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विश्व भर में सबसे ज्यादा बाल मृत्यु दर भारत में क्यों है?

September 18, 2017
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विश्व भर से ज्यादा भारत में बाल मृत्यु दर क्यों है?

भारत के विभिन्न शहरों में होने वाली शिशुओं की मौत की हालिया खबरों के कारण, पूरा देश सदमे की स्थिति में आ गया है। देश में बाल स्वास्थ्य और बाल मृत्यु दर की दयनीय स्थिति, लोगों के बीच बहुत ही चिंता का विषय बनी हुई हैं। हालाँकि, अधिकांश देशों में विश्व स्तर पर शिशु और बाल मृत्यु दर में उल्लेखनीय सुधार दर्ज हो रहे हैं, लेकिन भारत में बाल मृत्यु दर की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। वर्ष 2016 में, 5 साल से कम उम्र के 9,00,000 से अधिक बच्चों की मौतें हुई थी – यह दुनियाभर में सबसे अधिक (5 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों) बाल मृत्यु दर की आकी गई संख्या है और इसके बाद बाल मृत्यु दर में नाइजीरिया (7,00,000 मौतें) और लोकतांत्रिक गणराज्य कांगो (3,00,000 मौतें) का नंबर आता है।

द ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी 2016

द ग्लोबल बर्डन डिजीज (जीबीडी) स्टडी 2016 का एक चिकित्सा पत्रिका द लान्सेट में कुछ चौंकाने वाले आँकड़ो का प्रकाशन हुआ है। इस रिपोर्ट में 5 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों की मृत्यु के बारे में यह कहा गया है कि दक्षिण एशिया क्षेत्र में 5 वर्ष के कम आयु वाले बच्चों की 24.8 प्रतिशत (1.2 मिलियन मौतें), पश्चिमी उप-सहारा अफ्रीका में 28.1 प्रतिशत (1 करोड़ 40 लाख मौतें) और पूर्वी उप-सहारा अफ्रीका में 16.3 प्रतिशत (0.8 मिलियन मौतें) मौतें हुई हैं। जीबीडी का यह अध्ययन सिएटल (वॉशिंगटन, संयुक्त राज्य अमेरिका) के इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आईएचएमई) के स्वास्थ्य स्थितियों और प्रवृत्तियों के प्रसिद्ध और विश्व स्तरीय संस्थान द्वारा स्वीकार किया गया है। यह 195 देशों में होने वाली मृत्यु दर के रुझान, अभिलेख के कारणों और लगभग 330 रोगों की घटनाओं को दर्ज करता है।

भारत की लापता लड़कियाँ

जीबीडी की रिपोर्ट केवल दुनिया भर में होने वाली मौतों और रोगों पर नजर रखती है, जबकि भारत को एक और बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है, जिस पर शीघ्र ही ध्यान देने की आवश्यकता है। कन्या भ्रूण हत्या सबसे बड़ी बुराइयों में से एक है, जिसके कारण देश लंबे समय से संघर्ष कर रहा है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में महिला पुरुष का अनुपात 940: 1000 (वर्ष 2001 में – 927: 100 के मुकाबले एक उल्लेखनीय वृद्धि) है, जबकि देश में बाल लिंग अनुपात में अभी भी गिरावट की स्थित बनी हुई है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 1000 लड़कों पर 914 लड़कियाँ थी। वर्ष 2014 में, राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, असम और ओडिशा सहित देश के कुछ कम विकसित राज्यों में 4 वर्ष से कम उम्र की युवा लड़कियों के गायब होने के कारण एक और बहुत खतरनाक प्रवृत्ति दर्ज की गई थी। मीडिया, सामाजिक कार्यकर्ताओं और गैर-सरकारी संगठनों ने बाल हत्या पर गहरी आपत्ति जताई है। हाल के दिनों में हालात के बारे में बहुत कुछ नहीं बताया गया है, लेकिन खुद में चुप्पी साधना अशुभ है और इससे स्थित में कभी सुधार नहीं हो सकता है।

कारणों का पता लगाना

अब हमारे पास पर्याप्त (और विश्व स्तर पर स्वीकार किए गए) साक्ष्य हैं कि हमारा देश बाल मृत्यु दर के मूल्यांकन में सुधार करने में ज्यादा महत्व नहीं दे रहा है, लेकिन वास्तव में यह शर्मनाक मामला है, जो हमारे देश के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण चिंता का विषय बना हुआ है।

बच्चों में ऐसी उच्च मृत्यु दर के कारणों की कोई बड़ी जाँच नहीं हुई है (सिवाय अगर हम गोरखपुर और अन्य सरकारी अस्पतालों में बच्चों की उच्च मृत्यु की हालिया घटनाओं पर केंद्रित चर्चाओं की गणना नहीं करते हैं)। मूल कारणों की जाँच और कोई भी रचनात्मक कार्रवाई न होने के कारण दुर्भाग्य से लड़कियाँ लापता हो रही है। इस प्रकार, हम जोखिम के दायरे में धीरे-धीरे प्रवेश कर रहे हैं। जब देश में बच्चों के स्वास्थ्य की बात आती है, तो स्वास्थ्य को प्रभावित करने में संक्रामक रोग, दस्त, कुपोषण आदि परंपरागत कारण अहम भूमिका निभाते हैं।

ग्लोबल आँकड़े बताते हैं कि दस्त एक खतरनाक हत्यारा है – अर्थात् दस्त के कारण बहुत से बच्चों की मौतें हुई हैं और साथ ही यह 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत का चौथा सबसे बड़ा कारण माना जाता है। वर्ष 2015 में दस्त और अन्य संबंधित बीमारियों से करीब 1,00,000 भारतीय बच्चों (5 वर्ष से कम आयु वाले) की मृत्यु की सूचना मिली थी। जबकि दस्त के कारण बच्चों की मृत्यु दर में निश्चित रूप से गिरावट आई है (विशेष रूप से बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान शुरू किए जाने के कारण), लेकिन फिर भी डेंगू और मलेरिया जैसी अन्य बीमारियों से अभी भी लगातार बच्चों की मौतें हो रही हैं।

बाल पोषण में सुधार

हालाँकि, पोषण संबंधी मामलों में केंद्र सरकार ने बढ़-चढ़ कर कार्य योजना का शुभारम्भ किया है। केंद्र सरकार निर्धारित पोषण लक्ष्यों की उपलब्धियों के आधार पर, देश के विभिन्न जिलों के लिए प्रोत्साहन आधारित पुरस्कार योजना शुरू करने की योजना बना रही है। यह योजना उन जिलों पर विशेष ध्यान देगी, जिनमें कुपोषण से पीड़ित बच्चों की संख्या सबसे अधिक है। सरकार अपने व्यक्तिगत पोषण स्तरों के आधार पर राज्यों और जिलों को श्रेणीकृत करने की योजना बना रही है।

हालाँकि, इस तरह के सामान्य बाल मृत्यु दर में सुधार की योजनाएँ बेहद प्रसंशनीय हो सकती हैं, लेकिन देश में बच्चों के स्वास्थ्य और कल्याण को बेहतर बनाने के लिए भारत को क्या करना जरूरी है और तत्काल आधार वाली आवश्कताएँ क्या हैं, इसके लिए महिला और बाल विकास एवं स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को एक मजबूत कार्य योजना को तैयार करना होगा।