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महात्मा गांधी : भारत में स्वच्छता और सफाई के अगुवाकार

October 1, 2018
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महात्मा गांधीः भारत में स्वच्छता और सफाई के अगुवाकार

गांधी जी ने एक बार कहा था कि, “हिंदुस्तानियों पर अक्सर यह आरोप लगाया जाता रहा है कि उनकी आदतें बहुत ही बेहुदा होती हैं और वे अपने घर तथा आस-पड़ोस को साफ सुथरा नहीं रखते हैं…लेकिन मुझे कुछ कड़वे अनुभव थे। मैंने देखा कि मैं जनता को सफाई के प्रति उनके कर्तव्यों को उतनी आसानी से नहीं गिना पा रहा था जितनी आसानी से उनको उनके अधिकारों के बारे में बता रहा था। कुछ जगहों पर तो मेरा तिरस्कार भी किया गया, पर कुछ जगहों पर मुझे विनम्र उदासीनता मिली। अपने आस पड़ोस को साफ रखने के लिए लोगों को मानसिक तौर पर तैयार होना बहुत ही ज्यादा था। इस काम के लिए लोगों से पैसों की उम्मीद रखने का तो कोई सवाल ही नहीं था। इन अनुभवों से मुझे पहले से कहीं बेहतर सबक मिला कि असीमित धैर्य के बिना लोगों से कोई भी काम करवाना असंभव था। यह सुधारक है जो कि सुधार को लेकर चिंतित है, न कि एक समाज, जिससे उसको विरोध, घृणा और यहां तक कि प्राणघातक उत्पीड़न के सिवा कुछ भी बेहतर चीज पाने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।”

वह अपनी छोटी उम्र में ही यह जान गए और पूरी जिंदगी ऐसा महसूस करते रहे। उनको पता था कि भारत में सफाई और स्वच्छता की स्थिति वास्तव में अच्छी नहीं है और ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त शौचालय की कमी के लिए उतने ही प्रयास किए जाने चाहिए जितने स्वराज्य प्राप्त करने के लिए। उन्होंने आगे कहा कि जब तक हम लोग, “अपनी गंदी आदतों से छुटकारा नहीं पा जाते और शौचालयों में सुधार नहीं कर लेते तब तक स्वराज्य का कोई महत्व नहीं हो सकता।” उन्होंने पहले दक्षिण अफ्रीका और फिर भारत में स्वराज्य के लिए संघर्ष करते हुए सफाई, स्वच्छता और कचरे के प्रभावी प्रबंधन के लिए अपना संघर्ष जारी रखा। सन् 1947 में आजादी हासिल करने के एक साल बाद गांधी जी की हत्या कर दी गई लेकिन सफाई और स्वच्छता के उनके विचार को लिखित और भावात्मक दोनों रूपों में लगातार फैलते रहे।

पहले तो यह केवल एक विचार था लेकिन सन् 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा इसको एक स्वच्छ भारत अभियान के रूप मे शुरू करने के बाद इसने राष्ट्रीय जन आंदोलन का आकार ले लिया। सन् 2014 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भारतवासियों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में ‘स्वच्छ भारत’ का भी जिक्र किया था। उन्होंने कहा, “हम महात्मा गांधी की 150वीं वर्षगांठ का जश्न कैसे मनाते हैं? सफाई और स्वच्छता महात्मा गांधी के दिल के सबसे करीब थी। क्या हम लोग, जब 2019 में महात्मा गांधी की 150वीं वर्षगांठ मनाएंगे तो हम अपने गाँव, शहर, इलाके, स्कूल, मंदिर अस्पताल और जो भी जगहें हमारे पास हैं वहाँ पर गंदगी का एक धब्बा तक न रखने का संकल्प नहीं लेते हैं? यह केवल सरकार ही नहीं बल्कि जनता की भागीदारी से होता है। इसीलिए यह हम लोगों को एक साथ मिलकर करना है।” इस राष्ट्रव्यापी स्वच्छता अभियान ‘स्वच्छ भारत अभियान’ को 2 अक्टूबर 2014 को लागू कर दिया गया था, इस योजना का उद्देश्य 2019 तक भारत को पूरी तरह से स्वच्छ बनाना था। मोदी ने कहा कि स्वच्छ भारत मिशन राष्ट्रभक्ति से प्रेरित और राजनीति से परे है। उनके इस विचार ने लोगों के विचारों को गांधी के स्वच्छता के विचारों में बदल दिया।

