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रोहिंग्या संकट क्या है? भारत रोहिंग्या शरणार्थियों को क्यों स्थानांतरित करना चाहता है?

October 17, 2017
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रोहिंग्या संकट

रोहिंग्या शरणार्थी कौन हैं?

रोहिंग्या समुदाय, म्यांमार में रखाइन प्रांत (पूर्व बर्मा) का एक सुन्नी इस्लामिक (बंगाली भाषी) समुदाय है। हालांकि, म्यांमार देश ने इस समुदाय के सदस्यों को अपने देश के नागरिकों के रूप में स्वीकार करने से मना कर दिया है और उन्होंने यह दावा किया है कि रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेशी हैं, जो (अवैध रूप से) ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान, उनके देश में दाखिल हुए थे। लेकिन फिर भी, रोहिंग्या समुदाय के लोग पिछले छह दशकों से अधिक का समय (कथित तौर पर) म्यांमार में बिता चुके हैं और इस दौरान उन्हें वहाँ के लोगों द्वारा विभिन्न प्रकार के भेदभावों, उपेक्षाओं और हिंसाओं का सामना भी करना पड़ा है। म्यांमार में रहने वाले, रोहिंग्या समुदाय के लोग न केवल सामान्य नागरिकों के अधिकारों से वंचित हैं, बल्कि उनके रहने की स्थिति भी कथित तौर पर अत्यन्त निराशाजनक है और वे कई बार, कई हिंसक हमलों का निशाना भी बन चुके हैं। पिछले दो वर्षों में, म्यांमार के सशस्त्र बलों के ठिकानों और सीमा चौकियों पर रोहिंग्या समुदाय के कुछ उग्रवादियों द्वारा बार बार हमले किए गए हैं। म्यांमार की सेना ने एक हिंसक प्रतिक्रिया अपनाते हुए, रोहिंग्या समुदायों पर हमला किया और उनके कई गांवों को नष्ट कर दिया। रोहिंग्या समुदाय के सैकड़ों लोग मारे गए, उस समुदाय की  महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया गया और सैकड़ों हजारों रोहिंग्या समुदाय के लोगों को अपने घरों को छोड़कर भागने के लिए मजबूर किया गया।

भारत इसमें कैसे शामिल है?

कई समाचार रिपोर्टों से यह पता चला है कि पिछले कुछ सालों में म्यांमार से, 370,000 से अधिक रोहिंग्या मुस्लिम बच कर सुरक्षित निकल चुके हैं और उनमें से अधिकांश लोगों ने बांग्लादेश में जाकर आश्रय ले लिया। रोहिंग्या मुस्लिमों को एक सामान्य भाषा और धर्म वाले इस देश से आश्रय की बड़ी उम्मीद थी। लेकिन बांग्लादेश ने कुछ रोहिंग्या शरणार्थियों को अपने देश में जगह देने के बाद अब अपने दरवाजे अन्य रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए बंद कर दिए हैं और रोहिंग्या समुदाय के लोगों को वहाँ से निकालना शुरु कर दिया है।

40,000 से अधिक रोहिंग्या शरणार्थी, बांग्लादेश और म्यांमार के साथ-साथ भारत की सीमाओं में भी प्रवेश कर चुके हैं और अब वे भारत में अवैध रूप से रह रहे हैं। इसके अलावा 14,000 से अधिक शरणार्थी ऐसे हैं जो भारत में संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) संस्था की मदद से वैध रुप से रह रहे हैं। भारत सरकार भी रोहिंग्या शरणार्थियों को अपने देश से निकालने के इच्छुक है, जिन्हें वर्तमान समय में देश के कुछ हिस्सों से समर्थन प्राप्त हो रहा है।

भारत रोहिंग्या को क्यों निर्वासित करना चाहता है?

