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राहुल की चुनौती, महिला आरक्षण बिल पास कराएं पीएम मोदी

July 17, 2018
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पीएम मोदी को राहुल की चुनौती

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने संसद का मानसून सत्र शुरू होने से ठीक पहले, महिला आरक्षण का मुद्दा उठा कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘महिला आरक्षण बिल’ पास कराने की चुनौती दी है। राहुल गांधी ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिख कर कहा है कि कांग्रेस पार्टी इस बिल पर बिना शर्त समर्थन देने को तैयार है। इस बीच समय की मांग को देखते हुए, अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देब के नेतृत्व में कांग्रेस की महिला नेताओं ने महिला आरक्षण बिल को लेकर दिल्ली में एक रैली भी निकाली।

राहुल ने लिखा पीएम मोदी को पत्र

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि महिला आरक्षण विधेयक को 9 मार्च 2010 को राज्यसभा में पारित किया गया था लेकिन लोकसभा में बहुमत न होने के चलते इस बिल को पारित नहीं कराया जा सका। तब राज्यसभा में भाजपा ने इस बिल का समर्थन करते हुए विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने भी इसे ऐतिहासिक क्षण बताया था। लेकिन 8 साल गुजर चुके हैं, और भाजपा ने अपने 2014 के चुनावी घोषणा पत्र में इसे पारित कराने का जो वायदा किया था, वह अभी तक पूरा नहीं हुआ है। इसके अलावा राहुल गांधी ने महिला आरक्षण के मुद्दे को उठाते हुए प्रधानमंत्री से कहा महिला आरक्षण विधेयक पर कांग्रेस आज भी अपने वायदे पर कायम है। राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को याद दिलाते हुए कहा कि उन्होंने अपनी रैलियों में महिला सशक्तिकरण की बात की है। इसके अलावा पत्र के माध्यम से राहुल गांधी नें प्रधानमंत्री मोदी पर सवालों की बौछार करते हुए यह भी पूछा कि महिलाओं से जुड़े मुद्दे पर उनका रुख क्या है और महिला आरक्षण विधेयक को वह किस तरह समर्थन देंगे। राहुल ने कहा कि क्या संसद के आगामी सत्र में इसे पेश नहीं किया जा सकता और अगर इसमें देरी हुई तो अगले आम चुनाव से पहले इसे लागू करना मुश्किल होगा। राहुल गांधी ने अपनी चिट्ठी में लिखा है, महिला सशक्तिकरण के मुद्दे पर हमें दलगत की राजनीति से ऊपर उठ कर हमें देश को मिल कर संदेश देना है कि अब बदलाव का समय आ गया है। महिलाओं को विधानसभाओं और संसद में उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए क्योंकि अभी उनका प्रतिनिधित्व बहुत कम है। उन्होंने कहा महिला आरक्षण विधेयक के बारे में जागरूकता पैदा करने और जन समर्थन जुटाने के लिए कांग्रेस पार्टी ने 32 लाख लोगों के दस्तख कराए हैं। कांग्रेस ये दस्तखत आपके पास भेज रही है और विधेयक को पारित कराने के लिए आप के समर्थन की उम्मीद करती है, जिससे यह संसद में पास हो सके।

गौरतलब है कि यूपीए सरकार के शासन काल में राज्यसभा में यह विधेयक पारित हुआ था और अभी लोकसभा में पारित होना बाकी है। महिला आरक्षण विधेयक में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव किया गया है। संसद के दोनों सदनों में महज 96 महिला सदस्य हैं। लोकसभा में 543 सदस्यों में सिर्फ 65 महिला सदस्य हैं और राज्यसभा के 243 सदस्यों में सिर्फ 31 महिला सदस्य हैं।

क्या है महिला आरक्षण बिल

पिछले दस सालों से शायद ही कोई ऐसा संसद सत्र होगा। जिसमें महिला आरक्षण बिल की बात न उठी हो। ये संविधान के 85वें संशोधन का विधेयक है। इसके अंतर्गत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटों पर आरक्षण का प्रावधान रखा गया है। इसी 33 फीसदी में से  एक तिहाई सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षित की जानी है।

जिस तरह से इस आरक्षण विधेयक को पिछले कई सालों से बार-बार पारित होने से रोका जा रहा है या फिर राजनीतिक पार्टियों में इसे लेकर विरोध है इसे देखकर यह लगता है कि शायद ही यह कभी संसद में पारित हो सके।

विश्व की संसद में महिलाओं की स्थिति

भारत के अलावा हम बात करेगें विश्व के संसद में महिलाओं की स्थिति के बारे में, इंटर पार्लियामेंटरी यूनियन की रिपोर्ट के मुताबिक, संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में दुनिया के 193 देशों में भारत का स्थान 148वें नम्बर पर है। विश्व स्तर पर संसद में महिलाओं के आंकड़ें देखें तो रवांडा 63 फीसदी के स्तर पर हैं और नेपाल में 29.5 फीसदी महिलाएं संसद में हैं। अफगानिस्तान में 27.7 फीसदी और चीन की संसद में 23.6 फीसदी महिला सांसद हैं। पाकिस्तान की संसद में 20.6 फीसदी महिला सांसद हैं। वहीं भारत का औसत केवल 12 फीसदी ही है।

विशेष

महिला बिल को लेकर सबसे मजेदार बात तो यह है कि यह बिल भले ही पिछले 22 सालों से लटका हुआ है लेकिन प्रत्येक चुनावों में महिला आरक्षण बिल को एक बड़ा मुद्दा बना कर सभी राजनीतिक पार्टिया अपना उल्लू सीधा करती है। हर लोकसभा में इसे लाने की और फिर इसे पास करवाने की बात की जाती है। मनमोहन सरकार में कांग्रेस का अपना बहुमत नहीं था और कई समर्थक दल महिला आरक्षण विधेयक को मौजूदा रूप में पारित करने के लिए तैयार नहीं थे। मौजूदा लोकसभा में न सिर्फ सत्ताधारी गठबंधन का बहुमत है, बल्कि सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी भी महिला आरक्षण के समर्थन में है। इसके अलावा वामपंथी दल भी महिला आरक्षण लागू करना चाहते हैं। ऐसे में यह सरकार पर है कि वह महिला आरक्षण के लिए संविधान संशोधन बिल लाए। इसके बिना भारत में संसद और विधानसभाओं में महिलाओं का समुचित प्रतिनिधित्व संभव नहीं दिखता।