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भारतीय रुपये में गिरावट क्यों ?

August 18, 2018
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भारतीय रुपये में गिरावट क्यों ?

16 वीं लोकसभा चुनाव जीतने के बाद, भाजपा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) 26 मई 2014 को सत्ता में आई। अपने घोषणा पत्र में, भाजपा ने रुपये की गिरावट के लिए यूपीए सरकार की दृढ़ता से आलोचना की थी, क्योंकि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में तेजी से गिरावट आई थी।

जब एनडीए सरकार सत्ता में आई तो विनिमय दर 58.66 पर थी। सरल शब्दों में कहें तो 1 डॉलर = 58.66 रुपये। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में रुपये में लगातार बदलाव हुआ है। वर्तमान समय में रुपये की कीमत 70.39 (15 अगस्त 2018 तक) है। आइए मोदी शासन के तहत रुपये के सफर पर एक नजर डालते हैं:

(1 डॉलर में भारतीय रुपये का मूल्य)

26 मई 2014 – 58.66
26 मई 2015 – 63.97
26 मई 2016 – 66.93
26 मई 2017 – 64.51
26 मई 2018 – 67.72
15 अगस्त 2018 – 70.39

जैसा कि हम देख सकते हैं कि भारतीय रुपया के मुकाबले डॉलर मूल्य में स्पष्ट रूप से ऊपर रहा है। सवाल है कि ऐसा क्यों। भारतीय रुपया का मूल्य लगातार कमजोर क्यों हो रहा है, यह अबतक की सबसे कमजोर स्थिति है।

मोदी शासन के तहत रुपये के सफर

मुद्रा मूल्यह्रास क्या है और यह कैसे काम करता है?

विदेशी मुद्रा बाजार में मुद्रा के मूल्य में गिरावट मुद्रा मूल्यह्रास है। तो, हमारा मतलब क्या है जब हम कहते हैं कि भारतीय रुपये के मूल्य में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले गिरावट आई है, जैसा कि हमें नियमित रूप से समाचार पोर्टलों द्वारा पता चलता है। आम आदमी के शब्दों में, इसका मतलब है कि पहले की तुलना में अब एक डॉलर के बदले अधिक रुपये का आदान-प्रदान किया सकता है।

उदाहरण के लिए, 26 मई 2014 में आप एक डॉलर के बदले 58.66 रुपये प्राप्त कर सकते थे। हालांकि 15 अगस्त, 2018 को (चार साल बाद) आप एक डॉलर के बदले 70.39 रुपये के हकदार होंगे। एक ही समय में, रुपया का मूल्यह्रास और डॉलर की अभिमूल्यन है।

रुपयों में हमेशा गिरावट रही है। नीचे इसके कारण दिए गए है कि ऐसा क्यों है।

1) लीरा कनेक्शन

तुर्की, मध्य-पूर्वी देश, अभी वित्तीय संकट से गुजर जा रहा है। अमेरिका के साथ इसके संबंध कमजोर हैं, जो इसकी कमजोर मुद्रा का मुख्य कारण है। लीरा – 2018 की पहली छमाही में आधिकारिक तुर्की मुद्रा अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 40 प्रतिशत गिर गई है। जैसा कि अक्सर होता है कि किसी देश में वित्तीय संकट की उथल-पुथल राष्ट्रीय सीमाओं तक ही सीमित नहीं रहती है। लीरा संकट ने वैश्विक बाजार को अधिप्लावन प्रभाव (स्पिलोवर प्रभाव) के बारे में चिंतित कर दिया है। विकासशील देश इस तरह के संकट से अधिक प्रभावित होते हैं, इस तरह की स्थिति भारत के लिए मुश्किल बन सकती है।

2) तेल आयात पर निर्भरता

केवल अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयात करने वाला देश है। भारत अपने कच्चे तेल की 80% से अधिक आवश्यकताओं का आयात करता है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय तेल बाजार में बदलावों के लिए यह अति संवेदनशील हो जाता है। उदाहरण के लिए, यदि कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि हुई है, तो हमारी कुल आयात लागत भी बढ़ेगी, जो हमारे चालू खाता शेष को प्रभावित करती है जो बदले में मुद्रा बाजार को प्रभावित करती है।

