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भुवनेश्वर में लिंगराज मंदिर

January 11, 2018
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भुवनेश्वर में लिंग राज मंदिर

भुवनेश्वर में लिंगराज मंदिर

स्थानः भुवनेश्वर, ओडिशा

भारत के मंदिर शहर भुवनेश्वर, भगवान शिव के दूसरे नाम त्रिभुवनेश्वर से उत्पन्न हुआ है। यह भगवान शिव का शहर है और इस प्रकार, यहाँ पर भारत के प्रमुख शिव मंदिरों में से एक लिंगराज मंदिर भी स्थापित है। लिंगराज मंदिर भुवनेश्वर का सबसे बड़ा और सबसे प्राचीनतम मंदिर है, जो इस शहर का एक प्रमुख आकर्षण है। लिंगराज मंदिर की विशेषता इस तथ्य में निहित है कि पवित्र शिखर में शिवलिंग स्वयं उत्पन्न हुआ, इस शिवलिंग की दोनों भगवान शिव और भगवान विष्णु के रूप में पूजा की जाती है।

लिंगराज मंदिर का इतिहास लगभग 1 हजार साल पहले 11 वीं शताब्दी का है। मंदिर से जुड़ी कहानियाँ बताती हैं कि राजा जजाति केशरी ने इस मंदिर का निर्माण अपनी राजधानी जयपुर से भुवनेश्वर में स्थानांतरित करने के बाद करवाया था। लेकिन इतिहासकारों के अनुसार, 6वीं शताब्दी के बाद लिंगराज मंदिर बना है, साथ ही ब्रह्म पुराण अपने अस्तित्व के पक्ष को सत्य बताते हैं। लिंगराज मंदिर की रचना तथा शोभा और अलंकरण की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। बलुआ पत्थर और लेटीटा से निर्मित, मुख्य शिखर 55 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। लिंगराज मंदिर, हिंदूपंथीयन (हिंदूधर्म को मानने वाले) के विभिन्न देवताओं से संबंधित 150 छोटे मंदिरों से घिरा हुआ है। एक ही स्थान पर विभिन्न देवताओं और देवियों की उपस्थिति “एक भगवान के विभिन्न रूप” के संदेश का प्रचार करती हैं।

लिंगराज मंदिर केवल आध्यात्मिक रूप से ही नहीं, बल्कि अपनी कुशल वास्तुशिल्प के कारण भी महत्व पूर्ण है। मंदिर की वास्तुकला संरचना, एक लंबी गोपुरम और जटिल शिल्प कौशल के साथ कलिंग शैलीएक उत्तम उदाहरण है। मंदिर की विशाल दीवारें सुंदर मूर्तियों से सुशोभित हैं। शिखर पर लंबवत चलती हुई गहरी कट लाइनें एक प्रकाशीय प्रभाव डालती हैं जिससे मंदिर वास्तविक आकार से बड़ा दिखाई देता है। मंदिर में चार मुख्य भाग हैं जिन्हें गर्भ गृह, यज्ञ शैलम, भोग मंडप और नाट्य शाला के रूप में जाना जाता है। सभी देवताओं की छवियों को विशेष पर्दों और गहनों के साथ सजाया गया है, जो कलाकार की उत्कृष्टता को दर्शाते हैं।

लिंगराज मंदिर में हर साल, विशेषकर शिवरात्रि के दौरान, लाखों भक्त आते है। देश भर के तीर्थ यात्री यहाँ पर बेल-पत्र और भांग चढ़ाने एवं पवित्र बिंदुसागर झील में डुबकी लगाने के लिए इकट्ठा होते है। जैसे ही आप मंदिर के अंदर कदम रखेगें, उसी समय सर्वोच्च देवत्व और पवित्रता की भावना महसूस होने लगेगी।

मंदिर खुलने का समयः सुबह 6:00 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक और शाम 3:30 बजे से रात्रि 9:30 बजे तक।