पार्थसारथी मंदिर का नक्शा


पार्थसारथी मंदिर को अरुलमिगु पार्थसारथीस्वामी भी कहा जाता है। यह भगवान कृष्ण का एक वैष्णव मंदिर है। इसमें भगवान कृष्ण ‘पार्थसारथी’ यानि महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथी के रुप में हैं।

यह मंदिर भगवान विष्णु की पूजा किए जाने वाले 108 प्रसिद्ध स्थानों में से एक है। यहां भगवान विष्णु के चार अलग अलग अवतार हैं, भगवान कृष्ण, भगवान राम, भगवान नृसिंह और भगवान वराह। यह मंदिर इस मायने में अनूठा है।

यहां भगवान विष्णु के चार अवतारों को एक ही जगह पूजा सकता है। इससे इसका महत्व और बढ़ जाता है। ऐतिहासिक साहित्यों में इस स्थान को पहचाना जा सकता है और भगवान कृष्ण के भक्तों जैसे थिरुमजिसाइ अलवर, पेयलवर और थिरुमंगाइलवर के गीतों में भी इसका जि़क्र है। मंदिर में साल भर विभिन्न भगवानों के सम्मान में कई उत्सव आयोजित होते हैं जिसमें शामिल होने पूरे देश से भक्त आते हैं। यह त्यौहार विभिन्न अनुष्ठानों, गानों, नृत्य, पूजा और स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ मनाए जाते हैं।

इतिहास
पुराणों के अनुसार, तिरुमला के भगवान बालाजी की पूजा करने वाले राजा सुमथि भगवान कृष्ण की पूजा करना करना चाहते थे। भगवान बालाजी ने महाभारत के युद्व में अर्जुन के सारथी का रुप बदलकर उनकी यह इच्छा पूरी की। पार्थसारथीे उनके सामने युद्व के घावों के और मूंछों के साथ प्रकट हुए। यह मंदिर 8वीं सदी में पल्लव के राजा नरसिंहवर्मन ने बनवाया था। बाद में मंदिर के आसपास कई टावर बनते गए और आज यह वर्तमान रुप में मौजूद है।

यह मंदिर ‘ब्रिंदारण्यस्थलम’ स्थान पर मौजूद है जहां सप्त ऋषियों ने तप किया था। इस स्थान को ‘पंचवीरस्थलम’ भी कहा जाता है जिसका अर्थ पांच वीरों की भूमि होता है। जिस स्थान पर यह मंदिर मौजूद है उसे ‘थिरुवल्लीकेनी’ कहा जाता है। यह नाम भगवान रंगनाथ की साथी देवी वेदवल्ली से आया है जिनका जन्म इस मंदिर के सामने सरोवर में तैरते कमल पर हुआ था। यह शहर का सबसे पुराना मंदिर है क्योंकि यह जिस गांव में स्थित है उसका उल्लेख पल्लव राजा के शासन काल तक का है।

वास्तुकला
इस मंदिर की विशेषता है कि इसका निर्माण किसी एक राजा के द्वारा नहीं हुआ था। समय के साथ साथ कई राजाओं ने यहां निर्माण कार्य कराए और मंदिर का विस्तार होता गया। मंदिर में कई मंडप और महामंडप हैं जो विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों और त्यौहारों पर उपयोग होते हैं। मंदिर का टावर दूर से ही देखा जा सकता है। पार्थसारथी मंदिर की विशिष्टता है कि इसके परिसर में विभिन्न भगवानों को समर्पित सात मंदिर हैं। पार्थसारथी मंदिर के दो प्रवेश द्वार हैं। एक भगवान पार्थसारथी, देवी रुक्मणी और सत्यभामा के मंदिर को जाता है दूसरा द्वार भगवान नरसिंह के मंदिर को जाता है जहां वह योग मुद्रा में हैं। भगवान पार्थसारथी दुश्मनों से लड़ने और भगवान नरसिंह सामना करने की शक्ति देते हैं।

समय
मंदिर सुबह 6 बजे से ‘सुप्रभातम’ पूजा के साथ खुलता है और रात 9 बजे बंद होता है। अंतिम पूजा ‘अर्थ जमम’ के साथ मंदिर के दरवाजे बंद हो जाते हैं। मुख्य भगवान की विशेष पूजा के लिए हर थोड़े समय पर मंदिर के दरवाजे बंद हो जाते हैं। यहां संस्कृत, तमिल और अन्य भाषाओं में मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। लोग यहां भगवान को प्रसन्न करने के लिए विशेष प्रार्थना करते हैं और प्रसाद चढ़ाते हैं।

स्थान
यह मंदिर चैन्नई के व्यस्त क्षेत्र त्रिपलीकेन में स्थित है। चैन्नई के मध्य में होने के कारण यह सड़कों से अच्छी तरह जुड़ा है।

कैसे पहुंचे
यह मंदिर प्रमुख रेलवे स्टेशनों से बहुत करीब है। चैन्नई सेंट्रल और एग्मोर रेलवे स्टेशन मंदिर से सिर्फ 4 किमी. दूर है। थीरुवल्लिकेनी स्टेशन कुछ मीटर की दूरी पर होने से यहां एमआरटीएस के जरिए भी पहुंचा जा सकता है। यहां का सड़क संपर्क बहुत अच्छा है और कई बसें सीधे यहां पहुंचाती हैं। बस और रेल के किराये बहुत कम हैं।

पार्थसारथी मंदिर का ऐतिहासिक महत्व बहुत ज्यादा है और यह एक प्रमुख धार्मिक स्थान है। पार्थसारथी मंदिर को अच्छी तरह समझने के लिए यहां किसी उत्सव या त्यौहार के समय में आना चाहिये।

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अंतिम संशोधन : नवंबर 10, 2014