Home / Business / भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की परेशानियां

भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की परेशानियां

June 20, 2018
by


भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की परेशानियां

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भारतीय बैंकिंग क्षेत्र के प्रमुख घटक हैं। भारत सरकार देश के सभी 21 पीएसयू (पब्लिक सेक्टर) बैंकों के अधिकांश हिस्से के स्वामी है। देश में पीएसयू बैंक बैंकिंग परिसंपत्तियों के लगभग 70% हिस्से के मालिक हैं। भले ही हाल के वर्षों में बैंकों को नुकसान का सामना करना पड़ा है, लेकिन फिर भी बैंकों ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पिछले वित्त वर्ष में, बैंकों ने 62000 करोड़ रुपये से अधिक का घाटा दर्ज किया था। पीएसयू बैंकों की स्थिति बिगड़ रही है क्योंकि ये बैंकें वैश्विक बैंकिंग क्षेत्र में पारगमन के अनुकूल होने में असमर्थ हैं। किसी विशेष अवधि में अनर्जक ऋण और गैर-व्यवसायी संपत्तियाँ के कारण इन 21 बैंकों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है। हाल ही के बैंकिंग घोटालों ने भारतीय बैंकिंग प्रणाली और अयोग्य कॉर्पोरेट प्रशासन की कमियों को उजागर किया है जो पीएसयू बैंकों को खोखला कर रही हैं। बैंक बदलावों के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और तेजी से भारतीयों के बीच अपनी विश्वसनीयता खो रहे हैं।

निम्नलिखित मुद्दे देश में पीएसयू बैंकों की नाक में दम कर रहे हैं:

 

अनर्जक ऋण और गैर-व्यवसायी संपत्तियाँ

बैंकों द्वारा दिए गए ऋण जिस पर ऋण की अवधि के दौरान या परिपक्वता के समय 90 दिनों की अवधि के बाद भी ब्याज या मूलधन का भुगतान बकाया रहता है उसे गैर-व्यवसायी संपत्तियाँ माना जाता है। बकायादारों के रिकॉर्ड रखने के लिए एनपीए आम तौर पर बैंक की बैलेंस शीट पर सूचीबद्ध होते हैं।अनर्जक ऋण के मामले में पीएसयू बैंक निजी क्षेत्र के बैंकों की तुलना में सबसे खराब प्रदर्शनकर्ता हैं। वित्तीय वर्ष2017-18 के अंत तक सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों के पास कुछ सबसे बड़े बकाएदारों के साथ एनपीए (अनर्जक ऋण) 8,57,000 करोड़ रुपये था, जिसमें नीरव मोदी, विजय माल्या, विक्रम कोठारी और कई अन्य एनपीएऋण वाले लोग शामिल थे। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, जो देश की सबसे बड़ी बैंकिंग श्रृंखला है, 2022 तक एनपीए को 6% तक कम करने का दावा करती है, वहीं आईडीबीआई के पास 21 पीएसयू बैंकों में सबसे उच्चतम एनपीए स्तर था।

पीएसयू बैंकिंग घोटाले

हाल ही में पंजाब नेशनल बैंक में हुए घोटाले ने ना केवल नागरिकों के लिए बल्कि देश के नेताओं की भी आंखें खोल दी थी। इस घोटाले में नीरव मोदी मुख्य आरोपी थे क्योंकि उनकी कंपनी ने 11000 करोड़ से अधिक ऋण के साथ बैंक को चूना लगाया था। पीएनबी-नीरव मोदी घोटाले ने भारतीय बैंकिंग प्रणालीऔर विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में मौजूदा दोषों और खमियों को उजागर किया है। यह पीएनबी घोटाला पिछले डेढ़ साल में घटित हुआ एकमात्र बैंकिंग घोटाला नहीं है, पीएसयू बैंकों जैसे केनरा बैंक, आंध्र बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, भारतीय स्टेट बैंकऑफ इंडिया ने मल्टी-करोड़ घोटालों को भ्रमित कर दिया है जिसने पीएसयू बैंकों में निवेशकों और खाताधारकों के विश्वास को गहरा झटका दिया है।

