Home / society / भारत में अंधविश्वास

भारत में अंधविश्वास

July 5, 2018
by


भारत में सामान्य अंधविश्वास

गुड़गांव के एक व्यक्ति के हाथों से दी हुई ताँबे की अँगूठी को पहनने से गठिया या जोड़ों के दर्द के साथ-साथ शुगर जैसी कई अन्य बीमारियाँ ठीक हो सकती हैं, इस बात पर आप कैसी प्रतिक्रिया करेंगे? क्या आपको लगता है कि यह सिर्फ एक अंध विश्वास है या इसमें रोगमुक्त करने की दृढ़ शक्ति होती है? मेरी कॉलोनी की घुटनों के दर्द से पीड़ित कुछ महिलाएं उसी बाबा के पास गईं और ताँबे की अँगूठी पहन कर वापस आईं। उनके अगले दिन का उत्तेजित चर्चा का विषय उस चमत्कारी अँगूठी के कारण दर्द से मिली राहत था। बाबा के हाथों से दी गई अँगूठी को पहनकर हर कोई दर्द से राहत महसूस करता था। उस घटना के लगभग एक महीने बाद, वही महिलाएं अपने घुटनों में होने वाले दर्द में हुई बढ़ोत्तरी के बारे में चर्चा कर रही थीं। जब मैंने उन महिलाओं से उस अँगूठी के चमत्कारों के बारे में पूछा, तो किसी के पास उसका कोई ठोस जवाब नहीं था। उन्होंने एक दिन राहत महसूस की थी, क्योंकि वह राहत मनोवैज्ञानिक प्रभाव के अलावा कुछ भी नहीं थी। इतना ही नहीं, भारत में ऐसे कई उदाहरण हैं। कई अंधविश्वास सूर्य और चंद्र ग्रहण से जुड़े हुए हैं। सूर्य और चंद्र ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को बाहर नहीं जाने दिया जाता है, क्योंकि इससे उनका बच्चा प्रभावित हो सकता है। ज्योतिष के विपरीत मुझे लगता है कि सूर्य या चंद्र ग्रहण के समय कुछ हानिकारक किरणें उत्सर्जित होती हैं, जो गर्भवती महिलाओं के बच्चों के लिए हानिकारक साबित होती हैं। इसके अलावा ग्रहण के समय यह भी कहना है कि गर्भवती महिलाओं को हर खाद्य पदार्थ में गुलाब की पंखुड़ियों का उपयोग करना चाहिए, ताकि वह ग्रहण के खराब प्रभावों से अपने आप को बचा सकें (मुझे नहीं पता है कि गुलाब की पंखुड़ियाँ भोजन को कैसे सुरक्षित रखती है)।

हम इस तथ्य को क्यों नहीं समझते हैं कि यह एक प्राकृतिक घटना है? इसके अलावा यह अंधविश्वास समाज के कुछ लोगों द्वारा दिए गए उपहार हैं, जो प्राचीन समय में जनता को अपने अधीन करना चाहते थे। पूर्व संस्कार के तर्क के बारे में जानकारी न होना अंधविश्वास का मुख्य कारण है। अज्ञानता और कुछ अनुचित कार्यों का डर लगभग हर अंधविश्वास को जन्म देता है। समय के साथ अंधविश्वास बदलते रहते हैं, लेकिन कुछ अंधविश्वास प्राचीन काल से ही प्रचलित हैं। इससे पहले होने वाली सभी प्राकृतिक आपदाओं को भगवान का क्रोध माना जाता था और इसलिए भगवान को प्रसन्न करने के लिए, विभिन्न प्रकार के अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता था तथा बलि दी जाती थी। लेकिन समय के साथ मनुष्य ने इस तरह के जलवायु परिवर्तन के पीछे के तर्क को समझ लिया है तथा परिणामस्वरूप कुछ हद तक इस प्रकार के अंधविश्वासों का समापन हुआ है। भारत में महिलाओं द्वारा अपने पति के अंतिम संस्कार पर आत्मदाह करने जैसे अंधविश्वासों के कई असभ्य रूप मौजूद थे। ऐसा इसलिए किया गया था, ताकि वह महिलाएं अपने पति के साथ स्वर्ग में रह सकें। उत्तर और दक्षिण भारत के लोग भगवान को खुश करने के लिए बलि चढ़ाते थे।

खैर, हम कब समझेंगे कि भगवान इन सभी बलिदानों और भौतिक पदार्थों की चाह नहीं रखते हैं? हम उन्हें अपने निहित स्वार्थों के लिए और सिर्फ अंधविश्वासों के लिए क्यों रिश्वत देते रहते हैं? हम एक साधारण इंसान क्यों नहीं बन सकते हैं, जो स्वार्थ के बिना मानवता की सेवा करने के लिए साधारण जीवन जीना चाहता हो? लेकिन अभी भी भारत में आप जाति, धर्म, समाज और क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग अंधविश्वासों के कई उदाहरण देख सकते हैं। सभी अंधविश्वासों का मार्ग एक ही है, जो हमारे समाज को नुकसान पहुँचाता है। अधिकांश भारतीय मानते हैं कि वे एक ज्योतिषी की सहायता से भविष्य देख सकते हैं। वे अच्छे भाग्य के लिए, उन्हें भारी मात्रा में धनराशि देते हैं। लेकिन समय के साथ इन चीजों का हमारे दिमाग पर गहरा असर पड़ता है और यह मूल प्रवृत्ति का दमन कर देती हैं। हम तर्कसंगत सोच के माध्यम से इसमें बदलाव ला सकते हैं।

हम भविष्य नहीं देख सकते हैं, इसलिए किसी भी माध्यम से अपने लिए छिपी हुई चीजो को खोजने का प्रयास न करें। अच्छा काम करना जारी रखें और समय-समय पर अपने मूल्यों की समीक्षा करें। अनावश्यक साधनों की खोज करने की बजाय, कड़ी मेहनत करने में विश्वास करें। इससे जीवन के प्रति सही मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण का निर्माण होगा और आप अपनी कड़ी मेहनत के पुरस्कार को प्राप्त करने के हकदार बनेंगे।