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भारतीय राजनीति में क्या है आम आदमी पार्टी का भविष्य

July 21, 2018
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भारतीय राजनीति में क्या है आम आदमी पार्टी का भविष्य

2012 में इण्डिया अगेंस्ट करप्शन से बाहर आई आम आदमी पार्टी को लगभग 6 साल हो गए हैं, जैसा कि अरविंद केजरीवाल और आईएसी के कई अन्य सदस्यों ने महसूस किया कि आंदोलन तब तक प्रभावी नहीं हो पाएगा जब तक कि उनकी राजनीति में प्रत्यक्ष रूप से भागीदारी न हो जाए। इस प्रकार आम आदमी पार्टी ने भारतीय राजनीति में प्रवेश किया, अन्ना हजारे जो पार्टी के गठन के खिलाफ थे, पार्टी के एक कट्टर आलोचक बन गए, जबकि कई लोगों ने आम आदमी पार्टी को कांग्रेस का दूसरा हाथ कहकर संबोधित किया। आम आदमी पार्टी की राजनीति का पहला दौर 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान शुरू हुआ था। आप पार्टी 29 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और कांग्रेस की कई शर्तों के साथ समर्थन से उसने अपनी सरकार बनाई, लेकिन 49 दिनों के भीतर सरकार गिर गई। उसके बाद, 2014 के विधानसभा चुनावों में चार सीटें हासिल करने के लिए आम आदमी पार्टी को बहुत से उतार-चढ़ावों का सामना करना पड़ा। आप ने अपनी कई विधान सभा चुनावों की हार का स्वाद चखने के बाद 2015 के विधानसभा चुनावों में सब का सफाया करते हुए 70 में से 67 सीटों पर जीत दर्ज की।

आम आदमी पार्टी के राजनीतिक दौर की शुरुआत

2011 में, अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल ने अनेक प्रमुख नागरिक समाज के सदस्यों के साथ मिलकर एक अखिल भारतीय आंदोलन शुरू किया जो इण्डिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन के रूप में जाना जाने लगा। भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार को खत्म करने और जन लोक पाल बिल पारित कराने के उद्देश्य से किए गए इस आंदोलन ने बहुत जल्दी ही तेजी पकड़ ली। दिल्ली का जंतर मंतर इस आंदोलन का उपरि केंद्र बन गया, जहां अन्ना हजारे के नेतृत्व में हजारों लोग अपनी दिनचर्या, काम-काज सबकुछ छोड़कर इस आंदोलन में शामिल हो गए। भृष्टाचार के खिलाफ हो रहे आंदोलन ने इस विरोध को बंद करने के लिए संसद में जन लोकपाल विधेयक पेश करके तत्काल कार्यवाही करने के लिए सरकार को मजबूर कर दिया था लेकिन किसी भी बात पर अमल नहीं किया गया। तब अन्ना हजारे ने सोचा कि आंदोलन लगातार जारी रखना चाहिए जबकि अरविंद केजरीवाल ने सोचा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सीधे लड़ने की अपेक्षा राजनीतिक मार्ग अपनाना आवश्यक है। यह आंतरिक संघर्ष एक फसाद की जड़ बन गया औरआंदोलन के मुख्य सदस्यों ने इस दल का नेतृत्व किया, अरविंद केजरीवाल ने कई सदस्यों के साथ आम आदमी पार्टी का गठन किया और भारतीय राजनीति में जोखिम के साथ प्रवेश किया जबकि अन्ना हजारे ने अपने आंदोलन को जारी रखा, जो अंत में कई महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों के अरविंद केजरीवाल से जुड़ने के कारण फीका पड़ गया।

चुनावी उतार-चढ़ाव

2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव आम आदमी पार्टी का चुनावी राजनीति में पहला कदम था। इस पार्टी ने 29 सीटें जीतकर और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के शर्तों से भरे समर्थन के साथ सरकार बनाकर एक भव्य शुरुआत की। आम आदमी पार्टी के लिए यह उत्साह बहुत लंबे समय तक नहीं रहा क्योंकि पार्टी और कांग्रेस के बीच उदासीनता के कारण सरकार को 49 दिनों में त्यागपत्र देना पड़ा था। केजरीवाल और उनके साथियों के लिए अगली चुनौती 2014 के आम विधानसभा चुनाव थे, जहां पार्टी राष्ट्रीय मंच पर कांग्रेस के अलावा एक विकल्प बनती हुई नजर आ रही थी। आम आदमी पार्टी द्वारा “मोदी लहर” के सामने एक कड़ी चुनौती पेश करने की आशा थी, जिसने लोकसभा में बहुमत हासिल किया तथा केजरीवाल और उनकी पार्टी केवल चार लोकसभा सीटों को ही अपने नाम कर सकी। अरविंद केजरीवाल वाराणसी निर्वाचन क्षेत्र से बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी से हार गए।

