महिला साक्षरता दर में कमी और हमारे समाज पर इसका प्रभाव
उच्च शिक्षा के स्तर से किसी भी देश या क्षेत्र के साथ-साथ दोनों लिंगों के विकास का संकेत मिलता है। इसीलिए सभी को शिक्षा को दृढ़तापूर्वक अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और हमारी सरकार भी इस पर ध्यान केंद्रित कर रही है। भारत ने इस क्षेत्र में काफी प्रगति की है और सभी प्रयासों के साथ जो साक्षरता दर वर्ष 1947 में 12 प्रतिशत थी, वह वर्ष 2011 में बढ़कर 74.04 प्रतिशत दर्ज की गई थी। फिर भी भारत द्वारा इस अवधि के दौरान जो हासिल करना चाहिए था, वह हासिल करने में कामयाब नहीं हुआ है।
सबसे पहले इस क्षेत्र में हुई प्रगति बहुत धीमी है। दूसरी, भारत में पुरुष और महिलाओं के बीच साक्षरता दर में काफी अंतर है। यह अनुमान लगाया गया है कि भारत वर्तमान में होने वाली साक्षरता दर में प्रगति के हिसाब से, वर्ष 2060 तक सार्वभौमिक साक्षरता प्राप्त करने में सफल हो पाएगा। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, पुरुषों की प्रभावशाली साक्षरता दर 82.14 प्रतिशत थी, लेकिन दूसरी तरफ महिलाओं की साक्षरता दर 65.46 प्रतिशत थी। यद्यपि महिलाओं की साक्षरता दर में काफी वृद्धि देखने को मिली है, जिसके फलस्वरूप पुरुष और महिलाओं के बीच साक्षरता दर का अंतर कम हो रहा है। इस तरह के आँकड़ों में, आशा की एक किरण भी मौजूद है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, वर्ष 2011 के बाद 10 करोड़ 70 लाख पुरुषों की तुलना में 11 करोड़ महिलाएं साक्षर हुई थीं। इसका मतलब यह है कि साक्षर महिलाओं की संख्या में इजाफा हो रहा है।
देश के मानव संसाधनों में लगभग 50 प्रतिशत महिलाओं का गठन होता है, लेकिन इनकी शिक्षा की कमी ने इनसे भारत की प्रगति और विकास का एक हिस्सा बनने का मौका छीन लिया है।
इसका मतलब है कि प्रगति की हमारी गति आवश्यक गति से कम है। यहाँ तक कि अगर महिलाएं अपनी शिक्षा का उपयोग नहीं करती हैं, तो हमारे समाज पर कुल निरक्षरता का काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
क्षेत्र- आधारित और राज्य-आधारित असमानता
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में महिला साक्षरता दर में एक नाटकीय अंतर देखने को मिलता है। ग्रामीण भारत की तुलना में शहरी इलाकों में महिला साक्षरता दर अधिक है। राजस्थान की अधिकांश ग्रामीण महिलाएं अशिक्षित हैं।
केरल में (वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 92 प्रतिशत) सबसे ज्यादा महिला साक्षरता दर है, जबकि भारत के राजस्थान राज्य में (वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 52.7 प्रतिशत) सबसे कम महिला साक्षरता दर है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार महिला साक्षरता दर 59.3 प्रतिशत और बिहार की वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार महिला साक्षरता दर 53.3 प्रतिशत है, जो कि भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य हैं, वहाँ भी महिला साक्षरता के निम्न स्तर दिखाई देते हैं। यह सीधे स्वास्थ्य और शिशु मृत्यु दर से संबंधित है। केरल में सबसे कम शिशु मृत्यु दर है, जबकि बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में उच्च मृत्यु दर दर्ज की गई है।
महिला साक्षरता दर में कमी और हमारे समाज पर इसका प्रभाव
महिला साक्षरता दर में कमी का सीधा मतलब यह है कि भारत का धीमा विकास, क्योंकि यह विकास के हर क्षेत्र को प्रभावित करती है। भारत परिवार नियोजन कार्यक्रमों के माध्यम से अपनी बढ़ती हुई आबादी को स्थिर करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है। परंतु अगर महिलाएं अशिक्षित होगीं, तो इन पहलों पर इसका प्रत्यक्ष और नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
जब कोई लड़की या महिला शिक्षित नहीं होती है, तो वह न केवल पीड़ित होती हैं, बल्कि पूरे परिवार को उसकी निरक्षरता के नतीजों का सामना करना पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि जीवन में शिक्षित लोगों की तुलना में अशिक्षित महिलाओं को अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि उनको उच्च स्तर की प्रजनन क्षमता और साथ ही मृत्यु दर, कुपोषण और अन्य कई स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं से जूझना पड़ता है। सर्वेक्षणों से यह पता चला है कि शिशु मृत्यु दर माता के शैक्षिक स्तर के व्युत्क्रम से संबंधित है। ऐसे परिदृश्य में न केवल महिलाओं को, बल्कि उनके बच्चों को भी समान परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। जो महिलाएं जीवन में शिक्षा के महत्व को नहीं जानती हैं, वे बच्चों की शिक्षा पर भी जोर नहीं देती हैं। इससे परिवार और साथ ही पूरे देश की प्रगति पर रोक लग जाती है।
शिक्षा का अभाव जागरूकता की कमी है। अशिक्षित महिलाएं अपने अधिकारों से अवगत नहीं हैं। महिलाएं अपने कल्याण के बारे में सरकार द्वारा जारी की गई पहलों से भी बेखबर हैं। अशिक्षित महिलाओं को अपने परिवारिक जीवन में कठिन संघर्ष और यहाँ तक कि अपने पतियों की कठोरता का सामना करना पड़ता है।
भारत में महिला साक्षरता दर कम क्यों है?
