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भारत में विशेष रूप से पाई जाने वाली 5 जंगली जानवरों की प्रजातियाँ

January 5, 2018
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भारत में विशेष रूप से पाई जाने वाली 5 जंगली जानवरों की प्रजातियाँ

भारत में जंगली जानवरों और पौधों की अनेक प्रजातियाँ पाई जाती हैं। लेकिन कुछ जंगली जानवर, जलवायु परिवर्तन या मानवीय गतिविधियों के कारण लुप्त होने के कगार पर हैं। भारत में जंगली जानवरों की रक्षा के लिए भारत सरकार ने लगभग 103 राष्ट्रीय उद्यान, 543 वन्यजीव अभ्यारण्य, 73 संरक्षण भंडार और 45 समुदाय के भंडार स्थापित किए हैं।

भारत में पाए जाने वाले कुछ जंगली जानवरों के बारे में जानने के लिए नीचे दी गई सूची को देखें –

नीलगिरि तहर

नीलगिरि तहर को स्थानीय क्षेत्र में नीलगिरि साकिन (ibex) या केवल साकिन के नाम से भी जाना जाता है। नीलगिरि तहर दक्षिणी भारत के तमिलनाडु और केरल राज्यों में नीलगिरि पर्वत और पश्चिमी घाट के दक्षिणी भाग में पाया जाता है। नीलगिरि तहर तमिलनाडु राज्य का जंगली जानवर है। नीलगिरि तहर की कुल संख्या लगभग 3000 है। वे प्रायः लुप्त प्रजातियों की श्रेणी में आते हैं जिसके 2 कारण हैं। सबसे पहला कारण इन जानवरों का अवैध शिकार और दूसरा नीलगिरि की खेती है जिससे इन जानवरों के प्राकृतिक आवास में बाधा आई है। इन जानवरों का बचाव करने के बावजूद भी इनकी संख्या में अभी भी एक महत्वपूर्ण गिरावट देखी जा रही है।

बैंगनी मेंढक

हाल ही में मेंढक की खोज की जाने वाली प्रजाति बैंगनी मेंढक है, जिसे पिगनोज मेंढक या भारतीय बैंगनी मेंढक के नाम से भी जाना जाता है। इस तरह के मेंढकों को पहली नजर में पहचान पाना बेहद मुश्किल होता है। बैंगनी मेंढक आमतौर पर भूमि के अंदर रहते हैं और यह देखा गया है कि वे केवल मानसूनों के दौरान सतह पर आते हैं जो उनका संभोग काल भी होता है। बैंगनी मेंढक भोजन की तलाश में सतह पर उभरकर नहीं आते हैं क्योंकि वे भूमि के अंदर ही अपने भोजन की व्यवस्था करते हैं। बैंगनी मेंढ़क केवल पश्चिमी घाट और पालघाट के खाली जगहों में पाए जाते हैं। वे विशेष रूप से दीमक का भोजन करने हेतु अपनी जीभ और एक विशेष बक्कल नाली का उपयोग करते हैं।

निकोबार कबूतर

निकोबार कबूतर अन्य कबूतरों की तुलना में अधिक रंगीन होते हैं, जिन्हें आप हर जगह देख सकते हैं। वे भारत में पाए जाने वाले कबूतरों की सबसे अनोखी, आकर्षक और रंगीन प्रजातियों में से एक हैं। निकोबार कबूतर जीनस कालोनीस जाति के एकमात्र जीवित सदस्य हैं जो विलुप्त हो चुके डोडो और रोड्रिगेज सॉलिटेयर के निकटतम जीवित रिश्तेदार हैं। कबूतरों की यह प्रजातियाँ अंडमान और निकोबार द्वीपों, पूर्व भारत में मलय द्वीप समूह से लेकर आर्किपेलगो के तटीय क्षेत्रों में सोलोमन्स, पलाऊ और आस-पास के छोटे द्वीपों में पाई जाती है। उनका सिर ग्रे रंग का होता है, लेकिन उनका शरीर बहुत रंगीन और बेमिसाल होता है। आजकल इस खूबसूरत पक्षी का अवैध शिकार, इसके माँस और गिजेर्ड पत्थर के लिए हो रहा है, जो आभूषण में प्रयोग किया जाता है। आईयूसीएन के अनुसार वे लगभग खतरे वाली प्रजातियों में से एक हैं।

नीलगाय

नीलगाय या नीला बैल सबसे बड़ा एशियाई मृग है। यह जानवर भारतीय उपमहाद्वीप के लिए स्थानिक है। नीलगाय के मुख पर सफेद धब्बे होने को साथ मजबूत पतले पैर होते हैं। कंठ पर एक सफेद धब्बे के साथ गहरी सफेद गर्दन भी होती है। इसका वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है कि इसकी छोटी चोटी के साथ लटकते हुए मोटे बाल का गुच्छा होता है, जो नील गाय की गर्दन के सफेद धब्बे पर लटका हुआ होता है। मादाएं नारंगी या गहरे पीले रंग की होती हैं, जबकि नर में नीले रंग की ग्रे परत होती है। केवल नर के सींग होते हैं। नीलगाय के जीवनकाल का औसत लगभग दस वर्ष है। वे हिमालय (उत्तरी भारत) की तलहटी में तराई के निचले इलाकों में पाई जाती हैं।

भारतीय डेजर्ट जर्ड

भारतीय डेजर्ट जर्ड या भारतीय डेजर्ट जर्बील बंजर क्षेत्र के एक निवासी हैं जो ठोस मिट्टी पसंद करते हैं। वे कभी भी शुद्ध रेत टिब्बा या चट्टानी चौकी में निवास नहींकर सकते हैं। वे कृन्तक हैं जो जर्ड की श्रेणी के अंतर्गत आते हैं और जर्बील से निकटता से संबंधित हैं। वे मुख्य रूप से भारत के थार रेगिस्तान क्षेत्र (मुख्य रूप से राजस्थान और गुजरात राज्यों) में पाए जाते हैं। उनका प्रमुख भोजन बीज, जड़, घास, नट्स और कीड़े हैं। उन्हें अन्य कृन्तकों से अलग किया जा सकता है क्योंकि उनके पास छोटे कान, लंबे काले पंजों के साथ नारंगी कृंतक होते हैं। भारतीय डेजर्ट जर्ड 12-14 सेंटीमीटर (4.7-5.5 इंच) लंबे और एक पीले-भूरे पेट के साथ 10-15 सेंटीमीटर (3.9-5.9 इंच) लंबी पूँछ और भूरे रंग की परत की तरह भूरे रंग के होते हैं।