गांधी जी के जीवन में सफाई और स्वच्छता का महत्व

महात्मा गांधी की अगुवाई में भारत आजाद तो हो गया लेकिन स्वच्छ भारत की उनकी इच्छा अभी भी पूरी नहीं हुई। उन्होंने कहा था, “स्वतंत्रता से स्वच्छता अधिक महत्वपूर्ण है” और आगे कहा, “जब तक आप अपने हाथों में झाड़ू और बाल्टी नहीं लेते हैं, तब तक आप अपने कस्बों और शहरों को साफ नहीं कर सकते। सफाई और स्वच्छता गांधीवादी जिंदगी गुजारने का एक अभिन्न अंग था। उन्होंने सभी के लिए एक पूर्ण सफाई का एक सपना देखा था। उन्होंने शारीरिक कल्याण और एक स्वस्थ वातावरण के लिए सफाई को एक महत्वपूर्ण अंग माना था। इसलिए, स्वच्छता, सफाई और स्वास्थ्य के बारे में जानना बहुत जरूरी है। जो आदतें आदमी अपने बचपन में सीखता है वे उस व्यक्ति के साथ एक लंबा रास्ता तय करती हैं और उसकी शख्सियत का एक हिस्सा बन जाती हैं। उन्होंने इस तथ्य पर जोर दिया कि स्वच्छता लोगों के स्वास्थ्य में सुधार करती है। महात्मा गांधी ने सफाई और स्वच्छता के इस विचार को ध्यान में रखते हुए कहा था कि “मैं किसी को भी अपने गंदे पाँव के साथ मेरे मन से नहीं गुजरने दूंगा।”

हालांकि, गांधी ने स्वच्छता को छोड़कर बाकी कई पश्चिमी रीति-रिवाजों का मजाक उड़ाया। पश्चिम में रहते हुए वे लोगों के स्वच्छता के स्तर से काफी प्रभावित थे। यही देखकर गांधी भारत में स्वच्छता के लिए इतने उत्सुक हो गए थे। भारतीयों की गंदी आदतों की ओर इशारा करते हुए गांधी ने शौचालयों में सफाई रखने पर बल दिया और लिखा, “मुझे एक बिन्दु पर अपना बचाव करना होगा, जिसका नाम है – शौचालय सुविधाएं। मैंने करीब 35 साल पहले सीखा था कि शौचालय को बैठक कक्ष की तरह स्वच्छ होना चाहिए। यह मैंने पश्चिम से सीखा था। मेरा मानना है कि शौचालयों में स्वच्छता के बारे में पूर्व की तुलना में पश्चिम में नियमों को अधिक स्पष्ट रूप से देखा जाता है। हमारी कई बीमारियों की वजह हमारे शौचालयों की स्थिति और हमरी किसी भी जगह पर मलमूत्र करने की बुरी आदत है। इसलिए मैं जरूरत पड़ने पर मल-मूत्र त्यागने के लिए पूरी तरह से साफ सुथरी जगह की आवश्यकता में भरोसा करता हूँ। मैंने खुद को इसका आदी बना लिया है और चाहता हूँ कि सभी लोगों को ऐसा ही करना चाहिए। इस आदत का मैं इतना ज्यादा आदी हो गया हूँ कि अगर इसको बदलना चाहूँ तब भी नहीं बदल पाऊंगा। न ही मैं इसे बदलना चाहता हूँ।”

सफाई और स्वच्छता को लेकर गांधी जी को व्यक्तिगत रूप से खुद कई बार सफाई करते हुए देखा गया था। उनका ऐसा ही एक कार्य 1915 में देखने के मिला था जब वे हरिद्वार के कुंभ मेले में भाग लेने के लिए गए थे। वह वहां एक तीर्थयात्री नहीं बल्कि सफाई करने के लिए एक स्वयंसेवक के रूप में गए थे। वह पवित्र गंगा में डुबकी लगाने आए हजारों भक्तों की पवित्रता से काफी खुश थे लेकिन साथ ही वह लोगों की गंदी आदतों और हरिद्वार की गंदी स्थिति को लेकर बहुत ही परेशान थे। उन्होंने कहा, “मैं पूरी आशा और श्रद्धा से वहाँ गया था। लेकिन जब मैंने पवित्र गंगा और हिमालय की भव्यता को महसूस किया, इस पवित्र स्थल पर लोग जो कर रहे थे वह देखकर मैं ज्यादा प्रेरित न हो सका। मैं इतना परेशान हो गया कि मैं शारीरिक और मानसिक रूप से बिलकुल पागल हो गया…….इस पवित्र नदी का अपमान वह भी धर्म के नाम पर। बेपरवाह जाहिल पुरूष और महिलाएं प्राकृतिक क्रियाओं के  लिए इस पवित्र नदी के तट का उपयोग करते हैं जहाँ उनसे शांति से बैठकर, भगवान की तलाश करने की उम्मीद की जाती है। वे धर्म, विज्ञान और स्वच्छता के नियमों का उल्लंघन करते हैं।”

गांधी हिन्दू रूढ़िवादिता को स्वीकार नहीं करते थे और इसका सबसे पहला जिक्र उनकी जीवनी में मिलता है। जहाँ पर वे अपनी माता से पूछते हैं कि उन्हें किसी ‘अछूत’ को छूने से क्यों रोका जाता है। गांधी ने सफाई को छुआछूत के साथ जोड़ने के विचार का खंडन किया। गांधी को यह बात बहुत ही अनुचित लगी कि सफाई के काम को समाज में बहुत ही गिरी नजर से देखा जाए। उन्होंने भारतीयों में सफाई और स्वच्छता से जुड़ी शिक्षा की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि “सफाई कार्य भारत में एक विशेष कार्य होना चाहिए।” उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि हर कोई खुद में ही एक सफाई कर्मी होना चाहिए।