इसके बाद 2015 में, दिल्ली में राज्य विधान सभा के लिए चुनाव आयोजित किए गए, जिसमें आम आदमी पार्टी दिल्ली विधानसभा में 70 में से 67 सीटों पर जीत दर्ज करके ऐतिहासिक जनादेश के साथ उभरी। इस जीत ने पार्टी को देश में एक व्यवहारिक विपक्ष के रूप में प्रस्तुत किया। हालांकि, घटना रहित साल 2016 में पार्टी ने, अगले साल 2017 में 7 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों पर अपना ध्यान केंद्रित किया। जहाँ आम आदमी पार्टी को बड़ी असफलता का सामना करना पड़ा,  इन राज्यों में अधिकांशतः पार्टी के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई क्योंकि वे कोई भी महत्वपूर्ण प्रभाव डालने में असफल रहे। जबकि पंजाब राज्य में पार्टी 20 सीटों के साथ कांग्रेस के बाद और शिरोमणि अकाली दल-भाजपा गठबंधन से 2 सीटें ज्यादा जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। पार्टी ने उत्तर प्रदेश के नगर निकाय चुनावों में 44 सीटें जीतकर काफी अच्छा प्रदर्शन किया और 4 बड़ी पार्टियों (बीजेपी, कांग्रेस, एसपी और बीएसपी) के बाद पांचवीं सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है।

वर्ष 2018 भी पार्टी कीअच्छी शुरुआत नहीं हुई क्योंकि पार्टी कर्नाटक, त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में जमीनी स्तर पर अपने आप को प्रदर्शित करने में नाकाम रही।

आम आदमी पार्टी का आगे का सफर

2019 के विधानसभा चुनाव होने में मुश्किल से एक साल है और 2018 के अंत तक कुछ बड़े राज्यों में भी विधानसभा चुनावों का आयोजन होना है। आम आदमी पार्टी आगे बढ़ने के लिए एक सकारात्मक गति प्राप्त करने की तलाश में होगी क्योंकि पार्टी के लिए यह साल करो या मरो की स्थिति जैसा हो सकता है।

आपके पास एक बड़ा भ्रष्टाचार विरोधी अभियान और खुद को लोगों के सामने एक विकल्प के तौर पर पेश करना, जैसा कि वह अपने समर्थकों से कहते हैं, जैसे हथियार हैं। पार्टी की शुरुआती चुनावी सफलताएँ कार्यकर्ताओं के एक जुटीकरण का परिणाम थीं, जहाँ भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव का हिस्सा बनने के लिए विभिन्न आयु वर्ग के लोग पार्टी में शामिल हो गए थे। हालांकि, पार्टी में संगठनात्मक विवाद और ओछी हरकतों को मीडिया में दर्शाए जाने से पार्टी के कई कोर सदस्य छोड़ कर जा चुके हैं और पार्टी धीरे-धीरे अपना समर्थन खो रही है।

यदि पार्टी का नेतृत्व केजरीवाल कर रहे हैं तो न केवल आगामी चुनावों में बल्कि एक लंबे समय तक एक उन्हें कड़ी मेहनत करनी होगी, साथ ही आप को पार्टी की छवि को खराब करने वाले सभी आंतरिक मुद्दों को हल करने की जरूरत है, जबकि कार्यकर्ताओं और जमीनी स्तर पर संगठनात्मक शक्ति को संगठित करने पर भी ध्यान केंद्रित करना है।

 

 

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भारतीय राजनीति में आम आदमी पार्टी का क्या भविष्य है?
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इण्डिया अगेंस्ट करप्शन से निकल कर आई आम आदमी पार्टी ने शुरूआत में अपने आप को एक विकल्प के रूप में पेश किया और इसका राजनीतिक फायदा भी उठाया, हालांकि, पार्टी आंतरिक समस्याओं और लगातार चुनावी हार के कारण एक राजनीतिक निष्क्रियता में चली गई है,क्या पार्टी वापस उभरकर और भारत के चुनावी मानचित्र पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने में सक्षम होगी या क्या यह पृष्ठभूमि में क्षीण हो जाएगी?
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