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महात्मा गांधी के 5 प्रसिद्ध भाषण

October 18, 2017
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महात्मा गांधी के 5 प्रसिद्ध भाषण

मोहनदास करमचंद गांधी – सत्य और अहिंसा को अपनाने वाले महानतम नेताओं में से एक हैं और राष्ट्र-पिता महात्मा गांधी – दुनिया भर में  पुरुषों के लिए एक प्रेरणा का स्त्रोत रहे हैं। जैसा कि हम जानते है कि गांधी जयंती (2 अक्टूबर) को सिर्फ चंद दिन ही रह गए हैं, तो क्यों न महात्मा गांधी के सबसे यादगार भाषणों में से कुछ पर एक नजर डाल ली जाए-

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का भाषण (4 फरवरी 1916) – “अगर हमें स्वराज्य प्राप्त करना है, तो हमें इस प्यार करने वाली स्वतंत्रता को (ब्रिटिश साम्राज्य) अपनाना होगा और जो लोग खुद स्वतंत्रता में भाग नहीं लेना चाहते हैं, यह उन लोगों का आजादी दिलाने वाला समुदाय नहीं होगा।”

फरवरी 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उद्घाटन के अवसर पर बोलने के लिए, पं मदन मोहन मालवीय ने महात्मा गांधी को आमंत्रित किया था। वहाँ सभी उपस्थित लोग, महात्मा गांधी के भाषण सुनकर विचार-विमर्श करने पर मजबूर हो गए थे। शाही राजा और युवराजों, एनी बेसेंट और बाकी सभी, ब्रिटिश नेताओं के प्रति भारतीय नेताओं द्वारा अपनाने वाले विनीत भाषण की उम्मीद लगाकर आए थे। गांधी जी ने अंग्रेजी भाषा के जरिए भारी आलोचना और स्वराज्य की माँग के मुद्दे को प्रस्तुत करके दर्शकों को चौंका दिया था और महात्मा गांधी ने पहली बार बनारस में देश के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करने का संकेत प्रदर्शित किया था। ब्रिटिश शासन से भारत को आजाद कराने की आग को भड़काने वाला यह पहला भाषण था।

दांडी मार्च भाषण (11 मार्च 1930) – “हमने विशेष रूप से एक अहिंसात्मक संघर्ष की खोज में, अपने सभी संसाधनों का उपयोग करने का संकल्प किया है। क्रोध में कोई भी गलत निर्णय न लें।”

यह भाषण ऐतिहासिक दांडी नमक मार्च की पूर्व संध्या पर था, जिसमे कि महात्मा गांधी ने असहयोग के लिए, एक अच्छी तरह से सोचे-समझे कार्यक्रम का उल्लेख किया था। उन्होंने अपने अनुयायियों के साथ समुद्र के पानी से नमक बनाने की स्थापना करते हुए ब्रिटिश भारतीयों से कहा कि अंग्रेजों द्वारा लगाए गए करों की अवहेलना करनी होगा। उन्होंने भारतीयों से विदेशी शराब और कपड़े, करों का विरोध करने और (ब्रिटिश) अदालतों व सरकारी कार्यालयों से दूरी बनाकर रहने को कहा। इस भाषण ने न केवल भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने और औपनिवेशिक शासन को चुनौती देने पर मजबूर किया, बल्कि साथ ही कई दशकों के बाद अमेरिका के नागरिक अधिकार आंदोलन को भी प्रभावित किया। भारतीयों का मानना है कि इस भाषण ने “सत्याग्रह” के प्रारम्भ होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

गोलमेज सम्मेलन भाषण (30 नवंबर 1931)“मैं यह कहने की हिम्मत करता हूँ कि भारत में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच यह संघर्ष ब्रिटिश आगमन की एकजुटता का कारण है और तुरंत इस संबंध को ग्रेट ब्रिटेन और भारत के बीच दुर्भाग्यपूर्ण, कृत्रिम व अप्राकृतिक संबंधों से प्राकृतिक संबंधो में परिणत कर दिया जाता है। अगर ऐसा होता है, तो स्वैच्छिक साझेदारी को छोड़ दिया जाए, अगर दोनों में से एक भी पार्टी भंग हो जाती है, तो आपको प्रतीत होगा कि हिन्दू, मुसलमान, सिख, यूरोपीय, एंग्लो इंडियन, ईसाई, अछूत, सभी एक साथ एकजुटता से रहते हैं।”

गांधी जी ने अपने पहले गोलमेज सम्मेलन में यही भाषण दिया था। इस भाषण में यह बताया गया है कि अंग्रेजों ने सांप्रदायिक असंतोष और झगड़े का हवाला देते हुए भारतीय राजनेताओं को अधिराज्य की स्थिति स्वीकार कराने का प्रयास किया। साहसिक महात्मा गांधी ने स्पष्ट रूप से झांसेबाज अंग्रेजों को चुनौती दी और भारत की एकता और धर्मनिरपेक्ष भावना का प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि हमारे देश का इतिहास अंग्रेज इतिहासकारों द्वारा बदल दिया गया है, लेकिन एक बार फिर हम प्यार और भाईचारे की एकता का गीत गाएंगे।

भारत छोड़ोभाषण (8 अगस्त 1942) – “मेरा मानना है कि दुनियाभर के इतिहास में, स्वतंत्रता के लिए हमारे वास्तविकता से ज्यादा यथार्थवादी लोकतांत्रिक संघर्ष नहीं रहा है।”

स्मिथसोनियन, इस संबोधन को “भारत को आजादी के कगार पर लाने वाले भाषण” के रूप में संदर्भित करता है। ऐतिहासिक भारत छोड़ो आंदोलन की पूर्व संध्या पर गांधी जी के संबोधन में अहिंसा (अहिंसा) और हमारी आजादी के आदर्शों को शामिल किया गया। महात्मा गांधी ने अंग्रेजों को स्वेच्छा से भारत छोड़ने के लिए काफी प्रयास किए और लाखों भारतीयों को बंधन और गुलामी से स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए प्रेरित भी किया। उनको अपने दृष्टिकोण की नवीनता और अहिंसात्मक ढंग का उपयोग करने वाले दुनिया के सबसे बड़े नेताओं में से एक के रूप में जाना जाता है।

उनके अंतिम उपवास से पहले का भाषण (12 जनवरी 1948) – “मेरी यह अभिलाषा है कि सभी हिंदू, सिख और मुसलमान अपने दिल में भाईचारे की भावना बनाएं। वह उसके बाद हमेशा तक जीवित रहे। आज यह अस्तित्वहीन हैं। यह एक ऐसा राज्य है जहाँ कोई भारतीय देशभक्त नाम के योग्य नहीं है, जो समता के साथ विचार कर सकता हो।”

भारत को आजादी तो मिली, लेकिन इसके साथ ही देश को भारी कीमत भी चुकानी पड़ी थी। सैकड़ों वर्षों बाद एक एकता का जन्म हुआ था, लेकिन एक दर्दनाक और हिंसक विभाजन ने सांप्रदायिक एकता को तार-तार कर दिया था। दुखी महात्मा गांधी ने एक बार फिर, हमारे प्यारे देश की खातिर एक और सहन, एक और अहिंसक संघर्ष, एक और बलिदान और सभी भारतीयों की भलाई के लिए उपवास किया। उनकी मृत्यु के दिनों में उनका यह भाषण कि ‘हमारा धर्म भारत को शांतिपूर्ण और अधिक सहनशील बनाता है’ प्रेरणा का स्त्रोत होना चाहिए।

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