Home / History / सिख धर्म: मानवता और समानता के संदेश का प्रसार

सिख धर्म: मानवता और समानता के संदेश का प्रसार

April 12, 2018
by


सिख धर्म: मानवता और समानता के संदेश का प्रसार

गुरु नानक देव जी द्वारा संस्थापित, सिख धर्म विश्व का पाँचवां सबसे बड़ा धर्म माना जाता है। यह धर्म अपने 25 करोड़ अनुयायियों के माध्यम से विश्वव्यापी ईश्वर तथा साथ ही परमात्मा की दृष्टि में सभी के लिए समान स्थित और अवसरों के संदेशों का प्रसार करता है।

सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्मदिन गुरुपुरब शुभकामना संदेश के साथ एक त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। यह एक ऐसे धर्म के विषय में गहराई से जानने का समय है, जिसने अपनी स्थापना के बाद से हमेशा समाज-कल्याण के कार्यों में अपना काफी योगदान दिया है।

गुरु नानक देव जी

इस एकेश्वरवादी धर्म की स्थापना, भारत के पंजाब क्षेत्र में आज से 500 साल पहले की गई थी। वर्ष 1490 में तलवंडी (लाहौर के निकट नानकाना साहिब) में जन्में गुरु नानक देव अपने बचपन से ही इस धर्म से काफी प्रभावित थे। इसीलिए उन्होंने मध्य एशिया और मध्य पूर्व प्रांतों की एक संत के रूप में यात्रा की थी। गुरु नानक ने पाँच प्रमुख यात्राएं की थीं, जिन्हें ‘उदासीस’ के नाम से जाना जाता है। वह अपनी यात्रा के दौरान अनेक धार्मिक लोगों से मिले तथा उनसे बातचीत की और एक परमात्मा के सिद्धांत का प्रचार किया। गुरु नानक देव ने वर्ष 1539 में इस भौतिक दुनिया को छोड़ने से पहले अपने शिष्य लेहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। भाई लेहना का वास्तविक नाम गुरू अंगद था, जिन्होंने गुरु नानक के आदर्शों का हमेशा पालन किया था।

गुरु नानक के उपदेश

सिख धर्म वास्तव में एक ऐसा धर्म है, जो समानता, सत्यता, दया और सहभाजन के संदेशों का प्रचार करता है। गुरु नानक देव की शिक्षाओं के 10 प्रमुख उद्देश्य निम्न हैं –

“निरंकार, आकार, अलख”- परमात्मा केवल एक है, जो किसी भी रूप या आकृति के बिना सर्वव्यापी और अदृश्य है। ब्रह्मांड के निर्माण के पहले भी भगवान का अस्तित्व था, परंतु दुनिया में मोह-माया (माया) बनाए रखना भगवान की इच्छा थी।

“हुकम राजायी चलना नानक लिखेया नाल”- सबकुछ परमात्मा की इच्छा के अनुसार होता है और हमें बिना कुछ कहे इसे स्वीकार कर लेना चाहिए।

“साबत दा भला”- गुरु नानक देव सर्वव्यापी भाईचारे में विश्वास करते थे, जिसमें उन्होंने कहा था कि हर कोई भगवान की दृष्टि में बराबर है। दैनिक अरदास (प्रार्थना) के समापन के बाद की पंक्ति – “नानक नाम चढ़दी कला तेरे भाणे सरबत दा भला” है, जिसका न कि केवल सिख समुदाय, बल्कि सभी मानवता का आशीर्वाद लेने के लिए परमात्मा का आह्वान करते हैं।

“सच सुनैसी सच की बेला”- गुरु नानक के सिद्धांत के अनुसार, सभी को निर्भीक होकर सत्य बोलना चाहिए और असत्य का पक्ष नहीं लेना चाहिए।

“सेवा और सिमरन”- इस उपदेश में गुरु नानक ने एक व्यक्ति के जीवन में एक गुरु (धार्मिक शिक्षक) के महत्व को वर्णित किया है, जो एक प्रकाशस्तम्भ के रूप में कार्य और उचित मार्गदर्शन करता है। सेवा गुरबानी के बारे में गुरु नानक देव जी ने बताया कि इस दुनिया में, प्रत्येक व्यक्ति को हमेशा सभी की सेवा के लिए तत्पर रहना चाहिए (अन्य लोगों की सहायता करना) और जो ऐसा करेगा, उसे भगवान के न्यायालय में एक सम्मानजनक स्थान मिलेगा।

“वंद चाको / कीरत करो / नाम जपना”- गुरु नानक जी ने अपने अनुयायियों को दूसरों के साथ आदान-प्रदान करने और वंचितों की मदद करने, ईमानदार बनने और भगवान के प्रति निरंतर भक्ति बनाए रखने की शिक्षा दी थी, क्योंकि उनके अनुसार, यह कार्य लोगों को एक धर्मिक व्यक्ति बनाने में मदद करेंगे।

