Home / / वर्तमान भारत में पर्यावरणीय मुद्दे

वर्तमान भारत में पर्यावरणीय मुद्दे

June 23, 2017


Rate this post

Environmental-Issues-in-India-hindi1.3 अरब से अधिक की आबादी के साथ, भारत जल्द ही चीन को सर्वाधिक आबादी वाले देश के रूप में मात देने के लिये तैयार हो गया है। आज भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती आबादी वाला देश है, जबकि पर्यावरण और पारिस्थितिकी के संरक्षण में सबसे पीछे है। आज हमारा देश कई पर्यावरणीय समस्याओं से ग्रस्त है जो पिछले केवल कुछ दशकों से काफी बढ़ी हुई हैं। यह सही समय है जब हम इन मुद्दों पर प्रकाश डालें क्योंकि इन समस्याओं को नकारना कोई समाधान नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं की दौड़ में शामिल होने के साथ भारत को उस पथ का अनुसरण भी करना चाहिए जो पर्यावरण को पोषण प्रदान करता है। पर्यावरण के प्रति हमारी अनदेखी तबाही पैदा कर सकती है और एक ऐसी क्षति हो सकती है जिसकी कभी भरपाई ना की जा सके। इस प्रकार हमें पर्यावरण से होने वाली क्षति से पहले ही जागरूक हो जाना चाहिये। वैसे भी काफी देर हो चुकी है।

यहाँ पर भारत की कुछ ऐसी पर्यावरणीय समस्याएं हैं जिनका देश सामना कर रहा है।

वायु प्रदुषण

वायु प्रदूषण, भारत को प्रभावित करने वाली सर्वाधिक बुरी विपत्तियों में से एक है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2040 तक देश में वायु प्रदूषण में अधिक बढ़ोतरी के कारण लगभग 9 लाख मौतें होने की उम्मीद हैं। वायु प्रदूषण के कारण औसत जीवन की संभावनाएं लगभग 15 महीने कम हो सकती हैं। विश्व स्तर पर वायु प्रदूषण के मामले में भारत 20 में से 11 प्रदूषित शहरों का घर भी माना जाता है। 2016 के पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक की रैंकिंग के अनुसार, वायु प्रदूषण के मामले में भारत 180 देशों में से 141 वाँ स्थान रखता है।

भूजल स्तर में गिरावट

भूगर्भ जल स्तर में गिरावट देश में खाद्यान्न सुरक्षा और आजीविका के लिए सबसे बड़ा खतरा है। दशकों से भूगर्भ जल स्तर तक पहुँच बनाने और उपयोग करने में काफी मुश्किलें आ रही हैं। समाचार रिपोर्टों के अनुसार, गन्ने जैसी नकदी फसलों की सिंचाई के लिए सीमित भूजल संसाधनों के अत्यधिक दोहन ने जमीन में 10 मीटर के भीतर पानी की उपलब्धता में 6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की है। कम वर्षा और सूखा भी भूजल की गिरावट का मुख्य कारण हैं। देश के उत्तरी-पश्चिमी और दक्षिणी-पूर्वी भागों में सूखे की समस्या सबसे ज्यादा है। यह क्षेत्र देश के कृषि उत्पादन और खाद्य संकट के लिये जिम्मेदार हैं जो एक प्राकृतिक परिणाम है।

जलवायु परिवर्तन

मई 2016 में राजस्थान के फलोदी में 51 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया, यह देश का अब तक का सबसे अधिकतम तापमान था। पिछले वर्षों में गर्मी की तरंगों में बढ़ोतरी हुई है। यह संकेत करती हैं कि देश अब ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है। हिमालय के ग्लेशियरों के एक गंभीर दर से पिघलने के कारण बड़ी मात्रा में बाढ़ जैसी प्राकृतिक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। पिछले पाँच वर्षों में वनों में आग, बाढ़ और भूकंप जैसी अन्य आपदाओं की संख्या अभूतपूर्व रही हैं।

