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गौतम बुद्ध के उपदेश

December 28, 2017
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गौतम बुद्ध के उपदेश

गौतम बुद्ध के उपदेश

सुत्तपिटक ग्रंथ की कथाओं में बुद्ध के उपदेश सम्मिलित हैं। बौद्ध दर्शन में जोर देकर कहा गया है कि संसार में निरंतर परिवर्तन होता रहता है और प्रकृति में सब कुछ क्षणिक है इसलिए कुछ भी स्थायी और शाश्वत नहीं है। इसके साथ-साथ, संपूर्ण संसार निष्प्राण है। दुःख मानव के अस्तित्व और जीवन का हिस्सा हैं। सभी मनुष्य पृथ्वीग्रह से उत्पन्न हुए हैं औरवे जीवन की निरंतरता को चलते रहने के लिए बच्चों को जन्म देते हैं।

गौतम बुद्ध या सिद्धार्थ गौतम बुद्ध को ‘बुद्ध’ नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ होता है ‘जगृत होना’ या ‘प्रबुद्ध होना’। बौद्ध धर्म का आधार गौतम बुद्ध के उपदेश हैं। इनका जन्म शाक्य कुल में एक शाही हिंदू परिवार में हुआ था तथा इनके जन्म को ‘बुद्ध पूर्णिमा’ के रूप में मनाया जाता है। गौतम बुद्ध का जन्म स्थल स्पष्ट नहीं है, क्योंकि वर्तमान दिनों में इनका जन्म स्थान नेपाल, ओडिशा या उत्तर प्रदेश हो सकता है। उनके भाग्य में या तो एक महान सम्राट या फिर एक महान धार्मिक व्यक्ति बनना लिखा था। गौतम बुद्ध के पिता ने सदैव इन्हें जीवन के समस्त दुखों से दूर रखा, क्योंकि वह इन्हें महान सम्राट बनाना चाहते थे। सच्चे ज्ञान को प्राप्त करने के लिए, इन्होंने अपने महल को 29 वर्ष की अवस्था में त्याग दिया। इन्होंने मार्ग में लगभग सभी व्यक्तियों को किसी न किसी चीज से पीड़ित देखा। वह उदास हो गए और एक तपस्वी जीवन के जरिए समस्त कष्टों को दूर करने का प्रयास किया। गौतम बुद्ध ने अपनी यात्रा के दौरान पाया कि ध्यान स्वयं को जाग्रत करने का एक  मात्र तरीका है। गौतम बुद्ध तपस्या करने के लिए प्रसिद्ध पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए, जो भारत के बोध गया शहर में ‘बोधि वृक्ष’ के रूप में जाना जाता है और ज्ञान को प्राप्त करने के बाद ही वह वहाँ से उठे। इनकी तपस्या 49 दिनों तक जारी रही और इसके बाद इन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हुआ। तब गौतम बुद्ध को इन दुखों का कारण और इन्हें समाप्त करने के तरीके प्राप्त हुए।
गौतम बुद्ध के उपदेश जीवन के सिद्धांत हैं, जो उन्होंने ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात दिए थे।

चार आर्य सत्य

दुख सामान्य है – प्रत्येक व्यक्ति को इसे भोगना पड़ता है।

दुख के कारण – मनुष्य के सभी दुखों का कारण अहंकार, लालच, इच्छा और अज्ञानता है।

दुख का अंत – लालच और अज्ञानता का त्याग।

दुख को समाप्त करने का मार्ग – जीने का सही ढंग और जीवन में अष्टांग मार्ग का पालन करते हुए दुखों को समाप्त किया जा सकता है, जो इस प्रकार हैं – सही ज्ञान, सही दृष्टिकोण, उचित वाणी, सही कार्य, जीवन के सही अर्थ, सही प्रयास, सही जागरूकता और सही ध्यान।

निर्वाण की स्थिति में आत्मा शुद्धीकरण के लिए पुनर्मिलन करती है और अवतारों और कर्मों में भटकना बंद हो जाती है।

सम्पूर्ण ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली सर्वोच्च शक्ति का कोई रूप या नाम नहीं है।

सशक्त चरित्र का अच्छे कर्मों और महान विचारों के द्वारा निर्माण होता है।

किसी की निंदा करने से पहले यह देखना बेहतर है कि आप क्या कर रहे हैं।

हमेशा अच्छा करो और समय बर्बाद मत करो तथा उन चीजों पर समय और प्रयास बर्बाद मतकरो, जो क्षति पहुँचाते हैं।

अपने वचनों और कर्मों से अवगत रहें।

जीवन के पांच सिद्धांत, जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण नियम हैं और ये इस प्रकार हैं – प्रत्येक जीवन का सम्मान करना चाहिए इसलिए किसी की हत्या करना ठीक नहीं, दूसरों की संपत्ति का सम्मान करना चाहिए इसलिए चोरी करना ठीक नहीं, निर्दोष (अबला) का सम्मान करना चाहिए इसलिए किसी का यौन दुराचार करना ठीक नहीं, ईमानदारी का सम्मान करना चाहिए इसलिए किसी से झूठ बोलना ठीक नहीं और साफ मस्तिष्क का सम्मान करना चाहिए इसलिए कोई नशा करना ठीक नहीं।

मृत्यु जीवन का अंत नहीं है। ऊर्जा का द्रव्य में और फिर द्रव्य का ऊर्जा में परिवर्तन वैसा ही है जैसे सूखी पत्ती गिरकर मिट्टी में मिल जाती है, इसी मिट्टी में नए पौधे को जन्म देने के लिए बीज पृथ्वी पर गिर जाता है और जीवन की प्रक्रिया इसी प्रकार चलती रहती है।

तीन हानिकारक वस्तु अर्थात् लालच, घृणा और अज्ञानता हमें जीवन और मृत्यु के चक्र में बाँधे रखते हैं।

सभी अन्य धर्मों के प्रति उदार होना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक आध्यात्मिक व्यक्ति का सम्मान करना चाहिए और यह बहुत अच्छा कार्य है। यह एक मोमबत्ती को दूसरी मोमबत्ती से जलाने के समान है। अब वहाँ पर एक मोमबत्ती का प्रकाश नहीं होगा, लेकिन दो मोमबत्तियाँ का होगा, जो आपको और आपके जीवन को उजागर करेंगी।

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