“शुन का (काम), क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार”- पाँच दोष या पाँच चोरों के रूप में वर्णित यह पाँच कार्य, व्यक्ति की पाँच प्रमुख कमजोरियाँ मानी जाती हैं, जो  एक इंसान के आध्यात्मिक ज्ञान का पतन करते हैं। इसलिए व्यक्ति को इन सभी से दूर रहना चाहिए। इनकी तुलना चोर से इसलिए की गई है क्योंकि वे एक व्यक्ति की सामान्य बुद्धि को हर लेते हैं।

“गुरु का महत्व”- गुरु नानक अपनी शिक्षाओं में एक गुरु के महत्व को दोहराते हुए कहा कि गुरु भगवान का ही एक रूप होता है। गुरु नानक जी यह भी कहा कि मुक्ति तीर्थयात्रा और अनुष्ठानों से नहीं, बल्कि शुद्ध हृदय, आत्मा और बुद्धि के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है।

“संगत ते पंगत”- गुरु नानक का मानना ​​था कि दुनिया में दुख की मूल वजह जाति और पंथ के कारण उत्पन्न भेदभाव है। इस प्रकार, उन्होंने अपने अनुयायियों में संगत और पंगत की अवधारणा के माध्यम से सभी में भेदभाव की भावना मिटाने का प्रयास किया था। जिसके फलस्वरूप सभी ने एकजुट होकर परमात्मा की पूजा की तथा उन्होंने समाज में अपनी स्थिति पर ध्यान न देते हुए सभी के साथ मिलकर भोजन भी किया।

“अंधविश्वासों के विरुद्ध”- गुरु नानक ने सभी प्रकार की रस्मों और अंधविश्वासों को पूर्ण रूप से असत्य बताया और सच्चे दिल से की गई दयालुतापूर्ण सहायता को ही भगवान की सच्ची उपासना कहा।

सिखों का सैन्यकरण

अमृतसर सिखों की राजधानी के रूप में विख्यात है और अमृतसर में सिखों के पाँचवें गुरु कहे जाने वाले गुरु अर्जन देव जी ने सिख धर्म की स्थापना की थी। जबकि सिख धर्म की नींव गुरु नानक जी द्वारा रखी गई थी। उन्होंने सिखों के पहले अधिकृत पवित्र ग्रंथ ‘आदि ग्रंथ’ का भी संकलन किया है। गुरु नानक देव ने अपनी शिक्षाओं में हमेशा सार्वभौमिक भाईचारे और शांति के संदेशों का प्रचार किया था, जिनका सभी अन्य गुरुओं द्वारा भी अनुसरण किया गया था।

  • हालांकि, धर्म की बढ़ती लोकप्रियता को एक खतरे के रूप में देखा गया था और वर्ष 1606 में गुरु अर्जन को उनकी धार्मिक आस्था के कारण मार दिया गया था। यहीं से सिख समुदाय में सैन्यकरण की शुरुआत हो गई थी, क्योंकि इस धर्म का मानना ​​है कि भगवान स्वयं की रक्षा करने वालों की मदद करते हैं।
  • इस प्रकार, सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद ने इस समुदाय का सैन्यकरण किया ताकि सिख समुदाय खुद की रक्षा और विरोधियों का विरोध कर सके। इसके बाद सिखों ने कई ऐतिहासिक लड़ाईयों में अपने धर्म और धर्मिक अनुयायियों की रक्षा की।
  • गुरु अर्जन की मृत्यु के बाद सिखों ने स्वयं को फिर से प्रभावी बनाने के लिए राजनीतिक शासकों से मित्रता कर ली थी।
  • हालांकि, एक बार जब मुगल सम्राट औरंगजेब का शासन आया, तो उसने अपने राज्य के सभी लोगों को इस्लाम धर्म अपनाने पर मजबूर करने प्रयास किया था और इसलिए सिखों को अपने धर्म की रक्षा के लिए फिर से हथियार उठाना पड़ा था।
  • सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर को औरंगजेब के आदेश पर वर्ष 1675 में गिरफ्तार कर लिया गया था और फिर मार दिया गया था।
  • सिखों के दसवें गुर कहे जाने वाले गुरु गोबिंद सिंह ने पुनः सिखों के पुरुषों और महिलाओं का एक सैन्य समूह संगठित किया और उन्हें “खालसा” नाम से संबोधित दिया, ताकि वे सिख धर्म की रक्षा कर सकें।
  • गुरु गोबिंद सिंह ने सिख धर्म के संस्कारिक कृत्यों (खंडे डि पाहुल / अमृत संचार) की भी स्थापना की, जो इस धर्म की एक नामकरण पद्धति कहलाई। इसमें प्रत्येक सिख 5 वस्तुएं धारण करता है, जिसने सिखों को एक अनूठी पहचान दी।
  • सिखों की पाँच वस्तुओं में केश, कंघा, कड़ा, कच्छ और कृपाण शामिल हैं।

