Home / India / आयुर्वेद – पारंपरिक भारतीय चिकित्सा विज्ञान

आयुर्वेद – पारंपरिक भारतीय चिकित्सा विज्ञान

October 18, 2017
by


Rate this post

आयुर्वेद - पारंपरिक भारतीय चिकित्सा विज्ञान

आप भारत की किसी भी जीवनशैली की पत्रिका को खोलकर देखें, तो विज्ञापन में कम से कम एक मालिश करने वाले आयुर्वेदिक तेल और स्पा के फायदों का गुणगान पाएंगें। केरल में आयुर्वेदिक उपचार और चिकित्सा को अपनाने के लिए इन दिनों लंबे समय के अवकाश का आयोजन किया गया है। इस समय पूरे भारत में आयुर्वेदिक लाभों का दावा करने वाले साबुन, क्रीम और सौंदर्य उत्पाद धूम मचा रहे हैं। इससे पहले हम आगे बढ़ें और आपको यह जादुई चिकित्सा क्या है उससे परिचित करवाएं, यह वास्तव में श्रेय के लायक है और आयुर्वेद वास्तव में क्या है, यह समझने की कोशिश कर सकते हैं।

आयुर्वेद क्या है?

आयुर्वेद समग्र उपचार की एक प्राचीन परंपरा है और भारत में आयुर्वेद की उत्पत्ति लगभग 5000 साल पहले, भारतीय चिकित्सकों द्वारा हुई थी। आयुर्वेद उपचार, दुनिया में प्रचलित संपूर्ण उपचार के सबसे पुराने तरीकों में से एक है।

आयुर्वेद का अर्थ “जीवन का ज्ञान” (आयु = जीवन, वेद = ज्ञान या विज्ञान) है। समकालीन चिकित्सा के विपरीत, आयुर्वेद एक विशेष बीमारी से निपटने के लिए पूर्वनिर्धारित दवा या आहार का सहारा नहीं लेता है, बल्कि इसके बजाय आयुर्वेद प्रत्येक व्यक्ति और उसके या उसकी (स्त्री या पुरुष) शरीरावस्था की भलीभांति जाँच करता है।

आयुर्वेद के मूल तत्व

आयुर्वेद यह स्वीकार करता है कि मानव शरीर पांच तत्वों – आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी से बना है। ऊर्जा के तीन रूप या दोष – वात दोष (आकाश और वायु), पित्त दोष (आग और पानी) और कफ दोष (जल और पृथ्वी) हैं। यह व्यक्ति के मूल तत्वों और उनके कार्यान्वयन को नियंत्रित करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति में अपने पूर्वजों के कुछ न कुछ दोष विशिष्ट मिश्रण के रूप में मौजूद होते हैं। यह मिश्रण व्यक्ति के लिए अद्वितीय है और इसके आधार पर प्रत्येक व्यक्ति और उसकी बीमारियाँ अलग-अलग होती हैं। पारंपरिक आयुर्वेदिक वैद्य या चिकित्सक आमतौर पर मरीज के रोग के बारे में समय लेकर भलीभांति अध्ययन करते हैं और विशिष्ट रूप से दवा, आहार एंव जीवन शैली में बदलाव करने के बारे में बताते हैं। आयुर्वेद में दवाइयों के रूप में 300,000 से अधिक फॉर्मूलों का उपयोग किया जाता है – प्रत्येक फार्मूला एक जटिल परिसंचरण है, जिसमें मानव शरीर विज्ञान को जड़ी-बूटियों और वनस्पतियों के परिणाम और दवाओं के संयोजन की प्रक्रिया के लिए व्यापक ज्ञान की आवश्यकता होती है।

आयुर्वेद की उत्पत्ति

आयुर्वेद को उपवेद या एक सहायक वेद माना जाता है। यह माना जाता है कि कुछ रोगों और उपचार विधियों का चित्रण करने वाले अथर्व वेद से प्रभावित होकर प्रारंभिक चिकित्सकों ने इस विज्ञान के बुनियादी नियम और दिशानिर्देशों का निर्धारण किया था।

