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भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के 11 प्रसिद्ध नारे

August 16, 2018
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भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के 11 प्रसिद्ध नारे

1857 के विद्रोह से, भारत की स्वतंत्रता की यात्रा बहुत ही कठिन और लंबी रहीं। एक शताब्दी से अधिक (1857-1947) समय तक संघर्ष करने के बाद, हम भारतीयों को हमारी स्वतंत्रता वापस मिली। हम जलियांवाला बाग नरसंहार को कैसे भूल सकते हैं जिसमें हजारों निर्दोष भारतीय मारे गए थे? सैकड़ों बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अपने रक्त और प्राणों को न्योछावर कर दिया था। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति को 72 साल पूरे हो चुके हैं, और अभी तक, हमारे स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा बोले गए प्रभावशाली शब्द हमारे अंदर एक नया जोश जागृत करने में कभी भी असफल नही हुए हैं। ये शब्द हमारे अंदर एक अजीब सी आग प्रज्वलित करते हैं और बार-बार हमारी मातृभूमि के लिए हमारे भीतर छुपे प्यार को उजागर करते हैं।

आइए हम हमारे स्वतंत्रता सेनानियों की यादों की सैरगाह की यात्रा करें और उनके द्वारा बोले गए उत्साहवर्धक शब्दों का आनंद लें-

“इंकलाब जिंदाबाद” – शहीद भगत सिंह

यह नारा उर्दू कवि और भारतीय स्वतंत्रता सेनानी मौलाना हसरत मोहनी द्वारा परिणत किया गया था, लेकिन सबसे प्रभावशाली भारतीय क्रांतिकारियों में से एक, सरदार भगत सिंह द्वारा लोकप्रिय हुआ। सरदार भगत सिंह वे व्यक्ति थे जिन्होंने 23 साल की छोटी उम्र में देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया था। “इंकलाब जिंदाबाद” नारे का अर्थ है “क्रांति अमर रहे”। यह नारा स्वतंत्रता संग्राम में भारतीयों की एकजुटता की एक बुलंद आवाज बन गया और जिसने स्वतंत्रता संग्राम में भारत के युवाओं को भाग लेने के लिए प्रेरित किया। इस नारे उनके अंदर देशभक्ति और स्वतंत्रता भावना जागृत की।

“तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” – सुभाष चंद्र बोस

इस नारे का शाब्दिक अर्थ है ” तुम मुझे खुन दो और मैं तुम्हें आजादी दूंगा”। यह नारा सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिया गया था, जिन्हें प्यार से नेताजी के रूप में जाना जाता था, जो आजाद हिंद फौज के संस्थापक थे। उन्होंने भारत के युवाओं से अपने स्वयं के तरीकों के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने का आग्रह किया। उन्होंने देश की आजादी के लिए लोगों को अधिक सक्रिय रूप से लड़ने के उद्देश्य से प्रेरित करने के लिए “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” का नारा दिया था। सुभाष चंद्र बोस वे व्यक्ति थे जिन्होंने हजारों युवाओं को मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना जीवन न्योछावर करने के लिए प्रेरित किया था।

“करो या मरो” – महात्मा गांधी

मोहनदास करमचंद गांधी, जिन्हें महात्मा गांधी के नाम से जाना जाता है, वे भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हुए विभिन्न आंदोलनों के अग्रणी नेता थे। 7 अगस्त 1942 को आयोजित हुई एआईसीसी (अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी) की एक बैठक के बाद महात्मा गांधी ने “करो या मरो” का नारा दिया था। अगले दिन 8 अगस्त 1942 को, भारत छोड़ो संकल्प एक भारी बहुमत के साथ पारित किया गया, जिसमें भारत में ब्रिटिश शासन को तत्काल समाप्त करने की घोषणा की गई। तो, रात को कांग्रेस प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए महात्मा गांधी ने कहा, “मेरे जेल जाने से कुछ नहीं होगा; करो या मरो” जिसका अंततः मतलब था कि या तो हम भारत को मुक्त करवाएंगे या हम इस प्रयास में मर जाएंगे।

सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा” – मोहम्मद इकबाल

मुहम्मद इकबाल एक प्रसिद्ध कवि, राजनेता, दार्शनिक और एक उल्लेखनीय विचारक थे। वे ब्रिटिश भारत में एक बैरिस्टर भी थे। उन्होंने लोगों के बीच राजनीतिक जागरूकता फैलाने के लिए कविताओं और गीतों का इस्तेमाल किया। इकबाल ने प्रसिद्ध गीत,”सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा”, लिखा था, जिसका इस्तेमाल देशभक्ति की भावना के साथ युवाओं को फिर से जीवंत करने के लिए एक नारा के रूप में किया गया था। इस गीत के संक्षिप्त संस्करण को अभी भी गाया जाता है और भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा अक्सर एक मार्चिंग गीत के रूप में इस पर अभिनय भी किया जाता है।

