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आधुनिक भारत के 10 शीर्ष अर्थशास्त्री

April 19, 2018
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आधुनिक भारत के 10 शीर्ष अर्थशास्त्री

कौटिल्य के समय से या शायद उनसे पहले के समय से, भारत ने दुनिया को कई सारे बुद्धिमान अर्थशास्त्री और विचारक दिए। यहाँ पर आधुनिक समय के 10 शीर्ष भारतीय अर्थशास्त्रियों के बारे में जानकारी उपलब्ध हैं-

डॉ. अमर्त्य सेनप्रेसीडेंसी यूनिवर्सिटी (कोलकाता) से शिक्षा प्राप्त करने के बाद, उन्हें 1998 में अर्थशास्त्र विज्ञान में नोबेल पुरस्कार जीता। इसके बाद उन्हें 1999 में भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था। आर्थिक दर्शन की दुनिया में उनके प्रमुख अध्यनों में से स्वतंत्रता के रूप में विकास और असमानता की जाँच शामिल है। सेन के प्रयासों में ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य के माध्यम से वर्गों के बीच आर्थिक अंतर को समझने और समकालीन संदर्भ में इन्हें सुलझाने या पूरा करने की दिशा में काम किया है। दुनिया भर के कई विश्वविद्यालयों में एक व्यस्त अकादमिक कैरियर शिक्षण होने के बावजूद, सेन कई राजनैतिक बहसों में उलझे रहे और लगातार खबरों में बने रहे।

डॉ. मनमोहन सिंह- भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह प्रमुख अर्थशास्त्री भी हैं, जो भारत के सामाजिक-आर्थिक सुधारों और आर्थिक उदारीकरण के प्रति भी समझ रखते  हैं। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में डॉ. की उपाधि प्राप्त करने के बाद, सिंह ने आरबीआई गवर्नर के रूप में भी काम किया और पी. वी. नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री के रूप में पदभार ग्रहण करने से पहले वह भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार भी रहे। वित्त मंत्री के रूप में महान सफलता और सुधार-उन्मुख अर्थशास्त्री के रूप में प्रतिष्ठा होने के बावजूद, सिंह भारत के प्रधानमंत्री के रूप पूरी तरह से विफल रहे और उनकी सरकार कई घोटालों और भ्रष्टचारों से जूझती रही।

डॉ. रघुराम राजन- डॉ. रघुराम राजन, भारतीय रिजर्व बैंक के 23वें अध्यक्ष थे। इससे पहले वह वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार थे। उन्होंने 2003 से 2006 के बीच अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुख्य अर्थशास्त्री के रूप में स्वयं अपना नाम बनाया। राजन विश्व के कुछ मुख्य अर्थशास्त्रियों में से एक थे, जिन्होंने 2008 के वैश्विक आर्थिक पतन की भविष्यवाणी की थी। भारत में, आरबीआई गवर्नर के रूप में, क्रेडिट दरों को ध्यान में रखते हुए आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और अस्थिर घरेलू मुद्रा में स्थिरता लाने का श्रेय राजन को दिया गया है।

डॉ. अरविंद सुब्रमण्यम- डॉ. अरविंद सुब्रमण्यम इस समय भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में सेवारत हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट अहमदाबाद से एमबीए और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से डी. फिल. करने के बाद, सुब्रमण्यम ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में जीएटीटी और इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड में रिसर्च के निदेशक के रूप में भी सेवारत रहे। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर राजन से उनकी निकटता और भारतीय व्यापार के विकास में उनके योगदान ने उन्हें वर्तमान भारतीय आर्थिक परिदृश्य के प्रमुख अर्थशास्त्रियों में से एक बना दिया है। इंडिया टुडे ने अपनी पत्रिका में इन्हें भारत के पिछले तीन दशकों में शीर्ष 30 ‘मास्‍टर्स ऑफ द माइंड’ में शामिल किया है।

