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क्या भारत में अंगदान करना मुश्किल है?

December 4, 2017
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क्या भारत में अंगदान करना मुश्किल है?

इस वर्ष की सबसे सनसनी-खेज खबरों में से एक, सितंबर 2017 में उत्तरी तमिलनाडु के एक छोटे से शहर कृष्णागिरी से प्राप्त हुई थी। श्रीनगर (जम्मू और कश्मीर) में सेवारत भारतीय सेना के एक 23 वर्षीय सिपाही अरविंद कुमार के, कथित तौर पर अपने माता-पिता के पास छुट्टी मनाने के लिए आए थे, जो एक किसान हैं। अरविंद अपनी मोटर साइकिल की सवारी कर रहे थे और अचानक एक दुर्घटना हुई, जिसके कारण उनके सिर में गंभीर चोट लग गई थी। उनके जीवन को बचाने के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद, बेंगलुरु कमांड हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने 6 सितंबर को युवा सैनिक के मस्तिष्क को मृत घोषित कर दिया था अर्थात लाख कोशिशों के बावजूद बेंगलुरु कमांड हॉस्पिटल के डॉक्टर युवा सैनिक अरविंद को बचाने में कामयाब नहीं हो पाए थे। अरविंद के माता-पिता और भाई ने उनकी आत्मा को एक बेहतरीन काम करके अमर कर दिया, क्योंकि अरविंद के माता-पिता ने उनकी सम्मानित इच्छा को व्यक्त करके अंगों को दान करने की बात कही। अरविंद की आँखों, हृदय, यकृत, फेफड़े, अग्न्याशय और ऊतकों को निकाल लिया गया और उन अंगों को बेंगलुरु, चेन्नई और मैसूर के छह मरीजों को दान कर दिया गया, जिससे उन मरीजों के जीवन को एक नया आधार मिला।

अंगदान क्यों करें?

अरविंद की आत्मा और उनके परिवार की उदारता तब उभर कर सामने आती है, जब हम देश में अंग दाताओं की गंभीर कमी देखते हैं। अंगों की अनुपलब्धता के कारण, देश में हर साल करीब 5 लाख मरीजों की मत्यु हो जाती है। प्रतिदिन लगभग 2,20,000 भारतीय गुर्दा प्रत्यारोपण (किडनी ट्रांसप्लांट) के इंतजार में रहते हैं, लेकिन दाताओं द्वारा दान किए जाने वाले केवल 15,000 गुर्दों का प्रबंधन हो पाता है। देश में यकृत की बीमारियों से पीड़ित 1,00,000 रोगियों के लिए, केवल 1000 दाताओं का ही प्रबंधन हो पाता है। हर साल कॉर्नियल (कार्निया) प्रत्यारोपण की माँग करने वालों की औसत संख्या लगभग 10,00,000 से भी अधिक है, जबकि हृदय प्रत्यारोपण की माँग करने वाले रोगियों की संख्या लगभग 50,000 है और लगभग 20,000 रोगी फेफड़ों के प्रत्यारोपण की फिराक में रहते हैं। जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत में अंग-दाताओं की संख्या काफी कम है। वर्ष 2014 की समाचार रिपोर्टों के अनुसार, स्पेन में हर दस लाख लोगों में अंगदान करने वाले लोगों की संख्या 36 है और अमेरिका में हर दस लाख लोगों में अंगदान करने वाले लोगों की संख्या लगभग 27.02 के आस-पास है, लेकिन भारत में दस लाख लोगों में अंगों को दान करने वालों की संख्या 0.34 है।

