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द्वारकाधीश मंदिर, द्वारका

February 19, 2018
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द्वारकाधीश मंदिर

भगवान श्रीकृष्ण और यादव साम्राज्य की पौराणिक राजधानी “द्वारका” धार्मिक हिंदुओं और पुरातत्वविदों के लिए एक विशेष महत्व रखती है। भारत के पश्चिमी के सबसे बड़े शहर में स्थित, द्वारिकाधीश मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों में से एक है। हर साल सैकडों-हजारों की तादात में श्रद्धालु इस विश्वास के साथ मंदिर में आते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण उन्हें अच्छे स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद देंगे और उन्हें आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करेंगे।

भगवान विष्णु या उनके अवतार भगवान कृष्ण को समर्पित द्वारकाधीश मंदिर चार धाम–बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम और पुरी में से एक है। सभी हिंदू इन चार पवित्र मंदिरों की तीर्थयात्रा करके अपने जीवन को धन्य करने का प्रयास करते हैं। द्वारकाधीश मंदिर 108 पवित्र विष्णु मंदिरों या दिव्य देवसम् में से एक है। दिव्य देवसम् पवित्र मंदिर विष्णु या कृष्ण को समर्पित मंदिर है, जिन्हें तमिल कवि संतों ने अपने गीतों में आलवार कहा था।

गुजरात के द्वारका शहर में द्वारकाधीश का मंदिर अक्सर जगत मंदिर या सार्वभौमिक मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। दरअसल, मंदिर की शांति और सफाई ही शहर के सबसे बड़े आकर्षणों में से एक है। इसे हिंदू पौराणिक कथाओं के तीनों लोक में सुंदर या सबसे सुंदर मंदिर भी कहा जाता है।

स्थान और सुगम्यता

द्वारकाधीश मंदिर गुजरात के जामनगर जिले में गोमती नदी के तट पर द्वारका शहर में स्थित है। द्वारका, जामनगर के ओखमंडल तालुका का प्रशासनिक मुख्यालय है और देश के पश्चिमी छोर के अरब सागर की ओर स्थित एक खूबसूरत शहर है।

दूरी

  • जामनगर शहर – 137 किलोमीटर
  • राजकोट – 217 किलोमीटर
  • अहमदाबाद – 378 किलोमीटर

द्वारकाधीश मंदिर तक कैसे पहुँचे?

रेल संपर्क- अहमदाबाद-ओखा लाइन पर द्वारका स्टेशन निकटतम रेलवे स्टेशन है।

हवाई संपर्क – जामनगर में गोवर्धनपुर हवाई अड्डा निकटतम हवाई अड्डा है।

परिवहन द्वारा – द्वारका जामनगर और ओखा के साथ शहर को जोड़ने वाले राजमार्ग पर स्थित है। राज्य परिवहन बसें और लक्जरी कोच, गुजरात के विभिन्न शहर से जुड़ी हुई हैं।

इतिहास

प्राचीन हिंदू लेखों के अनुसार, महाभारत में द्वारका शहर भगवान कृष्ण द्वारा स्थापित किया गया था, जो भगवान विष्णु के अवतार थे। कृष्ण का जन्म वासुदेव और देवकी के घर पर हुआ था और इसके बाद उन्होंनें यादव समुदाय के राजा के रूप में पदभार संभाला, इस प्रकार वह द्वारका के शासक बन गये। माना जाता है कि मूल मंदिर भगवान कृष्ण के पोते, वज्रान्भा द्वारा बनवाया गया था और हिंदू दृष्टा और धर्म गुरू आदि शंकराचार्य के बाद 8 वीं शताब्दी में इसका व्यापक विस्तार और पुनर्निर्माण किया गया था। अन्य किंवदंतियों के अनुसार, वर्तमान शहर द्वारका भगवान कृष्ण के यादव साम्राज्य की राजधानी थी। आगे समुद्र के पास स्थित बेट द्वारका उनका निवास-स्थान और महल था। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि द्वारका का मूल शहर अब समुद्र में जलमग्न हो गया है और इसके स्थान पर नया शहर और मंदिर का निर्माण किया गया है।

पूरी तरह से ऐतिहासिक स्वरूप लेते हुए, पुरातत्वविदों का मानना ​​है कि द्वारका में मानव आबादी पूर्व-ऐतिहासिक समय की है। एक खोज में यहाँ पर 574 ईसवी के पुराने ताँबे के सिक्के पाए गए हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि द्वारका प्राचीन भारत में ग्रीस और फारस जैसे कई देशों के साथ समुद्री व्यापार करने के लिए एक संपन्न बंदरगाह था।

पवित्र स्थान

गुजरात में द्वारकाधीश मंदिर की चूना पत्थर से बनी हुई एक भव्य संरचना 78.3 मीटर ऊँची है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, बाहरी सजावट कृत्रिम रूप से मूर्तियों की नक्काशी और कृष्ण की जीवन लीलाओं का चित्रण करते हुए की गई है। आंतरिक भाग इसके विपरीत साधारण और शांत है। मंदिर में दो मुख्य प्रवेश द्वार हैं। एक दक्षिण में जिसको स्वर्ग का द्वार कहा जाता है। तीर्थयात्री आमतौर पर इस द्वार के माध्यम से ही मंदिर में प्रवेश करते हैं– स्वर्ग का रास्ता। उत्तर में एक द्वार है जिसे मोक्ष-द्वार कहा जाता है – मुक्ति का रास्ता। यह द्वार गोमती नदी के 56 तटों की ओर ले जाता है। पाँच मंजिला मंदिर की यह संरचना काफी भव्यता और खूबसूरती से तैयार की गई है। इस मंदिर की वृद्धि और नवीनीकरण 16 वीं और 19 वीं शताब्दियों में की गई थी।