डॉराजा चेलैया मद्रास स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के संस्थापक और अध्यक्ष डॉ. राजा येसुदास चेलैया, देश के शीर्ष अर्थशास्त्रियों में से एक थे। मद्रास विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री और पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय से पीएचडी डिग्री पाने के साथ, चेलैया दुनिया में सार्वजनिक अर्थव्यवस्था के शीर्ष सलाहकारों में से एक बन गए। पापुआ न्यू गिनी राष्ट्र और कई अन्य देशों में सलाहकार के रूप में सेवा करने के बाद, चेलैया जल्द ही भारत में प्रत्यक्ष कराधान सुधार के जनक बन गए। उन्हें 2007 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और 2009 में उनका निधन हो गया।

डॉ. सी. रंगराजन – डॉ. सी. रंगराजन 1992 से 1997 के बीच रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के एक जाने माने गवर्नर थे। इसके अलावा, उन्होंने कई सार्वजनिक संस्थाओं में सेवा की है। रंगराजन ने 2008 से 2009 के बीच संसद सदस्य (राज्य सभा) के रूप में कार्यालय का संचालन किया और 1997 से 2003 के बीच वह आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रहे। रंगराजन को 2002 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। भविष्य को ध्यान में रखते हुए, रंगराजन ने 2003-2004 में बारहवें वित्त आयोग का नेतृत्व करके एक आदर्श काम किया था। वह प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष रह चुके हैं।

डॉ. शंकर आचार्य- आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डिग्री और हार्वर्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी करने के बाद, डॉ. शंकर आचार्य ने विश्व बैंक के साथ काम करना शुरू किया। 1993 से 2001 तक, उन्होंने भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में काम किया। इस महत्वपूर्ण अवधि में उन्होंने अपने पद के माध्यम से विभिन्न व्यापक आर्थिक सुधारों और औद्योगिक विकास को बढ़ावा दिया। 2001 से 2003 के बीच, आचार्य ने प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य के रूप में भी कार्य किया। 2003-2004 में वह बारहवें वित्त आयोग के सदस्य भी रहे।

डॉ. वी. के. आर. वी. राव- विजेंदर कस्तूरी रंग वरदराज राव, देश के सबसे प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री और शिक्षाविदों में से एक थे। 1937 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी करने के बाद, राव ने दिल्ली में स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स जैसे संस्थानों की स्थापना करके भारत में अर्थशास्त्र के अध्ययन को लोकप्रिय बना दिया। दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति और आर्थिक विकास संस्थान के निदेशक के रूप में कई भूमिकाओं के अलावा, राव 1971 में केंद्रीय शिक्षा मंत्री भी बने। 1974 में, उत्कृष्ट सार्वजनिक सेवा के लिए उन्हें पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। राव ने दक्षिण भारत में कई महत्वपूर्ण व्यापार मार्गों के निर्माण का निरीक्षण किया, जिससे भारत की नवनिर्माण सड़कों की अर्थव्यवस्था में बहुत सुधार हुआ।

बिमल जालान- 80 के दशक में भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार होने के अलावा, डॉ. बिमल जालान आरबीआई के सबसे लोकप्रिय गवर्नरों में से एक हैं। 1997 से 2003 तक का समय राष्ट्र के लिए आर्थिक उथल-पुथल का समय था, तब उन्होंने सेंट्रल बैंक के प्रमुख के रूप में कार्य किया। बाद में, उन्हें संसद सदस्य के पद पर उच्च सदन / राज्य सभा में नामित किया गया था। प्रेसीडेंसी यूनिवर्सिटी कोलकाता और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने वाले जालान ने भारत में 1,000 रूपये के नोट को जारी करने में भूमिका निभाई थी।

जगदीश भगवती- मुक्त व्यापार के समर्थक के रूप में भी विख्यात, भारतीय मूल के शीर्ष अर्थशास्त्री डॉ. जगदीश भगवती अब अमेरिका के मूल निवासी हैं, लेकिन उन्होंने 81 वर्ष की आयु में भी भारत के आर्थिक परिदृश्य में अपनी रुचि को बनाये रखा है। बॉम्बे विश्वविद्यालय और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से बी.ए. तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद भगवती ने 1961 में प्रतिष्ठित मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से “अंतर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र में निबंधन” पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के महानिदेशक के विदेशी सलाहकार होने के साथ-साथ भगवती एमआईटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर थे। भगवती ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, पर्यावरण और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ अच्छे संबंधों को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सन् 2000 में इन्हें पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।