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भारतीय उद्योग पर चीनी वस्तुओं का प्रभाव

July 7, 2018


आपको सुई से लेकर खिलौने, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स, गर्म पानी की बोतल, दीवाली के पटाखे आदि कुछ भी हो इनके चीनी संस्करण भारत में बहुत सस्ती कीमत पर मिलेंगे। चीनी सामान की कीमत भारतीय वस्तुओं के मुकाबले 10% से 70% तक कम है। भारत में चीनी वस्तुओं की कम कीमत, थोक उपलब्धता और विविधताएं कुछ ऐसी अनुकूल विशेषताएं हैं। बड़ी मात्रा में चीनी उत्पादों को भारतीय उद्योग में भेजा जाता है जिससे भारतीय इकाइयों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। चीनी वस्तुएं केवल घरेलू व्यापार और भारतीय उद्योग को ही प्रभावित नहीं कर रही हैं बल्कि हमारे देश के निर्यात बाजार को भी प्रभावित कर रही हैं। भारत के साथ-साथ विदेशों में भी भारतीय सामान ‘मेड इन चाइना’ लेबल द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है। ‘मेड इन चाइना’ लेबल धीरे-धीरे भारतीय बाजार जैसे इलेक्ट्रॉनिक सामान, कपड़ा और परिधान उद्योग, खिलौनों, दवाइयों, कार के पुरजों आदि पर कब्जा कर रहा है।

चीनी उत्पादों की गुणवत्ता अधिकतर कम होती है। जैसा कि पिछले वर्ष दीवाली पर, सल्फर युक्त चीनी पटाखों से भारतीय बाजार भर गया था। भारतीय पटाखों के निर्माताओं द्वारा उपयोग किए गए नाइट्रेट से सल्फर अधिक खतरनाक है। उनकी कम कीमत ने बहुत से खरीदारों को आकर्षित किया, जिसने वास्तव में भारतीय पटाखा उद्योग के राजस्व को प्रभावित किया।

भारत में खिलौना उद्योग चीनी संस्करण द्वारा बहुत बुरी तरह से प्रभावित एक अन्य उद्योग है। भारतीय वाणिज्य एंव उद्योग मंडल (एसोचैम) की रिपोर्ट के मुताबिक बाजार में इतने सारे चीनी खिलौने हैं कि भारत में खिलौना उद्योग का बचना बहुत मुश्किल है। पिछले 5 वर्षों में लगभग 40% के करीब भारतीय खिलौनों की कंपनियां बंद कर दी गई हैं। बाकी 20% बंद होने की कगार पर हैं। पिछले 4-5 वर्षों में करीब 2000 छोटे और मध्यम उद्यम (एसएमई) बंद हो चुके हैं। भारताय वाणिज्य एंव उद्योग मंडल ने यह भी खुलासा किया है कि चीन के पास दुनिया का सबसे बड़ा खिलौना बाजार है जिसकी पूरी दुनिया के खिलौना उत्पादन में 45% हिस्सेदारी है जबकि भारत को इसमें बहुत कम सिर्फ 0.51% हिस्सेदारी हासिल है। भारतीय निर्माता बाजार को 20% सहायता प्रदान करते हैं और शेष चीन और इटली के द्वारा पूरा किया जाता है। 2001-2012 के बीच की अवधि में, भारतीय खिलौना उद्योग का कुल आयात 25.21% बढ़ गया है। यह उम्मीद है कि खिलौना उद्योग आगे बढ़ेगा। ठाणे और भिवंडी में चीनी उत्पादों ने 60% औद्योगिक इकाइयों को बंद कर दिया है। इसलिए कई उद्योग और निर्माता, चीनी प्रतियोगिता की आँच का सामना कर रहे हैं।