अयोग्य कॉर्पोरेट प्रशासन

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) में, बैंकों की कमजोर स्थिति के पीछे के प्रमुख कारणों में से एक कॉर्पोरेट प्रशासन की समस्या है। हाल ही में हुए घोटालों ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में उच्च-स्तरीय अधिकारियों के कामकाज में अधिक पारदर्शिता की आवश्यकता को दिखाया, जबकि क्रेडिट मूल्यांकन की खराब गुणवत्ता इस बैंकिंग संस्थान की संचालक प्रणाली को भी प्रभावित करती है। पीएनबी-नीरव मोदी घोटाले के चलते, सरकारी संस्थानों ने उच्च बैंकिंग अधिकारियों पर सवाल उठाए हैं, जबकि वर्तमान सीईओ और एमडी में से कुछ ऐसा महसूस करते हैं कि सरकार की यह सतर्कता उनके लिए स्वतंत्र रूप से काम करने में बाधा बन रही है। बैंकिंग प्रणाली को अभी विश्वसनीय उच्च-स्तरीय अधिकारियों की आवश्यकता है, जो पीएसयू बैंकों को सही रास्ते पर लाने के लिए कड़ी और तेज कार्रवाई करने में सक्षम हों।

क्या भारत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से दूर हो सकता है?

भारत की आजादी के समय से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भारतीय बैंकिंग क्षेत्र की रीढ़ की हड्डी रहे हैं। दशकों से, इन बैंकों ने देश के कोने-कोने में, गांवों और कस्बों के सबसे दूरस्थ इलाकों में प्रवेश किया है। लेकिन,वैश्विक बैंकिंग प्रणाली के साथ ऑनलाइन जुड़ने के लिए सुधारों और मौलिक उपायों की कमीने पीएसयू बैंकों के विकास को कमजोर कर दिया है। ग्लोबल ब्रोकरेज फर्म गोल्डमैन सैक्स ने हाल ही में हुए नुकसान और घोटालों के कारण भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर संशय जताया है। हालांकि, भारत सरकार  बैंकों के कामकाज में बदलाव और स्थिरता लाने के लिए बहुत से आवश्यक सुधार करने की कोशिश कर रही है। सरकार ने पीएसयू बैंकों से एनपीए को लेने के लिए एक संपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी की स्थापना के लिए एक समिति बनाई है। दूसरी तरफ, सरकार ने हाल ही में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण और बैंकों की विश्वसनीयता में सुधार लाने के लिए 2015 में मिशन इंद्रधनुष लॉन्च किया है, क्योंकि इससे बैंकों के पास ऋण देने की शक्ति होगी। सरकार विनिवेश की संभावना पर भी जोर दे रही है, साथ ही उन्हें इस कदम के कारण कठोर विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है, जबकि पीएसयू बैंक निजी बैकिंग सिस्टम की शुरुआत से पहले भी भारतीय अर्थव्यवस्था को संभाल चुके हैं। 2017 में, एनडीए सरकार ने अपने पूर्ववर्ती से मामूली सुधार के साथ इंद्रधनुष का संस्करण 2.0 लॉन्च किया। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक वित्तीय समावेश प्राप्त करने के भारत के लक्ष्य के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं, जिसमें प्रत्येक नागरिक को उनके घर के समीप बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाती हैं।

Summary
Article Name
भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की परेशानियां
Description
भारत की आजादी के समय से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भारत बैंकिंग क्षेत्र की रीढ़ की हड्डी रहे हैं।दशकों से,इन बैंकों ने देश के कोने-कोने में, गांवों और कस्बों के सबसे दूरस्थ इलाकों में प्रवेश किया है।
Author