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‘मेड इन चायना’ या ‘मेड इन वियतनाम’: भारत के लिए कौन सा बेहतर?

September 19, 2018
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मेड इन चायना या मेड इन वियतनाम: भारत के लिए कौन सा है बेहतर?

हमारे भारतीय बाजारों में पिछले लंबे समय से “मेड इन चायना” के टैग्स की भरमार रही है। दुकानों में सजे इन चाइनीज उत्पादों की भरमार को देखा जा सकता है। हमारे आयतित आँकड़ो पर नज़र डालते वक्त आपको बिल्कुल भी आश्चर्यचकित होने की जरूरत नहीं है क्योंकि भारत के आयात में लगभग 16.2% की भागीदारी चीन की है।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में चीन की पकड़ मजबूत होने के बावजूद, हालिया वर्षों में इसके पड़ोसी देशों में से एक ने बेहद प्रभावशाली तरक्की की है। वह है वियतनाम –जो चीन की लगभग 1/14वीं आबादी वाला देश है और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बाजार में यह पहले की तुलना में एक मजबूत दावेदार के रूप में उभर रहा है। भारत-वियतनाम संबंधों को क्रमिक रूप से बढ़ते हुए देखा गया है। जबकि चीन और वियतनाम के साथ हमारे संबंधों पर विचार करते समय सबके मन में एक सवाल खड़ा हो जाता है।

मेड इन चायनाया मेड इन वियतनाम” – भारत को क्या चुनना चाहिए?

 

भारतचीन के व्यापारिक संबंध

एक ही महाद्वीप एशिया पर स्थित होने के अलावा, भारत और चीन में समानताओं की एक लंबी फेहरिस्त है। विश्व के दो सर्वाधिक आबादी वाले देश होने के साथ-साथ ये सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के बीच यह बहुभागी मंचों में सहभागी हैं। शायद यही कारण है कि हिंद-चीन (या चीनी-भारतीय) के व्यापारिक संबंध हमेशा से लोगों को आकर्षित करने और लुभाने में कामयाब रहे हैं।

दोनों देशों के बीच ‘व्यापारिक संबंध’ सिल्क रूट जीतने पुराने हैं, जो उस समय एक मुख्य आर्थिक कड़ी के रूप में कार्य करता था । समय के साथ आगे बढ़ते हुए, भारत 1950 में चीन के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाला पहला गैर-साम्यवादी देश (नॉन कम्युनिष्ट नेशन) बन गया। 2012 में, चीन ने एक बयान में कहा था कि “चीन-भारत संबंध” शायद सदी की सबसे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय साझेदारी है। बॉर्डर पर नियमित तनातनी और व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के बावजूद, भारत और चीन के आर्थिक संबंधों ने लगातार नई ऊंचाइयों को छुआ है। 2017 में, दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 84.44 अरब डॉलर के उच्चतम स्तर तक पहुंच गया था।

भारत से चीन के प्रमुख निर्यात– कपास, हीरे-जवाहरात, कीमती धातु, तांबा आदि।

चीन से भारत के प्रमुख निर्यात-इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, मशीनें, इंजन, उर्वरक आदि।

भारतवियतनाम व्यापारिक संबंध

1970 के दशक में भारत-वियतनाम संबंधों में नियमित वृद्धि देखी गयी। दोनों देशों ने 1972 में आधिकारिक तौर पर राजनयिक संबंध स्थापित किए। 1975 में भारत ने वियतनाम को ‘सबसे सहाययुक्त राष्ट्र'(मोस्ट फेवर्ड नेशन) का दर्जा दिया और इसके साथ ही दोनों देशों ने तीन साल बाद 1978 में द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये। दोनों देशों के बीचआर्थिक उदारीकरण के बाद से ही आपस में द्विपक्षीय व्यापर तेज़ी से बढ़ा।

भारत, वियतनाम के शीर्ष दस निर्यातकों में से एक है। वियतनाम, जो भारतीय वस्तुओं के लिए एक महत्वपूर्ण बाजार रहा है, ने भी अपने निर्यात स्तर को बढ़ा दिया है। पिछले दशकों में वियतनाम से भारत भेजे गए सामानों में स्थिर वृद्धि देखी गई है, जो 2017 में 3.32 बिलियन डॉलर तक पहुंच गई। इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि बेहतर व्यापारिक संबंध बनाने के इरादे से भारत का “मेक इन इंडिया” वियतनामी निर्माताओं के लिए प्रेरणादायक है। 2018 की शुरुआत में दोनों देशों को अपने द्विपक्षीय व्यापार समझौते कोआगे बढ़ाने के लिए सरकार की मंजूरी मिली।

