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भारत में अस्थमा की बढ़ती समस्या

April 30, 2018
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भारत में अस्थमा की बढ़ती समस्या

हाल ही में, ‘ब्रीथ ब्लू 15’ नामक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण में निष्कर्ष निकला था कि भारत के महानगरीय शहरों में बच्चों के फेफड़ें पूर्णता स्वास्थ नहीं हैं। कुल मिलाकर, 8-14 साल के आयु वर्ग के 2000 बच्चों के फेफड़ों की स्वास्थ्य स्थिति को जानने के लिए जाँच की गई थी। दिल्ली को 40% बच्चों के ‘संक्रमित’ फेफड़ों के कारण ‘खराब’ रेटिंग मिली, जबकि बेंगलुरू में 36%, कोलकाता में 35% और मुंबई में 27% बच्चों के फेफड़ें संक्रमित पाये गये हैं। यह कोई संयोग नहीं है कि ये शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से हैं। इन शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर हर समय उच्च बना रहता है, क्योंकि प्रदूषण के कई कारक है जैसे भीड़-भाड़, व्यापक अप्रवास, वाहनों की वृद्धि के कारण निकलता धुँआ और औद्योगिक गतिविधि।

अस्थमा एक चिरकालिक गैर-संक्रमणीय समस्या है जो फेफड़ों को प्रभावित करती है और यदि इसका समय पर इलाज न करवाया जाए, तो यह एक गंभीर अवस्था बन सकती है। विश्व अस्थमा दिवस प्रतिवर्ष मई महीने के पहले मंगलवार को मनाया जाता है और पूरे महीने को अस्थमा जागरूकता माह के रूप में देखा जाता है, इस महीने अस्थमा की स्थिति पर ध्यान दिया जाता है कि शहरी नियोजकों और आम जनता के फेफड़ें समान रूप से स्वस्थ हैं। अस्थमा सांस लेने में तकलीफ, घरघराहट, वायुमार्ग संकुचन और जकड़न आदि के कारण होता है। यह कुछ एलर्जी संबंधी कारक, एलर्जी पैदा करने वाला तत्व, जो आम तौर पर धूल, पराग, सिगरेट का धुआं, प्रदूषण, वायरल संक्रमण और अन्य अज्ञात व्यक्तियों के संपर्क के उत्पन्न होता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि दुनिया भर में 235 मिलियन (23 करोड़ 50 लाख) लोग अस्थमा बीमारी से पीड़ित हैं और कोई भी देश, चाहे विकसित या विकासशील हो इस समस्या के कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य बोझ से अछूता नहीं है। अस्थमा बच्चों के बीच होने वाली एक बड़ी गैर-संक्रमणीय बीमारी है और जो माताएं गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान करती हैं, या या गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान से निकलने वाले धुएँ के संपर्क में हैं। तो उनमें अस्थमा से पीड़ित बच्चों को जन्म देने की संभावना रहती है। जबकि अध्ययनों से निश्चित रूप से साबित नहीं हुआ है कि वायु प्रदूषण अस्थमा के नए मामलों का कारण बन सकता है, वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से पूर्व-मौजूदा समस्या निश्चित रूप से सोचनीय हो जाती है। देश भर में अस्थमा के साथ अन्य संबंधित श्वसन बीमारियाँ, क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज (सीओपीडी) बढ़ रही है, खासकर शहरी क्षेत्रों में अधिक बढ़ रही हैं।

अस्थमा का उपचार और रोकथाम

अस्थमा के उपचार के लिए दो तरीके हैः लक्षणों को देखकर इसे कम करना और आगे बढ़ने से रोकना। साल्बुटामोल दवा सांस लेने में तकलीफ और घरघराहट को कम करने का कार्य करती है। दूसरी तरफ अस्थमा की रोकथाम के लिए, स्टेरॉयड दवा दी जाती है जिससे यह फेफड़ों के वायुमार्ग की सूजन को कम करके आराम पहुँचाती है। इन दोनों दवाओं का उपयोग इन्हेलर के रूप में किया जा सकता है, हालांकि, गंभीर मामलों में, बीमारी के लक्षणों को कम करने के लिए मौखिक और इंजेक्शन द्वारा उपचार की आवश्यकता हो सकती है।

यदि आप अस्थमा से पीड़ित हैं और निम्न में से किसी भी समस्या को पाते है, तो इसका मतलब है कि अस्थमा नियंत्रण में नहीं है और इसके लिए आपके तत्काल विशेषज्ञ देखभाल की आवश्यकता हो सकती है:

  • यदि आप अस्थमा के लक्षणों को कम करने के लिए ‘रिलीवर (तकलीफ कम करने वाली दवा)’ का अधिक से अधिक उपयोग कर रहे हैं।
  • यदि आप सांस लेने में परेशानी महसूस करते हैं और छोटे-मोटे कार्य करने के बाद या आधी रात को खांसी आती हैं।
  • यदि आप लक्षणों के कारण लोगों से मिलना जुलने पर अपने आप को हर वक्त खोया हुआ महसूस करते है।
  • गंभीर मामलों में, यदि बार-बार इन्हेलर थेरेपी लेने के पांच मिनट के बाद भी लक्षणों में कमी नहीं आती है, या यदि आप सांस लेने में परेशानी के कारण बात करने में असमर्थ हैं या आपके होंठ नीले हो जाते हैं।

भारत में अस्थमा की समस्या को कम करने के लिए बहुत कुछ उपाय किये जा सकते हैं। शहरों में बढ़ती जनसंख्या को कम करना और तेजी से हो रहे शहरीकरण के सही मापदंडों की जाँच की जानी चाहिए। वाहनों से निकलने वाले धुएँ को मापना चाहिए और खराब वाहनों को सड़कों पर चलने से रोकना चाहिए शहरी क्षेत्रों में वनों की कटाई और पेड़ों को काटना कम किया जाना चाहिए, प्रत्येक शहर के हर क्षेत्र में एक हरा-भरा स्थान होना चाहिए। कानून और सार्वजनिक स्वास्थ्य संदेशों के माध्यम से धूम्रपान को कम किया जाना चाहिए।

कानून और नीति बनाने से ज्यादा, लोगों में पर्याप्त रूप से यह जागरूकता फैलानी होगी कि वे स्वयं वायु प्रदूषण को बढ़ने में अपना योगदान न करें। यातायात जंक्शनों पर वाहनों के इंजन को बंद करना, सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करना, और कार-पूलिंग का उपयोग, पर्यावरणीय कारणों में योगदान देने के प्रभावी तरीके साबित हो सकते हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि वायु प्रदूषण के कारण, हमारे बच्चों का स्वास्थ्य और भविष्य प्रभावित हो रहा हैं।