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समलैंगिक विवाह को वैध किया जाना चाहिए?

August 23, 2018
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समलैंगिक विवाह को वैध किया जाना चाहिए?

“मैं प्रेम हूं लेकिन मै इसको प्रदर्शित नही कर सकता ”

– टू लव्स, 1894, लॉर्ड अल्फ्रेड डॉयलाग्स

यह उद्धरण लार्ड डगलस की एक प्रसिद्ध कविता से लिया गया है, जिसे अक्सर समलैंगिकता के संदर्भ में लिया जाता है। कविता में, कथाकार ने दो पुरुषों के बारे में उल्लेख करता है – जिसमें दोनों व्यक्ति एक दुसरे को प्रेमी के रूप में वर्णित करते हैं। पहला व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को तर्क देते हुए यह कहता है कि यह प्रेम नहीं है अपितु यह एक शर्मिन्दिगी है जिसको लेकर दूसरा व्यक्ति उत्तर देता है कि “मैं प्रेम अवश्य हूँ किन्तु इसे संसार के समक्ष प्रदर्शित नहीं कर सकता हू | कविता में बहुत सुन्दरता के साथ समलैंगिकता को वर्णित किया गया है। इस कविता को 19वीं शताब्दी के बाद इंग्लैंड में लिखा गया था, जब देश में समलैंगिकता गैर कानूनी मानी जाती थी।

तब से, इंग्लैंड ने समलैंगिको को स्वीकृति प्रदान कर दी है। हालांकि, भारत अपने ड्रैकोनियन कानूनों (कठोर कानून) को मानते हुए पुराने अतीत में द्रढ़ता से अड़ा है। देश में समलैंगिकता अभी भी गैर कानूनी है और एक बड़े पैमाने पर समलैंगिको को विवाह में समानता का अधिकार प्राप्त होना एक दूरगामी स्वप्न की भांति है। 21 वीं शताब्दी में होने के उपरांत भी कई भारतीय समलैंगिकता पर चर्चा करने में असहजता महसूस करते हैं तो कई लोग इसे अप्राकृतिक भी घोषित कर देते है।

समलैंगिक विवाह के खिलाफ कुछ आधारहीन तर्क यहां दिए गए हैं-

1) समलैंगिकता प्राकृतिक नहीं है, एक मानसिक बीमारी है।

जुलाई, 2018 में, इंडियन साइकोट्रिक सोसाइटी (आईपीएस) ने एक बयान जारी किया जिसमें कहा गया कि समलैंगिकता मानसिक बिमारी नहीं है। यह बयान उस समय जारी किया गया जब हमारे सर्वोच्च न्यायालय (एपेक्स कोर्ट) कुख्यात धारा (नोटोरियस सेक्शन ) 377 पर सुनवाई चल रही थी। 1929 में स्थापित, आईपीएस भारतीय मनोचिकित्सकों का सबसे बड़ा संगठन है।

इसी बयान में यह भी कहा गया कि , समलैंगिकता भी उभयलिंगीकता की तरह प्राक्रतिक है, आईपीएस ने अपने बयान में आगे यह भी जोड़ा कि “इस तरह की विचारधारा समलैंगिकता के व्यवहार को विलुप्त करने में सहायक सिद्ध हो रही है| विशेष रूप से, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 1992 में मानसिक रोगों की सूची से समलैंगिकता को हटा दिया। परिणाम स्पष्ट है कि समलैंगिकता भी एक यौन अभिविन्यास में विषमलिंग सेक्सुअलिटी के जैसे “प्राकृतिक” और “सामान्य” है और इसे हमें इसी रूप में स्वीकार करना चाहिए।

2) समलैंगिक विवाह में बच्चे नहीं हो सकते, इसलिए यह निरर्थक है।

विवाह एक सामाजिक-वैध प्रथा है जो बच्चो को जन्म देने से अधिक सहचारिता को महत्व देती है। यदि उपर्युक्त तर्क तर्कसंगत था, तो सभी विषमलैंगिक जोड़े जो बच्चों को जन्म न देने का फैसला करते हैं या किन्ही अन्य कारणों से बच्चे नहीं होते है तो उन्हें भी इस तरह के दाम्पत्य जीवन में रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। लेकिन तथ्य यह है कि विवाह केवल बच्चे को जन्म देने के लिए ही नहीं किया जाता और इस आधार पर समलैंगिक जोड़ों के खिलाफ भेदभाव अन्यायपूर्ण है।

एक पल के लिए, अगर हम मान लें कि यह विवाह बच्चों के बिना निरर्थक है, तो अभी भी समलैंगिक विवाहों का समर्थन करने के लिए बहुत सारे तर्क हैं। सरोगेसी, एडाप्शन आदि ऐसे कई विकल्प हैं जिससे आप अपने स्वयं के बच्चे हो सकते है।

यद्यपि कोई आधिकारिक डेटा उपलब्ध नहीं है, फिर भी कई गैर सरकारी संगठनों ने गणना की है कि 2017 में भारत में लगभग 50,000 अनाथ बच्चे थे। केंद्र ने बच्चा गोद लेने की गिरती हुई दर पर चिंता व्यक्त की है। उल्लेख नहीं है लेकिन अनाथालयों अक्सर जीर्ण-सीर्ण अवस्था में होने के कारण खबरों में आते हैं। कई समलैंगिक जोड़े एक बच्चे को गोद लेने की एक साथ इच्छा व्यक्त करते हैं। इस तरह से कम से कम ये जोड़े अनाथ बच्चों को सुरक्षित छत प्रदान करने में मदद करेंगे। मनोवैज्ञानिक अध्ययन से यह पहले ही साबित हो चुका है कि विषमलिंग के माता-पिता को होने वाले बच्चों की तरह ही समलैंगिक जोड़ों के बच्चे भी कार्यपरक और मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं।

भारत की 21 वीं शताब्दी के नागरिकों के रूप में, भले ही हम सभी तर्कों को एक मिनट के लिए दरकिनार कर दें, फिर भी यह समलैंगिकता का समर्थन करने के लिए इसमें अत्यधिक दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है। दुनिया में अशांति फैली हुई है, हर दिन युद्ध में हजारों लोग मर जाते हैं। ऐसे समय में जब देश शांति की ओर व्याकुलता से बढ़ता है तो कैसे दो लोगों को प्यार से कोई समस्या हो सकती है? क्यों हम दो निर्दोष व्यक्तियों को स्वीकार करने के बजाय उनके खिलाफ हिंसा करने पर अमादा हो जाते हैं? क्या इसी को हम मानवता समझते हैं? यदि समलैंगिकता अप्राकृतिक है, तो प्यार भी अप्राकृतिक है।

गौरव की बात है!

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 समलैंगिक विवाह को वैध किया जाना चाहिए?
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समलैंगिकता के उल्लेख पर देश अभी भी असहज हो जाता है। लेकिन वास्तव में यह कितना सही है? आधुनिक जमाने में प्रवेश करने के साथ-साथ क्या हमें समलैंगिक विवाह को वैध बनाना चाहिए?
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