भारत से वियतनाम के प्रमुख निर्यात लोहा और इस्पात, पशुओं के लिए चारा, अनाज आदि।

वियतनाम से भारत के प्रमुख निर्यात टेलीफोन सेट, मशीनरी आइटम, प्राकृतिक रबड़ आदि।

मेड इन चायना बनाम मेड इन वियतनाम

दो देशों के बीच व्यापारिक और अन्य राजनयिक संबंधों को शायद ही कभी अलग-अलग स्थापित किया जा सके। समीकरण के हिसाब से 2+2=4 की तुलना में और भी बहुत कुछ है। तो महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या भारत को एक राष्ट्र के रूप में मेड इन चायना या मेड इन वियतनाम उत्पादों को और अधिक बढ़ावा देना चाहिए?

चीजों को परिप्रेक्ष्य में रखने के लिए, हमें सभी स्तरों पर इन देशों की साझेदारी के इतिहास को देखने की आवश्यकता है। भारत और चीन कुछ समय के लिए एशियाई महाशक्तियां रही हैं। जटिल संबंधो को साझा करने के साथ, ये देश अभी भी एक-दूसरे की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। दोनों एक-दूसरे के मुख्य व्यापारिक भागीदार हैं। 2011-12 के आँकड़ों के अनुसार, चीन भारत के आयात का सबसे बड़ा स्रोत है, जबकि भारत चीन के लिए चौथा सबसे बड़ा निर्यातक है। दोनों देशों के बीच व्यापारिक क्षमता वर्ष 2000 में लगभग 3 अरब डॉलर से बढ़कर 2017 में 73 अरब डॉलर हो गई थी।

दूसरी तरफ, वियतनाम के साथ भारत का सफर लगातार प्रगति पर रहा है। वियतनाम युद्ध के परिणामस्वरूप अपने देश से अलग के बाद इसने प्रभावशाली ढंग से उन्नति करते हुए अपना रास्ता खुद बनाया है। उदाहरण के लिए, कपड़ों और जूतों के व्यापार में, वियतनाम अब मजबूत दावेदार है। इसके अलावा, हाल ही के दशकों में यह स्पष्ट हो गया कि भारत और वियतनाम दोनों एक-दूसरे को प्रमुख संभावित भागीदार के रूप में देखते हैं। हाल ही में, दोनों देशों के राजनयिक संबंधों के 45 वर्ष पूरे होने के बाद जारी किए गए बयान से पता चला कि ये द्विपक्षीय संबंधों को आगे तक विस्तारित करने का इरादा रखते हैं।

निष्कर्ष

इससे पता चलता है कि भारत के लिए चीन और वियतनाम दोनों ही अलग-अलग प्रलोभन लाते हैं। चीन, भारत के आयात का सबसे बड़ा स्रोत बना हुआ है, जबकि वियतनाम धीरे-धीरे अपनी छवि बना रहा है। यह कोई रहस्य नहीं है कि दिन-प्रतिदिन भारत-वियतनाम संबंध मजबूत हो रहे हैं। हालांकि चीन और भारत के संबंधों में “प्यार-नफरत” दोनों ही हैं, लेकिन सौभाग्य से भारत और वियतनाम के संबंधों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। हालांकि, सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है जिस पर विचार किया जा सकता है।

हालांकि भारत और चीन के बीच तनाव हो सकता है, लेकिन भारत के व्यापारिक बाजार में चीन के महत्व को न तो नकारा जा सकता और न ही इसे कम आंका जा सकता। वियतनाम भारत के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार बनता जा रहा है, लेकिन, हाँ इसे चीनी उत्पादों का विकल्प नहीं माना जा सकता।

मेड इन चायना या मेड इन वियतनाम? क्या सही है, किसी एक को दूसरे के स्थान पर प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है। इसके निष्कर्ष तक पहुंचने से पहले, एक विकल्प चुनते समय,हमें इसकी पूरी रूप-रेखा पर विचार करना होगा।

 

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मेड इन चायना या मेड इन वियतनाम: भारत के लिए कौन सा है बेहतर?
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भारतीय अर्थव्यवस्था हमारे देशवासियों के लिए बहुत ही दिलचस्प मुद्दा है। तो स्वाभाविक रूप से एक सवाल हमारे दिमाग में उठता है "क्या हमें चीनी उत्पादों का बहिष्कार करना चाहिए?" इस मामले में, भारत को कौन सा विकल्प चुनना चाहिए -मेड इन चायना या मेड इन वियतनाम?
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