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भारत में सरकारी स्कूलों की स्थिति

July 26, 2017


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govt-school-conditionमेरे कार्यालय जाने के रास्ते पर एक सरकारी स्कूल पड़ता है। स्कूल की छुट्टी के समय ही मैं अपने कार्यालय से वापस आती हूँ। स्कूल की छुट्टी के समय सड़क स्कूली बच्चों (शाम के स्कूल के लड़कों) से भरी रहती है। मेरी चिंता यातायात या किसी अन्य बिषय से संबंधित नहीं है, लेकिन मैंने इन स्कूली बच्चों (लकड़ों) को एक दूसरे के साथ बातचीत करते हुए या एक-दूसरे को जोर से बुलाते हुए देखा है। मैंने इन लड़कों के द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली भाषा भी सुनी है और वह भाषा बहुत अपमानजनक भाषा थी। इसके अलावा उनकी अव्यस्थित ड्रेस और उलझे तथा चिपके हुए बालों की शैली किसी व्यक्ति को उनकी दुर्दशा पर आकर्षित कर सकती है।

यहाँ आप मेरे साथ सहमत होंगे कि अगर प्रारंभिक शिष्टाचार जैसे- क्या बोलें या कैसे बात की जाए यह सब स्कूलों में पढ़ाया नहीं जाता है तो हम उच्च गुणवत्ता की शिक्षा की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं। ये बच्चे जिम्मेदार एवं अच्छे नागरिक कैसे बन सकते हैं? अधिकांश सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर खराब है या उस से भी बदतर है। यह वास्तव में चिंता की बात है और इसे सख्ती से तुरंत संभाला जाना चाहिए।

सरकारी स्कूल बनाम निजी स्कूल

इन सरकारी स्कूलों में क्या पढ़ाया जाता है और कौन पढ़ा रहा है यह भी जाँच के दायरे में आता है। जब हम निजी स्कूलों की शिक्षा की तुलना सरकारी स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा से करते हैं तो सरकारी स्कूलों की शिक्षा की गुणवत्ता का निजी स्कूलों की शिक्षा की गुणवत्ता के सामने कोई मुकाबला नहीं है। यहाँ तक ​​कि पाँचवीं कक्षा के अधिकांश छात्रों को पढ़ना नही आता है। अगर वे पढ़ सकते हैं तो पाठ को बिना समझे ही याद भी कर लेते हैं।

सरकारी स्कूलों में क्षमता से अधिक छात्रों का दाखिला किया जाता है। सरकारी स्कूलों में निजी विद्यालयों की तुलना में छात्र-शिक्षक का अनुपात अधिक है। द टाइम्स ऑफ इंडिया (टीओआई) द्वारा किए गए सर्वेक्षण के मुताबिक अधिकतम प्राथमिक स्कूलों में छात्र-शिक्षक अनुपात 50:1 है जिनमें एक शिक्षक कई भूमिकाएं निभाता है। कई सरकारी स्कूल केवल कागजात में ही मौजूद हैं, वास्तव में या तो उनका बुनियादी ढांचा पूरी तरह या आंशिक रूप से बर्बाद हो गया है या अत्यधिक जर्जर स्थित में है। ग्रामीण इलाकों में अधिकांश सरकारी स्कूल एक संपूर्ण स्कूल नहीं हैं बल्कि एक कमरे तक ही सीमित हैं। ऐसी समस्याएं या मुद्दे सरकारी स्कूलों में कम उपस्थिति और अधिक बच्चों के स्कूल छोड़ने की दर में बढ़ोतरी करते हैं।

बुनियादी सुविधाओं की कमी

एनडीटीवी ने एक सर्वे में यह खुलासा किया है कि भारत में अधिकांश सरकारी स्कूलों में शौचालयों और पीने के पानी की बुनियादी सुविधाओं की कमी है। शिक्षा के अधिकार (आरटीई) के कार्यान्वयन पर एनडीटीवी ने भारत के 13 राज्यों में 780 सरकारी स्कूलों का सर्वेक्षण किया। परिणाम बहुत शर्मनाक था उनमें से 63 प्रतिशत स्कूलों में कोई खेल का मैदान नहीं था। सर्वे किए गए स्कूलों में से एक तिहाई से अधिक स्कूलों की स्थिति बेहद खराब थी। ऐसी स्थित में अगर कोई छात्र शौचालय जाना चाहता है तो वह घर वापस चला जाता है। एनडीटीवी चैनल ने शौचालय की कमी को छात्राओं द्वारा अधिक मात्रा में स्कूल छोड़ने का मुख्य कारण बताया। स्थित इतनी खराब थी की 80% से अधिक स्कूलों में उम्र के अनुसार छात्रों का प्रवेश नहीं था।