चीनी लोग बड़े पैमाने पर उत्पादन और सामूहिक खपत की रणनीति पर काम करते है। उनकी कम लागत का मुख्य कारण चीन में सरकार की कम पूंजी निवेश और निर्यात अनुकूल नीतियां हैं। चीन दुनिया भर से कच्चा माल खरीद रहा है और तैयार उत्पाद को वापस दुनिया भर में बेच रहा है। चीन जर्मनी के बाद दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) द्वारा यह भी भविष्यवाणी की गई है कि चीन निर्यात में जर्मनी को भी पार करेगा।

चीनी सामान व्यापक रूप से उपलब्ध और अपेक्षाकृत सस्ता है, और डीलरों को भारी लाभ प्रदान करता है। लेकिन दूसरी ओर चीनी इलेक्ट्रॉनिक सामान सुरक्षित नहीं हैं, जो निम्न गुणवत्ता के साथ बिना गारंटी या सेवा के आते हैं। यह लंबी अवधि तक नहीं टिकते हैं, भारत में चीनी वस्तुओं के परिणामस्वरूप कई विनिर्माण इकाइयों को बंद किया गया है। चीनी निर्माता आम तौर पर थोक निर्माता हैं और एक बहुत संरचित विक्रेता के आधार पर हैं। इसके अलावा भारत की तुलना में चीन की आपूर्ति श्रृंखला की लागत बहुत कम है और उत्पादों को अधिक सस्ता बना दिया जाता है। कच्ची सामग्री की कम लागत के अलावा, प्रति व्यक्ति उच्च उत्पादकता और अप्रत्यक्ष कर तथा आयात शुल्क कम होना उनके उत्पादों को और सस्ता बनाते हैं। प्रोत्साहन निर्यात को बढ़ावा देता है और सब्सिडी उत्पादन को आगे बढ़ाती है।

भारत के कुछ निर्माता अब भी चीनी वस्तुओं का आयात कर रहे हैं और उनके लेबल के तहत बेच रहे हैं। भारतीय निर्माता विशेषकर चीन से गैर-ब्रांडेड स्मार्टफोन आयात कर रहे हैं और इन्हें वारंटी और सेवा के साथ बेच रहे हैं। भारत में डबल-सिम के स्मार्टफोन्स बेचने के लिए, चीन वायरलेस टेक्नोलॉजीज ने रिलायंस कम्युनिकेशंस (भारत की दूसरी सबसे बड़ी दूरसंचार सेवा प्रदाता) के साथ करार किया है।

चीनी वस्तुओं के आयात को कम करने के लिए भारत को अपने प्रशासन पर ध्यान देना चाहिए। सामान्य रूप से हमारी अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है परन्तु अब धीरे-धीरे सेवा क्षेत्र भी इसमें शामिल हो रहा है। लेकिन हमारी अर्थव्यवस्था के लिए सबसे महत्वपूर्ण योगदान कृषि का ही है। श्रम शक्ति बहुत बड़ी संख्या में उपलब्ध है लेकिन पैसे कमाने के तरीके कम हो रहे हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि प्राकृतिक संसाधन कम हो रहे हैं जिससे कृषि में महत्वपूर्ण कमी आ रही है। खराब बुनियादी ढांचा भारत में एक और समस्या है जो समय और उत्पादन की लागत को बढ़ा रहा है। सरकार को बाजार में विदेशी वस्तुओं को कम करने के लिए स्थानीय छोटे व्यवसाय उद्यमों को प्रोत्साहित करना चाहिए।

चीनी वस्तुओं से घरेलू निर्माताओं की रक्षा करने के लिए, नीतियों को बदलने और कर्तव्यों को बढ़ाने की अत्यन्त आवश्यकता है। इसके अलावा भारत को अपने बुनियादी ढांचे लागत एवं गुणवत्ता स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए ऊर्जा और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के कुशल उपयोग पर गंभीरता से काम करना चाहिए।

क्या आप भारतीय वस्तुओं की अपेक्षा चीनी सामान अधिक पसंद करते हैं?