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भारतीय क्रिकेट के शीर्ष 10 यादगार पल

August 16, 2018
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भारतीय क्रिकेट के शीर्ष 10 यादगार पल

भारतीय क्रिकेट, क्रिकेट के दीवाने उन राष्ट्रों को मंत्रमुग्ध करने में कभी भी  विफल नहीं रहा है, जहाँ यह खेल स्वयं में एक धर्म है। भारतीय क्रिकेट ने अपनी शुरुआत 1932 में औपनिवेशिक शासन के दौरान इंग्लैंड के खिलाफ ‘क्रिकेट का मक्का’ कहे जाने वाले मैदान लॉर्ड्स से की थी। तब से, भारतीय क्रिकेट लगातार ऊचाइयाँ छू रहा है और इस खेल में अपनी श्रेष्ठता को साबित कर रहा है, धीरे-धीरे और निरंतर इस खेल ने लाखों भारतीयों को आकर्षित किया है। चेपॉक में इंग्लैंड के खिलाफ विजय हजारे के नेतृत्व में भारत की पहली यादगार टेस्ट जीत से लेकर मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर के शानदार शतकों की बौछार तक भारतीय क्रिकेट प्रशंसकों ने अच्छे से अच्छा और बुरे से बुरा, हर तरह का समय देखा और अभी भी वे हर सुख और दुख में टीम का समर्थन कर रहे हैं। भारतीय क्रिकेट टीम नेअपने दिवाने क्रिकेट प्रशंसकों के साथ प्रत्येक भावनात्मक उतार-चढ़ाव का सामाना किया है।

भारतीय क्रिकेट के शीर्ष 10 यादगार पलों की एक सूची यहां दी गई है। जिन्होंने प्रशंसकों को कभी बेहद उत्साह, कभी खुशी के आँसू और कभी उदार मनोदशा प्रदान की:

भारत की पहली टेस्ट जीत

फरवरी 1952 में, नव स्वतंत्र देश भारत ने क्रिकेट के शुरुआती इतिहास में ही अपनी पहली टेस्ट जीत दर्ज की थी। कप्तान विजय हजारे ने चेन्नई के चेपॉक स्टेडियम में, अंग्रेजी पक्ष (इंग्लैंड) के खिलाफ भारतीय क्रिकेट टीम की अगुवाई करते हुए  पारी और 8 रनों से  अपनी टीम को एक व्यापक जीत दिलाते हुए इतिहास रचा। क्रिकेट के स्तर पर अपेक्षाकृत एक नए राष्ट्र के लिए, यह एक बड़ी छलांगथी। इस जीत से दो साल पहले जब भारतीय टीम को एक मैच के दौरान दिन का खेल समाप्त होने के कारण 6 रन से हार का सामना करना पड़ा था जबकि 2 विकेट हाथ में थे। हार के दुःख और अफ़सोस से भरे साढ़े नौ साल के बाद भारत को यह जीत मिली थी।

1971 में विदेशी भूमि पर पहली सीरीज पर विजय

वर्ष 1971, भारतीय क्रिकेट टीम के लिए एकआसाधारण साल था क्योंकि इस वर्ष टीम ने स्वयं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले के रूप में प्रस्तुत किया था। इस वर्ष भारत ने तीन मैचों की टेस्ट सीरीज में इंग्लैंड को 1-0 से हराकर विदेशी भूमि पर अपनी पहली टेस्ट सीरीज जीत दर्ज की। भारतीय टीम ने विदेशी धरती पे जीत के क्रम को बरकरार रखते हुए वेस्टइंडीज के खिलाफ 5 मैचों की टेस्ट सीरीज में 1-0 से जीत दर्ज की। अजीत वाडेकर ने दोनों सफलताओं के दौरान भारतीय टीम का नेतृत्व कर विदेशी और 1952 में अपना पहला टेस्ट मैच जीतने के बाद भरतीय टीम ने विदेशी भूमि पर अपनी पहली टेस्ट सीरीज भी जीत ली थी।

