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अभिनव बिंद्रा ने निशानेबाजी से लिया संन्यास

September 5, 2016


अभिनव बिंद्रा ने शूटिंग से संन्यास की घोषणा

अभिनव बिंद्रा ने शूटिंग से संन्यास की घोषणा

ओलिम्पिक में भारत के लिए इकलौता व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतने वाले अभिनव बिंद्रा ने पेशेवर खिलाड़ी के तौर पर निशानेबाजी से संन्यास ले लिया है। एक अधिकृत बयान में उन्होंने कहा कि अब आगे बढ़ने का वक्त आ गया है। ताकि अगली पीढ़ी को नेतृत्व सौंपा जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि यह दिन उनके लिए बेहद भावुक है। उन्हें जो करना सबसे ज्यादा पसंद है, वे अब नहीं करेंगे। वैश्विक स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व और नहीं करेंगे। बिंद्री ने रियो ओलिम्पिक्स में भी भाग लिया था। भारत की पदक तालिका में एक पदक जोड़ने के काफी करीब थे। उन्हें इस बात का दुख तो हो रहा होगा, लेकिन हरियाणा के फरीदाबाद के एक फाइव-स्टार होटल में आयोजित रिटायरमेंट सेरेमनी में जुटे भारतीय मीडिया के सामने उन्होंने इसे जाहिर नहीं होने दिया।

रियो पर बिंद्रा बोले

रियो में अपनी नाकामी पर बिंद्रा बोले कि भले ही मामूली अंतर से उनका कांस्य पदक उनके हाथ से निकल गया, लेकिन उन्होंने इस पूरी प्रक्रिया में काफी कुछ सीखा। यह अपने आप में एक खास अनुभव था। बिंद्रा 20 साल तक पेशेवर निशानेबाज रहे। उन्होंने भारतीय निशानेबाजी के इतिहास में सुनहरे पन्ने जोड़े हैं। विनम्र चैम्पियन भले ही यह नहीं माने कि उन्होंने इतना बड़ा कुछ हासिल किया है, लेकिन हकीकत तो बाकी लोग जानते ही हैं। बिंद्रा भी चाहते हैं कि उनकी सफलता का आकलन दूसरे लोग करें। यह भी सच है कि उनके योगदान और उपलब्धियों से कोई इनकार नहीं कर सकता। उन्होंने नेशनल राइफल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एनआरएआई) को करियर के हर पड़ाव पर दिए सहयोग के लिए आभार भी जताया। 2008 बीजिंग ओलिम्पिक्स के स्वर्ण पदक विजेता ने न केवल अपने बल्कि अन्य साथियों को मिले सहयोग के लिए भी नेशनल एसोसिएशन को आभार दिया।

बिंद्रा ने एनआरएआई के प्रेसिडेंट रनिंदर सिंह की भी भूरि-भूरि तारीफ की। उन्होंने बताया कि किस तरह सिंह के नेतृत्व में खेल ने देश में प्रगति की है। खुद का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि कड़ी मेहनत हर जगह जरूरी है। मैं खुद भी कड़ी मेहनत के बूते ही यहां तक पहुंचा। मैंने अपना सर्वस्व निशानेबाजी को दिया और बदले में उससे भी ज्यादा पाया है। ऐसा भी मिला जिसकी कल्पना तक मैंने नहीं की थी।

बिंद्रा ने यह भी कहा कि उन्होंने अपने करियर से समर्पण, कड़ी मेहनत और निरंतरता सीखी है। उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि ओलिम्पिक खेलों की ओर भारत का नजरिया बदल रहा है। भले ही इसकी गति धीमी हो, यह बेहद सकारात्मक है।

अभिनव पर रनिंदर ने क्या बोलाः

समारोह के दौरान एनआरएआई ने अभिनव बिंद्रा को सम्मानित भी किया। रनिंदर सिंह ने कहा कि संगठन की ओर से यह छोटा-सा प्रयास है, बिंद्रा की स्वर्णिम उपलब्धियों के बदले आभार जताने का। उन्होंने बिंद्रा को असाधारण खिलाड़ी तो कहा ही, साथ में यह भी कहा कि निशानेबाज ने जो भी सीखा है उसके लिए एकाग्रता और समर्पण बेहद जरूरी है।

