पर कुशल पानी रिसाइक्लिंग और अपशिष्ट प्रबंधन होना चाहिए। चार साल पहले मुझे उत्तम नगर का भूमिगत जल मिला था, जिसकी मैंने नई दिल्ली के प्रयोगशाला में जाँच करवाई थी, लेकिन उन्होंने मुझे सही परिणाम देने से इनकार कर दिया और साथ ही कहा कि इस पानी का सेम्पल अत्यधिक दूषित है और यह पानी स्नान करने के भी योग्य नहीं है।

खुले में शौच भी जल प्रदूषण में अहम भूमिका निभाता है, जो भारत के लिए एक बड़ी समस्या है। यह अनुमान लगाया गया है कि 5 करोड़ शहरी भारतीय अभी भी खुले में शौच करते हैं, जो एक काफी गंभीर समस्या है। इसलिए आज भारत को कुशल और वहन योग्य सीवेज सिस्टमों की काफी जरूरत है। जब तक अपशिष्ट की समस्या अप्रयुक्त बनी रहेगी, तब तक जल समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता है

सीवेज उपचार संयंत्रों की कम संख्या, शहरी क्षेत्रों में अपशिष्ट की बढ़ोत्री का एक प्रमुख मुद्दा है। इसके अलावा, कुछ संयंत्र उचित रूप से काम भी नहीं करते हैं। इसलिए उपचारित और अनुपचारित अपशिष्ट का मिश्रण भी जल प्रदूषण की अगुवाई करता है। इसके अलावा, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी ठीक से नहीं बनाए गए हैं। इसलिए यह प्लांट गंदे पानी का उचित रूप से संसोधन नहीं कर पाते हैं।

हर दिन लगभग 32,000 लोग शहरी भारत की तरफ रवाना होते हैं। इससे प्राकृतिक संसाधनों और उनके कुशल प्रबंधन में कमी आई है। विशाल जनसंख्या दिन पर दिन अपशिष्टों में बढ़ोत्री कर रही है और इसलिए एक बड़ा सवाल उभर कर सामने आ रहा है कि आखिर इतना अपशिष्ट जाएगा कहाँ? सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट करीब आधे अपशिष्टों या गंदे जल को संसोधित कर पाते हैं और बाकी जल निकायों और झीलों में कच्चे, अनुपचारित मल के रूप में विलीन हो जाता है।

पानी की समस्या को हल करने के लिए, पानी और अपशिष्ट प्रबंधन दोनों को मुख्य रूप से ध्यान आकर्षित करना होगा। पानी युक्त पाइपों और अन्य ऐसी बुनियादी व्यवस्थाओं की अच्छी तरह से जाँच करनी होगी। आपूर्ति के दौरान किसी भी रिसाव और प्रदूषण की तुरंत जाँच होनी चाहिए। शहर में जल स्तर की कमी की समस्या का समाधान करने के लिए, प्रत्येक शहर में स्थानीय जल निकायों की संख्या में वृद्धि होनी चाहिए। अगर ऐसा होता है, तो इससे पानी की पाइपलाइनों के विस्तार की दूरी कम हो जाएगी। जिससे नुकसान भी कम होगा। एक समाधान के रूप में ठोस अपशिष्ट का पहले आकार कम कर लेना चाहिए। ऐसा इसको जलाकर किया जा सकता है। इस तरह से उत्पन्न ऊर्जा का उपयोग अन्य प्रयोजनों के लिए भी किया जा सकता है। परन्तु यह ध्यान रखना होगा कि हमारे पर्यावरण को कोई भी हानि न पहुँचे।

अगर हमारे पास पर्याप्त प्रक्रिया नहीं है, तो हम अन्य देशों से सीख सकते हैं, जो यह काम कुशलता से कर रहे हैं। सिंगापुर इसका एक बेहतर उदाहरण है, जहाँ अपशिष्ट-से-ऊर्जा बनाने वाले चार संयंत्र हैं, जो चौबीस घंटे, सातों दिन चलते रहते हैं। वह अपशिष्ट को राख के रूप में परिवर्तित कर देते हैं और फिर उस राख को एक मानव निर्मित लैंडफिल साइट सेमाकाऊ द्वीप पहुँचा दिया जाता है। वह प्लांट बहुत मजबूत हैं और अनुमत सीमा तीसवें से कम कार्बन मोनोऑक्साइड का उत्सर्जन करते हैं। इन प्लांटों में हर दिन 3,000 टन अपशिष्ट संभालने की क्षमता है।

इसके अलावा, जल संसाधन का प्रबंधन भी मुख्य चुनौतियों में से एक है। बारहवीं पंचवर्षीय योजना के तहत जलस्तर प्रबंधन कार्यक्रम को विस्तारित करने का एक प्रस्ताव है। इसके अलावा, यह भी कहा गया है कि कृषि कार्यों में सुधार किया जाना चाहिए, क्योंकि कृषि कार्यों में लगभग 80 प्रतिशत पानी का उपयोग किया जाता है।

शहरी स्तर पर अपशिष्ट प्रबंधन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, क्योंकि यह पीने के पानी को, भूमिगत जल को और अन्य प्राकृतिक संसाधनों को प्रदूषित करता है। भूमिगत जल, पानी का एक अनमोल संसाधन है, इसलिए इसे संरक्षित करने पर जोर देना चाहिए। सरकार द्वारा इस दिशा में आवश्यक कदम उठाने की आवश्यकता है।

सारांश
लेख का नाम   जल और अपशिष्ट प्रबंधन

लेखक   रमनदीप कौर

विवरण  –  इस लेख से यह बताया गया है कि केवल 47 प्रतिशत शहरी परिवारों को कनेक्शन के माध्यम से पानी मिलता है और बाकी परिवार पानी के टैंक या भूमिगत जल पर निर्भर करते हैं। इसलिए सामर्थ्य और स्थिरता दो प्रमुख रण-नीतियाँ हैं, जो 12 वीं पंचवर्षीय योजना पर केंद्रित हैं।