1983 की विश्व कप जीत

आईकॉनिक लॉर्ड्स ग्राउंड में हुए 1983 क्रिकेट विश्व कप (सीडब्ल्यूसी) फाइनल के दौरान कपिल देव ने सर विवियन रिचर्ड्स का महत्वपूर्ण कैंच को पकड़ने के लिए बाउंड्री लाइन की तरफ ड्राइव लगाई। यही वह क्षण था जिसने भारत में क्रिकेट के भाग्य को बदल दिया। भारत कपिल देव की कप्तानी में विश्व कप जीतने के लिए आगे बढ़ा और विश्व कप भारत के नाम किया। यह टूर्नामेंट भारतीय क्रिकेट टीम के लिए उतार-चढ़ाव भरा रहा। फाइनल में भारतीय टीम के सामने बाधाएं भी आयीं, क्योंकि वे वेस्टइंडीज के खिलाफ खेल रहे थे जिसके सभी खिलाड़ीअनुभवी थे। दो बार विश्व चैंपियन रही टीम, खासतौर पर भारतीय बल्लेबाजों को 183 रनों पर समेटने के बाद, विश्व कप जीत में हैट्रिक लगाने के लिए सबसे बड़ी दावेदार मालूम पड़ रही थी।लेकिन, जैसे कहा जाता है कि यह लड़ाई ताकत की नहीं बल्कि यह इस बारे में थी कि आप कितनी देर धैर्य के साथ लड़ सकते हैं, भारत ने धैर्य और दृढ़ संकल्प के साथ निडरता से वेस्टइंडीज टीम का सामना किया और विजय प्राप्त की।

मैच फिक्सिंग का कलंक और सरक्षण में बदलाव

1990 का दशक, इस लड़खड़ाती हुई टीम में एकमात्र योद्धा सचिन तेंदुलकर का होना, भारतीय क्रिकेट की दुर्दशा को दर्शाता है। कपिल देव और सुनील गावस्कर जैसे पुराने क्रिकेटरों ने अपनी एक विशेष छाप छोड़ते हुए क्रिकेट से संन्यास ले लिया था। हालांकि, “लिटिल मास्टर” सचिन तेंदुलकर उस दशक में विश्व क्रिकेट में शानदार शुरुआत के साथ आए और लगभग हमेशा भारत के उद्धारकर्ता बनकर टीम को जीत दिलाई। अपनी शानदार बल्लेबाजी और कभी-कभी गेंदबाजी के प्रदर्शन से मास्टर क्लास सचिन ने देश के गौरव को हमेशा बचाए रखा। 1990 के दशक के अन्त में भारतीय क्रिकेट टीम पर कप्तान मुहम्मद अजहरुद्दीन सहित मैच फिक्सिंग स्कैंडल का धब्बा लगा। प्रशंसकों का उत्साह टीम के प्रति अपनी आशाएं खो रहा था। सचिन तेंदुलकर को भारतीय क्रिकेट टीम की बागडोर को सौंप दिया गया था लेकिन कप्तान के रूप में एक असफल कार्यकाल और कप्तानी का बोझ उनसे संभाला नहीं जा रहा था। सचिन तेंदुलकर ने कप्तान का पद त्याग दिया और कप्तानी का बैटन (पद) “बंगाल टाइगर” सौरव गांगुली को सौंप दिया गया। एक साहसी हृदय और एक निर्विवाद दृढ़ संकल्प वाला यह व्यक्ति देश के गर्व के लिए लड़ने और खेलने का ज्जबा लाया और धीरे-धीरे उन्होंने युवा खिलाड़ियों की एक निडर टीम तैयार की। सौरव गांगुली के नेतृत्व में भारत की इस टीम ने विश्व भर में बड़ी जीत दर्ज की और एक बार फिर टीम ने प्रशंसकों का विश्वास जीता।