बिंद्रा का सफर

33 वर्षीय भारतीय निशानेबाज बिंद्रा का सफर सिडनी 2000 के ओलिम्पिक से शुरू हुआ था। अब तक वह 5 में से 3 ओलिम्पिक फाइनल्स में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। सिडनी और लंदन में वे फाइनल्स तक नहीं पहुंच पाए थे। वे 10 मीटर एयर राइफल सेग्मेंट में लिजेंड हैं। उनके साथी प्रसिद्ध ट्रैप शूटर मानवजीत सिंह ने कहा कि बिंद्रा न केवल विश्व चैम्पियनशिप बल्कि एशियन गेम्स और कॉमनवेल्श गेम्स में भी सफल रहे हैं। सिंह जब यह कहते हैं तो बिल्कुल सही कहते हैं कि भारत के लिए निशानेबाजी में जो बिंद्रा ने किया, उसकी बराबरी कोई और
निशानेबाज नहीं कर सकता।

भारत में ओलिम्पिक संस्कृति पर बिंद्रा के विचार

अगस्त 2016 में बिंद्रा एनआरएआई रिव्यू कमेटी के प्रमुख बने। यह समिति इस बात की समीक्षा करने वाली है कि ओलिम्पिक्स में निशानेबाजी का एक भी मेडल भारत क्यों नहीं जीत पाया। एनआरएआई में अपनी स्थिति के बारे में बिंद्रा ने यह साफ कर दिया कि भले ही कमेटी की रुचि इतिहास में झांकने की हो, लेकिन उन्हें व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि ऐसा नजरिया गैरजरूरी है।

उन्हें लगता है कि यदि भारत को अगले ओलिम्पिक्स में बेहतर प्रदर्शन करना है तो यह बेहद जरूरी है कि जमीनी स्तर पर खिलाड़ियों को तलाशकर उन्हें चैम्पियन बनाने के लिए तैयार किया जाए। इसके लिए निरंतर प्रयासों की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि ओलिम्पिक गेम्स का चैम्पियन बनाने में कम से कम 7-8 साल का वक्त लगता है। ऐसे में भारत को 2024 के ओलिम्पिक्स को ध्यान में रखकर कदम उठाने चाहिए।

अंत में…

भारत की खेलों में महत्वाकांक्षाओं पर एक धब्बा यह है कि क्रिकेट का प्रबंधन देश में सबसे ज्यादा पेशेवर तरीके से किया जाता है। यह बात अलग है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त लोढ़ा समिति ने क्रिकेट प्रबंधन की भरपूर आलोचना की है। भारत में अन्य खेलों, खासकर ओलिम्पिक खेलों के हालात पर बड़े-बड़े अध्याय लिखे गए हैं।

निशानेबाजी की बात करें तो किसी को भी आश्चर्य होगा कि एक समिति बनाने और बिंद्रा के कद के किसी व्यक्ति को नियुक्त करने से क्या खेल में सुविधाओं और फंडिंग की कमी दूर हो जाएगी। जयदीप बनर्जी जैसे कई लोग इस मुद्दे को उठा चुके हैं। इतना ही नहीं, बिंद्रा ने यह भी साफ कर दिया है कि वे देश में आजीविका के लिए स्पोर्ट्स मेडिसिन के क्षेत्र में काम करेंगे। भारत में इन मुद्दों पर जागरुकता फैलाएंगे। इससे हालात सुधरेंगे लेकिन क्या इतना काफी है? आखिरकार, बिंद्रा को तो अपने फार्महाउस पर आधुनिकतम सुविधाएं प्रैक्टिस करने को मिली। वह एक रईस परिवार से थे। लेकिन इस खेल से जुड़े अन्य खिलाड़ियों को तो यह सुविधाएं नहीं मिलेंगी, उनका क्या?

यह ऐसा सवाल है, जिसे दीपा कर्माकर जैसे खिलाड़ी अच्छे-से समझते हैं। रियो से लौटने के बाद उन्होंने उम्मीद जताई कि उनकी सफलता से कम के कम केंद्रों में बेहतर सुविधाएं मिल सकेंगी। हम तो सिर्फ उम्मीद ही कर सकते हैं कि बिंद्रा के खेल प्रबंधन में आने के बाद भारत में ओलिम्पिक खेलों के हालात सुधरेंगे।

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