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नहीं किया गया सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालनः दोषी कौन?

November 15, 2018
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सुप्रीम कोर्ट का फैसलाः कार्यान्वयन की कमी या दोषपूर्ण मानसिकता?

कोई भी स्थित हो फिर भी ऐसा नहीं है और न हो सकता है कि हम कानून और न्यायपालिका का सम्मान न करें। अदालतों का उल्लंघन करना अस्वीकार्य है, आलोचना की अनुमति है लेकिन उल्लंघन की नहीं। यह हमारे लोकतंत्र के आधार को हिलाकर रख देता है।

रियूवेन रिवलिन

रिवलिन ने इस बात का जिक्र इज़राइल को अपने जहन में रखते हुए किया होगा, लेकिन यह भारतीय परिदृश्य में भी महत्वपूर्ण है। 28 जनवरी 1950 (भारत के सुप्रीम कोर्ट के रूप में) को स्थापित, सर्वोच्च न्यायालय ने लगभग 70 वर्षों की अवधि में ऐतिहासिक सफर तय किया है। इसने हमें एक स्वतंत्र राष्ट्र (भारत के संघीय न्यायालय के रूप में) के रूप में देखा है, आपातकलीन स्थित को रोक कर एक ऐतिहासिक निर्णय पारित किया गया।

सर्वोच्च न्यायालय के लंबे और गौरवशाली इतिहास के बावजूद, बार-बार आत्मविश्वास को कम होते हुए देखा जा रहा है। नवीनतम घटनाओं में लोगों को सबरीमाला और पटाखों पर प्रतिबंध के फैसले का उल्लंघन करते हुए देखा जा रहा है, हर कोई आदेश का उल्लंघन कर रहा है। क्या ऐसा अधिकारियों द्वारा या लोगों की त्रुटिपूर्ण अवधारणाओं के कार्यान्वयन की कमी के कारण है?

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उपहास

सबरीमाला मंदिर

28 सितंबर 2018 को, जिसे कई लोगों द्वारा ऐतिहासिक निर्णय कहा जाएगा, सुप्रीम कोर्ट ने मासिक धर्म वाली हर आयु-वर्ग की महिलाओं के लिए सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया है। इसके बाद इस मामले पर पुनर्विचार करने के लिए विरोध प्रदर्शन और याचिकाओं के रूप में मंदिर की पवित्रता को बरकार रखने के लिए मंदिर के बाहर पुजारियों का जमावडा इकट्ठा हो गया।

जब अक्टूबर में सबरीमाला मंदिर पाँच दिन तक चलने वाली पूजा के लिए फिर से खोला गया तो सैकड़ो की संख्या में प्रदर्शनकारी यह सुनिश्चित करने के लिए उपस्थित हुए थे कि कोई भी महिला मंदिर के पीछे के दरवाजे से प्रवेश न कर सके। इसलिए, सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बावजूद, मंदिर में महिलाओं का प्रवेश प्रभावी ढंग से प्रतिबंधित है।

दिवाली में पटाखे जलाने पर प्रतिबंध

हमारी राजधानी की विषाक्त हवा वास्तव में एक राष्ट्रगत पहेली नहीं है। इसलिए दिवाली के त्यौहार से लगभग दो सप्ताह पहले, सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में पटाखे जलाने और उनकी बिक्री पर प्रतिबंध लगाया था। सुप्रीम कोर्ट ने केवल 2 घंटे पटाखे जलाने की अनुमति दी थी। इसके अलावा, एनसीआर में ग्रीन पटाखे के अलावा अन्य पटाखों की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था।

नतीजा क्या निकला?

दिवाली के बाद अगली सुबह, दिल्ली शहर ने इस वर्ष का सबसे खराब वायु गुणवत्ता सूचकांक दर्ज किया है। पुलिस अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि राजधानी में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन किया गया था। यहां तक कि मुंबई में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के उल्लंघन के 100 से अधिक मामलों को देखा गया।

दोषी कौन?

यहां दो उपलब्ध विकल्प हैं-

पहला, हम किसी भी कानून को उचित रूप से प्रभावी न होने के लिए अधिकारियों, सुप्रीम कोर्ट को दोषी ठहराते हैं कि ये सही तरीके से कार्य नही कर रहें है। या,

दूसरा, हम अपनी समस्या के मूल कारण तक पहुंचने की कोशिश करते हैं।

स्वाभाविक रूप से, हम भारतीयों में अपने दोष को दूसरों के कंधों पर थोपने की प्रवृत्ति होती है। जैसे कि दिल्ली शहर में दिवाली के बाद प्रदूषित हवा का स्तर और भी बढ़ गया है, इसलिए लोगों ने इस बात पर प्रकाश डालने में ज्यादा समय नहीं लगाया कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का कोई फायदा नहीं हुआ। इसके साथ ही निःसंदेह पुलिस अधिकारियों ने खुद इसके उल्लंघन को स्वीकार किया है। अगर अधिनियम को अधिक कठोरता से लागू किया गया था, तो निश्चित रूप से स्थिति नियंत्रण में होगी, है ना?

यह सच है कि, व्यवस्था में खामियां थीं। लेकिन यदि आप किसी अन्य दृष्टिकोण से इस परिदृश्य को देखते हैं, तो क्या यह सीमाहीन नहीं है कि नागरिकों को अदालत के फैसले की आवश्यकता है कि वे प्रदूषण न करें? देश भर में, लोगों को उनके मुंह को ढक के पटाखे फोड़ते हुए देखा गया था, कुछ ने मास्क भी पहन रखा था! आप नियम लागू कर सकते हैं। लेकिन, आप लोगों को उनकी स्वयं की विडंबनाओं से नहीं बचा सकते हैं।

निष्कर्ष

अधिकारियों के कार्यों में कमी पर सवाल उठाने में हमें समय नहीं लगेगा, लेकिन शायद अपनी स्वयं की आदतों को बदलने में कुछ समय लगेगा। यह सच है कि जहां शासकीय निकाय में कमी है, वहां हमें प्रश्न पूछना चाहिए और जवाब मांगना चाहिए। लेकिन, यह हमें अपनी निजी जिम्मेदारियों से दूर भागने का मौका नही देता है।

जब सबरीमाला मंदिर के भक्तों ने महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने और पूजा करने के उनके संवैधानिक अधिकार से इंकार कर दिया, तब वे असल में न्यायपालिका के खिलाफ भी खड़े हो गए। रिवलिन की तरह कहें तो, “अदालत के फैसले का उल्लंघन करना अस्वीकार्य है, आलोचना की अनुमति है, उल्लंघन की नहीं”। देश में उच्चतम न्यायिक निकाय को इस तरह से परिभाषित करना, एक-दूसरे को तर्कसंगत रखना एक लोकतांत्रिक देश में रहने का कोई तरीका नहीं है।

अंततः, यदि आप स्वयं एक अच्छे नागरिक नहीं हैं तो आप एक अच्छे देश की मांग नहीं कर सकते।

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नहीं किया गया सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालनः दोषी कौन?
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सबरीमाला मंदिर पर फैसला, दिवाली में पटाखे जलाने पर प्रतिबंध और इसी तरह कई अन्य फैसले एक आम बात है। लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले उल्लंघन कर दिया है। लेकिन, हम किसको दोषी ठहरा रहे है, कार्यान्वयन की कमी को, या फिर अपने खुद के दोषपूर्ण कार्यों को?
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