प्रतिष्ठित इंडिया बनाम ऑस्ट्रेलिया टेस्ट सीरीज 2001, ईडन गार्डन

उस समय, ऑस्ट्रेलिया की टीम, 1970 और 1980 के दशक की वेस्टइंडीज टीम के समान अजेय थी। ऑस्ट्रेलियाई टीम में इस खेल के कुछ महान दिग्गज थे, जिन्होंने अपने बेरहम खेल के माध्यम से दुनिया के बाकी क्रिकेट खेलने वाले देशो को पीछे चोर दिया। ऑस्ट्रेलियाई टीम अपने पलटवार और अनोखे अंदाज के साथ टेस्ट मैचों में लगातार 16 बार जीत दर्ज की। ऑस्ट्रेलियाई टीम के विजय रथ को रोकने के लिए भारतीय टीम को कुछ विशेष प्रयासों की आवश्यकता थी। ऑस्ट्रेलिया की टीम पहले ही मुंबई में हुए टेस्ट मैंच में मेजबानों पर भीरी जीत दर्ज कर चुकी थी। कोलकाता में भारतीय टीम ने एक अविस्मरणीय प्रदर्शन करते हुए ऑस्ट्रेलियाई टीम को बड़ी शिकस्त दी हैं। यह मैच क्रिकेट प्रेमियों द्वारा हमेशा याद किया जाएगा। इस मैच में वीवीएस लक्ष्मण ने आस्ट्रेलियाई टीम के खिलाफ एक असाधारण दस्तक देते हुए नाबाद 281 रन बनाये। इस मैच में उनका साथ दिया टर्बिनेटर- हरभजन सिंह ने, जिन्होंने अपनी जादुई स्पिन गेंदबाजी से आस्ट्रेलिया को बहार का रास्ता दिखाया। प्रतिष्ठित ईडन गार्डन में मिली जहां इस यादगार जीत ने शक्तिशाली ऑस्ट्रेलियाई टीम के अभिमान को तोड़ा, वही इस जीत से भारतीय टीम  को  सीरीज में बराबर का स्कोर करने में मदद मिली। टीम ने भारतीय क्रिकेट प्रशंसकों के विश्वास को पुन: प्राप्त किया और क्रिकेट खेलने वाले देशो का ध्यान अपनी ओर यह दर्शाते हुए खींचा कि भारत भी क्रिकेट की महाशक्ति बनने के कगार पर था।

2003 मेंयह विजयी अभियान क्रिकेट विश्व कप के फाइनल में लड़ खड़ा गया

न्यूजीलैंड में एक निराशाजनक सीरीज के बाद, जहां टीम तेज पिचों का सामना करने में असमर्थ प्रतीत हो रहा थी। वहीं इसके बाद भारतीय टीम दक्षिण अफ्रीका के लिए रवाना हो गई। अनिश्चितता की हवा ने भारतीय टीम को इस कदर घेर लिया कि दक्षिण अफ्रीका में हुए 2003 क्रिकेट विश्व कप के दौरान किसी को भी टीम से ज्यादा उम्मीदें नहीं थीं। इस टूर्नामेंट की शुरुआत ने ही आग में घी डालने का काम किया, जहाँ भारतीय टीम ने अपने पहले दो मैचों में बहुत ही खराब प्रदर्शन किया, जिसके कारण समर्थक बेचैनी और गुस्से से भड़क उठे। उस स्थिति में सचिन तेंदुलकर सहित टीम के अन्य  वरिष्ठ सदस्यों द्वारा मिडिया को संबोधित करते हुए उन्होंने अपने देशवासियों को गर्व महसूस कराने का वादा किया तब जाके समर्थक अपने घरो को वापस लौटे।

एक बार फिर भारतीय टीम को क्रिकेट विश्वकप में वापसी करने का अवसर मिला जिसने क्रिकेट प्रशंसकों को आशा दी और टीम को आगे बढने का नया मनोबल प्रदान कियाऔर साथ ही साथ भेड़ियों के एक झुंड की तरह टीम में एक बार फिर से एक नया दृढ़ संकल्प भर गया। भारतीय टीम लगातार विजय हासिल करते हुए एक शीर्ष मुकाबले के लिए आस्ट्रेलिया से भिड़ने को तैयार थी। फाइनल मुकाबला बहुत ही साधारण रहा जो पूरी तरह से एक तरफा साबित हुआ। हालांकि, उस समय दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीम के हाथों मिली यह हार एक हल्के झटके की तरह प्रतीत हुई, लेकिन भारतीय टीम ने न केवल भारतीय प्रशंसकों का दिल जीता बल्कि पूरे क्रिकेट जगत से सम्मान प्राप्त किया। यह भारतीय क्रिकेट में एक नए युग की शुरुआत थी।

