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बच्चों के मोटापे के लिए जिम्मेदार कौन : माता-पिता या स्कूल ?

September 13, 2018
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बच्चों में बढ़ता मोटापा -दोषी कौन? -दोषी कौन?

न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन द्वारा 2017 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया में सबसे अधिक मोटापे से ग्रस्त बच्चों की संख्या के मामले में चीन के बाद भारत का नाम है। वैश्विक स्तर पर, 2 अरब से अधिक बच्चे और वयस्क “मोटापे” की श्रेणी में आते हैं, भारत में मोटापे से ग्रस्त बच्चों की सबसे चौंका देने वाली संख्या 1 करोड़ 44 लाख थी। दक्षिण भारत में किए गए एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि अधिक वजन वाले बच्चों की संख्या 2003 में 4.94% थी जो 2005 में बढ़कर 6.57% हो गई थी।

मोटापे के संयुक्त परिणाम बेहद खतरनाक हैं। विकासशील देशों में मोटापे की बढ़ती संख्या काफी चिंताजनक होती जा रही है और यही स्थित भारत में भी है। सवाल यह है कि, यह समस्या अपनी पकड़ मजबूत क्यूं बनाती जा रही है, और इस समस्या पर व्यक्तिगत स्तर पर कोई अंकुश क्यूं नहीं लगाया जा रहा है?

बच्चों के मोटापे का प्रमुख कारण

ध्यान देने योग्य पहली बात तो यह है कि अधिक वजन होना और मोटापे से ग्रस्त होना दोनों अलग-अलग मामले हैं। इन दोनों बातों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, क्योंकि मोटापा आपके लिए खतरनाक साबित हो सकता है। यदि अतिरिक्त फैट को (अधिक वजन होने की स्थिति) समय पर नियंत्रित नहीं किया जाता है, तो यह संभावित रूप से मोटापे का कारण बन सकता है।

मोटापे का कारण क्या है?

कुछ मामलों में, मोटापा आनुवंशिक हो सकता है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है। हालांकि, अन्य मामलों में मोटापा व्यक्ति की जीवन शैली सहित कई अन्य बाहरी कारकों का भी परिणाम है। भारत में मोटापे से ग्रस्त बच्चों की बढ़ती संख्या उनके पालन-पोषण के बदलते पैटर्न का भी कारण है। इन दिनों, अभिभावकता ने आगे और पीछे दोनों ओर – एक लंबी छलांग लगाई है। हालांकि बच्चों को अच्छी तरह से पोषित करने के लिए कई सुविधाएं, जैसे बाल-रोग विशेषज्ञ, डेकेयर सेंटर उपलब्ध हैं, बावजूद इसके कोई सकारात्मक बदलाव देखने को नहीं मिला है।

बच्चे अपने दिन का अधिकांश समय टेक्नोलजी के साथ व्यतीत करते हैं, फिर चाहें वह मोबाइल फोन हो या लैपटॉप आदि। इसके परिणामस्वरूप, बच्चे बाहरी चीजों पर पहले की तुलना में कम समय बिताते हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि अत्यधिक टीवी देखने से न केवल हमारी नींद उड़ जाती हैं बल्कि बार-बार खाना खाने की आदतें भी इसका कारण बन सकती हैं। जैसा कि फास्ट फूड में वसा की अधिक मात्रा होती है, इसलिए बाहर खाना या टीवी देखते हुए फास्ट फूड का सेवन करना आपके शरीर में चर्बी को बढ़ाता है। खाने की आदतों के बारे में बात करें तो इन दिनों, फास्ट फूड की लोकप्रियता काफी ज्यादा बढ़ रही है। बच्चे अपने माता-पिता की नकल उतारने के लिए जाने जाते हैं, माता-पिता भी जानबूझकर या अनजाने में फास्ट फूड के सेवन को बढ़ावा दे रहे हैं। समय की व्यस्तता के साथ माता-पिता द्वारा बच्चों को रात्रिभोज के लिए बाहर ले जाना, खाना ऑर्डर करना आदि, आज-कल का चलन बनता जा रहा है। आज की दुनिया में एक औसत भारतीय बच्चे के पास पहले की तुलना में एक अस्वास्थ्यकर भोजन की प्लेट होने की संभावना अधिक रहती है।

क्या स्कूलों को भी दोषी ठहराया जा सकता है?

