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भारत के स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित करने वाली अज्ञात महिलाएं

February 16, 2018
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हमारी आजादी की लड़ाई का कोई भी संदर्भ असंख्य महिलाओं द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका की पहचान किए बिना पूर्ण नहीं होगा, जिसमें अधिकतम महिलाएं अशिक्षित एवं गरीब परिवारों की थीं और जिन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों को अपना भरपूर समर्थन दिया था, जबकि उस समय महिलाओं को घर से बाहर निकलने पर भी पाबंदी लगाई जाती थी।

ये महिलाएं गुप्त रूप से स्वतंत्रता सेनानियों के लिए खाना बनाती थीं और उनके लिए संदेश वाहकों का काम करती थीं तथा हथियारों और अन्य सामग्रियों को उनके पास पहुँचाती थीं। सिर्फ इतना ही बल्कि वह लगभग सभी मामलों में अपने बेटों सहित अपने परिवार के पुरुषों को नैतिक समर्थन प्रदान करती थीं और वह बाहर जाने तथा अपनी मातृभूमि की आजादी के लिए सब कुछ बलिदान करने के लिए भीतत्पर रहती थीं।

इतिहास में इन महिलाओं के योगदान को अंकित न करके, उनके साथ बहुत ही अन्याय किया गया है, लेकिन कुछ लोगों ने उनका संक्षिप्त रूप से उल्लेख किया है-

मूलमती: एक प्रखर देशभक्त

भले ही अकेले उनके नाम से उनकी पहचान न हुई हो, लेकिन मूलमती क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल की माँ के रूप में स्वतंत्रता संग्राम की कहानी में एक प्रमुख स्थान प्राप्त करने में कामयाब हुई हैं। राम प्रसाद एक क्रांतिकारी थे, जिन्होंने भारत में वर्ष 1928 में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया था, जिसमें उनके साथ भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकउल्ला खान, राजगुरू और अन्य स्वतंत्रता सेनानी शामिल थे। राम प्रसाद वर्ष 1918 के प्रसिद्ध मैनपुरी षड्‍यंत्र और वर्ष 1925 में काकोरी षड्‍यंत्र के मामलों में प्रमुख रूप से शामिल थे। उन्हें 19 दिसम्बर 1927 को गोरखपुर की जेल में फाँसी दी गई थी।

मूलमती एक साधारण महिला थीं, जो स्वतंत्रता आंदोलन के संघर्ष में अपने बेटे का समर्थन करती थीं और वह अपने बेटे को फाँसी पर चढ़ने से पहले उनसे मिलने के लिए गोरखपुर की जेल में गई थीं। राम प्रसाद अपनी माँ को देख कर टूट गए थे, लेकिन वह स्तब्ध रह गई। वह अपनी प्रतिक्रिया में दृढ़ थीं और उन्होंने अपने बेटे से कहा कि मुझे तुम्हारे जैसे बेटे पर गर्व है। उन्होंने अपनी माँ से कहा कि मेरी आँखों से आँसू मौत के डर से नहीं निकल रहे हैं, बल्कि ये आँसू इसलिए निकल रहे हैं कि मुझे आप जैसी माँ नहीं मिल पाएगी। राम प्रसाद की मृत्यु के बाद उन्होंने संकल्प कर लिया कि वह सार्वजनिक सभा के एक भाषण में अपने दूसरे बेटे को भी स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल कर देंगी। स्वतंत्रता संग्राम में उनके अविश्वसनीय समर्थन और विश्वास के बिना, राम प्रसाद बिस्मिल को उस पथ पर आगे बढ़ना मुश्किल था, जिसका उन्होंने चुनाव किया था।

राजकुमारी गुप्ता: एक दृढ़ महिला

कानपुर के निकट बांदा में जन्मीं, राजकुमारी का विवाह युवा अवस्था में ही हो गया था। वह और उनके पति दोनों, महात्मा गांधी और उनके स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के आह्वान से काफी प्रभावित हुए थे। लेकिन वह ब्रिटिश के खिलाफ लड़ने के लिए अपने उत्साह और दृढ़ विश्वास के कारण चंद्रशेखर आजाद और उनकी क्रांतिकारी प्रतिक्रिया के तरफ अग्रसर हो गए। काकोरी षड्यंत्र के नाम से प्रसिद्ध काकोरी ट्रेन डकैती में उनके योगदान के बारे में बहुत हीकम लोग जानते हैं।

