वाडापलानी मंदिर का नक्शा


वाडापलानी मंदिर को 'अरुलमिगु वाडापलानी अंदावर थिरुकोली' भी कहा जाता है। यह मंदिर भगवान मुरुगा को समर्पित है और यहां की जाने वाली प्रार्थना की शक्तियों के लिए जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण 17वीं सदी में हुआ था और समय के साथ इसकी प्रसिद्धि बढ़ती गई।

मुख्य देवता के अलावा यहां अन्य देवता भी हैं पलानी अंदावर, इसलिए यहां एक साथ कई देवताओं की पूजा की जा सकती है। अन्य भगवानों में यहां भगवान शिव, भगवान गणेश, भगवान हनुमान और देवी पार्वती हैं। भगवान हनुमान की छवि यहां एक खंबे पर अंकित है और भक्त अपनी मनोकामना पूरी करने कि लिए उन्हें मक्खन चढ़ाते हैं। फिल्म उद्योग में इस मंदिर का विशेष स्थान है। यह मंदिर कई फिल्मों में दिखाया गया है। इसके आसपास कई मशहूर लोगों के घर हैं।

भगवान मुरुगा अपने भक्तों को 'चप्पल' पहने हुए आशीर्वाद देते हैं। माना जाता है कि इन चप्पलों में दिव्य शक्ति है। यहां मंगल ग्रह का भी एक मंदिर है, क्योंकि माना जाता है कि मुरुगा मंगल ग्रह के मुख्य देवता हैं। मंदिर में एक विशेष स्वर्ण रथ भी है जो त्यौहारों और खास अवसरों पर सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए रखा जाता है।

इतिहास
प्रसिद्व ग्रंथों और काव्यों में मिले वर्णन से पता चलता है कि यह मंदिर शुरुआत में मात्र एक झोपड़ी सा था। इसका निर्माण भगवान मुरुगा के भक्त अन्नास्वामी नायकर ने किया था जो उस झोपड़ी में भगवान का चित्र रखकर व्यक्तिगत रुप से उनकी पूजा किया करते थे। अन्नास्वामी नायकर के पास विशेष दिव्य शक्तियां थी जिनसे वह लोगों की इच्छाएं पूरी किया करते थे। माना जाता है कि उनके पास उपचार की शक्तियां थी जिनसे वह लोगों के बीच काफी मशहूर हो गए थे। अन्नास्वामी नायकर की प्रसिद्धि के साथ ही मंदिर को भी प्रसिद्धि मिलने लगी और लोगों के बीच इसके प्रति श्रद्धा बनती गई। वह छोटा सा मंदिर धीरे धीरे बड़ा होता गया और सन् 1920 में इसका पुनर्निमाण हुआ जो अब वर्तमान रुप में मौजूद है।

125 साल पहले एक झोपड़ी के तौर पर शुरु हुआ मंदिर आज कई भक्तों की प्रार्थना का स्थान है जहां बड़ी संख्या में भक्त रोज एकत्र होते हैं। यहां हर साल 7,000 शादियां होती हैं। यहां की मूर्तियां सदियों पुरानी हैं और इन्हें महान कलाकारों ने बनाया था और आज कई कलाकार और इंजीनियरों द्वारा इनकी देखभाल की जाती है। इस टावर में उपयोग किया जाने वाला पेंट ताजा और जीवंत रखा जाता है ताकि प्राचीन चित्रों की सुंदरता बनी रहे।

वास्तुकला
इसकी जटिल डिजाइन और सुंदर मूर्तियों के कारण यह मंदिर प्रशंसा का हकदार है। इस टावर में 108 भरतनाट्यम मुद्राएं प्रदर्शित हैं जो एक सुंदर दृश्य देता है। मुख्य देवता भगवान मुरुगा हैं जिनकी मूर्ति चार फुट उंची है। मंदिर की वास्तुकला में कई भगवानों की प्रतिमाएं हैं जैसे अम्मन, काली, चोक्करनाथ और कई और हैं। मंदिर में एक बड़ा हाॅल है जिसमें कई शादियां और प्रवचन होते हैं। मुख्य टाॅवर में कई धार्मिक छवियां और प्रतिमाएं हैं, जो मोहक लगती हैं। मंदिर के सामने एक सरोवर है जो यहां के माहौल को मनभावन बनाता है। मंदिर में परिसर है जिसमें विभिन्न भगवानों के छोटे छोटे मंदिर हैं। राजागोपुरम में ऐसी कई छवियां और प्रतिमाएं हैं जो स्कंथपुरम की कहानियां बताती हैं जिसे भगवान मुरुगा से जुड़ा पवित्र स्थान माना जाता है।

समय
मंदिर में सुबह 5ः30 बजे से पूरा शुरु होती है और रात 9 बजे तक चलती है। यह पूजा हर थोड़े अंतराल से होती है। नडाई पूजा के साथ सुबह 5ः30 बजे शुरु हुई पूजा रात 9 बजे अर्थजामा पूजा के साथ खत्म होती है। यहां मंत्र मुख्यतः तमिल और संस्कृत में अनुभवी पंडितों द्वारा उच्चारित किए जाते हैं।

स्थान
यह मंदिर पश्चिमी चैन्नई के वादापलानी में स्थित है जो शहर का प्रसिद्ध क्षेत्र है। यह कोयंबेडु और अशोक नगर के बीच टी. नगर में स्थित है।

कैसे पहुंचें?
चैन्नई के मध्य में स्थित होने के कारण मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। एस्काॅट रोड पर स्थित बस टर्मिनल इस क्षेत्र से पास है और विभिन्न बस सेवाएं लगातार उपलब्ध रहती हैं। मंदिर के पास चैन्नई सेंट्रल और एग्मोर रेलवे स्टेशन हैं जहां से बस या कार के द्वारा मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। बस और रेल का किराया 200-500 रुपये के बीच है जो ठीक दर है।

यह मंदिर चैन्नई के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है और इसकी सुंदर प्रतिमाओं और अच्छे वातावरण के कारण बहुत लोकप्रिय है। यहां सुंदर नज़ारे, शांत वातावरण के अलावा आध्यात्मिक अनुभव भी पाया जा सकता है।

चेन्नई में देखने योग्य स्थान
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अंतिम संशोधन : नवंबर 10, 2014