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पूर्वोत्तर भारत के चाय बागानों को बर्बाद करने वाली समस्याएं

February 16, 2018
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पिछले 200 वर्षों में, हमारे देश ने चाय उद्योग में एक लंबा सफर तय कर लिया है। वर्ष 1835 में, पहली बार निर्यात के लिए 12 बक्से चाय का उत्पादन किया गया था। आज, भारत दुनिया में चाय का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।

भारत के प्रमुख चाय उत्पादक राज्य

भारत के पूर्वोत्तर राज्य,  विशेष रूप से असम और त्रिपुरा में सबसे अधिक चाय का उत्पादन होता है। भारत में कुल उत्पादित चाय का 50 प्रतिशत से अधिक, चाय का उत्पादन असम में होता है। असम में 848 चाय बागान पंजीकृत किए गए हैं, इसके बाद त्रिपुरा 58 बागानों के साथ दूसरे स्थान पर है। अरुणाचल प्रदेश में 5, मेघालय में 3, मणिपुर में 2 और नागालैंड में 1 चाय बागान पंजीकृत है। 917 चाय बागानों के पंजीकरण के अलावा, पूर्वोत्तर क्षेत्र में लगभग 10,000 छोटे चाय उत्पादक बागान हैं। पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग, देश का एक और बड़ा चाय उत्पादक क्षेत्र है, जो भारत में उत्पादित कुल चाय का 25 प्रतिशत उत्पादन करता है। इसके अलावी दक्षिण में हमारे पास नीलगिरि चाय बागान और मुन्नार चाय बागान हैं, जो शेष 25 प्रतिशत चाय का उत्पादन करते हैं।

पूर्वोत्तर के चाय बागानों को बर्बाद करने वाली समस्याएं

हालांकि, चाय का उत्पादन करना इतना आसान नहीं हैं, जितना प्रतीत होता है, क्योंकि विभिन्न समस्याओं का सामना करने के कारण पूर्वोत्तर राज्यों में चाय का उत्पादन धीरे-धीरे कम हो रहा है। वास्तव में, उत्तर-पूर्वी भारत में चाय बागानों की स्थापना के बाद से कम मजदूरी, बुनियादी ढाँचे की कमी, खराब प्रबंधन, स्वास्थ्य मुद्दों और सामाजिक गतिशीलता की कमी चाय उत्पादन की आम समस्या रही हैं।

चाय की खेती बंद होना

कई चाय बागान हैं, जो हाल के वर्षों में चाय को उत्पादित करने में आने वाली विभिन्न समस्याओं के कारण बंद हो गए हैं। इनमें से कुछ पश्चिम बंगाल के रेड बैंक, धारानीपुर, देखलापारा, सुरेन्द्र नगर और बन्दापानी और रायपुर चाय बागान हैं। असम में भी, कई चाय के बागान बंद हो गए हैं या सिर्फ न्यूनतम उत्पादन कर रहे हैं।

बंद होने के कारण-

  • चाय की कीमत में गिरावट: विभिन्न कारणों के कारण, वर्षों से चाय की कीमत में निरंतर गिरावट देखी गई है। विश्व बैंक के अनुसार, चाय की वास्तविक कीमतों में लगभग 44 प्रतिशत की गिरावट आई है। भारत में, चाय बागानों के सभी लाभ बंद हो गए थे और चाय की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए कोई वास्तविक या उचित पुनर्निवेश नहीं हुआ था। भारतीय चाय उद्योग काफी संकटों से घिरा रहा है, जिससे परिणाम स्वरूप चाय की खेती करना बंद कर दिया गया।
  • चाय के उत्पादन में कमी: चाय उद्योग को कई समस्याओं जैसे वित्तीय संकट, बिजली की समस्याओं, श्रमिक समस्याओं, गरीब श्रम योजनाओं, अपर्याप्त संचार प्रणाली, चाय बागानों के लिए राजस्व कर में बढ़ोत्तरी, प्रदूषण शुल्क में वृद्धि, परिवहन सब्सिडी में कमी आदि का सामना करना पड़ रहा है। इन सभी कारणों ने पूर्वोत्तर भारत में चाय उद्योग को पूरी तरह से एक निराशाजनक स्थिति में डाल दिया है, जिसके परिणाम स्वरूप चाय की पत्तियों और चाय का उत्पादन कम हो गया है।
  • श्रमिक माँग: मूल निवासियों को छोड़कर, असम और बंगाल के चाय के बागानों के अधिकाँश श्रमिक 19 वीं शताब्दी के बाद बिहार, उड़ीसा और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में पलायन कर  गए हैं। ये श्रमिक पूरी तरह से अपनी दैनिक आय और आजीविका के लिए चाय उद्योग पर निर्भर थे। हालांकि, हाल के दिनों में श्रमिकों के प्रवास में कमी आई है। नरेगा के कारण,  स्थानीय चाय श्रमिकों की संख्या में भी कमी आई है।
  • अस्वस्थ उद्योग: बुनियादी सुविधाओं, आधुनिकीकरण और कुशल प्रबंधन की कमी के कारण काफी संख्या में चाय बागान प्रभावित हुए हैं।
  • उचित भंडारण की कमी: प्रीमियम गुणवत्ता वाली चाय को संग्रहित  करने की समस्या हमेशा बनी रही है। परिवहन में देरी और भंडारण सुविधाओं की कमी के कारण, संसोधित चाय वातावरण से नमी प्राप्त कर लेती है, जिसके कारण इसकी गुणवत्ता में कमी आ जाती है।
  • जलवायु कारक: अल्प या भारी बारिश के कारण, चाय बागानों की प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों ने चाय उद्योग को बुरी तरह से प्रभावित किया है।
  • कीट समस्या: कीट की समस्या चाय उत्पादन को प्रभावित करने का एक और प्रमुख कारण है। मास्कीटो बग के साथ-साथ बैक्टीरियल ब्लैक स्पॉट नामक बीमारी ने पूर्वोत्तर चाय बागानों के कई पौधों को प्रभावित किया है।

