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भारत में बाल सुरक्षा

March 13, 2018
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वर्ष 2007 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था, कि “महिलाओं और बच्चों के अधिकार तथा उनकी आकांक्षाओं का एक समावेशी और न्याय संगत समाज के प्रति हमारे अभियान में सर्वोपरि महत्व है। “देश में किए गए बहुत से उपायों के अलावा, शायद ही कभी भारतीयों ने यह सवाल पूछा होगा कि मेरा बच्चा कितना सुरक्षित है?

भारत में, बालशोषण को काफी गलत समझा जाता है। अधिकांश माता-पिता सुरक्षा शर्तों से परे देखभाल करने में असफल रहते हैं। शारीरिक हिंसा से लेकर यौन शोषण, कुपोषण से लेकर भावनात्मक उपेक्षा तथा शोषण के कारण भेदभाव आदि जैसे बाल शोषण के अनेक रूप हो सकते हैं। हमारा देश, बच्चों के साथ हो रहे शोषण और उपेक्षा के विभिन्न रूपों से जूझ रहा है।

बाल-श्रम

देश के बाल-श्रम परिदृश्य की एक झलक दिल दहला देने वाली है। वर्ष 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, देश में 5 से 14 वर्ष की उम्र के बीच काम करने वाले बच्चों की संख्या 43.53 लाख है। हालांकि, विभिन्न गैर सरकारी संगठनों का मानना है कि बाल-श्रमिकों की संख्या आधिकारिक संख्या से कहीं अधिक है। बाल-श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम की उपस्थिति के बावजूद, यह अनुमान लगाया गया है कि लगभग 18 व्यवसाय और 65 प्रक्रियाएं,जो खतरनाक हैं तथा जिसमें बाल-श्रम वर्जित है, उनमें नियमित रूप से 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे काम कर रहे हैं। माचिस, पटाखे और कीमती पत्थर काटने वाले क्षेत्र के निर्माण को कुछ खतरनाक व्यवसायों के रूप में उजागर किया जाना चाहिए, जो बच्चों को रोजगार देते हैं। कृषि के क्षेत्र में लगभग 60 प्रतिशत बाल-श्रम देखने को मिलता है। देश में बाल-श्रम का प्रमुख कारण गरीबी, सामाजिक सुरक्षा तथा योग्यता की कमी है। यूनिसेफ (संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपात निधि) के अनुसार, दुनिया में सबसे अधिक भारत में बाल-श्रम देखने को मिलता है। भारत में घरेलू-श्रम बड़े पैमाने पर है और जब तक इसके दुरुपयोग की घटनाओं के कुछ मामले मीडिया तक नहीं पहुँचते, तब तक इसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं किया जाता है।

बाल-तस्करी

वर्ष 2014 की एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रतिवर्ष लगभग 135,000 बच्चों की तस्करी होने का अनुमान लगाया गया है। तस्करी वाले बच्चों को गुलामी, घरेलू नौकरी करने, भीख माँगने के लिए मजबूर किया जाता है या सेक्स उद्योग में बेच दिया जाता है। अक्सर दूरदराज के गाँवों और अधिकतर गरीब परिवारों के बच्चों का अपहरण होता है। बाल-तस्करी उद्योग भारत के लिए बहुत शर्म की बात है, लेकिन फिर भी पुलिस के द्वारा इस मामले पर बहुत कम काम किया गया है। कई राज्यों में, शक्तिशाली लोग अवैध तस्करी का प्रबंधन करते हैं तथा कानूनी प्रतिबंधों से बचने के लिए माता-पिता और पुलिस को खरीद लेते हैं। चाइल्ड लाइन इंडिया के अनुसार, प्रतिवर्ष लगभग 1,000 से 1500 तक बच्चे भारत से सऊदी अरब, हज के दौरान भीख माँगने के लिए ले जाए जाते हैं। आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में बाल तस्करी सबसे अधिक है।

बाल यौन शोषण

यौन शोषण भारतीय बच्चों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के सबसे बड़े खतरों में से एक है। देश में बाल यौन शोषण (सीएसए) के स्तर में बढ़ोत्तरी हो रही है। देश के लगभग 10 प्रतिशत शहरी बच्चे बेघर हैं तथा ऐसा माना जाता है कि इसमें से हर दो शहरी बेघर बच्चों में से एक यौन शोषण का शिकार होता है। देश बाल यौन शोषण (सीएसए) की भयानक वास्तविकता की गिरफ्त में है। हाल ही की एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो वर्षों से प्रतिदिन बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के लगभग आठ मामले दर्ज होते हैं, लेकिन उनमें से लगभग 24 प्रतिशत मामले ही दोषपूर्ण साबित हो पाते हैं। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, सीएसए के मामलों में लड़के भी लड़कियों के समान जोखिम उठाते हैं। भारत के 13 राज्यों के एक अध्ययन के अनुसार, 69 प्रतिशत बच्चों का शारीरिक रूप से शोषण किया गया था, जिनमें 54.6 प्रतिशत लड़के शामिल थे। बाल यौन शोषण के मामले में, 88.6 प्रतिशत बच्चों का उनके माता-पिता या परिवार के करीबी सदस्यों द्वारा शोषण किया गया था। ज्यादातर तस्करी शादी के नाम पर होती है, जहाँ 14 वर्ष से कम उम्र की युवा लड़कियों को वृद्ध पुरुषों के साथ से विवाह करना पड़ता है।

