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सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में तथ्य

June 28, 2017


सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता या सिंधु सभ्यता या सिंधु नदी घाटी सभ्यता) दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है। सिंधु नदी बेसिन और इसकी उपनदियां वर्तमान में पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिम भारत से मिलती जुलती सभ्यता का विकास करती थीं। भारत में सबसे बड़ा हड़प्पा स्थल हरियाणा के राखीगढ़ी में और दूसरा सबसे बड़ा गुजरात के धोवालवीरा में स्थित है। ईंटों का अच्छी तरह से उपयोग करके नियोजित शहरों का निर्माण, और उचित जल निकासी प्रणाली इस सभ्यता की मुख्य विशेषताएं हैं। सिंधु घाटी सभ्यता की विस्तार अवधि भौगोलिक रूप से मिस्र या मेसोपोटामिया तक मानी जाती है। पुरातात्विक अनुसंधान और रेडियो कार्बन डेटिंग के आधार पर, सिंधु घाटी सभ्यता की उत्पत्ति 3300 से 1300 ईसा पूर्व के बीच की मानी जाती है। हालांकि इस अवधि से पहले काँस्य युग के दौरान लोग सिंधु नदी के तट पर रहते थे, लेकिन बाद में वे सुचारू रूप से सभ्य और शहरी समाजों में रहने लगे। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो सिंधु घाटी सभ्यता के दो प्रमुख शहर थे।

सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में तथ्य

सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा निर्माण-स्थान मोहनजोदड़ो है और सबसे छोटा निर्माण-स्थान अल्लाहदिनो है।

सिंधु घाटी सभ्यता की कुल आबादी पाँच लाख से अधिक थी। सिंधु घाटी सभ्यता के अधिकांश लोग शिल्पकार और व्यापारी थे। व्यापारी बहुत अमीर थे और इनको अन्य लोगों से अधिक राजनीतिक शक्तियाँ भी प्रदान की गई थीं।

सिंधु घाटी सभ्यता के कस्बे एक आयताकार स्वरूप में बने हुए थे। जिनमें अधिकांश घर दो मंजिल और बहुत विशाल थे। नगर नियोजन सिंधु घाटी सभ्यता की एक अनोखी विशेषता थी। वहाँ धान्यागार, नगर-दुर्ग, कब्रगाह के मैदान और स्नान करने वाले चबूतरे अच्छी तरह से बने हुए थे।

कस्बों में बड़े स्नानागारों का उपयोग किया जाता था। यद्यपि स्नान का सही उद्देश्य स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि इन्हें धार्मिक स्नान के लिए इस्तेमाल किया जाता था।

खड़े सिरों वाली ईंट सिंधु घाटी सभ्यता की एक और महत्वपूर्ण विशेषता है। मोहनजोदड़ो की मल निकास प्रणाली, अन्य सभ्यता के सभी शहरों में से सबसे बढ़िया मानी जाती है। निर्माण में इस्तेमाल की गई ईंटें 4:2:1 के अनुपात में बनाई गई थीं। जिनमें ईंटों की लंबाई 11 इंच, चौड़ाई 5.5 इंच और ऊँचाई 2.75 इंच थी।

लंबाई, द्रव्यमान और समय का मापन सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों द्वारा सही ढंग से किया गया था। इसके अलावा समान वजन और मापों की व्यवस्था इन लोगों के द्वारा ही विकसित की गई थी।

ये लोग धातु विज्ञान की कुछ नई तकनीकों को भी जानते थे। उन्होंने शीशा, ताँबा, टिन और काँस्य का उत्पादन करने के लिए इन तकनीकों का इस्तेमाल किया था।

सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान कला अपने चरम सीमा पर थी। टेरा-कॉटा खिलौनों के साथ काँसा, ताँबा और मिट्टी के उत्पाद खुदाई के दौरान पाए गए थे। मुहरों पर उकेरी हुई जानवरों की आकृतियों के प्रमाण इन सभी में सबसे अधिक उल्लेखनीय हैं। बिना कूबड़ वाले बैल या एक सींग वाले जानवर सबसे ज्यादा उपयोग में लाए जाने वाले जानवर थे।

हड़प्पा सभ्यता के तीन चरण हैं, जो पूर्व हड़प्पा, हड़प्पा और पश्चात-हड़प्पा हैं जिन्हें क्रमशः रोजदे, देसलपुर और सुरकोटाडा नाम से जाना जाता है।

लोथल, बालाकोट, सुक्ताजेंडोर और अल्लाहदिन (पाकिस्तान) हड़प्पा सभ्यता के मुख्य शहर थे जो उस समय के प्रमुख बंदरगाह थे।

विशेष रूप से लोथल के बंदरगाह के निर्माण से यह पता चलता है कि उस समय की अभियांत्रिकी कौशल अपने चरम पर थी।

हड़प्पा में टिकाऊ पहियों का इस्तेमाल किया गया था।

मोहनजोदड़ो में ज्यादातर सड़कें 10.5 मीटर चौड़ी बनी थीं। हड़प्पा में 30 फुट की चौड़ाई वाली सड़कें भी बनी थीं।

विद्वानों द्वारा बताया गया है कि सिंधु घाटी सभ्यता और मिस्र की नदी घाटी के बीच लगभग एक जैसी समानताएं थी। सबसे पहले दोनों सभ्यताएं नदी प्रणाली पर ही निर्भर थीं क्योंकि सिंधु नदी से सिंधु घाटी सभ्यता और नील नदी से मिस्र की सभ्यता का विकास हुआ था। यह भी बताया जा रहा है कि इन दोनों सभ्यताओं में लगभग जीवन शैली और रिवाज भी एक जैसे ही थे।

हड़प्पा में पत्थर की मूर्तिकला में चूना पत्थर और साबुन के पत्थर का प्रयोग किया जाता था।

वर्तमान में सिंधु घाटी सभ्यता के धार्मिक संस्कार और मान्यताओं के बारे में जानकारी सीमित है। लेकिन अध्ययनों के अनुसार यह स्पष्ट है कि इस सभ्यता में रहने वाले लोग विशेष रूप से प्रजनन देवताओं की पूजा करते थे। धार्मिक गतिविधियां पुरोहितों द्वारा की जाती थीं। अनुष्ठानवादी स्नान हड़प्पा सभ्यता का एक अहम हिस्सा था। कुछ मुहरों पर समाधि में बैठे लोगों की और विपरीतांग आसन में बैठे लोगों की तस्वीरें भी बनी हुई हैं।

इसके अलावा सिंधु घाटी सभ्यता में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा के बारे में बहुत कम जानकारी है लेकिन कुछ विद्वानों का मानना ​​है कि इनकी भाषा वैदिक लिपियों के समान थी।

सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का कारण

सिंधु घाटी सभ्यता की गिरावट के बारे में विद्वानों द्वारा दिया गया प्रमुख कारण नदी और प्राकृतिक आपदाओं जैसे सूखा, बाढ़ आदि के दौरान एक बदलाव था। मिस्र और मेसोपोटामिया के होने वाले व्यापार में अनबन भी एक अहम कारण था। कुछ विद्वान यह भी मानते हैं कि आर्य सभ्यता के साथ युद्ध भी उनके पतन का कारण हो सकता है।