शिक्षा का अधिकार, अधिनियम (आरटीई) प्राथमिक शिक्षा पूरी होने तक बच्चों को मुफ्त और आवश्यक शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है। यह अधिनियम छात्र शिक्षक अनुपात (पीटीआर) के साथ-साथ स्कूलों की इमारतों, बुनियादी ढाचों, स्कूल के कामकाज के दिनों, शिक्षकों के काम करने के घंटों, प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति को भी निर्दिष्ट करता है।

बहुत से सरकारी स्कूलों को लंबे समय से पुनःनिर्मित नहीं किया गया है। कभी-कभी छात्रों को कक्षा के बाहर फर्श पर बैठने के लिए कहा जाता है क्योंकि स्कूल की छत किसी भी समय गिर सकती है।

क्या आप ऐसे स्कूलों से अच्छी शिक्षा की उम्मीद कर सकते हैं?

सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की गुणवत्ता एक और बड़ी चिंता का विषय है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा देने वाले ज्यादातर शिक्षक खुद नहीं जानते कि वे क्या पढ़ा रहे हैं। कुछ दिन पहले मैंने एक ग्रामीण सरकारी स्कूल का वीडियो देखा जिसमें एक शिक्षिका स्कूल में छात्रों को पढ़ा रही थी। शिक्षिका बच्चों को सप्ताह के दिनों और साल के बारह महीनों की स्पेलिंग गलत पढ़ा रही थी। उन्होंने सन्डे (Sunday) की स्पेलिंग ‘संडी’ (Sundie) पढ़ाई और जब उन अध्यापिका जी से पूँछा गया कि एक साल में कितने दिन होते हैं तो उन्होंने 300 दिन बताये, यह बहुत चौकाने वाला तथ्य था।

यदि आपने सरकारी स्कूलों में शिक्षा ग्रहण नहीं की है तो आप कभी वोट डालने तो सरकारी स्कूलों में गए होंगे। मेरा मतदान केंद्र एक छोटे सरकारी स्कूल में था। हालांकि स्कूल में बड़ी कक्षाएं थीं लेकिन स्कूल के शौचालय खराब स्थिति में थे।

भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है, लेकिन हमारी शिक्षा प्रणाली अभी भी रेंग रही है। वैश्विक शिक्षा रिपोर्ट 2004 के अनुसार, भारत शिक्षा के क्षेत्र में 127 देशों में 106 वें स्थान पर है।

सामूहिक जिम्मेदारी

बच्चों को जिम्मेदार नागरिक बनाना न केवल शिक्षकों की जिम्मेदारी है बल्कि उनके माता-पिता का भी मुख्य कर्तव्य है। उन्हें अपने बच्चों की निगरानी करनी चाहिए। वे क्या बोलते हैं, वे कैसे स्कूल जाते हैं, उनकी ड्रेस कैसी है। उनके माता-पिता के द्वारा की गई आज की सख्ती उनके भविष्य में मदद करेगी।

इसके अलावा, बच्चों को जिम्मेदारी का एहसास कराना चाहिए और उनको समझदार बनाना चाहिए। सरकारी स्कूलों में नियमित रूप से आपस में शिक्षा के बढ़ावे के लिए, व्यक्तित्व विकास, संवाद, महत्वता पर सेमिनार या चर्चाओं का आयोजन करना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छात्र केवल परीक्षा देने के लिए नहीं बल्कि शिक्षा को समझने के लिए अध्ययन कर रहे हैं। सरकार की यह जिम्मेदारी होनी चाहिए की वह अच्छे निर्मित स्कूलों में प्रशिक्षित कर्मचारियों को शिक्षा देने का अवसर प्रदान करे।

हम इन सभी चीजों के लिए एक व्यक्ति या संस्था की शिक्षा की गुणवत्ता को दोषी नहीं ठहरा सकते हैं और अच्छे व्यवहार तथा चरित्रवान बच्चों का निर्माण करना शिक्षक, विद्यार्थी, सरकार और माता-पिता की सामूहिक जिम्मेदारी है। इस बड़े और प्रभावशाली परिवर्तन को लाने के लिए हर किसी को अपनी भूमिका निभानी चाहिए।

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