मूवी रिव्यू : मंटो
निर्देशक – नंदिता दास
निर्माता – विक्रांत बत्रा, अजित अंधारे, नम्रता गोयल, नंदिता दास
लेखक – नंदिता दास
कलाकार – नवाजुद्दीन सिद्दीकी, ताहिर राज भसीन, रसिका दुग्गल, राजश्री देशपांडे, ऋषि कपूर, परेश रावल, जावेद अख्तर
संगीत– स्नेहा खानवलकर, राफ्टार
पृष्ठभूमि – जाकिर हुसैन
सिनेमेटोग्राफी – कार्तिक विजय
संपादक – श्रीकर प्रसाद
प्रोडक्शन कंपनी – एचपी स्टूडियो, फिल्मस्टॉक, वायाकॉम 18 मोशन पिक्चर्स, नंदिता दास एनिसिएटिव्स
कथानकः सआदत हुसैन मंटो को “बंटवारे का लेखक” के नाम से जाना जाता है। कई लोग मंटो के विचारों को अश्लील मानते हैं और आज के समय में यह ज्यादा लोकप्रिय नहीं रह गए हैं। हालांकि, उन्होंने कभी किसी भी पक्ष का समर्थन न करते हुए हमेशा केवल विभाजन की सच्ची कहानियों के बारे में लिखा।
आने वाली फिल्म “मंटो” भारत और पाकिस्तान के बँटवारे के समय मंटो के विचारों की याद दिलाती है। फिल्म मंटो को दो भागो में विभाजित करके दिखाया गया है – पहला बॉम्बे (1946) और दूसरा लाहौर (1948)।
बॉम्बे के पूर्व मशहूर लेखक मंटो के किरदार को नवाज द्वारा बखूबी उकेरा गया है। उस समय इनका पूरा जीवन फिल्म राइटर्स एसोसिएशन, फिल्म उद्योग, उनके सबसे अच्छे दोस्त श्याम चड्ढा और उनकी सबसे विश्वसनीय सहायक साफिया के इर्द – गिर्द घूम रहा होता है। उस दौरान मंटो और प्रसिद्ध लेखक इस्मत चुग़ताई लगातार अश्लीलता के लिए आरोपित थे।
एक बार मंटो की पत्नी अपने चचेरे भाई की शादी में भाग लेने के लिए लाहौर जाती है, लेकिन मंटो न जाने का फैसला लेता है। क्योंकि वह अपने देश के प्रति स्वाभिमानी है और इसकी विविधता और सहनशीलता में विश्वास करता है। लेकिन कहानी में मोड़ तो तब आता है जब एक नास्तिक मुस्लिम मंटो अपने सबसे अच्छे दोस्त श्याम के साथ बातचीत की वजह से आवेश में आकर पाकिस्तान जाने का अकल्पनीय फैसला ले लेता है।
फिल्म के बाद वाला भाग, मंटो के उदासीन और अलग जीवन को दर्शाता है। जो दुनियावालों और अपने परिवार की परवाह न करते हुए शराब का आदी होकर पूरी तरह से भटक जाता है। इसके बाद अंत में मरने से पहले वह अपनी कलम से अपने कुछ साहसिक कामों का बखान कर जाता है।
मूवी रिव्यूः नंदिता दास द्वारा निर्देशित, यह फिल्म मंटो के जीवन पर आधारित है। इस फिल्म में यह जानने की कोशिश की गई है कि क्या वह मूल रूप से विवादित था? दास ने मंटो के लेखन के क्षत की गहराइयों की खोज करने के लिए कड़ी मेहनत की है जो आज भी प्रासंगिक लगती है। फिल्म का उदासीन हिस्सा है – फिल्म का दृष्टिकोण और निष्पादन के बीच एक दुर्लभ दूरी। नवाज ने मंटो द्वारा महसूस किए गए व्यंग्यपूर्ण हँसी, उदासी, निराशा, कड़वाहट और विश्वासघात को प्रदर्शित करने के लिए कड़ी मेहनत की है, लेकिन सुचारु रूप से सार निकालने में सफल नहीं हो पाए हैं। हालांकि, फिल्म में ढ़िलाई के बावजूद, सहायक कलाकारों की अधिकता ने अस्थिर रूप से एक स्थायी छाप छोड़ी है। फिल्म में परेश रावल, दिव्या दत्ता, ऋषि कपूर और भसीन ने अपने आप को साइनिंग स्टार के रूप में लाने के लिए कड़ी मेहनत की है।
हमारी रायः फिल्म ‘मंटो’ उन कलाकारों की एक प्रशंसनीय तस्वीर प्रस्तुत करती है जिन्होंने बुराइयों, जो आज भी मौजूद हैं, का डटकर सामना किया। फिल्म एक ऐसे व्यक्ति के लिए एक पूर्ण श्रद्धांजलि है जिसने बिना किसी से डरे अपनी आवाज उठाई और अपने पीछे एक समृद्ध विरासत छोड़ दी। कोई भी इस फिल्म को अपने परिवार के साथ बैठकर देख सकता है और इस स्वतन्त्र विचार वाले लेखक के जीवन के बारे में और अधिक जानकारी ले सकता है। जिसने हमेशा दृढ़तापूर्वक कहा कि “मेरी कहानियां समाज के लिए एक दर्पण हैं”।