गांधी ने, गुजरात में एक राजनीतिक सम्मेलन के दौरान लोगों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि गंदी सड़कों, घरों और रास्तों से हमारे घरों में महामारी फैल सकती है। उन्होंने कहा, “अगर हम भारत से महामारी को खत्म कर देते हैं तो हम स्वराज्य के लिए और ज्यादा मजबूत हो जाएंगे।” उन्होंने साफ पानी पीने, अच्छी हवा में सांस लेने और खुले में शौच से निपटने के लिए स्पष्ट तरीकों का पालन करके महामारी को भारत से उखाड़ फेंकने पर जोर दिया।

गांधी के सफाई और स्वच्छता के विचार दक्षिण अफ्रीका से कैसे प्रभावित हुए?

जब गांधी दक्षिण अफ्रीका में थे तो छुआछूत और अस्वच्छता को खत्म करने का विचार अपने आप उनके मन में आया। उनके लिए स्वच्छता अभियान समाज का एक मौलिक हिस्सा था जिसमें एक जातिहीन समाज निर्मित करने की क्षमता होती है। अपने आप सफाई करने और छूआछूत के मुद्दे पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि, “हर कोई खुद का सफाई कर्मी है।” और यह विचारधारा एक स्वच्छ और स्वस्थ समाज का निर्माण करने और छुआछूत को खत्म करने लिए जरूरी है। गांधी भारतीयो को दिए गए ‘अशुद्ध ’ टैग को खत्म करने के लिए स्वच्छता को एक जरूरी घटक मानते थे। भारतीयों को पश्चिमी देशों में चलाए गए सभ्यता मिशन की सख्त जरूरत थी।

गांधी के सत्याग्रह अभियान में निजी और सार्वजनिक स्वच्छता के मुद्दों को लेकर उनकी चिंता शामिल थी। गोरों ने घोषणा कर दी थी कि भारतीय गंदे होते हैं और इनको अलग रखा जाना चाहिए, इस घोषणा को खत्म करना ही गांधी की प्राथमिकता बन गई थी। इससे निपटने के लिए उन्होंने विधानसभा को एक खुला पत्र लिखा कि भारतीय भी यूरोपीय लोगों की तरह साफ सुथरे रहने के लायक हैं बशर्ते कि उनको समान मौका और मान्यता मिलना चाहिए। हालांकि, गांधी को भारतीयों की जैवन शैली में स्वच्छता की कमी के बारे में पता था और भारतीयों को पूरी तरह से स्वच्छता पर विचार करने की जरूरत पर जोर दिया गया था। गांधी ने भारतीयों के साथ होने वाली अपनी बैठकों में छुआछूत के मुद्दों पर बात करते हुए सफाई और स्वच्छता से संबंधित मुद्दों का भी जिक्र किया।

दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए गांधी ने भारतीयों को अपने विचारों से अवगत करवाया और उन्हें शौच पर सूखी राख या धूल डालने और शौचालय को साफ और सूखा रखने के लिए प्रेरित किया। अपने ‘गाइड टू लंदन’ में रोजाना स्नान की जरूरत पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि “स्वच्छता भक्ति से बढ़कर है।” दूसरे लेख “अवर इनसेनिटेशन” में उन्होंने लिखा है कि “वीरों, स्वराज्य केवल स्वच्छता द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।”

निष्कर्ष

महात्मा गांधी को स्वच्छ भारत का आइकन चुनकर, भारत ने एक बार फिर से राष्ट्रपिता में अपना विश्वास जता दिया है। आमतौर पर एक क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़े बिना ही गांधी हर तरह से एक क्रांतिकारी थे। हर भारतवासी के जीवन में सफाई और स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए गांधी जी द्वारा किए गए प्रयास वाकई में तारीफ के लायक हैं। वह स्वच्छता की मशाल को भारत सहित कई देशों में वह क्रांति प्राप्त करने करने के लिए खुद लेकर गए जिसे वे देखना चाहते थे। अगले साल महात्मा गांधी की 150वीं वर्षगांठ मनाई जानी है। यह हर भारतीय की जिम्मेदारी है कि वह पर्यावरण संरक्षण और स्वस्थ भविष्य वाले भारत का उनका सपना पूरा करने के लिए एक स्वच्छ देश बनाने में बढ़चढ़ कर हिस्सा लें।

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महात्मा गांधी : भारत में स्वच्छता और सफाई के अगुवाकार 
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महात्मा गांधी को स्वच्छ भारत का आइकन चुनकर, भारत ने एक बार फिर से राष्ट्रपिता में अपना विश्वास जता दिया है। हर भारतवासी के जीवन में सफाई और स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए गांधी जी द्वारा किए गए प्रयास वाकई में तारीफ के लायक हैं।
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