चाय की खेती बंद होने के कारण भूख से हुई मौतें

वर्ष 2000 और वर्ष 2015 के बीच उत्तर बंगाल और पूर्वोत्तर भारत में चाय की खेती बंद होने के कारण 1400 से अधिक लोगों की मौतें हुई हैं। मौत का मुख्य कारण गंभीर कुपोषण था। इन मौतों में से अधिकांश मौतें जलपाईगुड़ी और अलीपुरद्वा‍र के चाय बागानों वाले स्थान पर हुई हैं। अन्य चाय बागानों में भी मृत्यु हुई होगी, लेकिन उन्हें सूचित नहीं किया गया है। एक बड़ी संख्या में चाय बागानों के बंद होने के कारण मौतों में वृद्धि हुई है। कोई वैकल्पिक नौकरियों या आय न होने के कारण यह श्रमिकों को जीवित रहने का एक दैनिक संघर्ष है।

चाय बागान में काम कर रहे श्रमिकों की मुख्य समस्याएं

  • स्थायी रोजगार न होना: अधिकांश चाय बागान श्रमिक मूलरूप से “आदिवासी” समुदाय के और स्थानीय हैं। ये लोग चाय बागानों पर सबसे अधिक आश्रित हैं। इनमें से ज्यादातर चाय का उत्पादन होने पर और आवश्यकता और सीजन के अनुसार अंशकालिक (कुछ समय) काम करते हैं। इन श्रमिकों का एक छोटा सा हिस्सा कारखानों और कार्यालय आदि में भी कार्य करता है। इनमें वयस्क पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से नियुक्त किया जाता है। यद्यपि बाल श्रम प्रचलित नहीं है, फिर भी कुछ बगीचों में बच्चों को पत्तियाँ तोड़ने, निराई और पौधारोपण आदि जैसे काम के लिए नियुक्त किया जाता है।
  • कम वेतन: संगठित क्षेत्र के किसी अन्य श्रमिक की तुलना में चाय श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी दी जाती है। सीजन के दौरान, चाय बागान अस्थायी श्रमिकों को वास्तविक न्यूनतम मजदूरी से काफी कम वेतन प्रदान करते हैं। उनमें से ज्यादातर रोजाना काम करने वाले श्रमिकों के रूप में काम करते हैं। बड़े चाय बागानों में, श्रमिकों को त्यौहारों के दौरान बोनस दिया जाता है और अगर अतिरिक्त उत्पादन की आवश्यकता होती है, तो अतिरिक्त राशि भी दी जाती है।
  • खराब स्थिति में रहने के लिए मजबूर : श्रमिकों द्वारा सामना की जाने वाली बुनियादी समस्याओं में से एक यह है कि उन्हें आवासीय कॉलोनियों में अधिक भीड़-भाड़ वाले स्थानों और खराब स्थिति में रहना पड़ता है। वे गरीब सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में रहते हैं और निरक्षरता के कारण इन श्रमिकों में से अधिकांश श्रमिक इन सब से अनभिज्ञ रहते हैं। श्रमिक विभिन्न बीमारियों और स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित रहते हैं, जिसका मुख्य कारण खराब व्यक्तिगत व घरेलू स्वच्छता और शिक्षा की कमी सहित खराब आवास हैं।
  • स्वास्थ्य समस्याएं: रहने की खराब की स्थिति इन श्रमिकों को विभिन्न संक्रामक रोगों के प्रति कमजोर बनाती है। श्रमिकों को चाय कारखानों में खराब परिस्थितियों के कारण विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। एक शोध रिपोर्ट के अनुसार, श्वसन की समस्याएं, दस्त, त्वचा संक्रमण, फिलारियासिस और फुफ्फुसीय तपेदिक आदि श्रमिकों द्वारा सामना की जाने वाली प्रमुख स्वास्थ्य समस्याएं हैं, जो कीट संक्रमण के कारण होती हैं। उच्च रक्तचाप, मिर्गी, पीठ दर्द अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हैं। यहाँ कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो अल्पपोषण से ग्रस्त हैं। कुछ स्वास्थ्य समस्याएं शराब और तंबाकू के अत्यधिक सेवन के कारण होती हैं। वयस्कों में पतलापन और एनीमिया जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के विकार भी प्रचलित हैं। बच्चे भी अल्पपोषण से पीड़ित हो जाते हैं और इनमें से अधिकांश बच्चों का वजन कम होता है।
  • कोई स्वास्थ्य लाभ का न होना: बागान श्रम अधिनियम 1951 के तहत प्रत्येक चाय बागान में उचित चिकित्सा सुविधाओं के साथ एक स्वास्थ्य केंद्र होना चाहिए। हालांकि, चाय बागान शहरों से दूर स्थित हैं और स्वास्थ्य केन्द्र दूर शहरों में स्थित होते हैं। श्रमिकों के पास इन केंद्रों में जाने के लिए उचित यातायत के साधन उपलब्ध नहीं है। जो महिलाएं चाय बागान में कार्य करती है, उनके लिए कोई मातृत्व लाभ योजनाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। यह भी पाया गया है कि महिलाएं गर्भावस्था के दौरान और प्रसवोत्तर अवधि के बाद भी कठिन काम करती हैं।