प्लास्टिक का उपयोग

प्लास्टिक का असंयमित उपयोग देश के लिए एक अन्य बड़ी चिंता का विषय है। प्लास्टइंडिया फाउंडेशन के आँकड़ों के अनुसार,  भारत में पॉलिमर की मांग 2012-13 के 11 मिलियन टन से बढ़कर 2016-17 में 16.5 मिलियन टन हो जाने की उम्मीद है। 2006 में भारत में प्रति व्यक्ति द्वारा वार्षिक लगभग 4 किलोग्राम प्लास्टिक का उपयोग किया जा रहा था जो 2010 में बढ़कर लगभग 8 किलोग्राम हो गया। 2020 तक इसके लगभग 27 किलोग्राम प्रति व्यक्ति हो जाने की उम्मीद है। पर्यावरण को होने वाले नुकसान को जानने के लिये यह समझना बहुत जरूरी है कि प्लास्टिक निम्न बायोडिग्रेडेबल सामग्रियों में से एक हैं। एक औसत प्लास्टिक पेय की बोतल प्राकृतिक रूप से गलने में लगभग 500 वर्ष तक का समय ले सकती है।

कचरा निपटान और स्वच्छता

द इकोनॉमिस्ट दवारा 2014 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 130  मिलियन परिवारों (600 मिलियन जनसंख्या) के पास शौचालयों का अभाव है। भारत की लगभग 72 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण आबादी खुले में शौच करती है। प्राचीन तरीकों जैसे व्यक्तिगत सफाई कार्य अभी भी देश में प्रचलित है। देश में सुरक्षित कचरा निपटान का अभाव देश को विश्व के सबसे गंदे देशों में से एक बना देता है। इस संबंध में देश के ग्रामीण क्षेत्रो की स्थिति शहरी क्षेत्रों से भी खराब है। यह उन क्षेत्रों में से एक हैं जहाँ पर सरकार और लोगों को कड़ी मेहनत करने और प्रचलित परिस्थितियों में सुधार करने की आवश्यकता है।

जैव विविधता को क्षति

अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ द्वारा जारी लाल किताब में, भारत में पौधों और जानवरों की 47 प्रजातियों को गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों में सूचीबद्ध किया गया है। पारिस्थितिकी और प्राकृतिक निवास की क्षति ने कई स्वदेशी प्रजातियों को खतरे में डाल दिया है इनमें साइबेरियन सारस, हिमालय के भेड़िये और कश्मीर हिरण शामिल हैं यह सभी विलुप्त होने की कगार पर हैं। भारत में तीव्र शहरीकरण, शिकार और चमड़े के लिये अंधाधुन्ध शिकार आदि इन जानवरों को गंभीर रूप से लुप्तप्राय और जड़ी-बूटियों को विलुप्त की कगार पर पहुँचाने के लिये जिम्मेदार है। सामान्य तौर पर औषधीय गुण रखने वाले पौधों को आयुर्वेदिक उपचार के लिये काट लिया जाता है।

भारत की पर्यावरणीय चुनौतियों में दो प्रमुख कारण हैं जो इसको दो विशाल अनुपात में विभाजित करते हैं। जिनमें पहला जनसंख्या विस्फोट और दूसरा अरबों लोगों की जरूरत जो पर्यावरणीय स्थिरता को एक मुश्किल मुद्दा बनाती हैं। इसमें अन्य सबसे बड़ी चुनौती पर्यावरण के प्रति जागरूकता और संरक्षण की कमी है। सरकारी एजेंसियों और पर्यावरणीय संगठनों द्वारा किये गये प्रयासों के बावजूद जनता द्वारा किये जाने वाले प्रयासों का अभाव है। जब तक यह परिवर्तन नहीं होते हैं तब तक सुधार की उम्मीदें बहुत कम हैं। हम भावी पीढ़ियों के हित में ईमानदार और अच्छा कार्य करने के लिये युवाओं और देश की युवा पीढ़ियों पर आशा करते हैं।