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भारत के अधिक प्रदूषित शहरों के लिए नीती आयोग के तीन साल की कार्यसूची

August 26, 2017


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केंद्र सरकार के विशेषज्ञ समूह ने उल्लेख किया है कि उत्तर भारत में वायु प्रदूषण एक विनाशकारी स्तर पर पहुँच गया है। सरकार ने वायु प्रदूषण से संबंधित मामलों को तीन साल में सुलझाने के लिए एक योजना बनाई है। इस योजना में कई उपाय, जैसे कि जिन शहरों में प्रदूषण की दर उच्च है उनमें और साथ-साथ उनके आसपास के शहरों में पेट्रोल पर अधिक से अधिक कर लगाया जाएगा। यह उम्मीद की जाती है कि जिन शहरों में प्रदूषण अधिक है, उन शहरों में अन्य जगह जाने वाले यात्री कारों को साझा (एक साथ कई लोग) करेगें या सार्वजनिक परिवहन के विभिन्न तरीकों को अपनाने में सहभागिता दिखाएगें।

तीन साल की कार्य योजना

वर्ष “2019 – 2020” तक जारी रहने वाली तीन साल की कार्य योजना को “थ्री इयर एक्शन एजेंडा” नाम दिया गया है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने हाल ही में इस योजना का शुभारंभ किया है। इस योजना से सार्वजनिक परिवहन में यात्रियों की वृद्धि होगी और यात्रा काफी सुलभ हो जाएगी। यह योजना इसलिए लागू की जा रही है ताकि लोगों को अपने स्वयं के वाहनों को नियमित आधार पर उपयोग में लाए जाने से रोका जा सके। केंद्र सरकार के विशेषज्ञ समूह ने प्रदूषण में योगदान करने में भारी भूमिका निभाने वाले, कई कारणों की पहचान भी की है, जो निम्न हैं:

  • कोयला बिजली संयंत्र
  • ईंट के भट्टे
  • वाहन
  • खाना पकाने और गर्म करने में बायोमास आग (जैव ईंधन) का उपयोग करना
  • कूड़ा-करकट का जलना
  • खेत में बची हुई अपष्शिट सामग्री का दहन (खेत फूकना)
  • निर्माण स्थलों से निकलने वाली धूल

एकलौती दिल्ली ही दोषी नहीं

आम तौर पर जब हम उत्तर भारत के प्रदूषण के बारे में सोचते हैं, तो हम हमेशा भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली पर ही अपनी भड़ास निकाल देते हैं। हालांकि, लोकप्रिय धारणाओं के विपरीत, देश के उत्तरी हिस्से में विशाल प्रदूषण के लिए एकमात्र दिल्ली ही जिम्मेदार नहीं है, बल्कि दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से भारत का 10 वां स्थान हैं। नीति आयोग ने लोगों को प्रदूषण में योगदान देने वाले कारक, जैसे खेतों को जलाने को कम करने का भी सुझाव दिया है।

उपाय के सुझाव

नीति आयोग ने लोगों से खाना पकाने के लिए प्रयोग की जाने वाली आग से होने वाले प्रदूषण को कम करने का भी आग्रह किया है। विशेषज्ञ समूह ने कोयला बिजली संयंत्र के स्वामियों को फ्लू गैस शोधन उपकरण स्थापित करने के लिए कहा है। यह नियम विशेष रूप से घनी आबादी वाले शहरों या उनके आसपास स्थित कोयला बिजली संयंत्रों के लिए लागू किया गया है। हालांकि, इस विशेष सुझाव के लिए कुछ अपवाद होगा। 5 मेगावाट से कम क्षमता वाले कोयला बिजली संयंत्र और वर्ष 2020 तक 25 वर्ष से अधिक आयु वाले लोगो को इस योजना में छूट दी गई। प्रदूषण को कम करने के लिए अगले तीन वर्षों में ईंट के भट्टों को क्लीनर (स्वच्छ) प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल करने के लिए कहा गया है।

निष्कर्ष

यह देखकर अच्छा लगता है कि सरकार प्रदूषण को कम करने के लिए कदम उठा रही है। कुछ त्यौहारों में प्रदूषण की समस्या काफी बढ़ जाती है, जिससे दमे से परेशान लोगों को दिवाली जैसे त्यौहार को अपने परिवार के सदस्यों के साथ मनाने की बजाय अस्पताल में जाना पड़ता है, क्योंकि इस समय प्रदूषण अपने चरम पर होता है। प्रशासन ने पहले ही इन सुझावों के साथ अपना पहला कदम उठाया है, लेकिन इसके लिए हमें भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और यह भी सुनिश्चित करना होगा कि वे भलीभाँति क्रियान्वित हो रहे हैं कि नहीं।

इसके लिए हमारे सरकारी अधिकारियों को ईमानदारी से अपना काम करने की आवश्यकता होगी और लोग से भी अपेक्षा की जाती है कि अपना कार्य करवाने के लिए अधिकारियों को धन का प्रलोभन और अन्य लाभों को न दें। सरकार को सभी जगह उचित रूप से परियोजना की सफलतापूर्वक शुरूआत को सुनिश्चित करने के लिए, काफी लंबा रास्ता तय करना होगा। सरकार को शहरों के परिवहनों में भी सुधार करने की आवश्यकता है।

मुंबई के स्थानीय रेल मॉडल को, देश के दूसरे भागों के सरकारी समुदायों को भी अपनाने की आवश्यकता है – अगर वे सरकारी लोग भी मुनाफाखोरी के बारे में सोचने लगे, तो शहरों की स्थिति में कभी सुधार नहीं हो पाएगा। चालक और कंडक्टर पर कठोर दंड लगाए जाने की आवश्यकता है, ताकि वे लोगों को समय के सम्बन्ध में यात्रा के लिए मना न कर सकें। यह भी एक कारण है कि लोग निजी परिवहन से यात्रा करना पसंद करते हैं – इसलिए उन्हें लोगों को सार्वजनिक परिवहन या निजी परिवहन दोनों में से, सार्वजनिक परिवहन को चुनने के लिए एक ठोस तर्क प्रस्तुत करना होगा। इसके लिए सभी हितधारकों को आगे आकर अपनी जिम्मेदारी समझने की आवश्कता है।