मृतमस्तिष्क दाता

ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन्स एक्ट (टीओओए) 1994 के अनुसार, मृत मस्तिष्क दाताओं से प्रत्यारोपण के लिए अंगों को निकाला जा सकता है। मृतमस्तिष्क एक ऐसी अवस्था होती है, जिसमें व्यक्ति का मस्तिष्क कार्य करना बंद कर देता है, लेकिन कृत्रिम वेंटिलेटर द्वारा अन्य अंगों को सुरक्षित रखा जा सकता है। भारत में मृत मस्तिष्क के परीक्षणों के संचालन के लिए 4 अलग-अलग डॉक्टरों द्वारा प्रमाणित कराना आवाश्यक है तथा दाताओं के परिवार वालों से प्रत्यारोपण की अनुमति लेने की आवश्यकता होती है।

अंगदान में आने वाली बाधाएं

मृतमस्तिष्क दाताओं द्वारा किया जाने वाला अंगदान 6 लोगों की जिंदगी बचा सकता है और लगभग सभी बड़े शहर के अस्पतालों में मृत मस्तिष्क के दाताओं की संख्या 8 से 10 के बीच होती है। जागरूकता का अभाव देश में अंगदान की प्रमुख बाधाओं में से एक है। इस तथ्य के बावजूद कि अंगदान वैध नहीं है, फिर भी देश भर के लोगों को अपने अंगों को दान करने और उनके परिवारों को शिक्षित व उनको प्रोत्साहित करने के लिए बहुत कुछ नहीं किया गया है। भारत दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देशों में से एक है। इस नजरियें से, भारत को आदर्श रूप से सबसे अधिक दाताओं की संख्या वाले देशों में से एक होना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से भारत में अंगदान की प्रक्रिया और परिस्थितियों के बारे में जागरुकता की कमी के कारण दाताओं की संख्या सबसे कम है।

सत्तावाद और इसके कार्य में आने वाली अड़चने, चुनौती में बढ़ोत्तरी करने का काम करती हैं। हालाँकि मरीज के रिश्तेदार, आसानी से अंगदान कर सकते हैं, लेकिन संभावित दाताओं को बहुत बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिनका वर्णन नहीं होता है। दूसरे राज्य के लोगों को प्रत्यारोपण या अंगदान करने वाले राज्य में, राज्य स्तर की समिति से स्वीकृति लेने की आवश्यकता होती है। इस मामले में असफल होने पर अस्पताल समिति की मंजूरी लेने की आवश्यकता होती है, जिसमें राज्य सरकार के अधिकारी भी शामिल होते हैं। आज के समय में मृतमस्तिष्क दाताओं से अंग प्रत्यारोपण के ज्यादातर मामले सामने आते हैं, लेकिन देश में प्रशासनिक विलंब प्रत्यारोपण के कई मामलों में बाधा डालने का काम करता है।

अंगदान करीब रिश्तेदारों का कानूनी रूप से विशेषाधिकार है। बहुत से परिवार धार्मिक कारणों या भ्रष्ट विचारों की वजह से अंगदान की अनुमति देने के लिए तैयार नहीं होते हैं। अंगदान देने वाले पीड़ित परिवारों को इस बात पर गर्वान्वित होना चाहिए कि उनके परिजनों के अंग रिश्तेदारों के शरीर में हैं।

शपथ लें

यहाँ कुछ चीजें प्रस्तुत हैं, जिन्हे आप अपने जीवनकाल के बाद, अपने अंगों को दान करने के लिए कर सकते हैं –

1.ज्ञात अंगदान संगठनों का हिस्सा बनने के लिए अपने विचार रजिस्टर करवाएं। यहाँ संभावित दानदाताओं को पंजीकरण में मदद करने वाले कुछ निम्नलिखित गैर-सरकारी संगठन हैं-

  • मोहन संस्थान
  • शतायु
  • नर्मदा किडनी संस्थान
  • अपना अंग दान
  • एक जीवन को उपहार
  1. अपने परिवार और प्रियजनों को अपने निर्णय से अवगत कराएं।
  2. अपने सहयोगियों, दोस्तों और परिचितों के साथ चर्चा करें तथा दूसरों को उनके अंगों को दान करने के लिए प्रोत्साहित करें।
  3. अपना अंग दाता कार्ड हमेशा अपने साथ ले जाएं।