शांति और समृद्धि की प्रतीक काले पत्थर से बनी द्वारकाधीश की मूर्ति अति सुंदर है। मुख्य देवता के मंदिर के अलावा, यहाँ कई देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर भी हैं। यहाँ आदि शंकराचार्य से सम्बन्धित एक आसन भी है, जिसकी यहाँ पर पूजा की जाती है।

बेट द्वारका मंदिर और कृष्ण की पत्नी – रानी रुक्मिणी का मंदिर – द्वारकाधीश मंदिर की यात्रा करने के बाद इन दोनों मंदिरों की यात्रा करके ही यात्रा पूर्ण मानी जाती है।

बेट द्वारका –

बेट द्वारका मंदिर तक पहुंँचने के लिए, आपको द्वारका से ओखा बंदरगाह तक ट्रेन/बस की यात्रा करनी पड़ सकती है और उसके बाद एक छोटे से द्वीप में एक नौका ले जा सकते हैं, जहाँ एक भव्य कृष्ण मंदिर आपका स्वागत करेगा। यह द्वीप एक दिन कृष्ण का महल और निवास-स्थान हुआ करता था।

रुक्मिणी मंदिर

माना जाता है कि द्वारकाधीश मंदिर की तीर्थ यात्रा को पूरा करने के लिए द्वारका से लगभग 2 किलोमीटर दूर रुक्मिणी मंदिर की यात्रा को भी पूरा करना आवश्यक है।

प्रसिद्धि

भारत के हिंदुओं, विशेष रूप से वैष्णव या विष्णु के उपासकों के लिए द्वारिका सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ केंद्रों में से एक है। माना जाता है कि द्वारकाधीश मंदिर की तीर्थयात्रा करने वाले भक्तों को अश्वमेघ यज्ञ करने के बराबर फल मिलता है।

द्वारकाधीश मंदिर अपने ध्वज की पूजा के लिए प्रसिद्ध है। झण्डे या ध्वज का महत्व मंदिर में सर्वोच्च माना जाता है और एक दिन में चार बार इसे बदला जाता है। ध्वज, 52 गज कपड़े का सिला हुआ होता है, यह एक आध्यात्मिक प्रतीक है और सूर्य और चंद्रमा की छवियों को प्रस्तुत करता है – ब्रह्मांड और दिव्यता का प्रतीक। मंदिर प्रशासन द्वारा एक समय आवंटित किए जाने के बाद, द्वारकाधीश मंदिर की यात्रा करने वाले भक्त, उत्थापन के लिए एक नया झंडा खरीदते हैं। काफी जपों और जयकारों के बीच भक्तों के सिर पर नया झंडा फहराया जाता है। फिर इस ध्वज को उपयुक्त अनुष्ठानों के साथ फहराया जाता है।

एक हिंदू द्वारा की गई द्वारका की यात्रा को सबसे पवित्र तीर्थस्थानों में से एक मानी जाती है। यह वैष्णव धर्म को मानने वालों के लिए एक पूजा का  केंद्र है और देश के सभी हिस्सों से लोग द्वारकाधीश मंदिर में इकट्ठा होते हैं।

आगंतुकों के लिए सूचना

द्वारकाधीश मंदिर की दैनिक समय सारिणी
सुबह 6:00 बजे  मंदिर खुलता है
सुबह 06:30 बजे  मंगल आरती
सुबह 9.45 से 10:00 बजे तक  स्नान भोग
सुबह 10:45 बजे आरती दर्शन
सुबह 10:55 बजे ग्वाल दर्शन
सुबह 11:05 से 11:25 बजे तक मध्यान्ह भोग
दोपहर 12:00 से 12:25 बजे तक राज भोग
दोपहर 1:00 बजे मंदिर बंद
शाम 5:00 बजे मंदिर फिर से खुलता है
शाम 5:30 बजे से 5: 45 बजे तक उत्तथपन भोग
शाम 7:30 बजे से 7:45 बजे तक संध्या भोग
शाम 7:45 बजे आरती दर्शन
रात्रि 8:05 बजे से 8:25 बजे तक शायं भोग
रात्रि 8:30 बजे शायं आरती
रात्रि 8:35 बजे से 9:00 बजे तक दर्शन
रात्रि 9:00 बजे से 9:20 बजे तक श्रृंगार दर्शन
रात्रि 9:20 बजे से 9:40 बजे तक स्तुति दर्शन
रात्रि 9:40 बजे मंदिर बंद

 

कृपया ध्यान दें: भक्तों को मंदिर में मोबाइल फोन या कैमरा चलाने की अनुमति नहीं है।

सितंबर के शुरू में कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार, मंदिर में सबसे बड़े त्यौहार के रूप में मनायी जाती है।