लड़कियों और उनकी शिक्षा के प्रति माता-पिता का नकारात्मक रवैया, निम्न या कम महिला साक्षरता दर के प्रमुख कारणों में से एक है। अधिकांश परिवारों में शिक्षा के मामले में लड़कों को अधिक प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन लड़कियों के प्रति उसी तरह का व्यवहार नहीं किया जाता है। शुरुआत से ही, माता-पिता लड़कियों को अपने परिवार के सदस्यों का भरण-पोषण करने का जरिया नहीं मानते हैं, क्योंकि शादी के बाद लड़कियों को अपने माता-पिता का घर छोड़ना पड़ता है। इसलिए उनकी शिक्षा को पैसे और समय के अपव्यय के रूप में माना जाता है। इसी कारणवश माता-पिता लड़कियों को नहीं, बल्कि लड़कों को स्कूल भेजना पसंद करते हैं।
भारत की समस्याओं का मूल कारण गरीबी और महिला साक्षरता दर में कमी है। भारत की एक तिहाई से अधिक जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करती है। हालांकि, सरकार प्राथमिक शिक्षा मुफ्त करने का प्रयास कर रही है, लेकिन फिर भी माता-पिता अपनी लड़कियों को स्कूल भेजने के लिए तैयार नहीं हैं। महिला साक्षरता दर में कमी का एक और कारण, अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में आसान आवागमन का अभाव है। यदि माता-पिता अपने गाँव या घर से बहुत दूर रहते हैं, तो वह स्कूल में लड़कियों को भेजना पसंद नहीं करते हैं। यहाँ तक कि अगर स्कूल समीप भी मौजूद होतेहैं, तो स्कूल में पर्याप्त सुविधा में कमी एक बाधा बन जाती है। कुछ स्कूलों की वास्तव में दयनीय परिस्थितियाँ हैं और यहाँ तक कि कुछ स्कूल बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार, उत्तर प्रदेश के 54 प्रतिशत स्कूलों में पानी की सुविधा नहीं है और 80 प्रतिशत स्कूल शौचालयों की सुविधा से वंचित हैं। यहाँ तक कि कुछ स्कूलों में तो सभी छात्रों को बैठाने के लिए पर्याप्त कमरे भी नहीं हैं।
भारत में महिलाओं की शिक्षा की एक और बाधा महिला शिक्षकों की कमी है। चूँकि भारत एक लिंग भिन्नता वाला समाज है, इसलिए यह भारत में महिला साक्षरता दर में होने वाली कमी का एक बहुत ही महत्पूर्ण कारक है।
सभी कारणों के बावजूद, महिलाओं को अपने मनपसंदीदा जीवन जीने के लिए यह समझना और महसूस करना चाहिए कि शिक्षा वास्तव में गरीबी के उत्साही चक्र को समाप्त कर सकती है। महिलाओं के जीवन के किसी भी दुर्भाग्यपूर्ण मामले में, यह शिक्षा ही उनकी मदद करेगी और कुछ भी नहीं। सरकार को भारत के ग्रामीण और साथ ही शहरी स्कूलों की संख्या, दूरी और गुणवत्ता को ध्यान में रखकर काम करना चाहिए। हमें संतुलित और शिक्षित समाज का निर्माण करने के लिए, लड़कियों को शिक्षा के प्रति प्रोत्साहित करना होगा।