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क्या भारतीय नेताओं को शिक्षित होना चाहिए?

April 11, 2018
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क्या भारतीय नेताओं को शिक्षित होना चाहिए

भारत एक ऐसा देश है, जहाँ के अधिकतर लोग मौलिक सुविधाओं से वंचित हैं। कुछ मामलों में लोगों को कागजों पर सुविधा तो मिल जाती है, लेकिन वास्तव में उनको इसमें कुछ भी नहीं मिलता है। अब सवाल यह उठता है कि इसके लिए किसको दोषी ठहराया जाए? क्या नीति निर्माताओं को इसका दोषी ठहराया जा सकता है, जो उन लोगों के बारे में उचित विचार नहीं करते हैं, जो उनको अपना वोट देते हैं। या क्या इस तथ्य के लिए बिचौलियों को दोषी ठहराया जा सकता है, जो नीति निर्माताओं और आम जनता, विशेषकर समाज के दलित वर्ग के मध्य दूरियों को बढ़ा रहे हैं, आखिर क्या उनके द्वारा ऐसा करना सही है? सारी समस्याओं की शुरूआत हमेशा जड़ में होती है, इसलिए इस मामले में काफी हद तक नेताओं को ही दोषी ठहराया जा सकता है।

प्रायः कई विद्वानों का कहना है कि नेताओं में शिक्षा का अभाव भारत की राजनीतिक व्यवस्था को अव्यवस्थित करने वाली मुख्य समस्याओं में से एक है। हालांकि यह सच है कि संस्थागत शिक्षा सभी व्यक्तियों के एक अच्छे और न्यायसंगत स्वभाव होने की गारंटी नहीं लेती है, लेकिन फिर भी विशेषकर भारत जैसे समाज में शिक्षा का महत्व कम नहीं होना चाहिए। तो आइए सबसे पहले हम इस बात पर विचार करते हैं कि वास्तव में शिक्षा का अभाव किसी व्यक्ति को किस तरह प्रभावित करता है। शिक्षा एक अलग दृष्टिकोण से चीजों को देखने में मदद करती है।

परंपरा और सामाजिक प्रतिबंध

भारतीय समाज की अभी भी अपने आदर्श, पुरानी मान्यताओं और परंपराओं की दृढ़ निष्ठा के लिए प्रशंसा की जाती है। इसके अतिरिक्त इन्होंने निरंतर, मुख्य रूप से देश के स्वतंत्रता आंदोलन में राष्ट्र की सेवा भी की है। इसके साथ-साथ इन सभी ने विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के रास्ते में कुछ असुरक्षित प्रतिबंध भी लगाए हैं। जाति और धर्म आधारित भेदभाव से संबधित समस्याएं देश में अपने चरम पर हैं। जिसमें देश के शिक्षित और विवेक बुद्धि वाले लोग इन पर प्रकाश डालने और लोगों का उचित तरीके से मार्गदर्शन करने में अहम भूमिका निभाते हैं। देश में अभी भी कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहाँ पर अभी भी स्त्री भ्रूण हत्या, शिशु हत्या और सती प्रथा प्रचलित है। शायद सिर्फ शिक्षित लोग ही यह समझ सकते हैं कि ये रूढ़िवादी विचार देश की भलाई के लिए कितने घातक है और हमें इसके बारे में कुछ सकारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है। किसी भी कम शिक्षित और पूरी तरह से परंपरावादी व्यक्ति से सकारात्मक कदम उठाने की उम्मीद नहीं की जा सकती है।

विशेष रूप से पिछले 10 वर्षों के साथ-साथ इससे पहले भी भ्रष्टाचार ने वास्तव में किसी अन्य नुकसान की अपेक्षा, भारत की प्रगति में काफी बाधाएं उत्पन्न की हैं। अब अगर कोई विश्लेषण करता है, तो उसका सबसे स्पष्ट जवाब यह है कि विभिन्न नेता अपने भीतर के लालच को पूरा करने के लिए और ऊँचा पद पाने के लिए लोगों को कई प्रकार से प्रलोभित करते हैं, ताकि वह लगातार अपनी स्थिति को बरकरार रखकर उससे लाभान्वित हो सकें। अगर उनको लगता है कि वह ऐसा करने में भलीभाँति सक्षम नहीं हैं, तो वह अपने से बड़े नेताओं को भी प्रलोभित करने की कोशिश करते हैं, जिस प्रकार झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा जैसे नेता बड़े घोटाले में शामिल पाए गए थे।