“वंदे मातरम्” – बंकिमचंद्र चटर्जी

“वंदे मातरम्”, जिसका अर्थ है “हे माँ तुझे प्रणाम”, एक भारतीय पत्रकार और कार्यकर्ता बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा लिखी गई एक कविता थी। बंकिमचंद्र चटर्जी वे व्यक्ति थे जिन्होंने इस कविता में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान भारत को देवी और मां के रूप में व्यक्त किया जिसे बाद में रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा एक गीत के रूप में अनुवादित किया गया। कविता के पहले दोहे को वर्तमान समय में भारत के राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया गया है। “वंदे मातरम्” पंक्ति का प्रयोग अक्सर मातृभूमि को सम्मानित करने के लिए किया जाता है।

“सत्यमेव जयते” – पंडित मदन मोहन मालवीय”

इस नारे का मूल मुंडका उपनिषद से प्रसिद्ध मंत्र में निहित है। “सत्य की ही जीत होती है ” इस वाक्यांश का शाब्दिक अर्थ है जिसे न केवल भारत के राष्ट्रीय आदर्श वाक्य के रूप में अपनाया गया है बल्कि हमारे राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे अंकित भी किया गया है। यह नारा पंडित मदन मोहन मालवीय, जो कि एक कार्यकर्ता और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक थे, जिन्होंने 1918 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सम्मेलन में अपने राष्ट्रपति के संबोधन में इस नारे का इस्तेमाल किया था। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि यह नारा जनसाधारण तक पहुंचेगा और उन्हें प्रेरित करेगा।

“स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूँगा” – पं० बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान असंख्य भारतीयों के बीच देशभक्ति की चिंगारी प्रज्वलित करने के लिए कहा था, “स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूँगा”। बाल गंगाधर तिलक वही हैं जिन्होंने युवाओं की शिक्षा पर जोर दिया और समाज के सभी वर्गों के लोगों को संगठित किया। इस लोकप्रिय राष्ट्रभक्त, समाज सुधारक और वकील ने बड़ी ही दृढ़ता के साथ मानवाधिकारों की वकालत की। उनके इस नारे ने लोगों को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया और उनके बीच देश के प्रति प्रेम भावना को उत्पन्न भी किया।

“अब भी जिसका खून नहीं खौला खून नहीं वो पानी है, जो देश के काम न आये वो बेकार जवानी है” – चंद्रशेखर आजाद

स्वतंत्रता आंदोलन के संबंध में चंद्रशेखर आजाद की विचारधारा अत्यंत क्रांतिकारी थीं। वे जनता के बीच “आजाद” नाम से लोकप्रिय थे। आजाद बहुत छोटी उम्र में ही स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए और विभिन्न हिंसक आंदोलनों में भाग लिया। आजाद ने अपनी मातृभूमि को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त करने की कसम खाई। अंग्रेजों द्वारा कभी भी पकड़े न जाने वाले आजाद ने युवाओं को अत्यधिक प्रेरणादायक नारे देकर उनमें क्रांतिकारी बदलाव किया।

इस नारे ने भारतीयों में देश के लिए लड़ने की भावना को प्रज्वालित किया।

“सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाज़ु-ए-क़ातिल में है” – राम प्रसाद बिस्मिल

राम प्रसाद बिस्मिल की इन पंक्तियों को उनकी देशभक्ति पर आधारित कविता से लिया गया है जिसे बाद में भारत में ब्रिटिश प्राधिकरण के फैसले को चुनौती देने के लिए एक नारे के रूप में इस्तेमाल किया गया था। इस नारे ने उस समय की आवश्यकता को उजागर किया और लोगों को ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ स्वतंत्रता के लिए लड़ने का आग्रह किया। बिस्मिल उस समय के सबसे प्रतिभाशाली देशभक्ति लेखकों में से एक थे।

“आराम हराम है” – जवाहरलाल नेहरू

भारत के पहले प्रधानमंत्री और भारतीय राजनीति के केंद्र-बिंदु जवाहरलाल नेहरू भी हताश स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे, जो अपनी मातृभूमि को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराना चाहते थे। नेहरू के मुताबिक जब तक भारत को आजादी नहीं मिल जाती, तब तक उनके लिए राहत की एक सास लेना भी हराम है।

“खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है” – अशफाकुल्ला खान

काकोरी काण्ड से संबंधित एक प्रमुख व्यक्ति अशफाकुल्ला खान, शाहजहांपुर से एक स्वतंत्रता सेनानी थे और रामप्रसाद बिस्मिल के करीबी परिचित भी थे। काकोरी काण्ड में पकड़े जाने के बाद उन दोनों को चोरी के लिए मौत की सजा दी गई और उन्हें शहीद कर दिया गया। अशफाकुल्ला खान उस समय अत्यधिक उत्साही थे; उन्होंने युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए एक नारे के रूप में सरफरोशी की तमन्ना कविता से “खून से खेलेंगे होली गर वतन मुशकिल में है” इन पंक्तियों का उपयोग किया।

 

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