माना जाता है कि चिकित्सा तकनीक आयुर्वेद का ही एक स्वरूप है और ब्रह्मा जी ने इस तकनीक को मौखिक परंपरा के रूप में संरक्षित रखने के लिए ऋषि धन्वंतरि को सौंप दिया था। यह भी कहा जाता है कि आयुर्वेद का प्रारंभिक मूलपाठ कई सदियों पहले प्रसिद्ध ऋषि अग्निवेश द्वारा लिखा गया था। इस मूलपाठ को (अब मानव जाति ने खो दिया) बाद में 100 सीई और 200 सीई के दौरान चरक ने परिष्कृत (सूक्ष्म रूप से सुधार) किया। हरित संहिता और सुश्रुत संहिता के साथ-साथ चरक संहिता को आयुर्वेदिक उपचार और औषधि के निर्माण का आधार माना जाता है। ये मूलपाठ एक बार आयुर्वेदिक उपचार प्रणाली का हिस्सा रहने वाले शल्यचिकित्सा प्रणाली का विस्तृत वर्णन करते हैं।

क्या आयुर्वेद एक हिन्दू पद्धति है?

योग की तरह, आयुर्वेद भी हाल के दिनों में धार्मिक चिकित्सा पद्धतियों के साथ जुड़ा हुआ है। आयुर्वेद मुख्य रूप से हर्बल दवाओं के समग्र चिकित्सा की एक प्राचीन प्रणाली है। आयुर्वेद (अति स्पष्ट रूप आए-यूर-वे-दा) का सूत्रपात, योग और प्राचीन भारत के योगियों द्वारा पुरुषों और महिलाओं की जीवन-शैली और पुरानी बीमारियों से निजात पाने व किसी भी बीमारी के कारण खोई हुई संतुलन की भावना को बहाल करने के प्रयास में विकसित किया गया था। चिकित्सकों द्वारा सुझाए गए आयुर्वेदिक उपचार, जड़ी-बूटियों और पौधों के अर्क के परिणाम तभी प्राप्त होते हैं, जब हम हिंदू धार्मिक मान्यताओं की बजाय मानव शरीर के अंतरंग का अवलोकन करते हैं।

चेतावनी

आयुर्वेद निस्संदेह सबसे बेहतरीन अध्ययन और अच्छी तरह से तैयार की गई चिकित्सा प्रणाली में से एक है, जिसका लक्ष्य किसी भी व्यक्ति को पूर्ण रूप से मानसिक और शारीरिक समरसता की प्राप्ति करवाना है। हालाँकि, बहुत सावधानीपूर्वक आयुर्वेद चिकित्सक का चुनाव करना और सही बीमारी खोजकर इलाज करवाना चाहिए। आयुर्वेद के नाम वाले इस समय बाजारों में अधिकांश कॉस्मेटिक उत्पादों का भारी तादात में प्रसार हो रहा है और इन उत्पादों में हर्बल सामग्री का तनिक भी अंश नहीं होता है। इसलिए किसी भी उत्पाद के लेबल का उपयोग उसमें प्रयोग की गई सामग्री का पता लगाने के लिए करें। उत्पाद की गुणवत्ता में कमी आयुर्वेदिक सूत्रीकरण के खिलाफ प्रमुख आरोपों में से एक है।

इस विज्ञान के नाम पर बढ़-चढ़कर नीम-हकीमी का अभ्यास किया जा रहा है। आधुनिक दवाओं के विपरीत, आयुर्वेदिक चिकित्सा तकनीक को परंपरागत रूप से पिता के बेटे की संज्ञा दी जाती है, जिससे बेहतरीन और प्रभावी चिकित्सकों की पहचान करना काफी मुश्किल हो जाता है। हालाँकि इन दिनों, कई सरकारी संगठनों ने आयुर्वेदिक महाविद्यालयों और अस्पतालों को मान्यता प्रदान करके वास्तविक चिकित्सकों की खोज करना काफी आसान बना दिया है।

 

 

Comments

Like us on Facebook

Recent Comments

Archives
Select from the Drop Down to view archives