शिक्षित नेता

राजनीतिक क्षेत्र के बाहर के जीवन में अच्छा प्रदर्शन करने में शिक्षा का अभाव काफी महसूस होता है। जो व्यक्ति किसी विश्वविद्यालय या कॉलेज की डिग्री के साथ-साथ अच्छी तरह से शिक्षित है, तो वह आसानी से यह पता लगा सकता है कि यदि राजनेताओं द्वारा अच्छी तरह से विकास के काम नहीं किए जा रहे हैं, तो वह उनसे कुछ अच्छा कर सकता है। एक शिक्षित व्यक्ति अपने राजनीतिक कैरियर में, अपने दिमाग का शालीनता से उपयोग करके सवालों तक पहुँचने और निष्पक्ष रूप से निर्णय करने और लोगों की भलाई के लिए काम करने में सक्षम होगा।

भेदभाव भारत की काफी पुरानी समस्या है। लोगों के खिलाफ भेदभाव किया जाता है, और वे महिलाएं (आम क्षेत्रों की शिक्षा और ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन साथी की पसंद और शहरी केंद्रों में स्वतंत्र रूप से आवागमन करने से प्रतिबंधित होती है), एक विशिष्ट धर्म से संबंधित हैं, जो कि स्वचालितरूप से डर की दशा में तत्काल संबंध रखने के लिए जानी जाती हैं, किसी विशेष जाति की (ज्यादातर राज्यों के ग्रामीण इलाकों में स्थिति विशेष रूप से सख्त होती है, जहाँ उन्हें पीने के पानी से भी वंचित कर दिया जाता है, अभी भी उन महिलाओं का उल्लंघन हो रहा है और वह न्याय व्यवस्था से भी वंचित हैं) और एक निश्चित आर्थिक वर्ग की होती हैं। शायद जो लोग शिक्षित हैं, वे इस तरह के भेदभाव और उनके तर्क के निराधार प्रकृति को समझ सकते हैं और इसके बारे में कुछ नियम बना सकते हैं।

वैश्विक राजनीति का अनावरण और प्रगति

उचित नीतियाँ भी का एक रास्ता है, जिसमें भारत पर्याप्त प्राकृतिक संसाधनों के मुताबिक विकास की योग्यता हासिल कर सकता है। हालांकि, कैसे एक नेता जो वैश्विक राजनीति, अर्थशास्त्र और नीति-निर्माण के अन्य पहलुओं से अवगत नहीं है और न ही उसको कोई ज्ञान है, वह उन्नत देशों में कैसे काम कर सकता है और जो नेता केवल खुद के लिए अल्पकालिक लाभ में दिलचस्पी रखते हैं और उसे जिस समुदाय द्वारा सत्ता में निर्वाचित किया जाता है, इस संबंध में कुछ भी करने की उम्मीद की जा सकती है? एक शिक्षित व्यक्ति से कम से कम कुछ आशा की जा सकती है कि शिक्षा और व्यक्तिगत रुचि के माध्यम से दुनिया के संपर्क में कुछ सकारात्मक सोच और समस्याओं की उचित पहचान और समाधान में मदद मिलेगी।

ऐसा कहा जाता है कि मानव द्वारा बनाई जाने वाली मशीनरी के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी गुनहगार नहीं है, क्योंकि जिन्होंने इन चमत्कारों का आविष्कार किया है यह उस विशेष व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह उसका किस तरह से उपयोग करता है। यह मामला शिक्षा और शक्ति के समान है। महान शक्ति के साथ बड़ी जिम्मेदारी भी आती है, लेकिन कुछ लोग इसका गैर जिम्मेदाराना ढंग से उपयोग करते हैं, जिसमें हम उस बनाने वाले को दोषपूर्ण नहीं ठहरा सकते हैं। शिक्षा एक ऐसा हथियार है, जो एक व्यक्ति को केवल जिम्मेदार बना सकता है, लेकिन निर्णायक निर्णय व्यक्ति पर ही निर्भर करता है।