उन्होंने अपने पति और अपने ससुराल वालों को बिना बताए, संदेश और सामग्री को क्रांतिकारियों के पास पहुँचाना शुरू कर दिया था। इसलिए उनके ऊपर क्रांतिकारियों को अग्नेय-शस्त्र देने का आरोप लगाया गया था। जब वह अग्नेय-शस्त्रों को अपने अंतःवस्त्रों में छिपा कर और अपने तीन साल के बेटे को साथ में लेकर खेतों के माध्यम से जा रही थीं, उसी समय उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। उनकी गिरफ्तारी की खबर सुनने पर, उनके ससुराल वालों ने उनको अस्वीकृत कर दिया था। उसके बाद उनके जीवन के बारे में बहुत कम जानकारी है, लेकिन वह देश की एक सच्ची नायिका थीं और हमारे इतिहास में उनका एक उल्लेखनीय योगदान शामिल है।

तारा रानी श्रीवास्तव: असली धैर्यवान

बिहार के सारण जिले के एक साधारण परिवार में तारा रानी श्रीवास्तव का जन्म हुआ था और तारा रानी की शादी युवावस्था में ही फुलेन्दु बाबू के साथ हो गई थी। दोनों ब्रिटिश शासन से भारत को मुक्त कराने के लिए भावुक थे। वर्ष 1942 में महात्मा गांधी के आह्वान पर, उन्होंने अपने पति फुलेन्दु बाबू के साथ भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया था। उन्होंने अपने क्षेत्र में ब्रिटिश शासन का विरोध प्रदर्शन करते हुए सीवान पुलिस स्टेशन की छत पर राष्ट्रीय ध्वज को फहराने की योजना बनाई थी। उन दिनों में, पुलिस स्टेशन को सरकारी प्राधिकरण का प्रतीक माना जाता था और उन्होंने कहा कि इसकी छत पर झंडा फहराने से अवज्ञा के एक बड़े प्रदर्शन का प्रतिनिधित्व होगा।

वह जनसमूह को एकत्र करने में कामयाब रहीं और सीवान पुलिस स्टेशन की तरफ इंकलाब के जय घोष के साथ अपने प्रदर्शन की शुरुआत की। उनके विरोध प्रदर्शन को देखकर, पुलिस ने गोली चलाना प्रारंभ कर दिया और एक गोली तारा रानी के पति फुलेन्दु बाबू को लगने के कारण वह घायल होकर जमीन पर गिर गए। व्याकुल तारा ने अपनी साड़ी के एक हिस्से को फाड़ कर पट्टी बाँध दी और अपने साथियों के साथ इंकलाब बोलते हुए और भारतीय ध्वज को पकड़े हुए नेत़ृत्व करना जारी रखा। जब वह वहाँ से लौटी, तब तक उनके पति फुलेन्दु बाबू की मौत हो चुकी थी, फिर भी तारा ने स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन करना जारी रखा।

आबादी बानो बेगम: बी अम्मान के नाम से मशहूर

आबादी बानो का जन्म लखनऊ के एक सरल रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार में हुआ था, जिन्होंने शायद ही खुद कभी घर से बाहर कदम रखा था। उनका बेटा स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गया था और उसे उसकी गतिविधियों के कारण वर्ष 1917 में गिरफ्तार कर लिया गया था। उन्होंने अपने बेटे के समर्थन में बोलने के लिए, एक राजनीतिक सभा को संबोधित करने का उत्साहशील निर्णय लिया। उन्होंने जनसमूह को बुर्का पहनकर संबोधित किया था, लेकिन उनका संदेश मजबूत और दृढ़ता से परिपूर्ण, स्वतंत्रता संग्राम के समर्थन में था। यह संभवतया एक पहली मुस्लिम महिला का उदाहरण था, जो सार्वजनिक सभा को संबोधित कर रही थीं। इस कार्य के महत्व को समय के रूढ़िवादी जीवन के संदर्भ में देखा जाना चाहिए, जिन्होंने साहस के साथ घर से बाहर निकलकर स्वतंत्रता संघर्ष के लिए सभाएं आयोजित की।

हमारी आजादी के रास्ते का निर्माण हजारों विस्मृत पुरुषों और महिलाओं के रक्त, पसीना, आँसू और बलिदान से हुआ था, जिनमें से अधिकांश पुरुष और महिलाएं इतिहास के पन्नों में भी शुमार नहीं हैं। इसलिए आज हम हमारी मातृभूमि को मुक्त कराने के लिए शूरवीरों के द्वारा दिए गए बलिदानों को कुछ क्षण के लिए याद कर सकते हैं।