भारत की केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के साथ मिलकर एक शपथ पत्र दर्ज किया है, जो रोहिंग्या संकट के बारे में है। भारत सरकार ने देश के लिए एक गंभीर सुरक्षा खतरे का हवाला देते हुए रोहिंग्या मुसलमानों को निर्वासित करने की मांग की है। भारत रोहिंग्या शरणार्थियों को निर्वासित करना चाहता है इसके मुख्य कारण यह हैं कि –

गृह मंत्रालय का यह दावा है कि रोहिंग्या शरणार्थियों के पास इस्लामी स्टेट (आईएस), पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और अन्य कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवादी संगठनों जैसे लश्कर-ए-तैयबा आदि के साथ जोड़ने वाली कुछ सुरक्षा सूचनाएं हैं। भारतीय सरकार ने कहा है कि वह अपनी सभी निविष्टियों को अदालत के साथ, गोपनीय रूप से साझा करने के लिए तैयार है।

सरकार इस बात से चिंतित है कि भारत देश में इन शरणार्थियों की उपस्थिति से भारतीय बौद्धों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं एक बड़ी चिंगारी का रुप ले सकती हैं।

आजादी के कई दशकों के बाद, जब सभी उत्तर-पूर्वी भारतीय राज्य विकास के प्रारंभिक चरण में हैं, तो उन्हें एक बड़े पैमाने पर इस ओर अपना ध्यान आकर्षित करने की आवश्यकता महसूस हुई है कि उन्हें बांग्लादेश और म्यांमार सीमा के नजदीक के क्षेत्रों की सभी सीमाओं को बन्द कर देना चाहिए, क्योंकि इन सीमाओं से होकर रोहिंग्या आतंकवादी, भारत में आतंकवाद की घटनाओं को अंजाम दे सकते हैं, जिससे  शान्ति भंग हो सकती है।

भारत सरकार ने यह भी दावा किया है कि उन्हें रोहिंग्या शरणार्थियों के खिलाफ अवैध वित्तीय गतिविधियों जैसे कि हवाला के माध्यम से धन इकट्ठा करने के सम्बन्ध में कुछ प्रमाण मिले हैं।

रोहिंग्या शरणार्थियों के खिलाफ कई ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहां उन्होंने अवैध रूप से जन्म प्रमाण पत्र और आधार कार्ड जैसे भारतीय पहचान दस्तावेजों को खरीदने का प्रयास किया है।

रोहिंग्या के लिए समर्थन

भारत में रोहिंग्या शरणार्थियों को इस्लामिक समूहों और पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस पार्टी से कुछ समर्थन प्राप्त हुआ है। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ने हाल ही में यह कहा है कि “केंद्र सरकार द्वारा उन्हें (रोहिंग्या मुसलमानों को) निर्वासित करने का यह निर्णय सही नहीं है, क्योंकि उनमें से हर कोई आतंकवादी नहीं है… हमें रोहिंग्या शरणार्थियों के मासूम बच्चों के बारे में भी सोचना होगा। उन्होंने आगे यह भी कहा कि मेरी तृणमूल कांग्रेस पार्टी का मानना है कि हर समुदाय में अच्छे और बुरे लोग होते हैं। लेकिन आम लोगों और आतंकवादियों के बीच एक बहुत बड़ा अंतर होता है, आतंकवादियों का सामना दृढ़तापूर्वक किया जाना चाहिए, लेकिन आम लोगों को इससे हानि नहीं होनी चाहिए।”

12 सितंबर, 2017 को पश्चिम बंगाल की राजधानी, कोलकाता में 18 मुस्लिम संगठनों द्वारा एक विशाल विरोध जुलूस संगठित किया गया, जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार के रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस म्यांमार में स्थानांतरित करने के फैसले का विरोध किया।  लगभग 25,000 से 35,000 प्रदर्शनकारी इस जुलूस (मार्च) में शामिल हुए थे।

रोहिंग्या शरणार्थियों का समर्थन करने वाले लोगों को यह समझ में आ गया था कि यदि उन्हें म्यांमार में वापस भेजा गया, तो उन्हें अत्यधिक अत्याचारों और विभिन्न प्रकार की हिंसाओं का सामना करना पड़ सकता है, जोकि पूर्णतः अस्वीकार्य लगता है, लेकिन कुछ लोगों द्वारा समर्थन के इस अवसर का गलत तरीके से इस्तेमाल किया गया, उन्होंने समर्थन के बहाने कई घृणास्पद भाषण दिए। कुछ समाचार रिपोर्टों से पता चला है कि कोलकाता में रहने वाले एक शिया मौलवी मौलाना शब्बीर अली आजाद वारसी ने कोलकाता शहर में आयोजित अपनी एक सभा को संबोधित करने के साथ-साथ हिंसा के माध्यम से एकत्रित भीड़ को उकसाने का कार्य भी किया।

उत्तर प्रदेश की एक दलित महिला नेता मायावती ने भी केंद्र सरकार से शरणार्थी समुदाय के प्रति उदारता दिखाने की याचना की।

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