केश (बिना कटे बाल): सिख धर्म में बाल न कटवाने का मतलब शरीर की चिंताओं से परे होना, ईश्वर के उपहारों को स्वीकार करना और आध्यात्मिक परिपक्वता प्राप्त करना है। सिखों की पगड़ी संप्रभुता, समर्पण, आत्म सम्मान, साहस और धर्मनिष्ठा का प्रतीक है।

कंघा (लकड़ी की कंघी): कंघा मन और शरीर की स्वच्छता का प्रतीक है।

कड़ा (स्टील ब्रेसलेट): यह संयम और सौजन्य का प्रतीक है। माना जाता है कि यह एक ऐसा अनुस्मारक है, जिससे सिख हमेशा गुरु की देख-रेख में रहते हैं और इसको धारण करने से वह धार्मिकता के मार्ग का पालन करते हैं।

कच्छ (जाँघिया): सिख धर्म में कच्छ शुद्धता का प्रतीक है।

कृपाण (सेरेमोनियल तलवार): कृपाण आध्यात्मिकता प्रतीक, सत्य व कमजोरों की रक्षा, अन्याय के खिलाफ संघर्ष और ‘भगवान का एक रूपक’ है।

सिख धर्म की इन पाँच वस्तुओं का व्यावहारिक उपयोग

  • केश अर्थात् हमारे शरीर पर जो बाल होते हैं, वह हमारे शरीर के तापमान को नियंत्रित करने काम करते हैं और हमारी आँखों की पलकों, नथुने और कान आदि के बाल धूल कणों को शरीर के अंदर प्रवेश करने से दूर रखने में मदद करते हैं।
  • कड़ा का प्रयोग शास्त्र विद्या (सिख मार्शल आर्ट्स) में किया जाता है और जरूरत पड़ने पर इसका रक्षात्मक साधन के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • कच्छ अन्य समुदायों में पहनी जाने वाली धोती जैसे प्रतिबंधात्मक वस्त्रों के विपरीत, सिखों को युद्ध क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से चलने की अनुमति देता है। इसलिए कच्छ सैन्य लाभ प्रदान करता है।
  • कंघे द्वारा बालों को सुलझाने पर मानसिक तनाव से राहत मिलती है। इसलिए यह एक शांत प्रभाव पैदा करता है।
  • कृपाण स्वयं के और साथ-साथ दूसरों को भी उत्पीड़न से बचाने में खालसा पंथ की मदद करता है।
  • गुरु गोबिंद सिंह सिखों के अंतिम गुरु थे।
  • गुरु नानक की शिक्षाओं के साथ-साथ पवित्र ग्रंथ का सिखों के पूजा स्थल पर सम्मान किया जाता है, जिसे गुरुद्वारा के रूप में जाना जाता है।
  • उस समय सिख धर्म की विरासत बंदा सिंह बहादुर और रणजीत सिंह जैसे महान अगुवाकारों के द्वारा संरक्षित थी।

आधुनिक विश्व में सिख धर्म

विश्वभर में लगभग 25 करोड़ सिख हैं और वे अब भी अपने कर्मों और कार्यों में सर्वव्यापक भाईचारे और शांति का संदेश अपनाते हैं।

  • गुरुद्वारों में चलने वाले लंगर (एक प्रकार का सामुदायिक भोजन) में समृद्ध और गरीब सभी लोग एक साथ भोजन करते हैं।
  • प्रत्येक सिख लंगर में सेवा और सहायता का कार्य या कई तरह से मदद करते रहते हैं।
  • भारत या विदेश के सिख किसी भी संकट के समय, चाहें वह युद्ध हो या एक प्राकृतिक आपदा सभी में सबसे आगे रहते हैं। यह लोग निःशुल्क स्वच्छ भोजन और अन्य बुनियादी जरूरतों तथा लंगरों का आयोजन करने के साथ-साथ जरूरतमंदो की सहायता भी करते हैं।
  • वास्तव में यह कहा गया है कि सिख, गुरु नानक जी की शिक्षाओं का बड़ी शालीनता से पालन और एक-दूसरे की मदद करते हैं, क्योंकि दुनिया में कहीं भी आपको एक भी सिख भिखारी नहीं मिलेगा। वे खुद के लिए बचत करना भली प्रकार जानते हैं।
  • हाल ही की खबरों के अनुसार, पर्यावरण की खराब स्थिति को ध्यान में रखते हुए सिखों ने वादा किया है कि वह आने वाले गुरुपुरब को आतिशबाजी नहीं करेंगे।

सिख धर्म एक ऐसा धर्म है, जो समकालीन सुविधाओं के कारण समझना और स्वीकार करना काफी आसान है। सर्वव्यापक भाईचारा निश्चित रूप से इस समय की आवश्यकता है, क्योंकि शांति के साथ ही राष्ट्र की प्रगति और इसका विकास हो सकता है।