2003-04 ऑस्ट्रेलिया सीरीज

भारतीय टीम अपने घरेलू मैदानों में अच्छा प्रदर्शन करती थी, लेकिन विदेशी सरजमीं पर इसका प्रदर्शन खराब होता था, जो प्रशंसकों और टीम के लिए एक परेशानी का कारण बन गया था। इसीलिए भारतीय क्रिकेट टीम को अक्सर “घर पर शेर और विदेश में मेमना” कहा  जाता था, यह एक ऐसा टैग था जिसे कोई भी पुनरुद्धारित टीम किसी भी कीमत पर हटाना चाहती थी।भारतीय क्रिकेट टीम ने अपने देश से बाहर हुए टेस्ट मैचों में बहुत ही खराब प्रदर्शन किया, जिस वजह से टीम 176 टेस्ट मैचों में से सिर्फ 18 मैचों में ही अपनी जीत दर्ज करा सकी। भारत का ऑस्ट्रेलिया दौरा आलोचकों को चुप कराने के टीम के प्रयास में एक यादगार पल साबित हुआ। 1981 में भारत ने ऑस्ट्रेलिया में हुए अपने पहले टेस्ट मैच में जीत दर्ज कराने के बाद एडीलेड ओवल में प्रमुख ऑस्ट्रेलियाई टीम से दूसरे टेस्ट मैच को जीतकर एक शानदार जीत अपने नाम दर्ज करी। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया ने मेलबर्न में आयोजित बॉक्सिंग-डे टेस्ट मैच जीतकर खेल में फिर से वापसी की। सीरीज 1-1 से समाप्त हो गई, क्योंकि भारत एक बार फिर ऑस्ट्रेलिया की टीम के लिए एक आसान लक्ष्य साबित हुआ।

2007 क्रिकेट विश्व कप की हार और टी-20 विश्व कप की अभिषेकात्मक जीत

24 साल बाद जब 2007 में टीम इंडिया 50 ओवरों के विश्वकप के लिए कैरीबियाई द्वीप में मैच खेलने गयी, तो 1.1 बिलियन की जनसंख्या वाला भारत देश, टीम से विश्व कप अपने देश में लाने की उम्मीद कर रहा था। परन्तु, राहुल द्रविड के नेतृत्व में स्टार स्टड इंडियन लाइन-अपबुरी तरह विफल रही। टीम एक ही जीत हासिल कर सकी जो कि बरमूडा के खिलाफ थी और उसके बाद टीम ग्रुप स्टेज से बाहर हो गई और अपने देश वापस आ गई। उसी वर्ष टी -20 विश्वकप के संस्करण का उद्घाटन देखा गया। वरिष्ठ सदस्यों में सेअधिकांश नेएम एस धोनी के  नेतृत्व वाली भारतीय टीम में युवा पीढ़ी को मौका देने का फैसला किया।युवा और कायाकल्प भारतीय टीम ने फाइनल तक पहुंचने के लिए शानदार प्रदर्शन किया, जहां भारत की  कट्टर प्रतिद्वंदीज टीम पाकिस्तान उनका इंतजार कर रही थी। भारत ने पाकिस्तान की टीम पर विजय प्राप्त की और टी -20 विश्व कप को अपने देश में लेकर आए। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका में मिली जीत ने एक नए युग की शुरुआत को चिह्नित किया क्योंकि पुराने दिग्गजो का प्रदर्शन समाप्त हो रहा था और क्रिकेट में उनके कैरियर का सूर्य अस्त हो रहा था।

भारत में आयोजित 2011 क्रिकेट विश्व कप का महत्व

जब भारतीय उपमहाद्वीप को 2011 क्रिकेट विश्व कप की मेजबानी करने का अधिकार दिया गया, तो इस टूर्नामेंट में ‘मास्टर ब्लास्टर’ को विश्व कप अपने हाथों में लेने के लिए एक आखिरी मौका बताया गया था। अनुकूल उप-महाद्वीप परिस्थितियों के साथ भारतीय टीम ने टूर्नामेंट में शानदार सफर तय किया सचिन तेंदुलकर ने आखिरी बार टूर्नामेंट की शोभा बढ़ाई। भारतीय टीम शानदार शुरुआत के लिए उतरी इसके साथ ही ‘क्रिकेट के भगवान’ ने पूरे टूर्नामेंट में महत्वपूर्ण योगदान दिया। मैन ऑफ द टूर्नामेंट रहे युवराज सिंह ने कई मौकों पर टीम को संभाला और अपनी शानदार गेंदबाजी और महत्वपूर्ण पारियों से टीम को जीत की ओर अग्रसर किया। भारत फाइनल में पहुंचा, जहां दूसरा उपमहाद्वीप विशाल श्रीलंका जैसी टीम अपनी 15 साल की लम्बी हार को समाप्त करने की प्रतीक्षा कर रही थीं। एक महत्वपूर्ण फाइनल में, जहां भारत ने 275 रनों की पारी का पीछा करते हुए वीरेंद्र सहवाग और सचिन तेंदुलकर के विकेट को जल्द ही गवा दिया, वहीं शांत रहने वाले नायक गौतम गंभीर और ‘कूल कप्तान ‘ एमएस धोनी ने बड़ी जवाबी लड़ाई लड़ी। गंभीर के वापस जाने के बाद, युवराज सिंह और एमएस धोनी ने भारतीय टीम की बागडोर को संभाला। विश्व कप को वापस घर लाने के लिए एमएस धोनी ने एक जोरदार छक्का लगाया जो लोगों से खचाखच भरे हुए वानखेड़े स्टेडियम के स्टैंड के अंदर जाकर गिरा। यह जीत सचिन तेंदुलकर को को समर्पित थी। जिन्होंने भारतीय टीम को अपने कंधे पर लगभग 2 दशकों तक संभाले रखा था और टीम ने उन्हें उचित तरिके से, सम्मान देते हुए, अपने कंधो पर उठा लिया।