3) भारी चालू खातों में घाटा

जून 2018 में, भारत में चालू खाते में घाटा 42% अर्थात 160 बिलियन डॉलर बढ़ गया। देश के चालू खाता में, वस्तु एवं सेवा कर के आयात और निर्यात के बीच अंतर है। कच्चे तेल के आयात पर भारी निर्भरता और इसकी बढ़ती कीमत, जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, इसकी गिरावट में वृद्धि हमारे वर्तमान खाते को प्रभावित करती है।

कैसे एक चालू खाता भारतीय रुपये की गिरावट को प्रभावित करता है?

सरल शब्दों में, बढ़ते चालू खाता में घाटा (भारत का) के कारण डॉलर की मांग में वृद्धि होती जा रही है। ऐसा क्यों? क्योंकि हमें बढ़ते घाटे को वित्तपोषित करने और आयात के लिए भी भुगतान करने के  लिए पहले से अधिक डॉलर की जरूरत है। मुद्रा की मांग में वृद्धि इसको अभिमूल्यन की ओर ले जाता है। और यदि अमेरिकी डॉलर का भारतीय रुपये के सामने अभिमूल्यन हो रहा है, तो इसका मतलब है कि हमारी घरेलू मुद्रा में गिरावट हो रही है।

4) यूएस फेड (संघीय कोष) दर में परिवर्तन

चूँकि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाएं एक जटिल बंधन साझा करती हैं, इसलिए भारतीय बाजार दर में अमेरिकी संघीय दर में वृद्धि के प्रभाव भी देखे जाते हैं। फेड दरों में वृद्धि (जैसा कि 2018 में दो बार देखा गया था), अमेरिकी डॉलर को मजबूत करता है, जिसके बदले में भारतीय मुद्रा का मूल्यह्रास होता है।

5) वैश्विक बाजार

2018 में संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन एक व्यापार युद्ध को झेल रहे हैं। दोनों देश, दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक हैं, ट्रेड वॉर (व्यापार युद्ध) से वैश्विक अर्थव्यवस्था का प्रभावित होना सुनिश्चित है। जबकि इन दोनों के ट्रेड वॉर से भारत भी प्रभावित हो सकता है। इस स्थिति से वैश्विक निवेशकों और भारतीय अर्थशास्त्रियों के बीच निश्चित रूप से संघर्ष उत्पन्न हो गया है।

रुपये में गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करेगी?

  1. तेल आयात की कीमत: कच्चे तेल को भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास और अपनी अधिक उपयोग के साथ काम करने के लिए एक विशाल साधन कहा जा सकता है। चूँकि भारत अपनी 80% से अधिक तेल की जरूरतों का आयात करता है, इसलिए रुपया का मूल्यह्रास हमारे भारी तेल आयात की लागत में वृद्धि करेगा। बदले में यह हमारे चालू खाते में घाटे का कारण बन सकता है।
  2. आयात लागत में वृद्धि और भी बुरे प्रकार से भारतीय कॉर्पोरेट बाजार को सीधे प्रभावित करेगी।
  3. मुद्रास्फीति: घरेलू मुद्रा का अभिमूल्यन और मुद्रास्फीति दोनों विपरीत दिशाओं में काम करती है। इसलिए, मुद्रास्फीति में संभावित वृद्धि का मतलब घरेलू मुद्रा का मूल्यह्रास करना है।
  4. बढ़ती मुद्रास्फीति (महंगाई) को रोकने के लिए, देश के केंद्रीय बैंक आम तौर पर ब्याज दरों में वृद्धि करते हैं। इसके परिणामस्वरूप लोग कम पैसे उधार लेने में सक्षम हैं, और इसलिए, मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए, वह अपने खर्चे के लिए भी कम खर्च करते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) भी ब्याज दरों में वृद्धि का सहारा ले सकते हैं और कॉर्पोरेटों पर अपना प्रभाव बढ़ा सकते हैं।

 

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रूपयों में गिरावट क्यों
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अगस्त, 2018 में, भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कम होता गया है। कैसे? जानकारी प्राप्त करने के लिए इस लेख पढ़ें।
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