वास्तविकता की जांच – एक शहीद परिवार का जीवन
सेना के लिए एक उम्मीदवार का चयन करते समय चार कारकों को ध्यान में रखा जाता है वो हैं – सिर, दिल, हिम्मत और अंग। चयन प्रक्रिया में हिम्मत का सबसे अधिक महत्व है। सेना के जवानों के साथ-साथ उनके परिवार को भी हिम्मत रखनी पड़ती है। सैनिकों की पत्नियां हिम्मत और दृढ़ संकल्प से भरी हुई होती हैं। हर बार जब उनके पति देश की रक्षा के लिए सरहद पर जाते हैं, तो उन्हें पता होता है कि हो सकता है कि वापसी में वे तिरंगे में लिपटे हुए घर आएं।
हम सभी शहीदों की प्रशंसा करते हैं और उनके परिवारों के लिए प्रार्थना करते हैं। जब ये शहीद होते हैं तो हमें भी कुछ दिन तक तकलीफ होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जब कोई बाप अपना बेटा, पत्नी अपना पति और बेटा अपना बाप खो देता है तो इसके बाद का जीवन कैसा होता है?
नाइक योगेंद्र सिंह पाठक जिनके भाई देवेंद्र सिंह पाठक भी, सेना में थे, 6 साल पहले एक आईईडी धमाके में शहीद हो गए थे। नाइक पाठक ने कहा कि जब उनके भाई की शहादत के बारे में फोन आया, तो घर पर परिवार के हर सदस्य के मुख पर एक अजीब सा सन्नाटा था, परिवार के हर सदस्य का सिर शहीद की पत्नी की ओर मुड़ा हुआ था, जिसके 3 साल का बेटा था और एक बेटी थी, जो अभी-अभी पैदा हुई थी। शहीद देवेंद्र सिंह पाठक ने अपनी बेटी को भी नहीं देखा था। और एक दिन बाद जब देवेंद्र का शव घर पहुंचा तो ऐसा लगा जैसे कि सब कुछ तबाह हो गया। नायक योगेन्द्र का कहना है कि वह अभी भी अपनी भाभी की चीख के साथ कभी-कभी अपने भाई को महसूस करता है। सारे अनुष्ठान समाप्त होने के बाद परिवार के सदस्य और दोस्त घर से चले गए। इसके बाद घर सूनसान हो गया और घर के लोग यह कहकर रो रहे थे कि यह क्यों हुआ? कैसे हुआ? घर वालों को यकींन नहीं हो रहा था कि देवेंद्र अब इस दुनिया में नहीं रहा। इसके बाद जब बंद ताबूत खुला तो घरवालों के दर्द का ठिकाना नहीं रहा। नाइक योगेंद्र आगे कहते हैं कि 6 साल बाद भी उनकी भाभी असंगत हैं। शहीद की पत्नी को अब भुला दिया गया है; बस एक और विधवा अपने बच्चों को पालने की कोशिश कर रही थी। उनकी खुशी और सुख कभी पूरे नहीं होंगे। उनका परिवार हमेशा के लिए अधूरा रह जाएगा। हर महत्वपूर्ण अवसर पर, उसकी माँ और भाभी की आँखों में आँसू होते हैं। नाइक योगेंद्र कहते हैं, “उनका जीवन फिर वैसा नहीं हो सकता जैसा होना चाहिंए।”
पुलवामा हमले के सभी 44 शहीदों के परिवार अभी उसी दौर से गुजर रहे हैं। और दुर्भाग्य से, यह संकट एक आजीवन मामला है।
कल्पना कीजिए कि कारगिल युद्ध में शहीद हुए शहीद मेजर पद्मपाणि आचार्य (एमवीसी) की पत्नी चारुलता आचार्य को कैसा लगा होगा, जब उनके पति तिरंगे में लिपटे हुए घर वापस आए। वह अपने पहले बच्चे की उम्मीद कर रही थी जो 3 महीने बाद जन्म लेने वाला था। जसलीन सरना, सलमा शफीक, संगीता अक्षय गिरीश इस तरह सूची अंतहीन है। संगीता अक्षय गिरीश के पास खून से सराबोर उसके पति की वर्दी है जिसे वह अपने पति की याद में सीने से लगाए रहती है। यह कितना अधिक हृदय विदारक हो सकता है। हां, इन बहादुर महिलाओं में से प्रत्येक दृढ़ संकल्प से भरपूर हैं। अपने बच्चों के लिए वे अपने चेहरे पर बनावटी मुस्कान रखती हैं। लेकिन अंत में, क्या उनके जीवन में कभी फिर से वही खुशी आ पाएगी? नहीं !
पुलवामा अटैक से भारत के लोगों में बदले की भावना पैदा हो गई है। हां, हर सुरक्षाकर्मी यह जानकर सेना में शामिल हो जाता है कि जरूरत पड़ने पर उसे देश के लिए अपनी जान गंवानी पड़ेगी। लेकिन उनके परिवारों का क्या? यहां तक कि हिम्मत, यश और दृढ़ संकल्प के साथ, जीवन उनके लिए फिर कभी वैसा नहीं होगा। इसलिए जबकि जनता चीख रही है कि घर में बैठकर मजाक करना बहुत हो गया, ऐसी घटनओं के दुष्परिणाम से परिवार की दुर्दशा के बारे में सोचें।
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