जिस देश में क्रिकेट का भगवान हो वहां क्रिकेट का खेल एक धर्म है

1989 में पाकिस्तान दौरे के दौरान, जब मुंबई के उपनगरीय इलाके से एक 16 वर्षीय लड़का भारत के सबसे बड़े प्रतिद्वंदी पाकिस्तान के खिलाफ खेलने के लिए उतरा, तो सारी दुनिया इस बहादुर युवा लड़के को देख रही थी। वह सबसे तेज पाकिस्तानी गेंदबाज खिलाड़ियों में से एक के खिलाफ बल्लेबाजी करने के लिए उतरा था। वसीम अकरम  सुल्तान ऑफ़ स्विंग और एक युवा पदार्पण करने वाले  वकार यूनिस ने 16 वर्षीय भारतीय बल्लेबाज को अपनी  तेज स्विंग डिलीवरी के साथ घायल कर दिया। लेकिन, इस युवा लड़के द्वारा दिखाए गए साहस और विपक्षी पर किये गए पलटवार ने वर्ल्ड रिकोर्ड बना दिया और ध्यान दें, कि भले ही वह सिर्फ 15 रनों परआउट हो गया लेकिन उन्होंने  लाखों क्रिकेट प्रशंसकों का दिल जीत लिया। यह क्रिकेट के खेल की शोभा बढ़ाने वाले इस महानतम बल्लेबाजों में से एक बल्लेबाज  की शुरुआत थी। रिकॉर्ड टूटने लगे थे, क्योंकि वह लड़का तेजी से एक आदमी बन रहा था, ऐसा आदमी जो न केवल भारतीय क्रिकेट का बोझ उठा रहा था बल्कि पूरे देश की उम्मीदों का भार भी उसके कंधों पर था। इन्होंने अपने दो दशकों के कैरियर के दौरान शतकों की बौछार करते हुए 34000 से अधिक रन बनाए, कई रिकॉर्ड तोड़े और एक नया इतिहास रचा। यदि कोई इस 16 वर्षीय लड़के की यात्रा के बारे में लिखना शुरू करे, जो अपने पहले टेस्ट मैच में भारी चोट लगने के बाद क्रिकेट छोड़ सकता था उसने ‘क्रिकेट का भगवान’ बनकर उस खेल को हमेशा के लिए अपने नाम कर लिया। अरबों से अधिक आबादी में सम कालीन लोगों के बीच सम्मान जीतने वाला , प्रसिद्ध और महानतम व्यक्त , निश्चित तौर पर कोई और नही बल्कि एकमात्र सचिन तेंदुलकर हैं। जब भी हम कभी निराशा में देश को देखेगें, तो यह हमेशा उनकी याद दिलाएगा निश्चित रूप से सचिन तेंदुलकर का कैरियर भारतीय क्रिकेट का एक यादगार पल रहा है। संक्षेप में, ‘क्रिकेट का यह भगवान’ – सबसे अच्छा खिलाड़ी था, सबसे अच्छा है और हमेशा सबसे अच्छा रहेगा।

सारांश
लेख का नाम    –  भारतीय क्रिकेट में शीर्ष 10 परिभाषित क्षण

लेखक              –  वैभव चक्रवर्ती

विवरण             –  भारतीय क्रिकेट के कुछ यादगार पलों के बारे में जानकारी।

 

 

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भारतीय क्रिकेट में शीर्ष 10 परिभाषित क्षण
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भारतीय क्रिकेट के कुछ यादगार पलों के बारे में जानकारी।
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