बच्चे हर दिन औसतन अपने 5-6 घंटे स्कूलों में बिताते हैं। इसलिए स्वाभाविक रूप से, उनकी जीवन शैली के एक बड़े हिस्से को शैक्षिक संस्थान द्वारा आकार दिया जाता है और निर्धारित किया जाता है।

खेल: खेल गतिविधियां बच्चों के स्वस्थ जीवन और साथ ही साथ मोटापे को रोकने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण तरीका है। भारतीय स्कूल, दुर्भाग्यवश छात्रों को खेल में शामिल होने और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए बहुत कम या फिर कुछ भी नहीं करते हैं। खेल की आवश्यकता पर जोर देते हुए, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने अप्रैल, 2018 में अपने स्कूलों के लिए दैनिक खेल अवधि को अनिवार्य कर दिया था।

कैंटीन में जंक फूड:  स्कूल में बच्चे आमतौर पर स्नैक्स खाते हैं और कभी-कभी वे अपने दोपहर का भोजन कैंटीन में करते हैं। आपको शायद ही कभी बच्चों की अलमारियों पर फल जैसे स्वस्थ खाद्य पदार्थ देखने को मिलते हों। डिब्बा बंद भोजन, कैफीनयुक्त पेय पदार्थ, चॉकलेट आदि स्कूल कैंटीन की मुख्य विशेषताएं हैं, इसलिए यह कई छात्रों के लिए दैनिक आहार बन जाता है। इन चीजों से अधिक वजन और मोटापा होने का खतरा बना रहता है।

बच्चों का मोटापा हमारे लिए क्यूं है खतरे की घंटी?

शारीरिक स्वास्थ्य: अधिक वजन होने पर आपको डिप्रेशन, उच्च रक्तचाप आदि जैसी बीमारियां होने का खतरा रहता है, मोटापा होने से आपको कई और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। मोटापे से ग्रस्त लोगों को उच्च रक्तचाप, मधुमेह, अस्थमा और यहां तक कि हृदय रोग जैसी बीमारियां होने की संभावना अधिक रहती है। साथ ही मोटे बच्चे जब युवावस्था में पहुंचते हैं तो उनके मोटापे से ग्रस्त होने की संभावना बढ जाती है।

मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक सुधार: मोटापा अवसाद का भी कारण हो सकता है। अधिक वजन होना या मोटापा होना आपके आत्मविश्वास और व्यक्ति-निष्ठा को कम करने का कारण बन सकता है। कुछ बच्चे खुद को लोगों से दूर रखकर चुपचाप अकेले में बैठना पसंद करते हैं।

क्या किया जा सकता है?

माता-पिता के रूप में: माता-पिता को बच्चे का पहला शिक्षक कहा जाता है और वास्तव में यही सच है। बच्चों को अपने आस-पास की चीजों की नकल उतारने और मेल बैठाने का शौक बहुत अधिक होता है। माता-पिता ही उसके पहले शिक्षक होते हैं जिनसे वह सबकुछ सीखते हैं। इसलिए माता-पिता के रूप में, अपने घर को जितना हो सके उतना अधिक अरोग्य कर रखना चाहिए। फास्ट फूड का कम सेवन करना और अपने बच्चों को स्वस्थ स्नैक्स और फल आदि खाने के लिए प्रोत्साहित करना एक प्रभावी तरीका है जो आपको मोटा होने से ही नहीं रोकता, बल्कि अन्दर से पोषित करता है। यदि एक बच्चे को छोटी सी उम्र से ही इन सबकी आदत डालने की कोशिश की जाए तो आपका बच्चा इन सब चीजों का आदी हो सकता है। इसलिए, माता-पिता अपने बच्चे में नियमित व्यायाम की आदतों को प्रोत्साहित कर सकते हैं।

स्कूल के प्राधिकारी के रूप में: स्कूलों को अपने छात्रों के समग्र कल्याण के लिए न केवल पढ़ाई पर जोर देना होगा। बल्कि एक अनिवार्य खेल अवधि, नियमित खेल टूर्नामेंट आदि को शिक्षा प्रणाली का एक अभिन्न अंग बनाए जाने की आवश्यकता है। खेल और बाहरी गतिविधियों में भाग लेने के लिए छात्रों को प्रलोभक प्रोत्साहन देना अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित कर सकता है।

इसके अलावा, अधिक स्वस्थ खाद्य पदार्थों को एक नया आकार देकर बच्चों को अस्वास्थ्यकर भोजन से दूर किया जा सकता है।

घर पर और साथ ही स्कूल में बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) का नियमित चेकअप, बच्चों के स्वास्थ्य को बेहतर बना सकता है और मोटापे के खतरे को खत्म कर सकता है।

यह बात सच है कि बच्चे देश का भविष्य हैं, साथ ही साथ बच्चे हमारे देश का स्तंभ भी हैं। देश में बच्चों का बेहतर स्वास्थ्य अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसके लिए बच्चों की देखभाल और अधिक गंभीरता से किए जाने की आवश्यकता है।

 

 

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बच्चों के मोटापे के लिए जिम्मेदार कौनः माता-पिता या स्कूल ?
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2017 में, भारत सबसे अधिक मोटे बच्चों के साथ दूसरे स्थान पर रहा। यह समस्या अपनी पकड़ मजबूत क्यूं बना रही है, और इस पर व्यक्तिगत स्तर पर अंकुश क्यूं नहीं लगाया जा रहा है?
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