कुपोषण और रोग प्रतिरक्षण

हालांकि कुपोषण शहरी क्षेत्रों और मध्यम वर्ग में स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देता है, लेकिन यह हमारे देश के बच्चों के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक है। पूरे विश्व की अपेक्षा हमारे देश में लगभग 30 प्रतिशत कुपोषित बच्चे रहते हैं। निवारण करने योग्य बीमारी का नियंत्रण एक अन्य क्षेत्र है, जहाँ भारतीय बच्चे अत्यंत संवेदनशील हैं। सरकार द्वारा चलाए गए बड़े अभियान के लिए धन्यवाद, क्योंकि कई टीके ऐसे हैं, जो पोलियो को जड़ से खत्म करके बहुमूल्य जीवन को बचा सकते हैं, लेकिन अज्ञानता या गरीबी के कारण लोगों द्वारा इनका पालन नहीं किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, भारत में प्रत्येक मिनट में लगभग 4 बच्चों की मौत हो जाती है, इनमें से अधिकतर बच्चे निवारणीय स्थितियों तथा निमोनिया, मलेरिया, दस्त, खसरा, टाइफाइड आदि जैसे रोगों का शिकार होते हैं। देश के करीब 21 लाख बच्चे 5 वर्ष की अवस्था के बाद मर जाते हैं। राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन के अनुसार, ‘‘शहर के 46 प्रतिशत गरीब बच्चे कम वजन वाले होते हैं और लगभग 60 प्रतिशत शहरी गरीब बच्चों की एक साल पूरा होने से पहले प्रतिरक्षण-क्षमता नष्ट हो जाती है।’’ निस्संदेह संघ और राज्य सरकार द्वारा माँ और बाल स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुत कुछ किया जा रहा है, लेकिन फिर भी गरीब बच्चे कुपोषण की चपेट में हैं।

कन्या भ्रूणहत्या तथा लिंग भेदभाव

सशक्त महारानियों और महिला नेताओं की विरासत पर गर्व होने के बावजूद भी देश की लड़कियाँ सुरक्षित नहीं हैं, क्योंकि देश में लड़कियों को कन्या भ्रूणहत्या और लिंग भेदभाव जैसी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। इतना ही नहीं, कई राज्यों में लिंग अनुपात विषम और आपत्तिजनक है। समाचार रिपोर्टों के अनुसार, वर्ष 2014 में भार में लिंग अनुपात 1000 पुरुषों पर 943 महिलाएं थी। कुछ राज्य जैसे हरियाणा में लिंग अनुपात 1000 पुरुषों पर 879 महिलाओं का है, जो राष्ट्रीय औसत से भी काफी कम है। लिंग आधारित भेदभाव इससे संबंधित मुख्य बुराई है। भारत में अक्सर लड़कियाँ शिक्षा और स्वस्थ पोषण से वंचित रहती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान जागरूकता पैदा करने और इस बुराई का डटकर सामना करने में एक बड़ा कदम माना जाता है, लेकिन फिर भी अभी भारत को इस क्षेत्र में बहुत प्रगति करना बाकी है।कन्या भ्रूणहत्या की संख्या आश्चर्यजनक रूप से, ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरों में काफी अधिक है।

चाइल्डलाइन – 1098

चाइल्डलाइन इंडिया फाउंडेशन (सीआईएफ) ने वर्ष 1996 में संकट के समय बच्चों की मदद करने के लिए, चाइल्डलाइन नामक एक टोल फ्री हेल्पलाइन की शुरुआत की थी। यह पहल केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय (एमडब्ल्यूसीडी) द्वारा शोषण का शिकार हुए बच्चों को समर्पित है। इस हेल्पलाइन काटोल फ्री नंबर 1098 चौबिस घण्टे उपलब्ध रहता है तथा यह देश के 291 शहरों या जिलों के जरूरतमंद बच्चों को सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से जारी किया गया है। इसकी स्थापना के बाद से 3 करोड़ 10 लाख से अधिक कॉल आ चुकी हैं और जिसके परिणामस्वरूप बाल सुरक्षा और संरक्षण के क्षेत्र में एक महान प्रगति हुई है।

आप क्या कर सकते हैं?

सूचना दें- अपने आसपास के क्षेत्र में उपस्थित बच्चों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए संदिग्ध बाल शोषण के सभी मामलों में पुलिस, चाइल्डलाइन या उचित गैर सरकारी संगठन को सूचित करें।

दान करें– अक्षय पात्र फाउण्डेशन जैसे गैर-सरकारी संगठनों में उदारतापूर्वक दान करें, जो रोजाना 1.4 लाख बच्चों को दोपहर का भोजन उपलब्ध कराने में मदद करते हैं।

स्वयंसेवक बनेंअपनी इच्छा से प्रत्येक सप्ताह के कुछ घंटे टीच फॉर इंडिया प्रोग्राम के साथ बिताएं, जिसका उद्देश्य वंचित बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है।

प्रोत्साहित करें– अपने परिवार और दोस्तों के माध्यम से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे अभियानों को कार्यक्रमों के तहत बालिकाओं को प्रेरित करने के लिए बढ़ावा दें।

संबंध स्थापित करें- अपने पास-पड़ोस के बच्चों की सुरक्षा और सुरक्षा के उद्देश्य से काम करने वाले विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों और संस्थाओं के साथ संबंध स्थापित करें।

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